Rao Maldev Rathod History in Hindi

राव मालदेव राठौड़ (Rao Maldev Rathod History in Hindi) का इतिहास

आज हम जोधपुर (मारवाड़) राज्य के राठौड़ वंश के राव मालदेव राठौड़ (Rao Maldev Rathod History in Hindi) के इतिहास की बात करेंगे ।

राव मालदेओ राठौड़ (History of Rao Maldev Rathod in Hindi)

राव मालदेव ( 1532-1562 ई.)

  • राव मालदेव का जन्म 5 दिसंबर 1511 को हुआ था । अपने पिता राव गांगा को मारकर मई, 1532 को राव मालदेव जोधपुर के राज्य के आसन पर बैठे । उस समय दिल्ली पर मुगल बादशाह हुमायूँ का शासन था ।
  • उनकी माता सिरोही के देवड़ा शासक जगमाल की पुत्री थी । राव मालदेव का विवाह जैसलमेर के शासक राव लूणकरण की पुत्री उमादे से हुआ , जो विवाह की पहली रात से ही अपने पति से रूठ गई तथा आजीवन रूठी रही । वो इतिहास में ‘रूठी रानी‘ के नाम से प्रसिद्ध हुई । राव मालदेव की मृत्यु होने पर सती हो गई ।
  • राज्यारोहण के समय मालदेव के अधीन जोधपुर तथा सोजत परगने ही थे । राव मालदेव वीर होने के साथ ही महत्वाकांक्षी भी था । गद्दी पर बैठते ही उन्होंने राज्य प्रसार की ओर ध्यान दिया ।
  • उन्होंने भाद्राजूण पर सींधल वीरा को हराकर अधिकार किया । उसने जैसलमेर के भाटी शासकों से फलौदी छीन लिया । राव मालदेव ने मेड़ता के स्वामी वीरमदेव को मेड़ता से निकालकर मेड़ता पर व फिर अजमेर पर अधिकार किया । उन्होंने नागौर के दौलत खान पर चढ़ाई की और उसे भी अपने अधिकार में लिया ।
  • मालदेव ने सिवाणा के स्वामी राठौड़ डूँगरसी को हराकर सिवाणा 20 जून, 1538 को जीत लिया । जोधपुर की तरफ से मांगलिया देवा सिवाणा का किलेदार नियुक्त किया गया ।
  • मालदेव ने जालौर पर भी अधिकार कर लिया व वहाँ के स्वामी सिकंदर खाँ को दुनाड़ा में कैद कर लिया । कैद में रहते समय ही सिकंदर खाँ की मृत्यु हो गई ।
  • राव मालदेव ने बीकानेर पर भी चढा़ई की व राव जैतसी को हराकर बीकानेर पर अधिकार किया । यह लड़ाई साहेबा (सूवा) नामक गाँव में हुई थी । मालदीव ने बीकानेर पर चढा़ई करने के लिए कूंपा की अध्यक्षता में सेना भेजी थी । बीकानेर शासक राव जैतसी इस युद्ध में मारा गया था ।
  • राव मालदेव ने टोंक व डीडवाना पर भी अधिकार किया । उन्होंने मेवाड़ में दासी पुत्र बनवीर को हटाकर महाराणा उदयसिंह को सियासत पर बैठाने में पूरी सहायता प्रदान की थी ।
  • मुगल बादशाह हुमायूं को शेरशाह सुरी ने चौसा (बिहार) नामक स्थान पर हुए युद्ध में 26 जून 1539 को परास्त किया था और दूसरी बार 17 मई 1540 को उसे कन्नौज के युद्ध में हराया था , जिससे हुमायूं सिंध की तरफ चला गया और शेरशाह सूरी दिल्ली के सिंहासन पर बैठा ।
  • मेड़ता व अजमेर पर राव मालदेव का अधिकार होने तथा राठौड़ वरसिंह के पौत्र सहसा को रीयां की जागीर देने से वीरमदेव तथा बीकानेर पर अधिकार कर लेने से राव जैतसी के पुत्र कल्याणमल उससे नाराज थे । वे शेरशाह को मालदेव के विरुद्ध भड़काते रहते थे ।

