Jaisalmer History in Hindi

जैसलमेर राज्य (Jaisalmer History in Hindi) के भाटी वंश का इतिहास

आज हम जैसलमेर राज्य के भाटी वंश के इतिहास (Jaisalmer History in Hindi) की बात करेंगे ।

जैसलमेर राज्य का इतिहास (History of Jaisalmer in Hindi)

  • भाटी उत्तर भारत के रक्षक के रूप में रहे । भाटियों का राज्य विस्तार व्यापक रहा । जैसलमेर भाटियों का अंतिम पड़ाव रहा है । इतिहास में भाटियों को ‘छत्राला यादवपति’ एवं ‘उत्तरभड़ किवाड़ भाटी’ की उपाधियों से नवाजा गया है ।
  • भाटी चंद्रवंशी है । वे श्री कृष्ण के वंशज हैं । यदुवंशी राजा बालबंध के सुयोग्य पुत्र भाटी (भट्टी) से भाटी शाखा का प्रादुर्भाव हुआ ।
  • भाटी (भट्टी) ने 285 ईसवी के लगभग भटनेर (वर्तमान हनुमानगढ़) दुर्ग का निर्माण कराया तथा उसे अपनी राजधानी बनाया ।
  • कालांतर में इनके वंशज राजा मांडन राव ने 599 ईसवी के लगभग मारोठ नगर बसाया व मारोठ के किले की नींव रखी । इनके पुत्र राव सुरसेन ने 623-24 ईसवी के लगभग मारोठ दुर्ग का निर्माण पूर्ण होने पर उसे अपनी राजधानी बनाया । इस उपलक्ष्य में भट्टिक संवत प्रारंभ किया । इन्होंने अपनी उपाधि राजा के स्थान पर ‘राव’ रखी ।
  • परवर्ती काल में इनके वंशज केहर ने आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में केहरोर दुर्ग का निर्माण करवाया व तणोट दुर्ग की नींव रखी । केहर के उत्तराधिकारी तणु ने 787 ईसवी के लगभग तणोट दुर्ग करवाया व तणोट को अपनी राजधानी बनाया । तणु ने तनोट देवी का मंदिर भी बनवाया । इये ‘थार की वैष्णो देवी’ कहा जाता है । यह मंदिर भारतीय सैनिकों की श्रद्धा का केंद्र है ।
  • तणुराव का उतराधिकारी विजयराज हुआ । विजयराज के पास तणोट , मारोठ , कहरोर , भटनेर व मुमणावाह नामक पाँच दुर्ग थे । विजयराज इतिहास में ‘विजयराज चूड़ाला’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
  • 841 ईसवी के लगभग अपने पुत्र देवराज के वाराह राजपूतों के यहाँ विवाह के अवसर पर धोखे से विजयराज तथा उसकी सेना को समाप्त कर दिया गया था । तणोट दुर्ग की रक्षा करते हुए तणुराव की मृत्यु हो गई । इसे ‘तणोट का शाका’ कहा जाता है ।

रावल देवराज :-

  • विजयराज का पुत्र देवराज भी मारा जाता लेकिन डाही धाय जी स्वामिभक्ति से उसके प्राण बच गए । डाही धाय ने देवराज की रक्षा का भार पुरोहित लूणा को सौंपा ।
  • देवराज अपने मामा जजा भूटा की सहायता से 852 ईसवी में देरावर ( देरावल) नामक नगर व दुर्ग स्थापित किया । यहाँ से देवराज ने लाखा फुलाणी नामक वीर युद्धा की सहायता से अपने पिता के शत्रुओं को हराकर पुन: विशाल राज्य स्थापित किया ।
  • देरावर भाटियों की नई राजधानी बनी ।
  • योगी रतनू ने देवराज को सिद्ध देवराज नाम प्रदान किया तथा रावल की पदवी प्रदान की ।
  • देवराज ने मंत्री विमला की सहायता से लौद्रवा जीतकर लिया । 873 ई. में उसे अपनी राजधानी बनाया ।
  • कालांतर में देवराज के वंशज रावल दुसाज 11वीं शताब्दी में लौद्रवा के शासक बने । इनके 4 पुत्र हुए – जैसल , पवो , पोहड़ , विजयराज ( लांझा) ।
  • रावल दुसाज ने अपने जेष्ठ पुत्र जैसल के स्थान पर अपनी प्रिय राणावत रानी के पुत्र विजयराज (लांझा) को अपना उत्तराधिकारी बनाया । इसके बाद इसका पुत्र भोजदेव लौद्रवा का शासक बना ।
  • भोजदेव की मृत्यु के बाद जैसल लौद्रवा का शासक बना ।

