Rajasthan ki pramukh lok deviya

राजस्थान की लोक देवियाँ । Rajasthan ki pramukh lok deviya

आज हम राजस्थान के प्रसिद्ध राजस्थान की लोक देवियाँ (Rajasthan ki pramukh lok deviya) की बात करेंगे ।

Lok Deviya of Rajasthan List in Hindi

राजस्थान के सुदूर ग्रामीण अंचलों में जनमानस में अनेकानेक लोक देवता एवं लोक देवियों पूजी जाती है । राजस्थान में मातृदेवी को समर्पित अनेक मंदिर हैं , जहाँ लोग हजारों मील चलकर भी अपनी कुलदेवी के दर्शन करने आते हैं ।

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियाँ निम्न है :-

1. करणी माता (देशनोक)

  • बीकानेर के राठौड़ शासकों की कुलदेवी करणी माता ‘चूहों वाली देवी’ के नाम से भी विख्यात है ।
  • इनका जन्म सुआप गांव में चारण जाती के श्री मेहा जी के घर हुआ था । इनका जन्म का नाम रिद्धि बाई था ।
  • देशनोक स्थित इनके मंदिर में बड़ी संख्या में चूहे हैं जो ‘करणी जी के काबे’ कहलाते हैं ।
  • यहाँ के सफेद चूहे के दर्शन करणी जी के दर्शन माने जाते हैं ।
  • करणी जी का मंदिर मठ कहलाता है ।
  • करणी माता के मंदिर के मुख्य दरवाजे के पास ‘सावण-भादवा’ नामक दो बड़े कढा़ह रखे हुए हैं ।
  • करणी जी की इष्ट देवी ‘तेमड़ा जी’ थी । करणी माता के मंदिर के पास तेमड़ा राय देवी का भी मंदिर है ।
  • करणी देवी का एक रूप ‘सफेद चील’ भी है ।
  • करणी माता के मंदिर से कुछ दूर ‘नेहड़ी’ नामक दर्शनीय स्थल है जहां करणी माता सर्वप्रथम रही थी । यहाँ स्थित खेजड़ी के एक वृक्ष पर माता डोरी बांधकर दही बिलोया करती थी ।
  • करणी माता के मठ के पुजारी चारण जाति के होते हैं ।
  • करणी माता के आशीर्वाद से राठौड़ शासक ‘राव बीका ने बीकानेर क्षेत्र बसाया था ।

2. जीण माता (सीकर )

  • चौहान वंश की आराध्य देवी जीण माता धंध राय की पुत्री एवं हर्ष की बहन थी ।
  • इनके मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान प्रथम के शासनकाल में राजा हट्टड़ द्वारा करवाया गया था , जिसमें जीण माता की अष्टभुजी प्रतिमा है ।
  • जीण माता का मंदिर सीकर शहर से नजदीक रैवासा ग्राम की आडावाला पहाड़ियों के मध्य स्थित है ।
  • जीण माता के मंदिर में चैत्र एवं आश्विन माह की शुक्ला नवमी को विशाल मेले भरते हैं ।
  • जीण माता का गीत (चिरंजा) राजस्थानी लोक साहित्य में सबसे लंबा है । यह गीत कनफटे जोगियों द्वारा डमरू एवं सारंगी वाद्य की संगत में गाया जाता है ।
  • जीणमाता पुराण वर्णित जयन्ती देवी हैं । इनका अन्य नाम भ्रामरी देवी (भूरी की राणी) या मधुमक्खियों की देवी भी है ।
  • जीण माता को शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी भी कहते हैं ।
  • इनके भाई हर्ष का मंदिर भी पास की पहाड़ी पर स्थित है । पहाड़ के समतल स्थान पर ‘जोगी तालाब’ स्थित है ।
  • जीण माता और हर्ष के मंदिरों का संबंध मुगल सम्राट औरंगजेब के आक्रमण से भी है ।
  • यहाँ प्रतिदिन ढाई प्याले शराब पिलाने का रिवाज था ।
  • यहाँ जगदेव पँवार का छिन्न मस्तिष्क (पीतल का बना) एक गद्दर में प्रतिष्ठापित है ।

3. कैला देवी (करौली)

