Marwar History in Hindi

मारवाड़ (Marwar History in Hindi) का इतिहास

आज हम मारवाड़ (Marwar History in Hindi) के इतिहास की बात करेंगे ।

मोटा राजा राव उदयसिंह (History of Mota Raja Rao UdaySingh in Hindi)

मोटा राजा राव उदयसिंह (1583-1595 ई.)

  • उदयसिंह का जन्म 13 जनवरी 1538 को हुआ था । राव चंद्रसेन की मृत्यु के बाद अकबर ने 3 वर्ष तक जोधपुर का राज्य खालसा के अंतर्गत रखा ।
  • 4 अगस्त 1583 को राव उदयसिंह (राव चंद्रसेन के भाई ) को जोधपुर के से सिंहासन पर बैठाया गया । इनका शरीर स्थूल होने के कारण उदयसिंह मोटा राजा राव उदयसिंह के नाम से जाने जाते हैं ।
  • राव उदयसिंह जोधपुर के प्रथम शासक थे जिन्होंने मुगल अधीनता स्वीकार कर अपनी पुत्री मानीबाई का विवाह शहजादे सलीम से कर मुगलों से वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए ।
  • शहजादा सलीम ने मानीबाई के जगत गोसाई की पदवी देकर सम्मानित किया था तथा इनसे खुर्रम (शाहजहाँ) का जन्म हुआ था ।
  • मोटा राजा राव उदयसिंह का 11 जुलाई 1595 को लाहौर में देहांत हो गया ।

सवाई राजा सूरसिंह (1595-1619 ई.)

  • सूरसिंह का जन्म 24 अप्रैल 1571 को हुआ था । राव उदयसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र सूरसिंह को बादशाह अकबर ने उदयसिंह का उत्तराधिकारी नियुक्त किया ।
  • 23 जुलाई 1595 को लाहौर में उसे टीका दिया गया । 24 जनवरी 1596 को जोधपुर में आने पर उनका राज्याभिषेक किया गया ।
  • अकबर ने सूरसिंह को ‘सवाई राजा‘ की उपाधि 1604 में प्रदान की ।
  • सूरसिंह ने जहांगीर के 10वें राज्य वर्ष में 19 अप्रैल 1615 को जहाँगीर को ‘रण रावत‘ व ‘फौज श्रृंगार‘ हाथी भेंट किया था ।
  • राजा सूरसिंह का भाई किशनसिंह किशनगढ़ में राठौड़ वंश के शासन का संस्थापक था ।
  • सूरसिंह ने जोधपुर में सूरसागर तालाब तथा उस पर संगमरमर की एक बारादरी महल व उद्यान बनवाए । जोधपुर में रामेश्वर महादेव का मंदिर , सूरजकुंड नामक बावड़ी व शहर के बीच की तलहटी के महल सूरसिंह ने बनवाये ।
  • जोधपुर किले का प्रसिद्ध मोती महल सूरसिंह जी ने बनवाया था ।
  • इनका उत्तराधिकारी गजसिंह था ।
  • सवाई राजा सूरसिंह का निधन 7 सितंबर 1619 को हुआ ।

महाराजा गजसिंह प्रथम (1619-1638 ई.)

  • गजसिंह का जन्म 30 अक्टूबर 1696 को हुआ था । इन्होंने सवाई राजा सूरसिंह के जीवन काल में ही अनेक युद्धों में भाग लिया था ।
  • राजा सूरसिंह की मृत्यु के बाद 5 अक्टूबर 1619 को बुरहानपुर में इनका राज्याभिषेक खानखाना के पुत्र दाराबखाँ द्वारा किया गया ।
  • दक्षिण की लड़ाईयों में गजसिंह की सेवा और वीरता से प्रसन्न होकर बादशाह जहाँगीर ने उन्हें ‘दलथंभन‘ का खिताब दिया था ।
  • अमरसिंह गजसिंह का जेष्ठ पुत्र था , परन्तु उसके हठी और उद्दंड होने के कारण महाराजा गजसिंह ने अपने छोटे पुत्र जसवंत सिंह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया ।
  • महाराजा गजसिंह का 6 मई 1638 को आगरा में निधन हो गया और उनका अंतिम संस्कार यमुना नदी के किनारे हुआ । वहाँ उनकी छतरी बनी हुई है ।
  • गजसिंह के समय हेम कवि ने ‘गुण भाषा चित्र’ व चारण कवि केशवदास गाडण ने ‘गजगुणरूपक’ नामक काव्य लिखे थे । ये दोनों काव्य डिंगल भाषा के हैं और इनमें राजा गजसिंह के वीर चरित्र का वर्णन है । हेमकवि ने ‘गुणरूपक‘ नाम का एक अन्य काव्य भी लिखा था ।

अनारां :- महाराजा गजसिंह की प्रेमिका जिनके कहने पर महाराजा गजसिंह ने अमर सिंह के स्थान पर अपने छोटे पुत्र जसवंत सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया था । अनारां की बनवाई हुई ‘अनारां बेरी‘ जोधपुर में विद्यमान है ।

राव अमरसिंह :- राव अमरसिंह जी जोधपुर नरेश गजसिंह के जेष्ठ पुत्र थे । इनका जन्म 12 दिसंबर 1613 को हुआ था । इनके पिता ने उनके छोटे भ्राता जसवंतसिंह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था , इसलिए यह जोधपुर राज्य की आशा छोड़ 1628 ई. में बादशाह शाहजहाँ के पास चले गए थे । महाराजा गजसिंह जी का निधन होने के बाद शाहजहाँ ने अमरसिंह को ‘राव’ की पदवी देकर नागौर का परगना जागीर में दे दिया ।

  • सन् 1644 में बीकानेर के गाँव सीलवा और नागौर के गाँव जाखणियाँ के संबंध में कलह होने पर बीकानेर के कर्णसिंह व अमर सिंह की सेना में लड़ाई हुई , जिसमें बीकानेर के राजा कर्णसिंह की विजय हुई । यह लड़ाई ‘मतीरे की राड़‘ के नाम से प्रसिद्ध है ।
  • बादशाह बख्शी सलावत खाँ द्वारा द्वेषवश कुछ कड़े शब्द कहने पर उसके कलेजे में अपनी कटार झोंक दी थी । सलावत खाँ को मारने पर अन्य शाही मनसबदारों व गुर्जबरदारों ने रावजी को घेर लिया । अत: में वीर अमरसिंह वीरगति को प्राप्त हुए । इस प्रकार 25 जुलाई 1644 को इनका निधन हो गया ।

जोधपुर राज्य (Jodhpur History in Hindi) के राठौड़ वंश का इतिहास में अगली पोस्ट में जोधपुर के राठौड़ शासक जसंवतसिंह प्रथम के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

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