रावल जैसल :-

  • रावल जैसल द्वारा सर्वप्रथम लौद्रवा को ही अपनी राज्य की राजधानी बनाया , परंतु बाद में रावल जैसल ने त्रिकूट पहाड़ी पर 12 जुलाई 1155 को जैसलमेर दुर्ग की नींव रखी व जैसलमेर नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया ।
  • रावल जैसल के वंशज रावल करण के शासनकाल में जैन आचार्य मुनि जिन प्रबोध सूरि को जैसलमेर आमंत्रित किया गया ।
  • रावल करण के पुत्र जैतसिंह प्रथम के शासनकाल में उनके निमंत्रण पर जैन मुनि जिनचंद्र सूरि भी जैसलमेर आए थे । इससे अनुमान होता है कि जैसलमेर में जैन धर्म को राज्याश्रय प्राप्त था ।
  • 1304 ईस्वी के लगभग रावल पुण्यपाल जैसलमेर के साथ शासक बने । कहा जाता है कि चित्तौड़ के शासक रत्नसिंह की रानी पद्मिनी रावल पुण्यपाल की पुत्री थी ।

रावल जैतसिंह व रावल मूलराज प्रथम :-

  • रावल जैतसिंह को जैसलमेर के सामन्तों ने गुजरात से बुलाकर रावल पुण्यपाल के स्थान पर जैसलमेर का शासक बनाया था ।
  • इनके शासनकाल में 1308 ईस्वी के लगभग दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनानायक कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में जैसलमेर दुर्ग को हस्तगत करने हेतु सेना भेजी , परंतु उसे कोई सफलता नहीं मिली । उसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक कपूर के नेतृत्व में सेना भेजी , लेकिन उसको भी कोई सफलता नहीं मिली ।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने पुन: कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में एक विशाल सेना आक्रमण हेतु भेजी । इसी दौरान रावल जैतसिंह की मृत्यु हो गई ।
  • इनके पुत्र रावल मूलराज प्रथम जैसलमेर के शासक बने । लंबे समय तक दुश्मन के घेरे के कारण दुर्ग में खाद्य सामग्री का अभाव हो गया । फलत: राजपूत वीरों ने अन्य कोई उपाय न देखकर केसरिया करने का निश्चय किया । दुर्ग की वीरांगनाओं ने जौहर की ज्वाला में अपने प्राणों की आहुति दी और मूलराज व रतन सिंह सहित सभी राजपूत वीर युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । इस प्रकार 1312-13 के लगभग अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने जैसलमेर दुर्ग पर अधिकार किया । इसे जैसलमेर का प्रथम साका कहा जाता है । अलाउद्दीन खिलजी के साथ हुए युद्ध का वर्णन एक फारसी स्रोत ‘तारीखे-ए-मासूमी’ से प्राप्त होता है ।

रावल दूदा ( 1319-1331 ई.)

  • कुछ समय बाद रावल दूदा जैसलमेर दुर्ग पर अधिकार कर वहाँ के शासक बने ।
  • रावल दूदा के समय भी दिल्ली सल्तनत के फिरोजशाह तुगलक के साथ युद्ध हुआ । इस युद्ध में रावल दूदा व उसका भाई तिलोकसी वीरगति को प्राप्त हुए तथा महिलाओं ने जोहर किया । इसे जैसलमेर का द्वितीय साका कहा जाता है । रावल दूदा के समय में जैसलमेर का दीवान मेहता जसवंत सिंह था , जो रावल दूदा के साथ युद्ध में लड़ते हुए मारा गया था ।

रावल घड़सी ( 1343-1361 ई.)