  • ये करौली के यदुवंशी (यादव वंश) जादौन शाखा की कुलदेवी है ।
  • कैला देवी का मंदिर करौली के पास कालीसिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत की घाटी में स्थित है ।
  • इनके भक्त इनकी अराधना में प्रसिद्ध ‘लांगुरिया गीत’ गाते हैं ।
  • चैत्र नवरात्र में चैत्र शुक्ल अष्टमी को इनका विशाल लक्खी मेला भरता है ।
  • कैला देवी के मंदिर के सामने बोहरा की छतरी है ।
  • कैला देवी पूर्व जन्म में हनुमान जी की माता अंजनी थी अतः कैला देवी को अंजनी माता भी कहते हैं ।
  • कैला देवी मंदिर की प्रमुख विशेषता ‘कनक दंडवत’ है ।
  • कैला देवी का मंदिर राजस्थान का एकमात्र दुर्गा माता (आठ भुजाओं में शस्त्र लिए सिंह पर सवार) का मंदिर है जहां बलि नहीं दी जाती ।
  • लोक मान्यता के अनुसार कंस अपनी बहन देवकी की जिस नवजात कन्या को शीला पर पटक कर मारना चाहता वही कन्या देवयोग से करौली के त्रिकूट पर्वत पर कैला देवी के रूप में अवतरित हुई ।

4. शिला देवी, आमेर

  • शिला देवी के रूप में प्रतिष्ठित दुर्गा की अष्टभुजी काले रंग की मूर्ति को सोलवीं सदी के अंत में महाराजा मानसिंह प्रथम पुर्वी बंगाल के राजा केदार से लाये थे ।
  • यह जयपुर के कछवाहा राजवंश की आराध्य देवी हैं ।
  • इनका मंदिर आमेर के राज महल में मोहनबाड़ी के कोने पर स्थित है । यहाँ शिला देवी महिषासुर मर्दिनी के रूप में विराजमान है ।

5. जमुवाय माता (अन्नपूर्णा)

  • यह ढूँढाड़ के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी है ।
  • इनका मंदिर जमुवारामगढ़ (जयपुर) में है । यहाँ जमुवाय माता की मूर्ति गाय व बछड़े के साथ प्रतिष्ठित है ।
  • जमुवाय माता का प्राचीन नाम जामवंती था ।
  • इनके अन्य मंदिर :- (१) भौड़की (झुँझुनूँ)
    (२) महरौली व मादनी मंढा (सीकर)
    (३) भूणास (नागौर)

6. आई माता (जोधपुर)

  • क्षत्रिय (सिरवी जाति ) की कुलदेवी हैं । सिरवी लोग आई माता द्वारा बनाई गए 11 नियमों को मानते हैं ।
  • जीजी बाई :- आई माता के बचपन का नाम ।
  • रामदेव जी :- आई माता के गुरु ।
  • बिलाड़ा :- यहाँ आई माता का मंदिर स्थित है , मंदिर में आई माता की कोई मूर्ति नहीं है । इस मंदिर में दीपक की ज्योति से केसर टपकती है जिसका उपयोग इलाज के लिए किया जाता है ।
  • बडेर :- आई माता के बिलाड़ा में स्थित समाधि स्थल को बडेर कहते हैं ।
  • गुर्जर :- इस जाती का आई माता के मंदिर में प्रवेश वर्जित माना गया है ।
  • दरगाह :- सिरवी लोग आई माता के मंदिर को कहते हैं ।
  • ये नवदुर्गा (मानी देवी) का अवतार मानी जाती है ।
  • आई माता का जन्म मालवा में हुआ था ।

7. राणी सती (झुँझुनू)

  • इनका मूलनाम नारायणी बाई था । इन्होंने 1652 में अपने पति तंधनदास के साथ सती हो गई ।
  • यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णा अमावस्या को मेला भरता है ।
  • राणी सती अग्रवालों की कुलदेवी है ।
  • इन्हें ‘दादी जी’ भी कहते हैं ।