गिरी सुमेल- जैतारण का युद्ध :-

  • जैतारण (पाली) के निकट गिरी सुमेल नामक स्थान पर 5 जनवरी 1544 को शेरशाह तथा राव मालदेव के मध्य युद्ध हुआ । इस युद्ध में बीकानेर का राव कल्याणमल शेरशाह सूरी के साथ था । शेरशाह सेनापति जलाल खाँ जलवानी की सहायता से मारवाड़ पर विजय प्राप्त की ।
  • फरिश्ता ने ‘तारीखे फरीश्ता‘ में लिखा है कि शेरशाह ने तब कहा था ‘खुदा का शुक्र है कि किसी तरह फतह हासिल हो गई , वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैनें हिंदुस्तान की बादशाहत खो दी होती ।’ इस युद्ध में मालदेव के सबसे वीर सेनानायक जैता और कूँपा मारे गए थे । सुमेल का युद्ध मारवाड़ के भाग्य के लिए निर्णायक युद्ध था ।
  • शेरशाह ने वीरमदेव को मेड़ता और कल्याणमल को बीकानेर का राज्य सौंपा । शेरशाह ने अजमेर पर भी अधिकार कर लिया तथा किलेदार शंकर लड़ाई में मारा गया । शेरशाह ने जोधपुर के दुर्ग पर आक्रमण कर वहां का प्रबंध खवास खाँ को सौपा । इसकी क्रब जोधपुर में खवासखाँ ( खासगा) पीर की दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है । शेरशाह ने मेहरानगढ़ में मस्जिद बनवाई । राव मालदेव पाती नामक गांव में रहा ।
  • 22 मई 1945 को शेरशाह का कालिंजर में देहांत हो गया । शेरशाह के देहांत का समाचार मिलते ही राव मालदेव ने 1545 में जोधपुर पर पुन: कब्जा किया ।
  • राव मालदेव अपने ज्येष्ठ पुत्र रावराम को राज्य से निर्वाचित कर दिया । रावराम भटियानी रानी उमादे के साथ गूंदोच (पाली) चला गया । उमादे उसे अपना दत्तक पुत्र मानती थी ।
  • राव मालदेव अपनी झाली रानी स्वरूप दे पर विशेष प्रेम था । अपनी इसी रानी के आग्रह करने से उसने अपने पुत्र चंद्रसेन को जेष्ठ पुत्र राम के रहते हुए भी राज्य देने का निश्चय किया और उसे ही उत्तराधिकारी बनाया ।
  • राव मालदेव ने राठौड़ नगा और बीदा के नेतृत्व में सेना भेजकर पोकरण व फलौदी पर अधिकार किया , लेकिन पठान मलिक खाँ ने उन्हें हराकर जालौर पर अधिकार किया । इसके अलावा मेड़ता के शासक जयमल ( वीरमदेव का उत्तराधिकारी ) से लड़ाई में भी राव मालदेव की पराजय हुई थी । इस लड़ाई में बीकानेर के राव कल्याण सिंह ने मेड़ता के जयमल की मदद की थी ।
  • सन् 1557 में राव मालदेव ने जयमल से मेड़ता छुड़वाया और वहाँ मालकोट बनाया गया । 1562 ई. में अकबर ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया ।
  • राव मालदेव की मृत्यु 7 नवंबर 1562 को हुई ।
  • राव मालदेव को फारसी इतिहासकार फरिश्ता ने ‘हशमत वाला राजा‘ ( The Most Potent Ruler of Hindustan) कहा है ।
  • राव मालदेव को 52 युद्धों का नायक और 58 परगनों के रूप में प्रतिष्ठित माना गया ।
  • इन्होने अपनी पुत्री कनका बाई का विवाह सूर शासक इस्लाम शाह सूर से करवाकर मुस्लिम शासकों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए ।

राव मालदेव के बनाए हुए स्थान :-

(१) राणीसर तालाब का कोट
(२) पोकरण का किला
(३) सोजत, रायपुर , गूंदोज, भाद्राजूण, रीयां, सिवाणा, पीपाड़, नाडोल , कुण्डल , फलोदी, दुनाड़ा और मेड़ता में किलो का निर्माण करवाया ।
(४) तारागढ़, अजमेर के पास के नूरचश्मे की तरफ के बुर्ज और बींठली का किला बनवाया तथा नूरचश्मे से हौजों और रहटों के द्वारा जल ऊपर पहुंचाने का बंदोबस्त किया ।
(५) राव मालदेव की रानी झाली स्वरूप देवी ने ‘स्वरूप सागर’ नामक तालाब बनवाया था । यह ‘बहूजी’ के तालाब के नाम से प्रसिद्ध है ।

राव मालदेव काल का साहित्य :-

राव मालदेव साहित्यकारों, कवियों व चारणों का सरंक्षण था । उसके समय ‘आसिया के दोहे’ , ‘आशा बारहठ के गीत’ , ‘ईसरदास के सोरठे’ , ‘रतनसिंह री वेली’ , ‘जिन रात्रि कथा’ आदि कई महत्वपूर्ण साहित्य ग्रंथ लिखे गए । संस्कृत भाषा में ‘लघुस्तवराज’ की रचना भी हुई ।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

➡ ‘अकबरनामा’ में राव मालदेव को हिंदुस्तान के तमाम दूसरे रावों और राजाओं से बड़ा लिखा है ।

➡ ‘तुजुक ए जहांगीरी’ में राव मालदेव को सेना और राज्य की विशालता में महाराणा सांगा से भी बड़ा बताया है ।

➡ चारणों ने उसे हिन्दू बादशाह कहा है ।

जोधपुर राज्य (Jodhpur History in Hindi) के राठौड़ वंश का इतिहास में अगली पोस्ट में जोधपुर के राठौर शासक राव चंद्रसेन के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

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