Alwar History in Hindi

अलवर (Alwar History in Hindi) के कछवाहा वंश का इतिहास

आज हम अलवर के कछवाहा वंश के इतिहास (Alwar History in Hindi) की बात करेंगे ।

अलवर का कछवाहा वंश का इतिहास (History of Alwar ka Kachwaha Vansh in Hindi)

  • 11वीं सदी में अलवर का क्षेत्र (मेवात क्षेत्र)अजमेर के चौहानों के अधीन था । पृथ्वीराज चौहान की पराजय ( 1192 ई.) के बाद मेवाती स्वतंत्र हो गये ।
  • 1527 ई. में खानवा के युद्ध के बाद यह क्षेत्र मुगल साम्राज्य का अंग हो गया । बाद में यह जयपुर राज्य का अंग हो गया ।
  • आमेर के कछवाहा शासक उदयकरण ( 1367 ई.) के बड़े पुत्र वीरसिंह ने अपने पिता के दूसरी विवाह करने पर उस रानी से हुए राजकुँवर हेतु राज्य पर अपना अधिकार छोड़ दिया एवं मौजमाबाद की जागीर ले ली ।
  • वीरसिंह का पौत्र ‘नरू’ हुआ, जिसके वंशज नरूका कछवाहा कहलाये । नरू के पुत्र लालसिंह का बेटा उदयसिंह नरूका आमेर के कछवाहा शासक भारमल का सेनानायक था ।
  • उदयसिंह नरूका का पुत्र लालखाँ सिंह आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम के बड़े सरदारों में से एक था । लालखाँ सिंह के पुत्र फतेहसिंह का सबसे बड़ा पुत्र कल्याण सिंह नरूका था। कल्याण सिंह नरूका आमेर के शासक मिर्जा राजा जयसिंह के समय मौजमाबाद की जागीर का मालिक था ।
  • सन् 1671 में जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह ने कल्याण सिंह नरूका को माचेड़ी की जागीर प्रदान की । कल्याणसिंह के बाद राव उग्रसिंह तथा उसके बाद तेजसिंह माचेड़ी का स्वामी बना ।
  • तेजसिंह के सबसे बड़े पुत्र का नाम जोरावरसिंह नरूका था , जिसने माचेड़ी पर राज किया तथा उसके बाद मुहब्बत सिंह माचेड़ी का जागीरदार बना ।

रावराजा प्रताप सिंह ( 1775-1790 ई.)

  • माचेड़ी के शासक मुहब्बत सिंह के पुत्र प्रतापसिंह नरूका का जन्म 13 मई 1740 ईस्वी को हुआ । प्रतापसिंह जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम की सेवा में था । उसके बाद कुछ दिनों के लिए प्रतापसिंह भरतपुर के जाट शासक सूरजमल की सेवा में हाजिर हो गया ।
  • जाट राजा सूरजमल के पुत्र जवाहरसिंह की सेना का मांवण्डा नामक स्थान पर जयपुर की सेना से 1766 ई. में युद्ध हुआ तो प्रतापसिंह ने जवाहरसिंह पर जोरदार हमला कर दिया । जयपुर महाराजा माधोसिंह से बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने प्रताप सिंह नरूका को ‘राव राजा’ की उपाधि दी एवं माचेड़ी के सिवाय राजगढ़ में किला बनाने की अनुमति दे दी ।
  • प्रतापसिंह नरूका ने 1770 ईस्वी में राजगढ़ दुर्ग एवं टहला दुर्ग का निर्माण करवाया एवं राजगढ़ के दुर्ग के पास राजगढ़ कस्बा बसाया । इन्होंने वहां स्थित देवती झील में जलमहल का निर्माण करवाया ।
  • इसके बाद 1772 ईस्वी में मालाखेड़ा का दुर्ग व 1773 ई. में बलदेवगढ़ का किला निर्मित करवाया ।
  • प्रतापसिंह नरूका बाद में मुगलों की सेवा में रहने लगा । मुगल सेनापति नजफ खाँ ने 1774 ई. में प्रताप सिंह के सहयोग से भरतपुर की सेना के कब्जे से ‘आगरा का किला’ खाली करवाया । तब बादशाह द्वारा इन्हें ‘रावराजा’ का खिताब, 5 हजारी मनसब , माचेड़ी की जागीर व ‘माही मरातिब’ का खिताब दिया ।
  • 1774 ई. में माचेड़ी जयपुर राज्य से हमेशा के लिए स्वतंत्र हो गई ।
  • इन्होंने 1774 ई. में ही प्रतापगढ़ का दुर्ग बनवाया ।इसी वर्ष उन्होंने अजबगढ़ एवं थानागाजी के किलों का निर्माण करवाया ।
  • 25 नवंबर 1575 ईसवी को प्रताप सिंह ने भरतपुर राज्य से अलवर छीन कर उसे अपनी राजधानी बनवाया । तभी से यह अलवर राज्य बन गया ।
  • 26 दिसंबर 1790 ईस्वी को रावराजा प्रताप सिंह का निधन हो गया ।

रावराजा बख्तावरसिंह ( 1790-1815 ई.)

