ध्वनि की परिभाषा , प्रकार ,मात्रक और विशेषताएं

आज हम सामान्य विज्ञान में (Sound in Hindi) तंरग गति,ध्वनि तरंगे, चाल, लक्षण, गुण आदि के बारे में जानेंगे, जो आपके आने वाले एग्जाम SSC, RRB, Patwari, आदि में प्रश्न पूछा जाता है ।

Sound in Hindi
Sound in Hindi

तंरगे (Waves in Hindi) :-

तरंगों के द्वारा ऊर्जा का एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण होता है । तरंगों को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है –

(१) यांत्रिक तरंगें ( Mechanical Waves)
(२) विद्युत चुंबकीय तरंगे ( Electromagnetic Waves)

(1) यांत्रिक तरंगें ( Mechanical Waves in Hindi) :-

वे तरंगे, जो किसी पदार्थिक माध्यम (ठोस,द्रव और गैस ) में संचरित होती है, यांत्रिक तरंगे कहलाती है । इन तरंगों के किसी माध्यम में संचरण करने के लिए यह आवश्यक है कि माध्यम में प्रत्यास्थता व जड़त्व के गुण मौजूद हों ।

यांत्रिक तरंगों के प्रकार :- यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है –

(१) अनुप्रस्थ तरंगे ( Transverse Waves) :- जब किसी माध्यम में तरंग गति की दिशा मध्यम के कणों के कंपन करने की दिशा के लंबवत् होती है तो इस प्रकार की तरंगों को अनुप्रस्थ तरंगे कहते हैं । अनुप्रस्थ तरंगे केवल ठोस माध्यम में एवं द्रव के ऊपरी सतह पर उत्पन्न की जा सकती है ।

द्रवों के भीतर एवं गैसों में अनुप्रस्थ तरंगे उत्पन्न नहीं की जा सकती है । अनुप्रस्थ तरंगे शीर्ष एवं गर्त के रूप में संचरित होती है ।

(२) अनुदैर्ध्य तरंगे ( Longitudinal Waves) :- जब किसी माध्यम में तरंग गति की दिशा माध्यम के कणों की कंपन करने की दिशा के अनुदिश या समांतर होती है तो ऐसी तरंगों को अनुदैर्ध्य तरंगे कहते हैं ।

अनुदैर्ध्य तरंगे सभी माध्यम में उत्पन्न की जा सकती है ।

ये तरंगें संपीडन और विरलन के रूप में संचरित होती है । संपीडन वाले स्थान पर मध्यम का दाब एवं घनत्व अधिक होता है , जबकि विरलन वाले स्थान पर मध्यम का दाब एवं घनत्व कम होता है ।

वायु में उत्पन्न तरंगे, भूकंप तरंगे , स्प्रिंग में उत्पन्न तरंगे आदि सभी अनुदैर्ध्य तरंगे होती हैं ।

(2) विद्युत चुंबकीय तरंगे ( Electromagnetic Waves in Hindi)

यांत्रिक तरंगों के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार की तरंगे भी होती है , जिनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती तथा वे तरंगे निर्वात् में भी संचरित हो सकती है । इन्हें अयांत्रिक या विद्युत चुंबकीय तरंगे कहते हैं । जैसे :- प्रकाश तरंगे, रेडियो तरंगे, X-तरंगे आदि ।

विद्युत चुंबकीय तरंगे सदैव अनुप्रस्थ होती है तथा इन तरंगों की चाल प्रकाश के चाल के बराबर होती है ।

विद्युत चुंबकीय तरंगों का तरंगदैर्ध्य परिसर मीटर से लेकर मीटर तक होता है ।

प्रमुख विद्युत चुंबकीय तरंगे :-

विद्युत चुंबकीय तरंगे खोजकर्ता तरंगदैर्ध्य परिसर आवृर्ती परिसर     उपयोग
गामा-किरणें (Υ-rays) बैकुरल 10⁻¹⁴से 10⁻¹⁰ m तक 10²⁰से 10¹⁸ m तक नाभिकीय अभिक्रिया तथा कृत्रिम रेडियोधर्मिता में
एक्स-किरणें (X-rays) रॉन्जन 10⁻¹⁰से 10⁻⁸m तक 10¹⁸से 10¹⁶ m तक चिकित्सा एवं औद्योगिक क्षेत्र में
पराबैंगनी किरणें (UV-rays) रिटर 10⁻⁸से 10⁻⁷m तक 10¹⁶से 10¹⁴ m तक सेंकाई करने, प्रकाश विद्युत प्रभाव को उत्पन्न करने व बैक्टीरिया को नष्ट करने में ।
दृश्य-विकिरण न्यूटन 3.9×10⁻⁷से 7.8×10⁻⁷ तक 10¹⁴से 10¹² m तक वस्तु देखने में ।
अवरक्त विकिरण हर्शेल 7.8×10⁻⁷ से 10⁻³ तक 10¹²से 10¹⁰ m तक कुहरे में फोटोग्राफी करने में , टीवी के रिमोट कंट्रोल में ।
लघु रेडियो तरंगे हेनरिक हर्ट्ज 10⁻³ से 1 m तक 10¹⁰से 10⁸ m तक रेडियो, टेलीविजन एवं टेलीफोन में ।
दीर्घ रेडियो तरंगे मारकोनी 1 m से 10⁴ तक 10⁶से 10⁴ m तक रेडियो एवं टेलीविजन में ।