  • रावल घड़सी रावल मूलराज के भाई रतन सिंह का पुत्र था । मुस्लिम अधिपत्य से रावल घड़सी ने किसी प्रकार जैसलमेर दुर्ग प्राप्त किया और 1343 ई. में वहां के शासक बने ।
  • उन्होंने जैसलमेर में घड़सीसर जलाशय का निर्माण कराया ।
  • 1361 ई. में रावल घड़सी की जसहड़ भाटी आसकरण ने धोखे से हत्या कर दी । अत: उनकी रानी विमला ने देवराज के पुत्र केहर को रावल घड़सी का उत्तराधिकारी बनाया ।

रावल लक्ष्मण ( 1396-1436 ई.)

  • रावल लक्ष्मण रावल केहर का दूसरा पुत्र था । इन्होंने जैसलमेर दुर्ग में लक्ष्मीनाथ भगवान का मंदिर बनवाया ।
  • इन्होंने एक नई शासन पद्धति प्रारम्भ की गई जिसके अंतर्गत जैसलमेर राज्य के मुख्य शासक भगवान लक्ष्मीनाथ थे व रावल उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन का संचालन करता था ।

रावल बैरसिंह ( 1436-1447 ई.)

  • रावल लक्ष्मण की मृत्यु के बाद उनके जेष्ठ पुत्र रावल बैरसिंह जैसलमेर के शासक बने । उन्होनें 1441 ई. रत्नेश्वर महादेव के नाम से एक विशाल शिव मंदिर का निर्माण करवाया ।
  • इन्होंने बुलीसर व राणीसर नामक दो कूप भी बनवाए ।
  • इन्होंने राव जोधा को अपने यहां शरण दी ।
  • रावल बैरसिंह की मृत्यु 1447 ईसवी के लगभग हुई थी ।

रावल जैतसिंह द्वितीय ( 1506-1528 ई.)

  • 1506 ईसवी में जैतसिंह जैसलमेर का शासक बना ।
  • इनके राज्यकाल में बीकानेर के राठौड़ शासक राव लूणकरण ने आक्रमण किया ।
  • इन्होंने शांतिनाथ जैन मंदिर का निर्माण करवाया ।
  • रावल जैतसी की मृत्यु 1526-28 के मध्य हुई ।

रावल लूणकरण ( 1528-1550 ई.)

  • 1528 ई. में रावल लूणकरण जैसलमेर के शासक बने ।
  • रावल लूणकरण बाबर का समकालीन था ।
  • रावल जैतसी द्वारा प्रारंभ किए गए जैत बंध के कार्य को रावल लूणकरण ने पूर्ण कराया । यह बंध मध्यकालीन भारतीय बंध तकनीक का सबसे पुराना जीवित उदाहरण है । इस बंध के क्षेत्र में फलों का एक बाग भी लगाया गया, जिसे बड़ा बाग कहते हैं । यहाँ भाटी शासकों की छतरियां हैं ।
  • रावल लूणकरण के समय हुमायूं निर्वासित अवस्था में जैसलमेर आया था ।
  • रावल लूणकरण की पुत्री उमादे जोधपुर के शासक रावल मालदेव को ब्याही थी । यही उमादे राजपूताने के इतिहास में रूठी राणी के नाम से विख्यात है ।
  • जैसलमेर का अर्द्ध साका :- जैसलमेर का यह अर्द्ध साका रावल लूणकरण व कंधार के शासक अमीर अली खाँ के मध्य युद्ध में हुआ । आमिर अली खाँ रावल लूणकरण के यहाँ शरणागत था , लेकिन 1550 ईस्वी में उसने धोखे से दुर्ग में पहुंचकर रावल लूणकरण से युद्ध किया । रावल लूणकरण वीरगति को प्राप्त हुए । इसमें वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जोहर नहीं हुआ । लेकिन इस युद्ध में भाटियों की ही विजय हुई । रावल लूणकरण के जेष्ठ पुत्र मालदेव ने अली खाँ को मारकर दुर्ग पर अधिकार बनाए रखा ।

रावल हरराज ( 1561-1577 ई.)