8. शीतला माता, चाकसू

  • चेचक की देवी के रूप में प्रसिद्ध शीतला माता के अन्य नाम सैढल माता या महामाई भी है ।
  • चाकसू की शील डूंगरी पर स्थित माता के मंदिर का निर्माण जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह जी ने करवाया था ।
  • होली के पश्चात चैत्र कृष्णा अष्टमी को इनकी पूजा होती है एवं विशाल मेला भरता है । इस दिन लोग बास्योड़ा मनाते हैं अर्थात् रात का बनाया ठंडा भोजन खाते हैं ।
  • शीतला माता की सवारी गधा है । यह बच्चों की संरक्षिका देवी है तथा बांझ स्त्रियां संतान प्राप्ति हेतु भी इसकी पूजा करती है । जांटी (खेजड़ी) को शीतला मानकर पूजा की जाती है ।
  • शीतला देवी की पूजा खंडित प्रतिमा के रूप में की जाती है तथा इसके पुजारी कुम्हार जाति के होते हैं ।
  • शीतला माता को उत्तरी भारत में महामाई (माता माई ) एवं पश्चिमी भारत में माई अनामा भी कहते हैं ।
  • इन्हें मानव शरीर को शीतलता प्रदान करने वाली देवी माना गया है ।
  • इनका एक मंदिर जोधपुर शहर के कागा क्षेत्र में भी स्थित है । प्रारंभ में इनका मंदिर मेहरानगढ़ (जोधपुर दुर्ग) में स्थित था ।
  • दीपक :- शीतला माता का प्रतीक चिन्ह

9. आवड़ माता (जैसलमेर)

  • ये जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी है ।
  • जैसलमेर के तेमड़ी पर्वत पर इनका मंदिर है ।
  • लोकमानस में सुगन चिड़ी को आवड़ माता का स्वरूप माना जाता है ।
  • भक्तजनों द्वारा आवड़ माता को हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है ।
  • इनका जन्म चारण कुल में मामड़जी के घर में हुआ था । आवड़ माता को ‘तेमड़ा ताई’ भी कहा जाता है ।

10. नागणेची माता (जोधपुर)

  • नागणेची माता जोधपुर के राठौड़ों की कुलदेवी है ।
  • नागणेची माता की 18 भुजाओं वाली प्रतिमा बीकानेर के संस्थापक राव बीका ने स्थापित करवाई थी ।

11. स्वांगिया माता (जैसलमेर)

  • आवड़ देवी का ही एक रूप स्वांगिया माता (आईनाथजी) भी है, जो जैसलमेर के निकट विराजमान है ।
  • ये भी भाटी राजाओं की कुलदेवी मानी जाती हैं ।
  • जैसलमेर के राजचिह्न में देवी के हाथ में स्वांग (भाला) का मुड़ा हुआ रूप दिखाया गया है । इस राजचिह्न में सबसे ऊपर पालम चिड़िया (सगुनचिड़ी) इस देवी का प्रतीक है ।
  • इन्हें सांगिया/सुग्गा माता भी कहते हैं ।

12. अम्बिका माता

  • जगत (उदयपुर) नामक ग्राम में इनका मंदिर है, जो शक्तिपीठ कहलाता है ।
  • जगत का अंबिका मंदिर ‘मेवाड़ का खजुराहो’ कहलाता है ।
  • यह मंदिर राजा अल्लट के काल में 10 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में महामारू शैली में निर्मित है । यहाँ नृत्य गणपति की विशाल प्रतिमा स्थित है ।

13. पथवारी माता

  • तीर्थ यात्रा की सफलता की कामना हेतु राजस्थान में पथवारी देवी की लोक देवी के रूप में पूजा की जाती है ।
  • पथवारी माता गांव के बाहर स्थापित की जाती है । इनके चित्रों में नीचे काला-गौरा भैंरू तथा ऊपर कावड़िया वीर व गंगोज का कलश बनाया जाता है ।

14. सुगाली माता (पाली)

  • आउवा के ठाकुर परिवार (चाँपावतों) की कुलदेवी सुगाली माता पूरे मारवाड़ क्षेत्र की जनता की आराध्य देवी रही है ।
  • इस देवी प्रतिमा के 10 सिर और चौपन हाथ है ।
  • इन्हें 1857 की क्रांति की देवी कहते हैं ।
  • वर्तमान में सुगाली माता की मूर्ति पाली के म्यूजियम में रखी हुई हैं ।