तरंग गति ( Wave Motion) :- जब हम तलाब में एक पत्थर का टुकड़ा फेंकते हैं, तो पत्थर के गिरने के स्थान पर विक्षोभ उत्पन्न होता है जो तरंगों के रूप में जल के चारों ओर फैल जाता है । यह विक्षोभ तरंगों के रूप में आगे बढ़ जाता है जबकि माध्यम के कण यानि जल के कण अपने स्थान पर तरंग गति की दिशा में लंबवत् ऊपर नीचे कंपन करते रहते हैं । इस प्रकार विक्षोभ को आगे बढ़ने की प्रक्रिया को तरंग गति कहते हैं ।

कम्पन की कला ( Phase of Vibration) :- आवर्त गति में कंपन करते हुए किसी कण की किसी क्षण पर स्थिति तथा गति की दिशा को जिस राशि द्वारा निरूपित किया जाता है , उसे उस क्षण पर उस कण के कम्पन की कला कहते हैं ।

आयाम (Amplitude) :- दोलन करने वाली वस्तु का अपने माध्य स्थिति से महत्तम विस्थापन को दोलन का आयाम कहते हैं । इसे (a) से व्यक्त किया जाता है ।

आवर्तकाल (Time Period) :- माध्यम का कम्पन करता हुआ कोई कण एक कंपन पूरा करने में जितना समय लेता है उसे आवर्तकाल कहते हैं ।इसे (T) से व्यक्त किया जाता है ।

तरंगदैर्ध्य ( Wave Length) :- माध्यम के किसी कण के एक पूरा कंपन किए जाने पर तिरंगे जितनी दूरी तय करती है उसे तरंगदैर्ध्य कहते हैं ।इसे (λ) से व्यक्त किया जाता है ।

आवृत्ति ( Frequency) :- माध्यम का कंपन करता हुआ कोई कण एक सेकंड में जितना कंपन करता है , उसे आवृत्ति कहते हैं ।

  • n = 1/T

सभी प्रकार की तरंगों में तरंग के वेग , तरंगदैर्ध्य व आवृत्ति के बीच निम्नलिखित संबंध होता है –

  • तरंग का वेग (ν) = आवृत्ति(n) x तरंगदैर्ध्य(λ)

ध्वनि (Sound) :- ध्वनि तरंगे अनुदैर्ध्य तरंगे होती है । इसकी उत्पत्ति वस्तुओं में कंपन होने से होती है लेकिन सभी प्रकार का कंपन ध्वनि उत्पन्न नहीं करता ।

ध्वनि तरंगों के प्रकार :-

(१) अवश्रव्य तंरगें :- 20 Hz से नीचे की आवर्ती वाली ध्वनि तरंगों को अवश्रव्य तंरगें कहते हैं । इसी मनुष्य के कान सुन नहीं सकते हैं ।

(२) श्रव्य तंरगें :- 20 Hz से 20000 Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तंरगें कहते हैं । इन तरंगों को मनुष्य के कान सुन सकते हैं ।

(३) पराश्रव्य तंरगें :- 20000 Hz से ऊपर की तरंगों को पराश्रव्य तंरगें कहते हैं । मनुष्य के कान इसे नहीं सुन सकते हैं । परंतु कुछ जानवर जैसे- कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़ आदि इसे सुन सकते हैं ।

पराश्रव्य तंरगें के उपयोग :-
(१) संकेत भेजने में
(२) समुंद्र की गहराई का पता लगाने में
(३) कीमती कपड़ों, वायुयान तथा घड़ियों के पुर्जों को साफ करने में ।
(४) कल-कारखानों की चिमनियों से कालिख हटाने में ।
(५) दूध के अंदर के हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में ।
(६) गठिया रोग के उपचार एवं मस्तिष्क के ट्यूमर का पता लगाने में ।

ध्वनि की चाल :- विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल भिन्न-भिन्न होती है । किसी माध्यम में ध्वनि की चाल मुख्यतः माध्यम की प्रत्यास्थता (E) तथा घनत्व (d) पर निर्भर करती है ।

गैसों के सापेक्ष द्रवों में प्रत्यास्थता अधिक होती है तथा ठोसों में सबसे अधिक होती है । यही कारण है कि द्रवों में ध्वनि की चाल गैसों की अपेक्षा अधिक तथा ठोसों में सबसे अधिक होती है ।

