Banswara History in Hindi

बाँसवाड़ा का गुहिल वंश (Banswara History in Hindi) का इतिहास

आज हम बाँसवाड़ा के गुहिल वंश (Banswara History in Hindi) के इतिहास की बात करेंगे । जिसमें महारावल जगमालसिंह से लेकर महारावल चंद्रवीर सिंह के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

बाँसवाड़ा राज्य का इतिहास (Banswara History in Hindi)

10 -11वीं सदी तक यहाँ परमारों का शासन था , जिनकी राजधानी उत्थुनका ( आर्थूणा) थी । यहाँ परमार शासकों ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया ।

महारावल जगमालसिंह :

  • महारावल उदयसिंह की खानवा के युद्ध में मृत्यु के बाद वागड़ राज्य का बंटवारा डूँगरपुर व बाँसवाड़ा में हो गया था । उनके दूसरे पुत्र महारावल जगमालसिंह ने 1530 ईसवी के लगभग बाँसवाड़ा में गुहिल वंश की स्वतंत्र रियासत की नींव डाली ।
  • महारावल जगमालसिंह ने बाँसवाड़ा में भीलेश्वर महादेव का मंदिर और फूल महल बनवाए ।
  • उनकी रानी लाछकुंवरी ने नीलकंठ महादेव के पंचायतन मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और तेजपुर गांव के पास ‘बाई का तालाब‘ बनवाया ।
  • जगमाल के बाद उनके पुत्र जयसिंह और फिर उसके पुत्र प्रतापसिंह बाँसवाड़ा के शासक हुए ।
  • बाँसवाड़ा के रावल प्रतापसिंह व डूँगरपुर के स्वामी आसकरण ने बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी ।
  • महारावल प्रतापसिंह के बाद उनका पुत्र मानसिंह बाँसवाड़ा की गद्दी पर बैठा , लेकिन उनकी नि:संतान मृत्यु हो जाने पर मानसिंह चौहान ने बाँसवाड़ा पर अधिकार कर लिया ।

महारावल उग्रसेन ( अगरसेन)

  • मानसिंह चौहान से क्रुद्ध होकर डूँगरपुर के महारावल सहसमल ने उस पर चढ़ाई कर दी लेकिन विजय चौहानों की हुई । मानसिंह चौहान को वागड़ के सब चौहान द्वारा समझाने पर उसने जगमाल के वंशधर कल्याणमल के पुत्र महारावल उग्रसेन को बाँसवाड़ा का राजा बना दिया ।
  • महारावल उग्रसेन का देहांत 1613 ईस्वी में हुआ ।
  • महारावल उग्रसेन के बाद महारावल उदयभाण अपने पिता के उत्तराधिकारी हुए , परंतु उनका जल्दी निधन हो गया । इसके बाद महारावल समरसिंह 1615 ई. में बाँसवाड़ा राज्य के स्वामी बने ।
  • 23 सितंबर 1660 को महारावल समरसिंह की मृत्यु हो गई ।

महारावल कुशलसिंह

  • समरसिंह के बाद 1660 ई. में उनके पुत्र कुशलसिंह बाँसवाड़ा के राज्य सिंहासन पर आसीन हुए ।
  • महारावल कुशलसिंह का 23 जनवरी 1688 को निधन हो गया ।
  • महारावल कुशलसिंह के बाद उनके पुत्र अजबसिंह बाँसवाड़ा के राजा बने । अजबसिंह के बाद उनका पुत्र भीमसिंह 6 जनवरी 1706 को बाँसवाड़ा की गद्दी पर बैठा । उसका 24 जुलाई 1712 में देहांत हो गया ।

महारावल विष्णुसिंह

  • महारावल विष्णुसिंह 24 जुलाई 1712 को बाँसवाड़ा के स्वामी बने ।
  • महारावल विष्णुसिंह ने अपनी बहन गुमान कुंवरी का विवाह 1730 में बूंदी के महाराव राजा बुद्ध से किया ।
  • महारावल विष्णुसिंह का देहांत 27 मार्च 1737 को हुआ ।
  • महारावल विष्णुसिंह के पुत्र उदयसिंह और पृथ्वीसिंह थे , जो क्रमश: बाँसवाड़ा के स्वामी हुए ।
  • महारावल उदयसिंह का देहांत 1746 में 13 वर्ष की आयु में हो गया । उनके बाद पृथ्वी सिंह बांसवाड़ा के महारावल हुए । महारावल पृथ्वीसिंह का देहांत 29 मार्च 1786 हो गया ।
  • महारावल पृथ्वीसिंह ने राजधानी बाँसवाड़ा की रक्षा के लिए चारों तरफ से शहरपनाह(परकोटा) बनवाया । उन्होंने पृथ्वी विलास बाग और मोती महल तैयार करवाएं तथा राजधानी में पृथ्वी गंज बसाया ।
  • महारावल पृथ्वीसिंह की रानी अनूप कुँवरी ने 1799 में लक्ष्मी नारायण का मंदिर बनवाया ।
  • महारावल पृथ्वीसिंह का देहांत होने पर उनके जेष्ठ पुत्र विजयसिंह 1786 में राज्य सिंहासन पर बैठे । बांसवाड़ा की विजय बाव महारावल विजयसिंह द्वारा बनाई गई । 5 फरवरी 1816 को महारावल विजयसिंह का देहांत हो गया ।

