Parmar vansh ka itihaas in Hindi

मालवा का परमार वंश – इतिहास, प्रमुख शासक, वास्तुकला

Parmar vansh ka itihaas in Hindi

 राजपूत राजवंशों की उत्पत्ति में हमने पिछली पोस्ट में गुर्जर- प्रतिहार वंश, कन्नौज के गहड़वाल वंश तथा चौहान वंश की बात की थी । आज हम मालवा के परमार वंश की बात करेंगे ।

मालवा का परमार वंश

  • परमारवंशी शासक सम्भवत: राष्ट्रकूटों या फिर प्रतिहारों के सामान्त थे । राजनीतिक शक्ति के रूप में परमार वंश का संस्थापक उपेंद्र (कृष्णराज) था ।
  • इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक सीयक हर्ष (श्रीहर्ष) था ।
  • परमारों की प्रारम्भिक राजधानी उज्जैन थी ।
  • परमार वंश का प्रारंभिक इतिहास ज्ञात करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण उदयपुर प्रशस्ति तथा साहित्यिक स्रोतों में पद्मगुप्त द्वारा रचित नवसाहसाक्ड़चरित है ।
  • परमार वंश की स्थापना 10 वीं शताब्दी ईस्वी के प्रथम चरण में उपेंद्र अथवा कृष्णराज नामक व्यक्ति ने की थी ।

परमार वंश के प्रमुख शासक –

सीयक हर्ष (945-972 ई.)

  • परमार वंश को स्वतंत्र स्थिति में लाने वाला पहला शासक सीयक हर्ष था ।
  • सीयक हर्ष ने महामांडलिक चूड़ामणि महाराजधिराज की उपाधि धारण की ।

वाक्पति द्वितीय या मूंजराज (972-994 ई.)

  • परमार शक्ति का वास्तविक उदय मूंज के समय हुआ ।
  • इसने हूणों को हराया तथा चालुक्य नरेश तैलप द्वितीय को 6 बार पराजित किया तथा सातवीं बार तैलप ने मूंज को धोखे से बंदी बना कर मार दिया ।
  • उपनाम – वाक्पतिराज, उत्पलराज
  • इसने धारा में मुंज सागर झील का निर्माण करवाया।
  • मूंज ने राष्ट्रकूट शासकों के समान पृथ्वी वल्लभ, श्री वल्लभ और अमोघवर्ष की उपाधियाँ धारण की ।
  • दरबारी विद्वान – धनंजय, धनिक तथा शोभन, हलायुध एवं अमितगति ।
  • दशरूपक के रचयिता धनंजय थे ।

सिंधुराज (994-1010 ई.)

  • सिंधुराज को नवसाहसांक भी कहते थे ।
  • इसका का पुत्र भोज इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था ।

राजा भोज (1010-1080 ई.)

  • मालवा के परमार वंश का शक्तिशाली शासक था ।
  • भोज ने कल्याणी के चालुक्य वंश के शासक तैलप द्वितीय को पराजित कर उसकी हत्या कर दी ।

