Dungarpur History in Hindi

डूँगरपुर का गुहिल वंश (Dungarpur History in Hindi) का इतिहास

आज हम डूँगरपुर का गुहिल वंश (Dungarpur History in Hindi) के इतिहास की बात करेंगे । जिसमें महारावल पृथ्वीराज से लेकर महारावल लक्ष्मणसिंह के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

डूँगरपुर राज्य का इतिहास ( Dungarpur History in Hindi)

महारावल पृथ्वीराज :

  • खानवा के युद्ध में महारावल उदयसिंह की मृत्यु होने पर 1527 में उनके पुत्र पृथ्वीसिंह ने डूँगरपुर में गुहिल वंश के स्वतंत्र राज्य की नींव डाली ।
  • पृथ्वीराज की रानी सज्जनाबाई ने बेणेश्वर मंदिर के पास विष्णु मंदिर बनवाया ।
  • पृथ्वीराज की पुत्री का विवाह जोधपुर के राव मालदेव से हुआ था ।

महारावल आसकरण :

  • महारावल पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद 1549 ई. के लगभग महारावल आसकरण डूँगरपुर के शासक बने ।
  • बादशाह अकबर की सेना उदयपुर के महाराणा प्रताप सिंह को हराने के उद्देश्य बाँसवाड़ा व डूँगरपुर पहुंची तो बाँसवाड़ा के महारावल प्रतापसिंह व डूँगरपुर महारावल आसकरण ने बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली ।
  • महारावल आसकरण ने सोम और माही नदी के संगम पर बेणेश्वर का शिवालय बनवाया ।
  • उन्होनें अपने नाम पर आसपुर कस्बा बसाया ।
  • महारावल आसकरण का देहांत 1580 ई. के लगभग हुआ ।

महारावल सहसमल :

  • महारावल आसकरण की मृत्यु के बाद उनका पुत्र महारावल सहसमल डूँंगरपुर का स्वामी बना ।
  • उसके राज्यकाल में राजमाता प्रेमलदेवी ने डूँगरपुर में नौलखा बावड़ी बनवाई ।
  • महारावल सहसमल के समय सूर्यपुर ( सूरपुर) गाँव में माधवराय का विशाल मंदिर बनाया गया ।

महारावल पुंजराज ( पूंजा) :

  • महारावल सहसमल के वंशज महारावल कर्मसिंह के देहांत के बाद 29 दिसंबर 1609 को उनके पुत्र महारावल पूंजा का राज्याभिषेक हुआ ।
  • महारावल पूंजा ने मेवाड़ शासकों के भय से अपने पक्ष को प्रबल रखने के लिए मुगल बादशाह शाहजहाँ से अच्छे संबंध स्थापित किए । उसकी अच्छी सेवाओं से बादशाह शाहजहाँ ने प्रसन्न होकर पूंजा को ‘माही मरातिब‘ खिताब दिया ।
  • सन् 1657 में महारावल पूंजा का निधन हो गया ।
  • महारावल पूंजा ने पुंजपुर गाँव बसाकर पुंजेला झील बनवाई ।
  • उन्होंने राजधानी डूँगरपुर में नौलखा बाग बनवाया और गैब सागर झील की पाल पर 1623 में गोवर्धन नाथ का विशाल मंदिर बनवाया ।

महारावल जसवंतसिंह :

  • अपने पिता महारावल गिरधरदास का देहान्त होने के बाद कुँवर जसवंत सिंह 1661 ई. डूँगरपुर राज्य के शासक बने ।
  • बादशाह औरंगजेब के शहजादे अकबर द्वारा अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह के समय महारावल जसवंत सिंह ने अकबर के डूँगरपुर पहुंचने पर उनका उत्साहपूर्वक स्वागत किया था । फिर सरवणराजपीपला के मार्ग से उन्हें दक्षिण में पहुंचा दिया था ।
  • महारावल जसवंत सिंह का देहांत 1691 में हुआ ।
  • इनके बाद महारावल खुमाणसिंह डूँगरपुर की राजगद्दी पर बैठे ।