  • रावल मालदेव की मृत्यु के बाद रावल हरराज को जैसलमेर का शासक बनाया गया । इस समय दिल्ली के सिंहासन पर सम्राट अकबर विराजमान थे ।
  • रावल हरराज ने नागौर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार कर अपने पुत्र राजकुमार सुल्तान सिंह को अकबर की सेवा में नियुक्त किया । अकबर ने उसे फलौदी की जागीर दी थी
  • इन्होंने इस विशाल राज्य को स्थायित्वता प्रदान करने हेतु सामन्ती प्रणाली का सूत्रपात भी किया जिसके अंतर्गत ‘जीवणी’ व ‘डावी’ मिसलों की स्थापना कर उन्होंने एक कुशल राजनीति की सूझबूझ का परिचय दिया था ।
  • रावल हरराज कार्यकाल जैसलमेर का साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठतम युग कहा जाता है ।
  • रावल हरराज स्वयं एक उच्चकोटि के साहित्यकार भी थे । उन्होंने पिंगल शिरोमणि नामक काव्यशास्त्र की रचना की ।
  • इनके काल में कुशललाभ व डूँगरसी रतनू नामक कवि भी हुए ।
  • रावल हरराज एक पुत्री चम्पादे का विवाह बीकानेर के कवि शिरोमणी शासक पृथ्वीराज ‘पीथल’ से हुआ था ।
  • राजस्थान साहित्य की उत्कृष्ट रचना ‘ढोला मारू रा दूहा’ भी इसी काल की रचना है ।
  • रावल हरराज ने ‘मालिया महल’ व ‘खाबड़ियों की हवेली’ का निर्माण कराया ।
  • रावल हरराज का निधन 1577 ईस्वी में हुआ ।

रावल भीम ( 1577-1613 ई.)

  • रावल हरराज के निधन के बाद उनका पुत्र रावल भीम 1577 ईस्वी में शासक बना ।
  • रावल भीम के बारे में ‘तुजुक-ए-जहाँगीर’ में भी उल्लेख मिलता है ।
  • रावल भीम के शासनकाल में मुनी पुण्य सागर द्वारा ‘जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति उपांगसूत्र’ व मुनी जिन हंससूरि द्वारा ‘जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति उपांगसूत्र वृत्ति’ की रचना हुई ।
  • रावल भीम ने जैसलमेर दुर्ग का जीर्णोद्धार कराया व उसके प्रमुख द्वारों के आगे दो और दरवाजे गणेश पोल व सूर्यपाल बनवाएं ।
  • उन्होंने बैरीशाल बुर्ज का भी पुनर्निर्माण करवाया ।
  • उनकी महारानी ने घड़सीसर तालाब पर नीलकंठ महादेव का मंदिर बनवाया ।

महारावल कल्याण ( 1613-1627 ई.)

  • रावल भीम की मृत्यु के बाद उनका छोटा भाई कल्याण जैसलमेर का शासक बना ।
  • रावल कल्याण को जैसलमेर स्थित सेठ थारूशाह के देरासर स्थित एक स्तंभ के लेख में ‘महारावल’ की उपाधि से सुशोभित किया है । यह प्रथम साक्ष्य हैं जिसमें जैसलमेर के शासकों को रावल के स्थान पर ‘महारावल’ संबोधित किया गया ।

महारावल मनोहरदास ( 1627-1650 ई.)

  • महारावल कल्याण की 1627 में मृत्यु के बाद उनके एकमात्र पुत्र महारावल मनोहर दास जैसलमेर के शासक बने ।
  • वर्तमान में विद्यमान जैसलमेर दुर्ग की 99 बुर्जों से युक्त दुर्भेद्य प्राचीर को मनोहरदास ने अंतिम रूप दिया था ।
  • मनोहर दास के बाद उनका गोद लिया हुआ पुत्र रामचंद्र ( 1649-50 ई.) शासक बना । उसके शासन की अवधि लगभग 10 माह रही । उसे सबलसिंह ने जैसलमेर से निकाल दिया व खुद शासक बना ।

महारावल सबलसिंह ( 1650-1660 ई.)