  • रावराजा प्रतापसिंह के निधन के बाद उनके पुत्र बख्तावरसिंह अलवर राज्य के शासक बने ।
  • सन् 1800 में रावराजा बख्तावरसिंह ने घसावली के स्वामी खानजादा जुल्फीकार खाँ को भगाकर वहां गोविंदगढ़ कस्बा बसाया ।
  • 1803 ई. में लासवाड़ी के युद्ध में अंग्रेजी सेना की अच्छी सहायता करने के उपलक्ष्य में इन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा राठ का जिला ईनाम में दिया गया । उसके बाद सरकार ने इन्हें कठूमर, सूरवर , तिजारा एवं टपूकड़ा का क्षेत्र सौंपा ।
  • 1803 ई. में रावराजा बख्तावरसिंह ईस्ट इंडिया कंपनी से सहायक सहयोग संधि कर ली ।
  • 11 फरवरी 1815 को रावराजा बख्तावरसिंह का उन्माद रोग से देहांत हो गया ।

महाराजा विनय सिंह ( 1815-1857 ई.)

  • रावराजा बख्तावरसिंह के कोई वारिस नहीं था । उसकी पासवान मूसी से बलवंतसिंह नामक पुत्र था । रावराजा बख्तावरसिंह का भतीजा विनयसिंह भी बचपन से रावराजा के साथ था । अत: 12 फरवरी 1815 को विनयसिंह व बलवंतसिंह दोनों को एक साथ उत्तराधिकारी घोषित कर गद्दी पर बैठा दिया । ईस्ट इंडिया कंपनी ने दोनों को बराबर का शासक होने की मान्यता दे दी । राजस्थान के इतिहास में एक ही रियासत के एक साथ दो शासक होने का एकमात्र उदाहरण है ।
  • उसमें बाद विनयसिंह के सरदारों ने बलवंतसिंह को कैद कर लिया । कुछ दिनों बाद विनयसिंह ने बलवंतसिंह को नीमराना व तिजारा की जागीर प्रदान कर दी । इस प्रकार 1826 में अलवर से नीमराणा की पृथक रियासत बनी परंतु 1845 ईस्वी में बलवंतसिंह के नि: संतान मर जाने पर इसी पुन: अलवर रियासत में मिला दिया गया ।
  • महाराजा विनयसिंह ने कोलानी गाँव में दुर्ग बनवाकर उसका नाम ‘रघुनाथगढ़ दुर्ग’ रखा । इसके बाद इन्होंने 1835 ईस्वी में बजरंगढ़ का किला बनवाया ।
  • 1857 की क्रांति के समय विनयसिंह ही अलवर के शासक थे ।
  • 15 जुलाई 1857 को बीमारी के चलते इनका देहांत हो गया ।

महाराव राजा शिवदान सिंह ( 1857-1874 ई.)

  • महाराव राजा विनयसिंह के निधन के बाद उनके पुत्र शिवदान सिंह 15 जुलाई 1857 को अलवर रियासत की गद्दी पर बैठे ।
  • इनके अवयस्कता के शासनकाल में मुंशी अम्मूजान ने शासन पर अपना प्रभुत्व कायम कर लिया । राजपूत सरदारों ने इकट्ठा होकर 1848 ई. में अम्मूजान को वहाँ से भगा दिया ।
  • राज्य के शासन प्रबंध हेतु ठाकुर लखधीर सिंह की अध्यक्षता में सरदारों की एक कौंसिल बना दी ।
  • अलवर के पॉलिटिकल अर्जेंट कप्तान इम्पी ने अलवर में ‘इम्पी ताल’ नामक तालाब का निर्माण करवाया ।
  • 11 अक्टूबर 1874 को रावराजा शिवदान सिंह का निधन हो गया ।

रावराजा मंगलसिंह ( 1874-1892 ई.)

