मुगल साम्राज्य का इतिहास -1

Mughal Samrajya History in Hindi

  मुगल वंश का संस्थापक बाबर था । बाबर एवं उत्तरवर्ती मुगल शासक तुर्क एवं सुन्नी मुसलमान थे । बाबर ने मुगल वंश की स्थापना के साथ ही पद-पादशाही की स्थापना की , जिसके तहत शासक को बादशाह कहा जाता था ।

मुगल वंश के शासक

(1) बाबर ( 1526- 1530 ई.)
(2) हुमायूं ( 1530- 1556 ई.)
(3) अकबर (1556- 1605 ई.)
(4) जहाँगीर (1605-1627 ई.)
(5) शाहजहाँ ( 1627-1657 ई.)
(6) औरंगजेब ( 1658-1707 ई.)

Mughal Samrajya History in Hindi
Mughal Samrajya History in Hindi

बाबर ( 1526- 1530 ई.)

जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को तुर्किस्तान के फरगना नामक स्थान पर हुआ था । वह तैमूर का वंशज एवं चुगताई तुर्क था । बाबर अपने पिता उमर शेख मिर्जा की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में 1494 में फरगना का शासक बना ।

बाबर ने 1504 ई. में काबुल पर अधिकार कर लिया और परिणामस्वरूप उसने 1507 ई. में पादशाह की उपाधि धारण की ।

बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 ईसवी में यूसूफजाई जाति के बाजौर पर किया था और इस अभियान में बाबर ने बाजौर और भेरा को अपने अधिकार में कर लिया ।

21 अप्रैल, 1526 ईस्वी को बाबर और दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इब्राहिम लोदी के मध्य पानीपत के मैदान में “पानीपत का प्रथम युद्ध” लड़ा गया । इस युद्ध में बाबर को विजय प्राप्त हुई । इसी के साथ ही दिल्ली सल्तनत के शासन का अंत हुआ था भारत में मुगल वंश के शासन की स्थापना हुई ।

पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने पहली बार तुगलमा युद्ध नीति एवं तोपखाने का प्रयोग किया था । उस्ताद अली एवं मुस्तफा बाबर के दो प्रसिद्ध निशानेबाज थे , जिसने पानीपत के प्रथम युद्ध में भाग लिया था ।

पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी तथा उसका मित्र ग्वालियर राजा विक्रमाजीत युद्ध में मारे गए । हुमायूं ने कोहिनूर हीरा ग्वालियर के राजा विक्रमाजीत के परिवार से प्राप्त किया था ।

बाबर को अपनी उदारता के लिए कलंदर की उपाधि दी गई ।

16 मार्च, 1527 ई. को बाबर ने खानवा के युद्ध में मेवाड़ के राणा साँगा को हराया । इस युद्ध में बाबर ने राणा सांगा के खिलाफ जिहाद का नारा दिया और युद्ध में विजय के बाद गाजी की उपाधि धारण की ।

30 जनवरी 1528 ई. को जहर देने के कारण राणा सांगा की मृत्यु हो गई ।

29 जनवरी, 1528 ईसवी को बाबर ने चंदेरी के शासक मेदिनीराय को परास्त किया ।

6 मई 1529 ई. को घाघरा का युद्ध हुआ जिसमें अफगानों को हराकर बाबर विजय हुआ ।

बाबर ने अपनी आत्मकथा “बाबरनामा” की रचना तुर्की भाषा में की । बाबरनामा का फारसी में अनुवाद अब्दुल रहीम खानखाना ने किया ।

बाबर को मुबईयान शैली और पद शैली का जन्मदाता माना जाता है ।

48 वर्ष की आयु में 26 दिसंबर 1530 ई. को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई । प्रारंभ में बाबर के शव को आगरा के आरामबाग में दफनाया गया, बाद में काबुल में उसके द्वारा चुने गए स्थान पर दफनाया गया ।

बाबर के 4 पुत्र – हुमायूं, कामरान, अस्करी एवं हिन्दाल थे , जिसमें बाबर का उत्तराधिकारी हुमायूं हुआ ।

बाबर द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध-

युद्ध वर्ष पक्ष परिणाम
पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526 इब्राहिम लोदी एवं बाबर बाबर विजय
खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 राणा सांगा एवं बाबर बाबर विजय
चंदेरी का युद्ध 29 जनवरी 1528 मेदनीराय एवं बाबर बाबर विजय
घाघरा का युद्ध 6 मई 1529  अफ़गानों एवं बाबर बाबर विजय

 हुमायूं ( 1530- 1556 ई.)

नसरुद्दीन हुमायूं 29 दिसंबर, 1530 ई. को आगरा में 23 वर्ष की अवस्था में सिंहासन पर बैठा । गद्दी पर बैठने से पहले हुमायूं बदख्शाँ का सूबेदार था ।

अपने पिता के निर्देश के अनुसार हुमायूं ने अपने राज्य का बंटवारा अपने भाइयों ने कर दिया । इसने कामरान को काबुल और कंधार , मिर्जा असकरी को सँभल, मिर्जा हिंदाल को अलवर एवं मेवाड़ की जागीरें दी । अपने चचेरे भाई सुलेमान मिर्जा को हुमायूं ने बदख्शाँ प्रदेश दिया ।