  • महारावल सबलसिंह 1650 ई. में जैसलमेर की गद्दी पर बैठे ।
  • महारावल सबलसिंह द्वारा 1659 ईस्वी में राज्य में तांबे की स्वतंत्र मुद्रा –‘डोडिया’ का प्रचलन प्रारंभ किया गया ।

महारावल अमरसिंह ( 1660-1701 ई.)

  • महारावल अमरसिंह, महारावल सबलसिंह के द्वितीय पुत्र थे जो 1660 ई. में 22 वर्ष की आयु में जैसलमेर की गद्दी पर बैठे ।
  • महारावल अमरसिंह ने अमरसागर का निर्माण कराया था ।
  • प्रशासनिक सुधारों में महारावल अमरसिंह द्वारा राज्य में निम्न दो प्रमुख सुधार किए गए – (१) राज्य में मुद्रा का टंकन (२) माप-तौल हेतु माप-तौल का निर्धारण ।

महारावल अखैसिंह ( 1722-1761 ई.)

  • 1722 ई. में महारावल सवाईसिंह को राजगद्दी से हटा कर महारावल अखैसिंह जैसलमेर की गद्दी पर बैठे ।
  • इन्होनें अखैपोल का निर्माण करवाया ।
  • जैसलमेर दुर्ग में ‘अखै विलास’ नामक महल का निर्माण भी महारावल अखैसिंह द्वारा करवाया गया ।
  • महारावल अखैसिंह द्वारा अपनी उपपत्नी के निवास हेतु ‘राडविलास’ नामक महल का निर्माण भी कराया गया ।
  • 1756 ईस्वी में महारावल अखैसिंह ने जैसलमेर में स्वतंत्र टकसाल की स्थापना की । महारावल अखैसिंह के समय ढाले गए सभी सिक्के मुहम्मदशाही व अखैशाही कहलाते थे ।

महारावल मूलराज द्वितीय ( 1761-1819 ई.)

  • महारावल अखैसिंह की मृत्यु के बाद महारावल मूलराज द्वितीय जैसलमेर के शासक बने ।
  • कुँवर रायसिंह ने मूलराज को ‘छब्बा निवास’ में बंदी बनाया था ।
  • महारावल मूलराज ने 1772 ई. में किशनगढ़ की राजकुमारी रूपकंवर से विवाह किया था । रूपकंवर वैष्णव धर्म के वल्लभ संप्रदाय के अनुयायी थी । फलस्वरूप महारावल मूलराज ने पुष्टिमार्ग की दीक्षा ली ।
  • महारावल मूलराज ने अपने गुरु हरिराय की बैठक का निर्माण करवाया तथा गिरधारी जी का भव्य मंदिर बनवाया ।
  • 1797 ई. में गोरखनाथ का मंदिर व अंबिका देवी का मंदिर बनवाया गया ।
  • 12 दिसंबर 1818 को दिल्ली में महारावल मूलराज ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि की ।
  • ‘मूल विलास’ व ‘लक्ष्मी कीर्ति संवाद’ उनके समय में रचित प्रमुख ग्रंथ है ।

महारावल गजसिंह ( 1820-1846 ई.)