15. नकटी माता

  • जयपुर के निकट जय भवानीपुरा में ‘नकटी माता’ का प्रतिहार कालीन मंदिर है ।

16. ब्रह्माणी माता

  • बाराँ जिले के अंता कस्बे से 20 किलोमीटर दूर सोरसन ग्राम के पास ब्रह्माणी माता का विशाल प्राचीन मंदिर है , जहाँ देवी की पीठ का श्रृंगार होता है एवं पीठ की पूजा अर्चना की जाती है ।
  • यह एकमात्र मंदिर है जहां देवी की पीठ की ही पूजा होती है अग्र भाग की नहीं ।
  • यहाँ माघ शुक्ल सप्तमी को गधों का मेला भी लगता है ।

17. जिलाणी माता

  • अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे में इनका प्रसिद्ध मंदिर है ।
  • ये अलवर क्षेत्र की लोक देवी हैं ।
  • इनके मंदिर में प्रतिवर्ष दो बार मेला भरता है ।

18. कैवाय माता

  • किरणसरिया गाँव (परबतसर, नागौर ) में लगभग 1000 फुट ऊंची पर्वत चोटी पर कैवाय माता प्राचीन मंदिर स्थित है ।
  • मंदिर के सभामंडप की दीवार पर 999 ई. में उत्कीर्ण शिलालेख से ज्ञात होता है कि भवानी (अंबिका) माता की मंदिर का निर्माण सांभर के चौहान शासक दुर्लभराज के सामन्त चच्चदेव ने करवाया था । मंदिर में दीवारों पर 10 शिलालेख और उत्कीर्ण है ।
  • मंदिर के सभागृह के प्रवेश द्वार पर काला-गोरा भैरव की दो मूर्तियां विराजमान हैं ।

19. शांकम्भरी देवी

  • सांभर (जयपुर) में देवी का मंदिर स्थित है ।
  • यह चौहानों की कुलदेवी है ।
  • सांभर में शांकम्भरी देवी की संपूर्ण भारत में सबसे प्राचीन शक्तिपीठ स्थित है ।

20. आशापुरी माता

  • इन्हें मोदरां माता या महोदरी माता के नाम से भी जाना जाता है ।
  • इनका मंदिर जालौर के मोदरां स्थान पर स्थित है ।
  • ये जालौर के सोनगरा चौहानों की कुलदेवी है ।

21. सकराय माता

  • सीकर जिले में लोहार्गल तीर्थ के परिक्रमा पथ में उदयपुरवाटी गांव के पास स्थित मलयकेतु पर्वत पर इस देवी का मंदिर है ।
  • इन्हें ‘शाकम्भरी देवी’ भी कहते हैं ।
  • इस मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की अष्टभुजी एवं सिंहवाहिनी की प्रतिमा विराजमान है । देवी के पास उल्लू की मूर्ति है ।
  • यह देवी खंडेलवालों की कुलदेवी है ।
  • चैत्र एवं अश्विन माह के नवरात्रों में देवी के मंदिर में विशाल मेला भरता है ।
  • इन्हें शंकरा माता व शुक्र माता आदि नामों से भी पुकारा जाता है ।
  • इन्हें पुराणों में शताक्षी एवं दुर्गा कहा गया है ।

22. सच्चियाय माता

  • ये सचियामाता के नाम से भी प्रसिद्ध है ।
  • ओसियां (जोधपुर) में इनका प्रसिद्ध मंदिर है ।
  • इस मंदिर का निर्माण संभवत: परमार राजकुमार उपलदेव द्वारा करवाया गया था ।
  • सच्चियाय माता ‘ओसवालों की कुलदेवी’ है ।
  • इन्हें संप्रदायिक सद्भाव की देवी भी कहते हैं ।

