Aamer History in Hindi

आमेर (Aamer History in Hindi) के कछवाहा वंश का इतिहास

आज हम आमेर के कछवाहा वंश के इतिहास (Aamer History in Hindi) की बात करेंगे ।

आमेर का कछवाहा वंश का इतिहास (History of Aamer ka Kachwaha Vansh in Hindi)

  • कछवाहा राजपूत स्वयं को भगवान रामचंद्र के पुत्र कुश का वंश बताते हैं । कुश के वंशज ने सोन नदी के तट पर रोहितास नामक दुर्ग का निर्माण कर वहाँ अपना शासन स्थापित किया ।
  • परवर्ती काल में उसके वंशज राजा नल ने 295 ईसवी के आसपास नरवर को अपनी राजधानी बनाया । इन्हीं के वंशजों ने ग्वालियर व लाहर नामक स्थान पर भी अपना शासन स्थापित किया ।
  • राजा नल का वंशज नरवर का शासक सोढासिंह ( 976-1006 ई.) हुआ । सोढासिंह के पुत्र दुलहराय का विवाह मौरा (दौसा) के चौहान शासक रालपसी की पुत्री सुजान कँवर से हुआ ।
  • दौसा प्रदेश में 10 वीं सदी में बड़गूजरों एवं चौहानों के शासन थे । दुलहराय ने अपने ससुराल के शासकों की सहायता से तथा अपनी कूटनीति व पराक्रम से 996 ईस्वी के आसपास दौसा के बड़गूजरों को हरा कर दौसा (ढूँढाड़) पर अपना अधिकार कर लिया एवं इस क्षेत्र का शासन अपने पिता सोढ़ाराव को सौंप दिया ।

दुलहराय :-

  • सोढासिंह की मृत्यु के बाद दुलहराय 1007 ईस्वी में दौसा का शासक बना । दुलहराय ने इसके बाद भाण्डरेज एवं माची के मीणाओं को पराजित कर यह क्षेत्र अपने अधीन किये ।
  • दुलहराय ने माची के क्षेत्र में एक दुर्ग का निर्माण कर उसका नाम ‘रामगढ़’ रखा तथा वहाँ पास में अपनी कुलदेवी ‘जमुवाय माता’ का प्रसिद्ध मंदिर बनवाया तथा जमुवारामगढ़ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया ।
  • दुलहराय ग्वालियर की तरफ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ ।

काकिल देव :-

  • दुलहराय के निधन के बाद इसका बड़ा पुत्र काकिल देव 1035 ई. में दौसा की गद्दी पर बैठा ।
  • काकिल देव ने आम्बेर (आमेर) के मीणाओं को हराकर आम्बेर (आमेर) पर अधिकार कर लिया । इतने पास में अम्बिकापुर कस्बा बसाया तथा वहाँ अंबिकेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया । इसने आम्बेर ( आमेर) अपने राज्य की राजधानी बनाया । तभी से आमेर जयपुर का निर्माण होने तक कछवाहों की राजधानी बना रहा ।
  • काकिल देव की मृत्यु के बाद उसके चार पुत्रों में से सबसे बड़ा हणूं आमेर की गद्दी पर बैठा । उसके बाद उसका पुत्र जानड़देव एवं उसके बाद प्रजूनदेव ( पंचम देव) आमेर का शासक हुआ ।
  • प्रजूनदेव एक पराक्रमी व निडर शासक था । वह पृथ्वीराज चौहान तृतीय का सामंत था । यह पृथ्वीराज चौहान के महोबा युद्ध में उसके साथ था । तराइन के द्वितीय युद्ध ( 1192 ई.) में प्रजूनदेव वीरगति को प्राप्त हुआ ।
  • प्रजूनदेव के बाद इसका पुत्र मलसी आमेर का राजा बना । मलसी के उत्तराधिकारिओं में बीजलदेव , राजदेव, कील्हण आदि का नाम आता है ।
  • ‘रायमल रासौ’ के अनुसार कील्हण महाराणा कुंभा का सामंत था । इसके बाद इसका पुत्र कुन्तल तथा उसके बाद झोणसी आमेर के राजा बने । इनके उत्तराधिकारी क्रमश : उदयकरण, नृसिंह , उद्धरण व चंद्रसेन आमेर के शासक बने ।
  • चंद्रसेन के बाद इसका पुत्र पृथ्वीराज आमेर का राजा बना ।

पृथ्वीराज ( 1503-1527 ई.)