धारा

  • भोज ने उज्जैन के स्थान पर धारा को अपनी राजधानी बनाया ।
  • धारा का लौहा स्तंभ भोज के शासन काल में निर्मित है ।
  • राजा भोज ने धारा नगरी के चौराहों पर चौरासी मन्दिर बनवाए, जिनमें सबसे प्रमुख शारदा सदन था ।
  • 11वीं शताब्दी में धारा मध्यभारत में संस्कृत शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र था ।
  • भोज ने धारा नगरी में सरस्वती मंदिर का निर्माण करवाया जिसमें संस्कृत पाठशाला/ महाविद्यालय की स्थापना की जिसे भोजशाला कहा जाता था । भोज ने इसमें वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की , जिसे भारतीय सरस्वती देवी की प्रतिमा के रूप में स्वीकार किया गया है । ( वाग्देवी की प्रतिमा ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रतीक चिन्ह है )
  • वर्तमान में वाग्देवी की मूर्ति ब्रिटिश संग्रहालय में संरक्षित है ।
  • भोजसाला की दीवारों के प्रस्तर खंडों पर वर्तमान में भी व्याकरण संबंधी नियम व संस्कृत के श्लोक विद्यमान हैं ।
  • धारा की वर्तमान कमलमौल मस्जिद प्रारम्भ में एक विद्यालय था ।
  • भोज की रानी अरुन्धती भी एक विदुषी महिला थी।
  • राजा भोज ने अपने नाम पर भोजपुर नगर की स्थापना कर, यहाँ भोजसागर नामक तालाब का निर्माण करवाया ।
  • राजा भोज को ‘कविराज’ भी कहा जाता था ।
  • राजा भोज ने चिकित्सा, गणित एवं व्याकरण पर अन्य ग्रंथ लिखे ।
  • भोजकृत युक्तिकल्पतरू में वास्तु शास्त्र के साथ-साथ विभिन्न वैज्ञानिक यंत्रों व उनके उपयोग का उल्लेख है ।
  • राजा भोज द्वारा लिखित ग्रंथ – समरांगणसूत्रधार (शिल्पशास्त्र ), सरस्वती कंठाभरण , श्रृंगार प्रकाश (अलंकार शास्त्र ), पांतजल योग सूत्रवृत्ति (योग शास्त्र ), कूर्मशतक, चम्पूरामायण, श्रृंगार मंजरी , तत्व प्रकाश (शैव ग्रंथ), नाममालिका , शब्दानुशासन,सिद्धांत संग्रह , राजा- मार्तंड,विद्या- विनोद , युक्ति- कल्पतरु , चारुचर्चा , आदित्य -प्रताप सिद्धांत ।
  • भोज के दरबार में भास्कर भट्ट, दामोदर मिश्र , उवत और धनपाल जैसे विद्वान थे । दरबारी कवि भास्कर भट्ट को विद्यापति की उपाधि प्रदान की ,जिन्होंने मंत्र भाष्य लिखा तथा वैदिक साहित्य पर टीका लिखी ।
  • वास्तुकला – ‘केदारेश्वर’ ‘रामेश्वर’ ‘सोमनाथ’ ‘सुंडार’ नीलकंठेश्वर (उदयपुर), मंदिरों का निर्माण करवाया। राजा भोज ने चित्तौड़गढ़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण करवाया ।
  • सीमद्धेश्वर महादेव का मंदिर मालवा के परमार राजा भोज द्वारा 11वीं शताब्दी में निर्मित शिव मंदिर है , जिसका जीर्णोंद्वार महाराजा मोकल द्वारा 1428 ईस्वी में करवाया गया ।
  • राजा भोज ने जालौर में तोपखाना नामक संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया , जिसे अलाउद्दीन ने मस्जिद के रूप में परिवर्तित किया ।
  • भोज ने चालुक्य नरेश विक्रमादित्य चतुर्थ को पराजित किया तथा कलचुरी नरेश गांगेय देव को हराकर कान्यकुब्ज पर अधिकार कर लिया ।
  • बिल्हण के विक्रमांकदेवचरित में उल्लेख है कि चालुक्य राजा सोमेश्वर द्वितीय ने भोज को हराकर उसकी राजधानी ‘धार’ को तहस-नहस किया था ।
  • उदयपुर प्रशस्ति में भोज को ‘पृथ्वी का अधिकारी’ कहा गया है ।
  • भोज का सेनापति “जैन कुलचंद्र” था ।
  • राजा भोज की मृत्यु के पश्चात् परमारों का प्रभुत्व समाप्त हो गया ।
  • माल्हकदेव अंतिम परमार शासक थे जिन्हें अलाउद्दीन खिलजी ने हराकर मालवा को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया ।

Parmar vansh ka itihaas Notes in Hindi

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