23. सुंडा (सुंधा) माता

  • जालौर जिले के जसवंतगढ़ कस्बे के पास दाँतलावास ग्राम के सुंडा (सुगंधाद्रि) पर्वत पर इस देवी का प्रसिद्ध मंदिर है ।
  • मंदिर में जालौर के चौहान शासकों का एक शिलालेख भी उत्कीर्ण हैं ।
  • चामुंडादेवी (सुंधा माता) को सूंधा माता भी कहते हैं ।
  • मंदिर के मार्ग में एक जलकुंड ‘काडियादरा’ तथा ‘महात्मा राबड़नाथ का धूणा’ आता है । इसके बाद पाटलियों की पाँज आती है । इसके बाद नागिनी तीर्थ हैं । माता के मंदिर के अग्रिम भाग में भूरेश्वर महादेव का लिंग स्थित है ।
  • मंदिर की प्रथम गुफा में देवी सुंधा की मूर्ति विराजमान हैं । सुंधा माता के केवल सिर की पूजा होती है । मूर्ति में धड़ नहीं होने से इन्हें अधरेश्वरी माता भी कहते हैं ।
  • सुंधा माता को देवल वंश के राजपूत , श्रीमाली ब्राह्मण की लाडवानू गोत्र व वैश्य के कंपिजल गौत्र के व्यक्ति अपनी कुलदेवी मानते हैं ।
  • सुंधा माता मंदिर तक पहुंचने के लिए वर्ष 2007 से रोप वे आरंभ किया गया है , यह राजस्थान का प्रथम रोपवे है ।

24. त्रिपुर सुंदरी (तुरताई माता)

  • वाग्वर प्रदेश में बांसवाड़ा शहर से 14 किलोमीटर दूरी स्थित तलवाड़ा ग्राम से 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित उमराई गांव के पास में मां त्रिपुरा सुंदरी का प्रसिद्ध मंदिर है ।
  • माँ त्रिपुर सुंदरी गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह की इष्ट देवी थी ।
  • 12 वीं शताब्दी के प्रारंभ में चाँदा भाई (पाता लुहार) ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया ।
  • मंदिर के गर्भ गृह में देवी (काली मां) 18 भुजाओं वाली काले पत्थरों की आकर्षक प्रतिमा विराजमान हैं । मूर्ति के निचले भाग में ‘श्री यंत्र’ उत्कीर्ण हैं ।

25. दधिमती माता

  • नागौर जिले में रोल गांव के पास गोठ-मांगलोद नामक दो छोटे-छोटे गांव हैं । इन दोनों गांव की सीमा पर माता दधिमति का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है ।
  • इस मंदिर का निर्माण अविघ्ननाग नामक दायमा ब्राह्मण के संरक्षण में हुआ था ।
  • यह माता दाहिमा/दायमा/दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी है ।

26. वीरातरा माता

  • चौहटन (बाड़मेर) में रमणीक पहाड़ी क्षेत्र के बीच में माता वीरातरा का भव्य मंदिर है ।
  • वीरातरा माता ‘भोपों की कुलदेवी’ है ।
  • यहाँ मेले में नारियल की जोत जलाई जाती है एवं बकरों की बलि दी जाती है ।
  • मंदिर के एक ओर बालू का रेतीला टीला है तथा दूसरी और पहाड़ी स्थित है ।
  • इन्हें श्री वांकल माता भी कहते हैं ।

27. अर्बुदा माता

  • माउंट आबू कस्बे के उत्तर में लगभग 4200 फीट ऊंची पहाड़ी पर अर्बुदांचल की अधिष्ठात्री ‘अर्बुदा माता’ का भव्य मंदिर है ।
  • इसे ‘अधर देवी’ भी कहते हैं ।
  • यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा एवं आश्विन पूर्णिमा को मेले लगते हैं ।

28. छींक माता

  • जयपुर के गोपाल जी के रास्ते में इनका मंदिर है ।
  • राजस्थान में माघ सुदी सप्तमी को छींक माता की पूजा होती है ।

29. विंध्यवासिनी माता

  • उदयपुर जिले में एकलिंग जी के मंदिर के समीप ही इस देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है ।
  • अरावली की घाटी में इस देवी की प्रतिष्ठा करने का श्रेय योगीराज हारित ऋषि को है ।

30. चौथ माता

  • चौथ का बरवाड़ा कस्बे (सवाई माधोपुर) में पहाड़ी पर चौथ माता का प्रसिद्ध मंदिर है । माता के मंदिर के पास ही अखंड ज्योति है ।

31. दाँत माता (द्रष्टामाता)

  • कोटा शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर द्रष्टामाता (श्री द्रष्टा मोर डेरू माता) का प्रसिद्ध मंदिर हैं ।
  • यह देवी कोटा राज परिवार की कुलदेवी थी ।