महारावल रामसिंह :

  • महारावल खुमाणसिंह के बाद 1702 में महारावल रामसिंह डूँगरपुर के शासक बने ।
  • मेवाड़ महाराणों की लड़ाई से परेशान होकर महारावल रामसिंह बादशाह की सेवा में पहुंचकर डूँगरपुर की जागीर का फरमान प्राप्त किया ।
  • महारावल रामसिंह बाहरी आक्रमणों से अपने राज्य को बचाने के लिए पेशवा बाजीराव से संधि कर उसे खिराज देना स्वीकार किया ।
  • महारावल रामसिंह का देहांत 13 मार्च 1730 को हुआ ।
  • महारावल रामसिंह के चार पुत्रों – उदयसिंह , बख्तसिंह, उम्मेद सिंह और शिवसिंह में से शिवसिंह को उसने अपना युवराज बनाया था ।
  • महारावल रामसिंह ने अपने नाम से रामगढ़ गांव बसाया और डूँगरपुर में रामपोल दरवाजा बनवाया ।

महारावल शिवसिंह :

  • अपने पिता का चौथा पुत्र होने पर भी महारावल शिवसिंह 1730 में डूँगरपुर राज्य के स्वामी बने ।
  • 1785 ई. में उनका निधन हो गया ।
  • इन्होनें 55रु. भर का नया शिवसाही सेर जारी किया । कपड़े नापने का नया गज बनवाया । उन्होंने दरबार के समय शिवसाही पगड़ी बाँधने का तरीका निकाला ।
  • उन्होंने अपनी कल्पना के अनुसार नए प्रकार का झरोखा बनवाया , जो शिवसाही झरोखे के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
  • गैब सागर झील के तट पर अपनी माता की स्मृति में शिवज्ञानेश्वर शिवालय , दक्षिण कालिका का मंदिर और चतुस्त्रकुंड बनवाया ,जो उदयविलास महल के अंतर्गत है ।
  • खेड़ा गाँव में रंगसागर ( रणसागर) तालाब बनवाया ।
  • राजधानी डूँगरपुर के कोट की मरम्मत करवाई और धन्ना माता की मगरी पर गढ़ तैयार करवाया ।
  • उन्होंने डूँगरपुर में एक माह तक शिवज्ञानेश्वर का मेला भराना प्रारंभ किया ।
  • महारावल शिवसिंह की रानी फूलकुँवरी ने फूलेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया ।

महारावल फतहसिंह :

  • सन् 1785 में महारावल वैरीशाल का डूँगरपुर के सिंहासन पर राज्यभिषेक हुआ । 1790 में उनका देहांत हो गया ।
  • महारावल वैरीशाल के बाद उनके पुत्र फतहसिंह 1790 में डूँगरपुर के शासक बने ।
  • उनके समय में उनकी माता शुभकुँवरी ने डूँगरपुर में मुरली मनोहर का मंदिर बनवाया ।
  • उसने झामा बखारिया के पुत्र पेमा को मंत्री बनाया , जो अत्याचारी था ।
  • महारावल फतहसिंह एक अयोग्य शासक था । इस पर राजमाता शुभकुँवरी ने राज्य को बर्बादी से बचाने के लिए मंत्री पेमा द्वारा उसको बंदी बनवा लिया और स्वयं राज कार्य चलाने लगी । कुछ समय बाद राजमाता का वध करवा दिया गया ।
  • 1808 ई. में महारावल फतहसिंह का निधन हो गया ।

महारावल जसवंतसिंह द्वितीय :

