Rao Chandrasen Rathod History in Hindi

राव चंद्रसेन राठौड़ (Rao Chandrasen Rathod History in Hindi) का इतिहास

आज हम जोधपुर (मारवाड़) राज्य के राठौड़ वंश के राव चंद्रसेन राठौड़ (Rao Chandrasen Rathod History in Hindi) के इतिहास की बात करेंगे ।

राव चंद्रसेन की जीवनी (History of Rao Chandrasen Rathod in Hindi)

राव चंद्रसेन ( 1562-1580 ई.)

  • राव चंद्रसेन का जन्म 30 जुलाई, 1541 को हुआ । राव मालदेव ने अपने जेष्ठ पुत्र राम व उदय सिंह के स्थान पर अपने छोटे पुत्र चंद्रसेन को अपना उत्तराधिकारी बनाया था । राव चंद्रसेन 31 दिसंबर 1562 को जोधपुर के शासक बने ।
  • राव चंद्रसेन के भाइयों द्वारा विद्रोह पर चंद्रसेन ने सबसे पहले रायमल को हराया । चंद्रसेन ने राम को भी हराया । इसी समय उदयसिंह ने गांगाणी के पास लांगड़ गांव में उपद्रव किया । चंद्रसेन ने उदयसिंह को लोहावट के युद्ध (1563)में बुरी तरह हराया ।
  • रामव चंद्रसेन ने अपने भाई राम के विरुद्ध एक सेना भेजी जिसने राम को नाडोल के युद्ध में बुरी तरह हराया । राम भागकर अजमेर के मुगल सूबेदार की शरण में जा पहुंचा , लेकिन मारवाड़ के सरदारों ने चंद्रसेन को समझा कर दोनों भाइयों में संधि करवा दी , जिसके अनुसार राम को सोजत परगना जागीर में दे दिया ।
  • राम नाराज होकर बादशाह अकबर के पास पहुंचा और बादशाह अकबर से सहायता मांगी । अकबर मेड़ता और नागौर तो पहले ही जीत चुका था । मारवाड़ की आंतरिक फूट का लाभ उठाने के लिए अकबर ने हुसैन कुली खाँ के नेतृत्व में सेना भेजी । हुसैन कुली खाँ के नेतृत्व में शाही सेना ने जोधपुर पर चढ़ाई की तथा जोधपुर दुर्ग पर एक घेरा डाला । राव चंद्रसेन विवश होकर गढ़ का परित्याग कर भाद्राजूण चले गए ।
  • अकबर 1570 में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जियारत के लिए अजमेर आए । वहाँ से वे नवम्बर, 1570 में नागौर पहुंचे । दुष्काल से राहत दिलाने के लिए उन्होंने अपने सैनिकों से एक तलाब भी खुदवाया, जिसका नाम ‘शुक्र तलाब’ रखा गया ।
  • नागौर दरबार में राजस्थान की कई राजपूत राजा उसकी सेवा में उपस्थित हुए और अकबर की अधीनता स्वीकार की , जिनमें जैसलमेर नरेश रावल हरराज जी , बीकानेर नरेश राव कल्याणमल व उनके पुत्र रायसिंह जी तथा राव चंद्रसेन के बड़े भाई उदयसिंह जी प्रमुख थे ।
  • राव चंद्रसेन भी अपनी स्थिति सुधारने के लिए अकबर के पास उपस्थित हुए , लेकिन वहां अकबर की कूटनीति देखकर वह अपने पुत्र रायसिंह को वहीं छोड़ अकबर के दरबार से लौटकर भाद्राजूण वापस आ गए ।
  • अकबर ने 30 अक्टूबर 1572 को बीकानेर के शासक कल्याणमल के पुत्र रायसिंह को जोधपुर का शासक नियुक्त किया व जोधपुर पर शाही अधिकार स्थापित किया ।
  • राव चंद्रसेन भाद्राजूण में रहकर मुगलों की फौजों का मुकाबला किया, परंतु जब मुगल सेना ने चारों ओर से घेर लिया तो वे सिवाणा चले गए और सिवाणा को उसने अपनी राजधानी बनाया । सिवाणा में भी शाह कुलीखाँ के नेतृत्व में मुगल सेना पहुंच गई जिससे तंग आकर चंद्रसेन अपने सेनापति राठौड़ पत्ता को किले की रक्षा का भार सौंपकर रामपुरा के पहाड़ों में चले गये । सिवाना का गढ़ मार्च 1576 को मुगलों के साथ आ गया ।
  • राव चंद्रसेन मारवाड़ छोड़कर मेवाड़ और सिरोही और उसके बाद डूँगरपुर और बाँसवाड़ा की शरण ली । बाँसवाड़ा के रावल प्रतापसिंह ने उसे सम्मानपूर्वक अपने पास रखा । इसके बाद वह कोटड़ा (मेवाड़) गये, जहाँ वे महाराणा प्रताप से भी मिले । राव चंद्रसेन ने 19 जुलाई 1579 ई. को सोजत पर अधिकार किया ।
  • 11 जनवरी 1581 ई. में सारण में उनका निधन हो गया । उस जगह इनकी संगरमरमर की एक राव चंद्रसेन की घोड़े पर सवार प्रतिमा अब तक विद्यमान है और उसके आगे 5 स्त्रियां खड़ी है ।
  • राव चंद्रसेन ऐसा पहला राजस्थानी शासक था जिसने मुगल विरोधी अभियान को पूरी गंभीरता से प्रारम्भ किया था ।
  • राव चंद्रसेन ऐसे प्रथम राजपूत शासक थे जिन्होंने रणनीति में दुर्ग के स्थान पर जंगल और पहाड़ी क्षेत्र को अधिक महत्व दिया था ।
  • खुले युद्ध के स्थान पर छापामार युद्ध प्रणाली स्थापित करने में राणा उदय सिंह के बाद दूसरे शासक थे ।
  • राव चंद्रसेन व प्रताप महाराणा प्रताप दो ऐसे राजपूत राजा थे , जो कभी भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की ।

राव चंद्रसेन के उपनाम :-

(१) मेवाड़ के राणा प्रताप का पथ प्रदर्शक
(२) मारवाड़ का प्रताप
(३) भूला बिसरा शासक
(४) राजपूत शासकों का आदर्श
(५) प्रताप का अग्रगामी

जोधपुर राज्य (Jodhpur History in Hindi) के राठौड़ वंश का इतिहास में अगली पोस्ट में जोधपुर के राठौर शासक मोटा राजा राव उदयसिंह,सवाई राजा सूरसिंह,महाराजा गजसिंह प्रथम के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

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