  • महारावल मूलराज की मृत्यु के बाद गजसिंह जैसलमेर के शासक बने ।
  • इनके शासनकाल में पालीवालों के राज्य त्याग की घटना 1828 ई. के लगभग हुई थी ।
  • इनके समय बासणपीर के युद्ध में जैसलमेर ने बीकानेर की सेना को हराया था ।
  • महारावल गजसिंह ने जैसलमेर दुर्ग में गजविलास व सर्वोत्तम विलास नामक महलों का निर्माण करवाया था ।
  • इन्होंने गजरूप सागर का निर्माण करवाया ।
  • महारावल गजसिंह की 29 जून 1846 को नि:संतान मृत्यु हो गई ।
  • गवर्नर जनरल सदरलैंड के आदेश पर नाचणा ठिकाने के ठाकुर केसरीसिंह भाटी (महारावल गजसिंह के भाई) के 3 वर्षीय पुत्र रणजीतसिंह को गोद लिया व 3 जुलाई 1846 को जैसलमेर की गद्दी पर बिठाया ।

महारावल रणजीतसिंह ( 1846-1864 ई.)

  • महारावल रणजीत सिंह की उम्र कम होने पर उनके पिता ठाकुर केसरी सिंह ने राजकाज संभाला ।
  • केसरीसिंह के समय मेहता अजीतसिंह ने ‘जैसलमेर री ख्यात’ नामक ग्रंथ की रचना भी की थी जो राज्य का इतिहास जानने का प्रमाणिक ग्रंथ है ।
  • 1857 की क्रांति के समय महारावल रणजीत सिंह थे ।
  • इनके समय जैसलमेर की पाषाण शिल्पकला को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति उपलब्ध हुई थी ।
  • इनके समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने 26 जून 1857 को जोधपुर से जैसलमेर होते हुए सिंध तक सीधे डाक मार्ग की व्यवस्था की गई थी ।
  • इनके शासनकाल में चांदी के सिक्कों पर मुगल बादशाह मोहम्मद शाह का नाम हटाकर महारानी विक्टोरिया का नाम डाला जाने लगा । इसी समय सिक्कों पर राज चिन्ह के रूप में छत्र व सुगन चिड़ी को भी अंकित किया जाने लगा ।
  • इनके द्वारा पूरे राज्य में विक्रम संवत को राजकीय संवत मानने व मार्गशीर्ष माह से उसे आरंभ करने के आदेश प्रसारित किए गए । इसके साथ ही विक्रम संवत में चले आ रहे 22 वर्षों के अंतर को भी समाप्त कर दिया गया ।
  • महारावल रणजीत सिंह ने जयपुर में शास्त्री गोकुलनाथ भट्ट को बुलाकर राजकीय सेवा में रखा । गोकुलनाथ भट्ट ने जैसलमेर में ‘रणजीत रत्नमाला’ नामक ग्रंथ की रचना की थी ।
  • ‘भट्टीवंश प्रशस्ति’ नामक संस्कृत ग्रंथ की रचना भी इसी काल में हुई थी ।
  • उन्होंने अपनी रानी गुलाब कुँवर के नाम से गुलाब सागर नामक सरोवर व कूप का निर्माण कराया गया ।
  • महारावल रणजीत सिंह का 21 वर्ष की अल्पायु में 16 जून 1864 को देहांत होने पर इनके छोटे भाई बैरीशाल को जैसलमेर की गद्दी पर बिठाया ।

महारावल बैरीशाल ( 1864-1891 ई.)

  • 19 अक्टूबर 1865 को महारावल बैरीशाल जोधपुर की गद्दी पर बैठे ।
  • महारावल बैरीशाल के कार्यकाल में दीवान नथमल का उनके साथ ‘लाणी’ संबंधित नियम पर विवाद हो गया , जिसके कारण वह जैसलमेर छोड़कर जोधपुर चले गए थे । उनके स्थान पर पॉलिटिकल एजेंट द्वारा कच्छ सौराष्ट्र से बुलाकर मेहता जनगजीवन की नियुक्ति दीवान के पद पर की गई । जैसलमेर के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब कोई बाहरी व्यक्ति दीवान के पद पर आसीन हुआ था ।
  • महारावल बैरीशाल व ब्रिटिश सरकार के मध्य 1879 ई. में एक संधि संपन्न हुई जिसे नमक संधि कहा जाता है ।
  • 1877 में दिल्ली में आयोजित महारानी विक्टोरिया को साम्राज्ञी बनाने के दरबार में जैसलमेर को शाही ध्वज प्रदान किया गया था ।
  • महारावल बैरीशाल का 32 वर्ष की अल्पायु में ही रूग्णता के कारण 10 मार्च 1891 को निधन हो गया ।
  • इनके कार्यकाल में रतनू शिवदान को राजकीय कवि घोषित किया गया व उन्हें ‘कविराज’ उपाधि प्रदान की गई ।
  • सन् 1888 में महारावल बैरीशाल के राज्य काल में प्रथम ब्रिटिश डाकखाना जैसलमेर शहर में खोला गया था ।

महारावल शालिवाहन द्वितीय ( 1891-1914 ई.)