  • महारावल फतहसिंह के बाद 1808 ई. में उनके पुत्र जसवंतसिंह द्वितीय डूँगरपुर के शासक बने ।
  • 1812 ई. में खुदादाद खाँ नामक व्यक्ति ने अपने को सिंध का शहजादा बताकर डूँगरपुर को घेर लिया । उनसे लड़ने में अपने को असमर्थ देखकर महारावल जसवंतसिंह द्वितीय डूँगरपुर छोड़ अपनी रानियां सहित सराना की पाल में चले गए ।
  • महारावल जसवंतसिंह द्वितीय के निवेदन पर होल्कर के सेनाध्यक्ष रामदीन और बाँसवाड़ा के गढ़ी ठिकाने के सरदार अर्जुन सिंह चौहान ने मिलकर गलियाकोट में सिंधियों से युद्ध किया , जिसमें सिंधियों ने महारावल जसवंतसिंह को पकड़ लिया । अंत में थाणा के रावत सूरजमल के हाथ से खुदादाद खाँ मारा गया और महारावल जसवंतसिंह द्वितीय को छुड़ा लाया , जिससे डूंगरपुर पर महारावल का पुन: अधिकार हो गया ।
  • महारावल जसवंतसिंह द्वितीय ने 11 दिसंबर 1818 ईस्वी को ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर ली । इस संधि के द्वारा डूँगरपुर राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षण में आ गया ।
  • अंग्रेजी सरकार ने प्रतापगढ़ (देवलिया) राज्य के स्वामी महारावल सांवतसिंह के छोटे योग्य पौत्र दलपत सिंह को महारावल जसवंतसिंह द्वितीय उत्तराधिकारी बनाने का निश्चय किया , परंतु प्रतापगढ़ में कुंवर दलपत सिंह का बड़ा भाई केसरी सिंह नि:संतान स्वर्ग सिधार गया , इसलिए दलपतसिंह को प्रतापगढ़ का स्वामी बना दिया गया ।
  • इधर महारावल जसवंतसिंह ने भी अपने खोए हुए अधिकारों की पुनः प्राप्ति हेतु नांदली के ठाकुर हिम्मतसिंह के पुत्र मोहकमसिंह को गोद लेकर वारिस बनाना चाहा । अंग्रेज सरकार की स्वीकृति के बिना महारावल की यह कार्यवाही , पॉलिटिकल एजेंट कप्तान हंटर को अनुचित लगी ।
  • अंग्रेज सरकार ने 1845 ईस्वी में महारावल जसवंत सिंह को राजकाज से पूर्णतया बेदखल कर वृन्दावन भेज दिया , जहाँ थोड़े समय बाद ही उनकी मृत्यु हो गई ।
  • जसवंतसिंह द्वितीय कि राठौड़ रानी गुमान कुँवरी ने डूँगरपुर की केला बावड़ी बनवाई ।

महारावल उदयसिंह द्वितीय :

  • डूँगरपुर के सरदारों ने साबली के ठाकुर जसवंतसिंह के पुत्र उदयसिंह को डूँगरपुर का स्वामी बनाने पर सहमति व्यक्त की । अत: महारावल जसवंत सिंह द्वितीय की मृत्यु होने पर उदयसिंह 28 सितंबर 1846 को डूँगरपुर के स्वामी बने ।
  • 1857 की क्रांति में खैरवाड़ा की सैनिक छावनी में विद्रोह रोकने में महारावल उदयसिंह द्वितीय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और साथ ही अंग्रेज अफसर कप्तान ब्रुक को अच्छी सहायता दी ।
  • 1857 की क्रांति के समाप्ति के बाद भारतवर्ष का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से निकलकर महारानी विक्टोरिया के अधीन हुआ । उस समय भारत के तत्कालीन गर्वनर जनरल व वायसराय लॉर्ड कैंनिग बने ।
  • महारावल ने 17 जनवरी 1869 को कन्या वध पर रोक लगाई ।
  • उन्होंने महारावल जसवंतसिंह की छतरी बनवाई ।
  • सन् 1883 में महारावल उदयसिंह द्वितीय ने गैब सागर तालाब पर अपने नाम से नए ढंग का उदय विलास महल बनाना प्रारंभ किया , जिसकी समाप्ति 1887 में हुई ।
  • गैबसागर की पाल पर महारावल उदयसिंह द्वितीय की पटरानी देवड़ी उम्मेद कुंवरी ने रामचंद्र जी का मंदिर बनवाया ।
  • 13 फरवरी 1898 को महारावल उदयसिंह द्वितीय का निधन हो गया ।
  • कवि किशन ने उनके नाम पर ‘उदय प्रकाश‘ काव्य की रचना की थी ।