32. गायत्री माता

  • पुष्कर (अजमेर) में सावित्री मंदिर के सामने सुरम्य पहाड़ी पर माता गायत्री का प्राचीन मंदिर स्थित है । यह भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक है । यहाँ देवी के मणि बंधों की पूजा होती है ।
  • ये देवी ‘शापविमोचनी देवी’ में रूप में मान्यता प्राप्त है ।

33. सावित्री माता मंदिर

  • पुष्कर के दक्षिणी भाग में रत्नागिरी पहाड़ी पर माता सावित्री का पुराणिक मंदिर स्थित है ।
  • यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को विशाल मेला लगता है ।

34. सीता माता

  • प्रतापगढ़ जिले में सीताबाड़ी गांव से 2 किलोमीटर दूरी पर सीतामाता वन्यजीव अभ्यारण्य के सुरम्य उपवन में सीता माता का प्राचीन मंदिर स्थित है ।
  • इस मंदिर तक पहुंचने हेतु जाखम नदी को पार करना पड़ता है ।
  • यहां सीता माता मंदिर में प्रतिवर्ष ज्यैष्ठ अमावस्या को भव्य मेला लगता है , जो कृष्णा चतुर्दशी से शुक्ला प्रतिपदा तक चलता है ।
  • यहाँ माता सीता ने लव कुश को जन्म दिया था ।
  • यहाँ स्थित लवकुश कुंडों में से एक का पानी सदैव गर्म रहता है एवं एक का सदैव ठंडा ।
  • यहाँ पास में ही वाल्मीकि गुफा एवं वाल्मीकि आश्रम भी है ।

35. क्षेमंकरी माता

  • इनका मंदिर जालौर जिले के बसंतगढ़ दुर्ग में बना हुआ है ।
  • ये सोलंकी राजपूत वंश की कुलदेवी है ।
  • उपनाम :- क्षेंमकरी/ खींवल/शुंभकरी देवी / भीनमाल की आदि देवी ।

36. नारायणी माता

  • सरिस्का वन में बरवा डूंगरी की तलहटी में माता का गुर्जर प्रतिहार कालीन मंदिर है ।
  • नाई जाति की कुलदेवी ।
  • यहाँ बैशाख शुक्ला 11 को मेला भरता है ।
  • इनके मंदिर का पुजारी मीणा जाति का होता है ।

37. घेवर माता

  • राजसमंद की पाल पर इनका मंदिर है ।
  • राजसमंद की पाल का पहला पत्थर घेवर माता के हाथों से ही रखवाया गया था ।

38. भदाणा माता (भद्राणी)

  • भद्राणा (कोटा ) में इनका मंदिर स्थित है ।
  • यहाँ मूठ (तांत्रिक मारक शक्ति ) की झपट में आए व्यक्ति को मौत के मुंह से बचाया जाता है ।

39. आवरी माता

  • निकुम्भ (चित्तौड़गढ़) में इनका मंदिर स्थित है ।
  • इन्हें ‘आसावरी माता’ भी कहते हैं ।
  • यहाँ लकवे का इलाज होता है ।

40. बड़ली माता

  • आकोला (चित्तौड़गढ़) में बेड़च नदी के किनारे इनका मंदिर है । जहाँ की दो तिबारियों में से बच्चों को निकालने पर उनकी बीमारी दूर हो जाती है ।

41. लटियाल देवी

  • कल्ला राठौड़ों की कुलदेवी ।
  • फलौदी (जोधपुर) में इनका प्रसिद्ध मंदिर ।
  • मंदिर के पास खेजड़ी वृक्ष स्थित होने के कारण इन्हें खेजड़ बेरी राय भवानी भी कहते हैं ।

42. चामुंडा माता

  • जोधपुर के राठौड़ राजवंश की आराध्य देवी ।
  • जोधपुर दुर्ग में चामुंडा बुर्ज में इनका मंदिर स्थित है ।
  • सितंबर 2008 नवरात्रा पर मंदिर में भगदड़ मच जाने से कई लोगों की मृत्यु हो गई । जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में इस हादसे की जांच के लिए कमेटी गठित की गई ।
  • 1857 ईसवी में बिजली गिरने के कारण मंदिर को क्षति पहुंची , महाराजा तख्त सिंह ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया ।

