Reflection of Light in Hindi

प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light in Hindi)

आज हम सामान्य विज्ञान में प्रकाश का अपवर्तन (Reflection of Light in Hindi) की बात करेगें, जो आपके आने वाले एग्जाम SSC, RRB, Patwari, आदि में प्रश्न पूछा जाता है ।

Prakash ka pravartan in Hindi

प्रकाश का परावर्तन :- प्रकाश के चिकने पृष्ठ से टकराकर वापस लौटने की घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं ।

परावर्तन के नियम (Laws of Reflection):- परावर्तन के दो नियम हैं –

(1) आपतन कोण(Angle of Incidence) परावर्तन कोण(Angle of Reflection) के बराबर होता है ।

(2) आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण एक ही समतल में होते हैं ।

समतल दर्पण (Plane mirror) :- समतल दर्पण का परावर्तक सतह समतल होता है । इस में शीशे के एक और धातु की पतली परत चढ़ी होती है और किरण क्षय को रोकने के लिए लेप किया जाता है । शीशे के पीछे चांदी की परत या पारे की परत परावर्तक सतह का कार्य करती है ।

समतल दर्पण में प्रतिबिंब की स्थिति :- समतल दर्पण में किसी वस्तु का प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है, जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के आगे रखी होती है । यह प्रतिबिंब काल्पनिक, वस्तु के बराबर एवं पार्श्व उल्टा बनता है ।

समतल दर्पण से संबंधित कुछ विशेष तथ्य:-

(1) यदि कोई व्यक्ति v चाल से दर्पण की ओर चलता है, तो उसे दर्पण में अपना प्रतिबिंब 2v चाल से अपनी और ऐसा प्रतीत होता है ।

(2) किसी वस्तु का समतल दर्पण में पूर्ण प्रतिबिंब देखने के लिए दर्पण की लंबाई वस्तु की लंबाई की कम से कम आधी होनी चाहिए ।

(3) यदि आपतित्त किरण को नियत रखते हुए दर्पण को θ° कोण से घुमा दिया जाए तो परावर्तित किरण 2θ° कोण से घूम जाती है ।

(4) यदि दो समतल दर्पण θ° कोण पर झुके हो, तो उनके द्वारा उनके मध्य में रखी वस्तु के बनाए गए कुल प्रतिबिंबो की संख्या 360°/θ° -1 होती है । यदि यह पूर्णांक नहीं है, तो इसे अगला पूर्णांक मान लिया जाता है । इस प्रकार समकोण पर झुके दो दर्पणों के बीच रखे वस्तु के तीन प्रतिबिंब बनते हैं और दो समांतर दर्पणों के बीच रखी वस्तु के अनंत प्रतिबिंब बनते हैं ।

समतल दर्पण के उपयोग :- समतल दर्पण का उपयोग बहुरूपदर्शी, परिदर्शी, आईना आदि ने किया जाता है ।

(1) बहुरूपदर्शी :- इसमें समान लंबाई तथा समान चौड़ाई के तीन आयताकार समतल दर्पण इस प्रकार लगे हुए रहते हैं कि दो दर्पणों के बीच 60° का कोण बनता है । तीनों दर्पणों के परावर्तक तल भीतर की ओर रहते हैं और दर्पणों द्वारा घिरे स्थान में रंगीन कांच के कुछ टुकड़े रहते हैं । यह तीनों दर्पण एक मोटी नली के अंदर लगे रहते हैं । नली के एक सिरे पर शीशे का गोलाकार टुकड़ा लगा रहता है और दूसरे सिरे पर घिसे शीशे का टुकड़ा । जब पारदर्शक शीशे वाले सिरे से नली में देखते हैं, तो नली को घुमाने से नई-नई रंगीन आकृतियां दिखाई देती हैं । यह आकृतियां रंगीन कांच की प्रतिबिंब हैं, जो समतल दर्पणों से बार-बार परावर्तित होने के कारण बनते हैं । नली को घुमाने से रंगीन कांच के टुकड़ों की स्थितियां बदल जाती है और इसीलिए आकृतियों के रंग बदल जाते हैं ।

(2) परिदर्शी :- इसमें दो समतल दर्पण एक दूसरे से 45° कोण पर स्थित होते हैं । इन दर्पणों की परावर्तक सतहें आमने – सामने रहती है । अतः ऊपर वाले सिरे से होकर प्रवेश करने वाली किरणें दर्पण द्वारा परावर्तित होकर नीचे की ओर आती है और दूसरे दर्पण द्वारा परावर्तित होकर आंखों में प्रवेश करती है । इसी कारण युद्ध के समय बन्कर में छिपे सैनिक जमीन पर चल रहे दुश्मनों की गतिविधियों को देखने के लिए इस उपकरण का प्रयोग करते हैं । पनडुब्बी जहाज में भी इस उपकरण का प्रयोग किया जाता है ।

गोलीय दर्पण (Spherical Mirror) :- किसी गोलाकार तल से बनाए गए दर्पण को गोलीय दर्पण कहते हैं । गोलीय खंड के एक तल पर पारे की कलई एवं रेड ऑक्साइड का लेप किया जाता है तथा दूसरा तल परावर्तक की तरह कार्य करता है ।