महारावल विजय सिंह :

  • महारावल उदयसिंह की मृत्यु होने पर 1898 ई. में उनका पौत्र महारावल विजय सिंह 11 वर्ष की आयु में डूँगरपुर राज्य का स्वामी बना ।
  • महारावल विजय सिंह की शिक्षा मेयो कॉलेज , अजमेर में संपन्न हुई ।
  • 27 फरवरी 1909 को एजीजी कर्नल पिन्हे ने डूँगरपुर जाकर उदय विलास महल में दरबार कर महारावल को राज्य के समस्त अधिकार सौंपे ।
  • महारावल विजयसिंह ने 1910 में विजय पलटन नामक ‘कवायदी सेना’ तैयार करना आरंभ किया ।
  • अपनी प्रजा को थोड़े सूद पर रुपए उधार देने के उद्देश्य से उन्होंने राम-लक्ष्मण बैंक खोला ।
  • महारावल विजय सिंह ने अपने दादा उदयसिंह के नाम पर ₹100 भर का ‘उदयशाही सेर‘ प्रारम्भ किया ।
  • सम्राट एडवर्ड सप्तम की स्मृति में राजधानी डूंगरपुर के निकट 1910 में ‘एडवर्ड समुद्र‘ तालाब बनाना प्रारंभ किया । महारावल विजय सिंह की योग्यता पर प्रसन्न होकर सम्राट जॉर्ज पंचम ने जून 1912 में अपने जन्म दिवस के उपलक्ष्य में उन्हें KCIE के खिताब से विभूषित किया ।
  • महारावल विजयसिंह ने शासन सुधार हेतु 1918 में ‘राज प्रबंध कारिणी सभा‘ और कानूनी कार्यवाही के लिए ‘राज शासन सभा‘ का गठन किया ।
  • महारावल विजयसिंह ने विधवा विवाह को जायज मानकर उसके लिए आजादी दी । कन्याओं की शिक्षा के लिए देवेंद्र कन्या पाठशाला स्थापित किए ।
  • महारावल विजयसिंह ने विजय राज राजेश्वर मंदिर का निर्माण प्रारंभ किया ।
  • 15 नवंबर 1918 को 31 वर्ष की अवस्था में महारावल का देहांत हो गया ।

महारावल लक्ष्मण सिंह :

  • महारावल विजयसिंह के निधन के बाद उनके बड़े पुत्र महारावल लक्ष्मण सिंह 11 वर्ष की आयु में राज्य के स्वामी बने ।
  • महारावल लक्ष्मण सिंह ने विजय राज राजेश्वर मंदिर और एडवर्ड समुद्र का अधूरा कार्य पूर्ण करवाया ।
  • महारावल लक्ष्मण सिंह ने 25 मार्च 1948 को डूँगरपुर का राजस्थान संघ में विलय किया ।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

➡ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय , हेग में न्यायाधीश व अध्यक्ष रहे न्यायाधिपति नगेंद्र सिंह महारावल लक्ष्मणसिंह के छोटे भाई थे । नगेंद्र सिंह 1 अक्टूबर 1972 से भारत के चौथे मुख्य चुनाव आयुक्त भी रहे ।

मानकवि ने मेवाड़ महाराणा राजसिंह की प्रशस्ति में ‘राजविलास‘ नामक काव्य की रचना की थी ।

➡ डूंगरपुर राज्य के डेसा गाँव की बावड़ी डूंगरसिंह के पुत्र रावल कर्मसिंह की रानी माणक दे ने बनवाई ।

Leave a Reply

Discover more from GK Kitab

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Scroll to Top