माध्यमों में ध्वनि की चाल :-

कार्बन डाइऑक्साइड– 260 (मी/से)
वायु –332 (मी/से)
भाप —405 (मी/से)
अल्कोहल —1213 (मी/से)
हाइड्रोजन —1269 (मी/से)
पारा —1450 (मी/से)
जल— 1493 (मी/से)
समुंद्री जल– 1533 (मी/से)
लोहा —5130 (मी/से)
काँच— 5640 (मी/से)
एलुमिनियम –6420 (मी/से)

ध्वनि की चाल पर विभिन्न भौतिक राशियों का प्रभाव :-
(१) दाब का प्रभाव ➡ कोई प्रभाव नहीं
(२) आर्द्रता का प्रभाव ➡ बढ़ जाता है ।
(३) ताप का प्रभाव ➡ बढ़ जाता है ।
(५) मध्यम की वेग का प्रभाव ➡ बढ़ जाता है ।

ध्वनि के लक्षण :- ध्वनि के मुख्यतः 3 लक्षण होते हैं – (१) तीव्रता (२) तारत्व (३) गुणता

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 45 डेसीबल ध्वनि मानव के लिए सर्वोत्तम होती है । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 75 डेसीबल से ऊपर की ध्वनि को मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना है ।

85 डेसीबल से अधिक ध्वनि में व्यक्ति बहरा हो सकता है और 150 डेसीबल की ध्वनि तो व्यक्ति को पागल बना सकती हैं ।

डॉप्लर प्रभाव (Doppler Effect) :-

इस प्रभाव को आस्ट्रिया के भौतिकवेक्ता क्रिस्चियन जॉन डॉप्लर ने सन 1842 में प्रस्तुत किया था । इसके अनुसार श्रोता या स्रोत की गति के कारण किसी तरंग की आवृत्ति बदली हुई प्रतीत होती है । आवृत्ति बदली हुई प्रतीत होने की घटना को डॉप्लर प्रभाव कहते हैं ।

(१) जब आपेक्षित गति के कारण श्रोता या स्रोत के बीच की दूरी घट रही होती है, तब आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है ।
(२) जब आपेक्षित गति के कारण श्रोता या स्रोत के बीच की दूरी बढ़ रही होती है, तब आवृत्ति घटती हुई प्रतीत होती है ।

उदाहरण :- डॉप्लर प्रभाव के कारण ही जब रेलगाड़ी का इंजन सिटी बजाते हुए श्रोता के निकट आता है तो उसकी ध्वनि बड़ी तीखी या अधिक सुनाई पड़ती है ।

ध्वनि के गुण :-

(1) ध्वनि का परावर्तन :-

(१) प्रतिध्वनि :- जो ध्वनि किसी दृढ़ दीवार , पहाड़, गहरे कुएँ आदि से टकराने के बाद सुनाई देती है इसे प्रतिध्वनि कहते हैं ।

प्रतिध्वनि द्वारा हम समुंद्र की गहराई , वायुयान की ऊंचाई , सुदूर स्थित पहाड़ की दूरी आदि की माप कर सकते हैं ।

(२) अनुरणन :- किसी हॉल में ध्वनि स्रोत को बंद करने के बाद भी ध्वनि का कुछ देर तक सुनाई देती है, अनुरणन देना अनुरणन कहलाता है ।

उदाहरण :- बादलों का गर्जना

मैक संख्या :- किसी माध्यम में किसी पिंड की चाल तथा उसी माध्यम में ताप व दाब की उन्हीं परिस्थितियों में ध्वनि की चाल के अनुपात को उस वस्तु की उस माध्यम में मैक संख्या कहते हैं ।

(2) ध्वनि का अपवर्तन :- रात्रि में दूर-दूर तक सुनाई देना ।

(3) प्रणोदित कम्पन

(4) ध्वनि का व्यक्तिकरण :- जब समान आवर्ती या आयाम की दो ध्वनि तरंगे एक साथ किसी बिंदु पर पहुंचती है , तो इस बिंदु पर ध्वनि ऊर्जा का पुन: वितरण हो जाता है । इस घटना को ध्वनि का व्यक्तिकरण कहते हैं ।

यदि दोनों तरंगे उस बिंदु पर एक ही कला में पहुंचती है तो वहां ध्वनि की तीव्रता अधिकतम होती है । इसे सम्पोषी व्यक्तिकरण कहते हैं । यदि दोनों तरंगे विपरीत कला में पहुंचती है , तो वहाँ पर तीव्रता न्यूनतम होती है । इसे विनाशी व्यक्तिकरण कहते हैं ।

(5) ध्वनि का विवर्तन :- ध्वनि का तरंगदैर्ध्य 1 मीटर की कोटी का होता है । अत: जब इसी कोटी का कोई अवरोध ध्वनि के मार्ग में आता है , तो ध्वनि अवरोध के किनारे से मुड़कर आगे बढ़ जाती है । इस घटना को ध्वनि का विवर्तन कहते हैं । यही कारण है कि बाहर से आने वाली ध्वनि दरवाजे, खिड़की आदि पर मुड़कर हमारी कानों तक पहुंच जाती है ।

Sound in Hindi

Leave a Reply

Scroll to Top