  • महारावल बैरीशाल की नि: संतान मृत्यु हो जाने के कारण 10 मार्च 1891 को उनके भाई सामन्त कुशलसिंह के 5 वर्षीय पुत्र श्याम सिंह को शालिवाहन द्वितीय के नाम से जैसलमेर का शासक बनाया गया ।
  • महारावल शालिवाहन को विधिवत शिक्षा प्रदान करने हेतु उन्हें मेयो कॉलेज अजमेर भेजा गया तथा अजमेर के सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता व विद्वान दीवान हरविलास शारदा को महारावल का संरक्षक व शिक्षक बनाया गया था ।
  • 14 दिसंबर 1908 को महारावल का विधिवत राज्यरोहण समारोह सम्पन्न किया गया । यह प्रथम अवसर था जब राज्य में विधिवत शिक्षित व्यक्ति शासक के पद पर आसीन हुआ था ।
  • इनके शासनकाल में केंद्रीय सत्ता का विकेन्द्रीयकरण कर ‘महकमा खास’ अथवा ‘सेक्रेटेरियेट’ नामक विभाग बनाया गया था ।
  • महारावल शालिवाहन के राज्यकाल में जैसलमेर में अखिल भारतीय श्वेतांबर जैन महासभा का आयोजन किया गया था । इसी अवसर पर जैसलमेर ज्ञान भंडार के विशाल ग्रंथों के संग्रह के बारे में प्रथम बार शेष विश्व को जानकारी प्राप्त हुई ।
  • महारावल शालिवाहन का 11 अप्रैल 1914 को मात्र 27 वर्ष की आयु में नि:संतान निधन हो गया ।

महारावल जवाहर सिंह ( 1914 -1949 ई.)

  • महारावल शालिवाहन की नि:संतान मृत्यु हो जाने के कारण ठाकुर सरदार सिंह के द्वितीय पुत्र जवाहरसिंह को जून 1914 में जैसलमेर राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया गया ।
  • महारावल जवाहर सिंह के समय प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो चुका था ।
  • महारावल जवाहरसिंह के समय 1939-40 का भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा था । आज भी जैसलमेर के बुजुर्ग लोग उसे ‘छानूरोकाल’ कहते हैं । इसी काल में राज्य में टिड्डी दल के आक्रमण से फसल नष्ट हो गई थी ।
  • 1941 में अधिनियम बनाकर नगर पालिका की स्थापना की गई । इसका अध्यक्ष राज्य का दीवान था ।
  • 1939 में राज्य में प्रथम बिजलीघर की स्थापना की गई ।
  • महारावल जवाहरसिंह ने पशुओं की पीठ पर चिह्न दागने की प्रथा प्रारंभ करवाई ।
  • महारावल जवाहर सिंह के राज्यकाल में राजस्थान के अंतिम दुर्ग ‘मोहनगढ़’ का निर्माण किया गया ।
  • जवाहर विलास नामक भवन का निर्माण आवास व राज दरबार के प्रयोजन हेतु किया गया ।
  • 1933 में राजकीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जैसलमेर दुर्ग पर एक ‘जवाहर प्रिंटिंग प्रेस’ की स्थापना की गई थी ।
  • महारावल जवाहरसिंह का निधन 17 फरवरी 1949 को हो गया ।
  • इनके राज्य काल में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा को जेल में अमावनीय यातनाएं देखकर 3 अप्रैल 1946 को जला दिया गया जिससे 4 अप्रैल 1946 को उनकी मृत्यु हो गई ।