गोलीय दर्पण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं -(1) उत्तल दर्पण (2)अवतल दर्पण

(1)उत्तल दर्पण (Convex mirror) :- जिस गोलीय दर्पण का परावर्तक सतह उभरा रहता है, उसे उत्तल दर्पण कहा जाता है । उत्तल दर्पण को अपसारी दर्पण (Diverging Mirror)भी कहा जाता है क्योंकि यह अनंत से आने वाली किरणों को फैलाता है ।

(2) अवतल दर्पण (Cancave mirror) :- जिस गोलीय दर्पण का परावर्तक तल धँसा रहता है, उसे अवतल दर्पण करते हैं । अवतल दर्पण को अभिसारी दर्पण (Converging Mirror)भी कहा जाता है क्योंकि यह अनंत से आने वाली किरणों को सिकोड़ता है ।

उत्तल एवं अवतल दोनों ही दर्पण किसी गोले के कटे भाग होते हैं अतः उस गोले का केंद्र दर्पण का वक्रता केंद्र (Center of curvature) कहलाता है ।

दर्पण का मध्य बिंदु ध्रुव (Pole)कहलाता है ।

दर्पण की वक्रता केंद्र एवं ध्रुव को मिलाने वाली रेखा दर्पण की प्रधान अक्ष रेखा (Principle axis) कहलाती है ।

वक्रता केंद्र एवं ध्रुव को मिलाने वाली सरल रेखा के मध्य बिंदु को दर्पण का फोकस (Focus)कहते हैं ।

फोकस दूरी = वक्रता त्रिज्या/2

गोलीय दर्पणों की फोकस दूरी का सूत्र :- उत्तल एवं अवतल दोनों ही दर्पण की फोकस दूरी निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात की जाती है –

1/v+ 1/u = 1/f

जहाँ u = वस्तु की दर्पण से दूरी
v = प्रतिबिंब की दर्पण से दूरी
f = दर्पण की फोकस दूरी

आवर्धन (Magnification) :- प्रतिबिम्ब की लंबाई और वस्तु की लंबाई के अनुपात को आवर्धन कहते हैं और इसे m से प्रदर्शित करते हैं । अर्थात्

m = प्रतिबिंब की लंबाई / वस्तु की लंबाई = प्रतिबिंब की दूरी(v) /वस्तु की लंबाई (u)

उत्तल दर्पण से बने प्रतिबिंब :- उत्तल दर्पण में किसी वस्तु का प्रतिबिंब सदैव दर्पण के पीछे उसके ध्रुव और फोकस के बीच, वस्तु से छोटा, सीधा एवं आभासी बनता है । यदि किसी वस्तु की उत्तल दर्पण से दूरी बढ़ाई जाए, तो दर्पण से बने आभासी एवं सीधे प्रतिबिंब का आकार छोटा होता जाता है तथा उसकी स्थिति दर्पण के पीछे ध्रुव से फोकस की ओर खिसकती जाती है ।

उत्तल दर्पण के उपयोग :- उत्तल दर्पण द्वारा काफी बड़े क्षेत्र की वस्तुओं का प्रतिबिंब एक छोटे से क्षेत्र में बना जाता है । इस प्रकार उत्तल दर्पण का दृष्टि क्षेत्र अधिक होता है । इसीलिए इसे ट्रक चालकों या मोटर कारों में चालक के बगल में पृष्ठ दृश्य दर्पण लगाया जाता है । सड़क में लगे परावर्तक लैंपो में उत्तल दर्पण का उपयोग किया जाता है, विस्तार क्षेत्र अधिक होने के कारण प्रकाश को अधिक क्षेत्र में फैलाते हैं ।

अवतल दर्पण के उपयोग :-

(1) बड़ी फोकस दूरी वाले अवतल दर्पण दाढ़ी बनाने में काम आता है ।
(2)आंख कान एवं नाक के डॉक्टर के द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला दर्पण ।
(3)गाड़ी के हेड लाइट एवं सर्च लाइट में । (4)सोलर कुकर में ।

अवतल दर्पण से बने प्रतिबिंब :-

वस्तु की स्थितिप्रतिबिंब की स्थितिवस्तु की तुलना में प्रतिबिंब का आकारप्रतिबिंब की प्रकृति
अनंत परफोकस परबहुत छोटाउल्टा व वास्तविक
वक्रता केंद्र एवं अनंत के बीचफोकस एवं वक्रता केंद्र के बीचछोटाउल्टा व वास्तविक
वक्रता केंद्र परवक्रता केंद्र परसमान आकार काउल्टा व वास्तविक
फोकस तथा वक्रता केंद्र के बीचवक्रता केंद्र एवं अनंत के बीचबड़ाउल्टा व वास्तविक
फोकस परअनंत परबहुत बड़ाउल्टा व वास्तविक
फोकस व ध्रुव के बीचदर्पण के पीछेबड़ासीधा व आभासी

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