43. तनोट माता

  • तनोट (जैसलमेर) में इनका मंदिर स्थित है ।
  • यह भाटी शासकों की कुलदेवी थी ।
  • राज्य में सेना के जवान इस देवी की पूजा करते हैं ।
  • विजय स्तंभ :- तनोट देवी के मंदिर में वर्तमान में सीमा सुरक्षा बल व सेना के जवान पूजा करते हैं । मंदिर के सामने भारत-पाक युद्ध (1965) में भारत की विजय के प्रतीक के रूप में यह विजय स्तंभ स्थापित किया गया है ।
  • उपनाम :- (१) सेना के जवानों की देवी
    (२) थार की वैष्णो देवी
    (३) अधर देवी
    (४) काले डुंगराय
    (५) भोजासरी, देगराय
    (६) तेमड़ेराय
    (७) घंटियाल माता
    (८) तनोटराय

44. बाण माता

  • ये मेवाड़ के गुहिल वंश व सिसोदिया वंश की कुलदेवी है ।
  • इनका मुख्य मंदिर नागदा (उदयपुर) में है ।

45. ज्वाला माता

  • इनका मंदिर जोबनेर (जयपुर) में है ।
  • कछवाह वंश की शाखा खंगारोत शासकों की कुलदेवी ।

46. मालण माता (जागरा गाँव)

47. भद्रकाली (हनुमानगढ़ )

48. मनसा माता (चूरू )

49. उंठाला माता (बल्लभनगर, उदयपुर )

50. खोडियार देवी (जैसलमेर )

51. छिंछ माता (बाँसवाड़ा)

52. चारभुजा देवी (खमनौर, हल्दीघाटी )

53. किशनाई माता (मांगरोल ,बाँरा)

54. इंदर माता ( इंदरगढ़ , बूंदी )

55. सुराणा देवी (गोरखाण, नागौर)

56. सीमल माता (बसंतगढ़, सिरोही )

57. भांवल माता (मेड़ता, नागौर )

58. पीपाड़ माता (ओसियां ,जोधपुर )

59. बिरवड़ी माता (चितौड़गढ़ दुर्ग एवं उदयपुर )

60. राठासण देवी (उदयपुर )

61. आजमा देवी (केलवाड़ा , राजसमंद )

62. जोगणिया माता (भीलवाड़ा )

63. कालिका माता (चित्तौड़गढ़ )

64. वटयक्षिणी देवी / झाँतला माता (कपासन, चितौड़गढ़ )

65. तुलजा भवानी देवी (चित्तौड़गढ़ दुर्ग )

66. कुशाल माता (बदनौर ,भीलवाड़ा )

67. ऊँटा माता (जोधपुर )

68. परमेश्वरी माता (कोलायत, बीकानेर )

69. हिंगलाज माता (लोद्रवा ,जैसलमेर )

70. राजेश्वरी माता (भरतपुर )

71. हिचकी माता (सनवाड़, फतहनगरी )

72. आसपुरी माता (आसपुर, डूंगरपुर )

73. मरकंडी माता (निमाज)

74. महामाया माता (मावली)

अन्य महत्वपूर्ण :-

देवरे /थान :- ग्रामीण क्षेत्र में चबूतरेनुमा बने हुए लोक देवताओं की पूजा स्थल ।

ओहीचणौ :- किसी संकल्प सिद्धि के लिए देवता के समक्ष कोई वस्तु रखना ।

जावरा माता :- खानों की देवी ।

घेवर माता :- बिना पति के अकेली सती होने वाली देवी थी ।

भाखर बावजी :- ये सांसियों के लोक देवता हैं ।

नावा :- लोक देवी-देवताओं के भक्त अपने आराध्यदेव की सोने, चांदी, पीतल आदि धातु की बनी छोटी की प्रतिकृति गले में बांधते हैं । उसे नावा कहते हैं । इसे फूल भी कहते हैं ।

ठाला (ढाला) :- 7 देवियों के सम्मिलित प्रतिमा स्वरूप को ठाला कहते हैं । श्रद्धालु प्रेतात्माओं से रक्षा हेतु अपने गले में पहनते हैं ।

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