  • रावराजा शिवदान सिंह की नि:संतान मृत्यु हो जाने पर अंग्रेजी सरकार ने मंगलसिंह को अलवर की गद्दी पर बैठा दिया ।
  • मंगलसिंह की अवयस्कता के कारण सितार-ए- हिंद पंडित मनफूल को इनका संरक्षक नियुक्त किया गया ।
  • अजमेर में मेयो कॉलेज खुल जाने पर सबसे पहले दाखिला लेने वालों में महाराजा मंगल सिंह थे ।
  • 1875 ईसवी में रावराजा मंगलसिंह द्वारा दिल्ली से अलवर व बांदीकुई तक रेलवे लाइन बिछाकर रेल सेवा प्रारंभ की गई ।
  • 1888 ई. में सरकार ने इन्हें कर्नल की उपाधि एवं महाराजा का खिताब प्रदान किया ।
  • 1892 ई. में अधिक शराब के सेवन से महाराव राजा मंगल सिंह का नैनीताल में निधन हो गया ।

महाराजा सर जयसिंह ( 1892-1933 ई.)

  • रावराजा मंगलसिंह के देहांत के बाद उनके 10 वर्षीय पुत्र जयसिंह को अलवर के सिंहासन पर बिठाया ।
  • 1905 ई. में राज्य की पुलिस व्यवस्था का पुनर्गठन किया ।
  • उन्होंने 1907 में अलवर राज्य की राजभाषा उर्दू के स्थान पर हिंदी निश्चित की ।
  • प्रथम विश्वयुद्ध में उन्होंने अपनी सेनाएँ अंग्रेजों की सहायता के लिए स्वेज नहर, मिश्र, सिनाई प्रायद्वीप, गाजा पट्टी एवं राफा स्थानों पर भेजी ।
  • 1923 ईस्वी में ये नरेंद्र मंडल के सदस्य बने ।
  • 1931 ईस्वी में लंदन में हुए प्रथम गोलमेज सम्मेलन में महाराजा जयसिंह नरेंद्र मंडल के सदस्य के रूप में सम्मिलित हुए ।
  • ‘नरेन्द्र मंडल’ नाम इन्हीं की देन है ।
  • 1925 में नीमूचाणा कस्बे में किसानों द्वारा विभिन्न करों के विरुद्ध किए गए आंदोलन को कुचलने हेतु उन्होंने किसानों की सभा पर 2 घंटे तक गोलीबारी करवाई थी । महात्मा गांधी ने इस हत्याकांड को जलियांवाला बाग हत्याकांड से तुलना की थी ।
  • 1937 में पेरिस में महाराव जयसिंह का नि:संतान निधन हो गया ।

रावराजा तेजसिंह ( 1937-48 ई.)

  • महाराव जयसिंह कि बिना वारिस की मृत्यु हो जाने पर सरकार ने उनके नजदीकी रिश्तेदार चंद्रपुरा के ठाकुर गंगासिंह के पुत्र तेजसिंह को अलवर राज्य का उत्तराधिकारी नियत किया ।
  • इनके काल में अलवर रियासत में एक नई राजनैतिक चेतना का संचार हुआ । लोगों ने राज्य में पूर्ण उत्तरदायी सरकार की स्थापना के लिए प्रजामंडल आंदोलन चलाया ।
  • 18 मार्च 1948 को अलवर राज्य का मत्स्य संघ में विलय हो गया । मत्स्य संघ की राजधानी अलवर बनाई गई । धौलपुर नरेश उदयभान सिंह मत्स्य संघ के राजप्रमुख एवं अलवर रावराजा तेजसिंह उप राज्य प्रमुख बनाए गए । अलवर प्रजामंडल के नेता शोभाराम कुमावत मत्स्य संघ के प्रधानमंत्री बने । 15 मई 1949 को मत्स्य संघ का विलय वृहत्तर राजस्थान में कर दिया गया ।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

सिलिसेढ़ झील :- अलवर के रावराजा विनयसिंह द्वारा 1844 ईसवी में रूपारेल नदी की एक सहायक नदी को रोककर इस झील का निर्माण करवाया । यह अलवर से 15 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में है ।

चूहड़सिद्ध का मेला :- डेहरा स्थान में फरवरी माह में शिवरात्रि के दिन आयोजित मेला ।

बिलाली माता का मंदिर :- बानसूर में मार्च-अप्रैल में आयोजित मेला ।

भर्तृहरि का मेला :- थानागाजी में वैशाख-भाद्रपद में आयोजित मेला ।

साहबजी का मेला :- किशनगढ़ में भाद्रपद माह में आयोजित मेला ।

नारायणी का मेला :- थानागाजी में वैशाख माह में आयोजित मेला ।

लालदास जी का मेला :- शेरपुर एवं राजगढ़ में आश्विन, आषाढ़ एवं माघ माह में आयोजित मेले ।

Leave a Reply

Discover more from GK Kitab

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Scroll to Top