1533 ईसवी में हुमायूं ने दीनपनाह नामक नए नगर की स्थापना की थी ।

चौसा का युद्ध :- 25 जून, 1539 शेर खाँ एवं हुमायूं के बीच हुआ । इस युद्ध में शेर खाँ विजयी रहा । इसी युद्ध के बाद शेर खाँ ने शेरशाह की पदवी ग्रहण कर ली ।

बिलग्राम या कन्नौज युद्ध :- 17 मई, 1540 ईस्वी में शेर खाँ एवं हुमायूं के बीच हुआ । इस युद्ध में भी हुमायूं पराजित हुआ । शेर खाँ ने आसानी से आगरा एवं दिल्ली पर कब्जा कर दिया ।

बिलग्राम युद्ध के बाद हुमायूं सिंध चला गया, जहाँ उसने 15 वर्षों तक घुमक्कडो़ जैसा निर्वासित जीवन व्यतीत किया ।

निर्वाचन के समय हुमायूं ने हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु फारसवासी शिया मीर बाबा दोस्त उर्फ मीर अली अकबर जामी की पुत्री हमीदा बानो बेगम से 29 अगस्त, 1541 ई. को निकाह कर लिया । कालान्तर में हमीदा से ही अकबर जैसे महान सम्राट का जन्म हुआ ।

22 जून, 1555 ई. को मुगलों और अफगानों के बीच सरहिंद नामक स्थान पर युद्ध हुआ । इस युद्ध में अफगान सेना का नेतृत्व सिकंदर सूर तथा मुगल सेना का नेतृत्व बैरम खाँ ने किया । इस युद्ध में मुगलों की विजय हुई तथा हुमायूं फिर से राजसिंहासन पर बैठा ।

1 जनवरी 1556 ईस्वी को दीनपनाह बोन में स्थित पुस्तकालय (शेर मंडल) सीढ़ियो से गिरने के कारण हुमायूं की मृत्यु हो गई ।

हुमायूँनामा की रचना गुलबदन बेगम ने की थी ।

शेरशाह सूरी ( 1540-1545 ई.)

सूर साम्राज्य का संस्थापक अफगान वंशीय शेरशाह सूरी था ।

डॉ. के आर कानूनगो के अनुसार हरियाणा प्रांत के नारनौल स्थान पर इब्राहिम के पुत्र हसन के घर 1486 में शेरशाह का जन्म हुआ था ।

उनके बचपन का नाम फरीद खाँ था । इनके पिता हसन खाँ जौनपुर के अंतर्गत सासाराम के जमींदार थे ।

फरीद को शेर खाँ की उपाधि मुहम्मद शाह नुहानी ने दी ।

शेर खाँ दिल्ली की गद्दी पर 1540 ई. में 67 साल की उम्र में बैठा । अपने राज्य अभिषेक के समय शेर खाँ ने शेरशाह की उपाधि ग्रहण की ।

1541 ईस्वी में शेरशाह ने गक्खरों के विरुद्ध किया । शेरशाह ने अपनी उत्तर-पश्चिम सीमा को सुरक्षित करने के लिए रोहतासगढ़ किले का निर्माण करवाया ।

शेरशाह ने शिकदारों को नियंत्रित करने के लिए अमीन-ए-बंगला की नियुक्ति की ।

रणथंबोर के शक्तिशाली किले को अपने अधीन पर अपने पुत्र आदिल खाँ को वहाँ का गवर्नर बनाया ।

मारवाड़ विजय के बारे में शेरशाह ने कहा कि ” में मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान के साम्राज्य को लगभग हो चुका था ” ।

शेरशाह की मृत्यु कालिंजर के किले को जीतने के चरण में 22 मई, 1945 को हो गई । मृत्यु के समय वह उक्का नाम का अग्नियास्त्र चला रहा था ।

शेरशाह के समय कालिंजर का शासक कीरत सिंह था ।

अपने संपूर्ण साम्राज्य को 47 सरकारों में विभाजित किया था । शेरशाह के समय स्थानीय करों को आबवाब कहा गया ।

शेरशाह की लगान व्यवस्था मुख्य रूप में रैयतवाड़ी थी , जिसमें किसानों से प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित किया गया था ।

शेरशाह ने भूमि मापने के लिए 32 इंच वाला सिकंदरी गज एवं सन की डंडी मापक का प्रयोग किया ।

ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण शेर शाह ने करवाया ।

कन्नौज के स्थान पर शेरसूर नामक नगर शेरशाह ने बसाया । शेरशाह ने पाटलिपुत्र का नाम पटना रखा ।

उसने अपने सिक्कों पर अपना नाम अरबी एवं देवनागरी लिपि में खुद वाया ।

शेरशाह का मकबरा बिहार के सासाराम में झील के अंदर है ।

रोहतास गढ़ किला , किला-ए-कुहना (दिल्ली ) नामक मस्जिद का निर्माण शेरशाह के द्वारा किया गया था ।

कबूलियत एवं पट्टा प्रथा की शुरुआत शेरशाह ने की ।

मलिक मुहम्मद जायसी , शेरशाह के समकालीन थे । डाक- प्रथा का प्रचलन शेरशाह के द्वारा किया गया ।

शेरशाह का उत्तराधिकारी उसका पुत्र इस्लाम शाह था ।

मुगल साम्राज्य का इतिहास -2 (Next Part me)

(3) अकबर (1556- 1605 ई.)
(4) जहाँगीर (1605-1627 ई.)
(5) शाहजहाँ ( 1627-1657 ई.)
(6) औरंगजेब ( 1658-1707 ई.)

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