आज हम सामान्य विज्ञान में प्रकाश किसे कहते हैं , चाल व प्रकृति । Prakash ki Paribhasha की बात करेगें, जो आपके आने वाले एग्जाम SSC, RRB, Patwari, आदि में प्रश्न पूछा जाता है ।

प्रकाश (Light in Hindi) किसे कहते है ?
हमारी दृष्टि की अनुभूति जिस बाह्य भौतिक करण के द्वारा होती है, उसे हम प्रकाश कहते हैं । अत: प्रकाश एक प्रकार का साधन है, जिसके सहारे आँख वाले लोग किसी वस्तु को देखते हैं ।
प्रकाश की दोहरी प्रगति –
आज प्रकाश को कुछ घटनाओं में तरंग और कुछ में कण में माना जाता है । कुछ घटनाओं में उसकी तरंग प्रकृति प्रबल होती है और कुछ में प्रकाश की कण प्रकृति स्पष्टत: उभरकर जाती है और तंरग प्रकृति दबी रहती है । इसी को प्रकाश की दोहरी प्रकृति कहते हैं ।
प्रकाश का विद्युत चुंबकीय तरंग सिद्धांत प्रकाश के केवल कुछ प्रमुख गुणों की व्याख्या कर पाता है – प्रकाश का परावर्तन , अपवर्तन , सीधी रेखा में चलना , विवर्तन , व्यतिकरण व ध्रुवण ।
प्रकाश के कुछ गुण ऐसे भी हैं जिनकी व्याख्या तंरग सिद्धांत नहीं कर पाता है – प्रकाश का विद्युत प्रभाव तथा कॉम्पटन प्रभाव ।
इन प्रभावों की व्याख्या आइन्सटीन द्वारा प्रतिपादित प्रकाश के फोटॉन सिद्धांत द्वारा की जाती है । इस सिद्धांत के अनुसार , प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों या पैकेटों के रूप में चलता है , जिन्हें फोटॉन (Photon) कहते हैं ।
प्रकाश की चाल (Speed of Light) :-
सर्वप्रथम रोमर नामक वैज्ञानिक ने बृहस्पति ग्रह के उपग्रहों की गति को देखकर प्रकाश का वेग ज्ञात किया था । उसने बृहस्पति ग्रह के एक उपग्रह में लगने वाली दो ग्रहणोॉ के बीच की अवधि को माप कर प्रकाश की चाल ज्ञात की ।
प्रकाश का वेग सबसे अधिक निर्वात् में होता है । निर्वात् में प्रकाश की चाल का सर्वाधिक मान 1,86,310 मील प्रति सेकण्ड या 2,99,776 किलोमीटर प्रति सेकण्ड या 3×10⁸ मीटर प्रति सेकण्ड है ।
किसी पदार्थ में प्रकाश की चाल निर्वात् से कम होती है । निर्वात् की तुलना में हवा में प्रकाश की चाल 0.03% कम, पानी में 25% कम तथा काँच में 35% कम होती है ।
विभिन्न माध्यमों में प्रकाश की चाल-
माध्यम | प्रकाश की चाल (मी./से.) |
निर्वात् | 3×10⁸ |
पानी | 2.25×10⁸ |
तारपीन का तेल | 2.04×10⁸ |
काँच | 2×10⁸ |
रॉक साल्ट | 1.96×10⁸ |
नाइलोन | 1.96×10⁸ |
प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में औसतन 499 से. (अर्थात् 8 मिनट 19 सेकंड ) का समय लगता है । इसी प्रकार चंद्रमा से परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.28 से. का समय लगता है ।
प्रकाश का सरल रेखीय गमन :- समांग माध्यमों में प्रकाश की किरणें सरल रेखा में चलती है । इसे प्रकाश का सरल रेखीय गमन कहते हैं । जैसे:- सूची-छिद्र कैमरा में उल्टे चित्र का बनना, विभिन्न प्रकार की छायायों का बनना, सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण ।
स्मरणीय नोट:-
(१) सर्वप्रथम अंग्रेज भौतिकीविद् एवं गणितज्ञ न्यूटन ने बताया कि श्वेत प्रकाश सभी रंगों के प्रकाश से मिलकर बना है । न्यूटन ने ही बताया कि प्रकाश अत्यंत सूक्ष्म कणों के बने होते हैं और ये सीधी रेखा में गमन करते हैं ।
(२) डच भौतिकशास्त्री हाइजेन ने प्रकाश का तरंग सिद्धांत (Wave Theory) दिया ।
(३) सन् 1800 में अंग्रेज भौतिकवेत्ता थॉमस यंग ने प्रकाश के व्यतिकरण का सिद्धांत दिया ।
(४) सन् 1864 में ब्रिटिश भौतिक शास्त्री मैक्सवेल ने विद्युत चुंबकत्व का गणितीय सिद्धांत दिया ।
(५) सन् 1900 में जर्मन भौतिकविद् मैक्स प्लांक ने एक समीकरण दिया तो किसी गर्म सतग से उत्सर्जित होने वाले प्रकाश के प्रायोगिक आंकड़ो से मेल खाता था । उन्होंने क्वांटम यांत्रिकी का सिद्धांत दिया ।
प्रकाश की छाया :- जब प्रकाश किरणों के रास्ते में कोई अपारदर्शी वस्तु आ जाती है, तो प्रकाश की किरणें आगे नहीं जा पाती है । वस्तु के आगे पर्दा रहने पर पर्दे के प्रकाशित भाग के बीच कुछ भाग ऐसा होता है जो काला दिखता है , क्योंकि वहां अंधकार रहता है । इस भाग को छाया कहते हैं ।
छाया की लंबाई तथा आकार :- (१) प्रकाश के उद्गम (२) अपारदर्शी वस्तु के आकार (३) प्रकाश के उद्गम तथा वस्तु के बीच की दूरी पर निर्भर करता है ।
प्रच्छाया एवं उपच्छाया :- जब प्रकाश का उद्गम बिन्दुवत् हो तो उससे बनने वाली छाया में एक जैसा अंधकार रहता है । जब प्रकाश के उद्गम का विस्तार रुकावट की अपेक्षा बड़ा हो तो छाया के मध्य भाग में प्रकाश एकदम नहीं पहुँचने के कारण पूर्ण अंधकार रहता है । यह प्रच्छाया (Umbra) कहलाता है और जिस भाग में अंशत: प्रकाश पहुंचता है उससे उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं ।
ग्रहण (Eclipse) :-
(1) सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) :- जब सूर्य तथा पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है और उस भाग में सूर्य नहीं दिखाई पड़ता है । इसे ही सूर्यग्रहण कहते हैं । ऐसी स्थिति अमावस्या के दिन होती है ।
(2) चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) :- जब सूर्य एवं चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है , तो चंद्रमा का वह भाग दिखलाई नहीं पड़ता है, इसे ही चंद्र ग्रहण करते हैं । ऐसी स्थिति पूर्णिमा के दिन होती है ।
नोट :- हर महीने ग्रहण नहीं दिखाई देता क्योंकि पृथ्वी का कक्ष-तल चंद्रमा के कक्ष-तल के साथ 5° कोण बनाती है ।