  • पृथ्वीराज 18 जनवरी 1503 ईसवी को आमेर का शासक बना । यह प्रारंभ में कापालिक मतानुयायी कनफटे नाथ योगी का शिष्य था ।
  • इनके समय रामानंद के शिष्य कृष्णदास पयहारी ने गलताजी में रामानंदी संप्रदाय के मठ की स्थापना की ।
  • मेवाड़ के महाराणा सांगा ने अपनी बहन का विवाह पृथ्वीराज के साथ किया । राणा सांगा के साथ पृथ्वीराज ने खानवा के युद्ध में भाग लिया था तथा उसमें यह वीरगति को प्राप्त हुआ ।
  • पृथ्वीराज की खानवा के युद्ध में मृत्यु हो जाने पर उसका पुत्र पूर्णमल 1527 में आमेर की गद्दी पर बैठा ।
  • 1534 ईस्वी में पूर्णमल का देहांत हो जाने पर उसका भाई भीमसिंह आमेर की गद्दी पर बैठा । 1536 में इसका निधन हो जाने पर इसका पुत्र रतनसिंह आमेर का शासक बना ।
  • रतनसिंह सदैव शराब के नशे में रहता था । इससे परेशान होकर भीमसिंह के भाई (रतन सिंह का चाचा) सांगा ने अपने मामा ( बीकानेर के राव जैतसी ) की मदद से मौजमाबाद व उसके आसपास के इलाके पर अधिकार कर सांगानेर कस्बा बसाया ।
  • सांगा के छोटे भाई भारमल के कहने पर आसकरण ने रतनसिंह को जहर देकर मार डाला एवं आसकरण स्वयं आमेर का शासक बना । कुछ समय बाद जून 1547 में भारमल ने आमेर पर अपना अधिकार कर लिया एवं आसकरण को देश निकाला दे दिया ।

राजा भारमल ( 1547-1573 ई.)

  • जून 1547 को भारमल आमेर का राजा बना । उसमें भारमल का पुत्र भगवानदास ( भगवन्तदास) मेवाड़ महाराणा उदयसिंह की सेवा में मेवाड़ का सामन्त था ।
  • मजनूँ खाँ के द्वारा दिसंबर 1556 ई. में भारमल का अकबर से परिचय करवाया गया ।
  • राजा भारमल ने 20 जनवरी 1562 में अकबर से उसकी अजमेर तीर्थ यात्रा के दौरान अपने मित्र चगताई खाँ की मदद से सांगानेर के निकट मुलाकात कर और उसकी अधीनता स्वीकार की ।
  • 6 फरवरी 1562 को राजा भारमल ने सांभर में जाकर अपनी पुत्री हरकूबाई /जोधाबाई (मरियम उज्जयानी) का विवाह अकबर से किया । इसी बेगम ने बाद में शहजादे सलीम (जहांगीर) को जन्म दिया ।
  • यह प्रथम मुगल-राजपूत विवाह संबंध था ।
  • राजा भारमल के पुत्र भगवंत दास एवं पोता मानसिंह अकबर की सेवा में आगरा चले गए ।
  • अकबर के चित्तौड़ आक्रमण ( 1567 ई.) के समय भारमल भी उसकी सेना में था ।
  • अकबर द्वारा 1568 ईस्वी में रणथंभौर दुर्ग का घेरा डालने पर बूँदी के शासक राव सुरजन को भारमल ने ही समझाकर अकबर की अधीनता स्वीकार करने हेतु राजी किया था ।
  • राजा भारमल का जनवरी 1574 में देहांत हो गया । इसे बादशाह अकबर द्वारा पांच हजारी सवार व जात का मनसब प्रदान किया गया था ।
  • बादशाह अकबर ने भारमल को ‘अमीर-उल-उमरा’ तथा ‘राजा’ की उपाधियों से सम्मानित किया ।

राजा भगवंतदास ( 1574-1589 ई.)

  • राजा भारमल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र भगवंतदास आमेर के सिंहासन पर बैठे । भगवंत दास अपने पुत्र मानसिंह के साथ बादशाह अकबर की सेवा में आगरा गया ।
  • राजा भगवंतदास ने 1585 ईसवी में अपनी पुत्री मानबाई का विवाह शहजादे सलीम (जहाँगीर) के साथ किया । खुसरो मानबाई और जहाँगीर का पुत्र था ।
  • अकबर ने 1582 में भगवंत दास को पंजाब सूबे का सूबेदार बनाया ।
  • मुआसिर उल उमरा में उल्लेख है कि भगवन्तदास ने लाहौर में एक मस्जिद का निर्माण करवाया था ।
  • भगवन्तदास ने इब्राहिम हुसैन मिर्जा के विरुद्ध अकबर के सरनाल के युद्ध (1572) में बहुत पराक्रम दिखाया था ।
  • राजा भगवंतदास की 1589 ईसवी में लाहौर में मृत्यु हो गई ।

आमेर (Aamer History in Hindi) के कछवाहा वंश के इतिहास में अगली पोस्ट में आमेर के शासक राजा मानसिंह के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

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