महारावल गिरिधर सिंह ( 1949-50 )

  • महारावल जवाहर सिंह की मृत्यु के बाद उनके ज्येष्ठ राजकुमार गिरधर सिंह जैसलमेर के शासक घोषित किए गए ।
  • 30 मार्च 1949 को जैसलमेर का राजस्थान में विलय कर दिया गया ।
  • 27 अगस्त 1950 को महारावल गिरिधरसिंह का निधन हो गया ।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

➡ भाटी शासकों के काल में दीवान का पद वंशानुगत था ।

➡ जैसलमेर का जैन ज्ञान भंडार यहां के ग्रंथों के संकलन हेतु विश्व प्रसिद्ध है । जैसलमेर शासक चाचगदेव ( 1447-70 ई.) के राज्यकाल में श्वेतांबर जैन पंथ खरतरगच्छ के आचार्य जिनभद्र सूरी के निर्देशन में गुजरात से जैन ग्रंथों का एक बहुत बड़ा संग्रह जैसलमेर के दुर्ग में स्थित ज्ञान भंडार में स्थानांतरित किया गया था ।

➡ राजस्थानी साहित्य की श्रेष्ठ कृति ‘ढोला मारू रा दूहा’ को जैन कवि कुशललाभ के द्वारा जैसलमेर में ही लिखा गया था ।

➡ सोढी नाथी द्वारा रचित ‘सोढी नाथी रा गूढ़ार्थ’ नामक रचना ज्ञान, भक्ति और रहस्यवाद की श्रेष्ठ रचना है ।

➡ महारावल गजसिंह के काल में माधवदान ने ‘रामदेव चरित्र’ लिखकर इन्होंने जन-जन के कवि होने का सम्मान पाया है ।

➡ ‘तवारीख टावरी खानदान’ व ‘जैसलमेर गजल’ रचनाएँ मेहता उम्मेदशसिंह ने लिखी है ।

‘भाटीनामा’ रचना मेहता अजीतसिंह ने लिखी है ।

➡ ‘राजा भर्तृहरी ख्याल’ , ‘नैना खसम का ख्याल’ व ‘भग सूर्य प्रकाश’ रचनाएँ कवि तेज ने लिखी है ।

➡ कवि तेज ने ‘स्वराज्य बावनी’ की रचना कर स्वाधीनता संग्राम का बिगुल फूंका था ।

➡ जैसलमेर की रम्मतों में ‘राजा भर्तृहरी’ प्रमुख है तथा ख्याल में ‘मूमलमहेन्द्र रो ख्याल’ प्रमुख है ।

➡ जैसलमेर में ‘झीड़े’ नामक एक विशिष्ट काव्य पद्धति भी रही है । ‘ढोला मारू रा दूहा’ इसके अंतर्गत गया जाने वाला सबसे प्राचीन काव्य है ।

➡ महारावल शालिवाहन के समय ‘आरबा’ नामक एक प्रसिद्ध मांड व सारंगी वादक हुआ था । इसका घराना आराबा संगीत घराना कहलाता है ।

➡ ‘दश वैकालिक सूत्र चूर्णि’ एवं ‘औध निर्युत्ति वृत्ति’ जिन्हें नागपाल के वंशज आनंद ने पाहिल नामक व्यक्ति से 1060 में चित्रित करवाया था , जैसलमेर का प्राचीनतम चित्रित ग्रंथ है ।

➡ जैसलमेर की मुख्य भाषा थारी अथवा घाटी है ।

मीर मासूमी :- मीर मासूमी के जैसलमेर के रावल भीम से घनिष्ठ संबंध थे । वह दो बार जैसलमेर आया था । उसने जैसलमेर नगर के बाहर ‘फकीरों का तकिया’ नामक इमारत बनवाई थी । उसने ‘तारीखे-ए-मासूमी’ नामक ग्रंथ की रचना की थी । इस ग्रंथ में जैसलमेर पर सल्तनकालीन हमलों का उल्लेख भी प्राप्त होता है ।

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