महारावल उम्मेदसिंह

  • 1816 में बाँसवाड़ा राज्य के स्वामी महारावल उम्मेदसिंह बने । 1817 में नवाब करीमखाँ पिंडारी बांसवाड़ा पहुंचा और उसने वहां लूटमार आरंभ की । तब महारावल उम्मेदसिंह ने 25 दिसंबर 1818 को बाँसवाड़ा में सन जॉन मॉल्कम की ओर से कप्तान जेम्स कालफील्ड के द्वारा 13 शर्तों की एक संधि स्वीकार की ।
  • महारावल उम्मेदसिंह का देहांत 5 मई 1819 को हुआ ।

महारावल भवानीसिंह

  • महारावल उम्मेदसिंह के बाद उनके पुत्र भवानी सिंह 1819 में बाँसवाड़ा राज्य के स्वामी बने । अंग्रेज सरकार की ओर से कप्तान ए. मैक्डॉनाल्ड ने महारावल भवानीसिंह के साथ 15 फरवरी 1820 को पुन: एक संधि की । यह संधि 3 वर्ष के लिए की गई थी ।
  • 3 वर्ष बाद पुन: मालवा व राजपूताना के रेजिडेंट मेजर जनरल सर डेविड ऑक्टर लोनी की आज्ञा अनुसार वागड़ व कांठल के स्थानीय एजेंट कप्तान ए. मैकडॉनल्ड एवं बांसवाड़ा के नरेश महारावल भवानीसिंह के बीच 11 फरवरी 1823 को पुनः संधि की गई ।

महारावल लक्ष्मण सिंह

  • महारावल भवानीसिंह के बाद महारावल बहादुर सिंह बांसवाड़ा के स्वामी बने । बहादुर सिंह के बाद 17 फरवरी 1844 को महारावल लक्ष्मण सिंह का 5 वर्ष की आयु में राज्याभिषेक हुआ ।
  • महारावल लक्ष्मणसिंह के समय ही 1857 की क्रांति हुई थी ।
  • उन्होंने बाँसवाड़ा के बाई तालाब में जल विलास महल , राजधानी में शहर विलास , अजब विलास , वसंत महल, लक्ष्मण महल, रणजीत विलास , सुखऋतु विलास, अमरसुख विलास , चंपा महल , नजर महल , शीश महल , कुशलबाग के महल आदि बनवाए ।
  • महारावल लक्ष्मणसिंह शिव का परम भक्त होने के कारण उन्होंने कुशलबाग में राज राजेश्वर नामक शिव मंदिर बनवाया । अपनी जन्मभूमि के गांव वनाला में अपने पिता की स्मृति में बख्तेश्वर शिवालय बनवाया तथा बावली बख्तबाव बनवाया । राज्य में व्यापार की वृद्धि के लिए बाँसवाड़ा में राज राजेश्वर शिव का मेला भरने की व्यवस्था की ।
  • उन्होंने अपनी राज्य में नया तोल और नाप जारी किया तथा सांकेतिक लिपि बनवाई , जो राजराजेश्वरी लिपि कहलाती थी ।

महारावल शंभुसिंह

  • अपने पिता महारावल लक्ष्मण की मृत्यु के बाद 9 मई 1905 को शंभू सिंह बाँसवाड़ा की गद्दी पर बैठे ।
  • राजधानी बाँसवाड़ा में हेमिल्टन पुस्तकालय स्थापित किया गया ।
  • राजपूत जाति के हित के लिए ‘वाल्टरकृत राजपुत्र हितकारिणी सभा ‘ की एक शाखा बाँसवाड़ा में स्थापित हुई , जिसका सभापति महारावल को बनाया गया ।
  • 27 दिसंबर 1913 को महारावल शंभुसिंह का देहांत हो गया ।

महारावल पृथ्वीसिंह

  • 8 जनवरी 1914 को बाँसवाड़ा के राजसिंहासन पर महारावल पृथ्वीसिंह सिंहासनारूढ हुए ।
  • महारावल पृथ्वीसिंह को अंग्रेज सरकार ने 1 जनवरी 1933 को KCIE का खिताब देकर सम्मानित किया ।
  • महारावल पृथ्वी सिंह ने अपने नाम पर एक छापाखाना भी स्थापित किया तथा बाँसवाड़ा स्टेट गजट का प्रकाशन प्रारंभ किया गया ।
  • महारावल पृथ्वीसिंह ने ‘किंग जॉर्ज फिफ्थ स्कूल‘ , ‘एडवर्ड धर्मशाला ‘, ‘काल्विन म्यूनिसिपल हॉल‘ की स्थापना की ।
  • उन्होंने सर कर्जन वाइली की स्मृति में बाँसवाड़ा में सिद्धनाथ महादेव के समीप कागदी नदी पर ‘ वाइली ब्रिज‘ बनवा दिया ।
  • महारावल पृथ्वीसिंह ने राजधानी बाँसवाड़ा में कागदी नदी के तट पर नृपति निवास तथा विट्ठलदेव में सरिता निवास नामक रमणीय महल बनवाएं ।

महारावल चंद्रवीर सिंह

  • महारावल पृथ्वीसिंह के निधन के बाद महारावल चंद्रवीर सिंह 28 जुलाई 1944 को बाँसवाड़ा की गद्दी पर बैठे ।
  • इनके समय ही 25 मार्च 1948 को बाँसवाड़ा का राजस्थान संघ में विलय हुआ ।
  • महारावल चंद्रवीर सिंह का निधन 6 अप्रैल 1985 को हुआ ।
  • हनुवंत सिंह (क्रिकेटर) इन्हीं के पुत्र थे ।

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