Rajasthan ke pramukh lok devta

राजस्थान के लोक देवता । Rajasthan ke pramukh lok devta

आज हम राजस्थान के प्रसिद्ध राजस्थान के लोक देवता (Rajasthan ke pramukh lok devta ) की बात करेंगे ।

Lok Devta of Rajasthan List in Hindi

  • राजस्थान के सुदूर ग्रामीण अंचलों में जनमानस में अनेकानेक लोक देवता एवं लोक देवियों पूजी जाती है । अलौकिक चमत्कारों से युक्त एवं वीरता पूर्ण कृत्यों वाले महापुरुष जनमानस में लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध हुए ।
  • राजस्थान में प्रमुख पाँच लोकदेवताओं – पाबूजी, हड़बूजी, रामदेव जी, गोगा जी एवं मांगलिया मेहाजी को पंच पीर माना गया है ।
  • राज्य के प्रमुख लोक देवताओं का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है :-

1. पाबूजी

  • राठौड़ राजवंश के पाबूजी राठौड़ का जन्म 13वीं शताब्दी (1239 ई.) में फलौदी (जोधपुर) के निकट कोलूमण्ड में पिता धाँधल जी राठौड़ एवं माँ कमलादे के घर हुआ ।
  • इनका विवाह अमरकोट(उमरकोट) के राजा सूरजमल सोढा की पुत्री सुप्यारदे से हो रहा था कि ये फेरों के बीच से ही उठकर अपने बहनोई जीन्दराव खींची से देवल चारणी ( जिसकी केसर कालमी घोड़ी ये माँग कर लाए थे) की गायें छुड़ाने चले गए और देचूँ गाँव में 1276 ई. में युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए । अत: इन्हें गौ-रक्षक देवता के रूप मे पूजा जाता है ।
  • प्लेग रक्षक एवं ऊँटों के देवता की रूप में पाबूजी की विशेष मान्यता है ।
  • मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को ही है ।
  • ऊंटों की पालक राइका (रेबारी) जाति इन्हें अपना आराध्य देव मानती है ।
  • ये थोरी एवं भील जाति में अति लोकप्रिय हैं तथा मेहर जाति के मुसलमानों इन्हें पीर मानकर पूजा करते हैं । इन्हें लक्ष्मण का अवतार भी माना जाता है ।
  • पाबूजी में केसर कालमी घोड़ी एवं बाँयी और झुकी पाग के लिए प्रसिद्ध है । इनका बोध चिह्न ‘भाला’ है ।
  • कोलूमण्ड में इनका सबसे प्रमुख मंदिर है , जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है ।
  • पाबूजी से संबंधित गाथा गीत ‘पाबूजी के पवाडे़’ माठ वाद्य के साथ नायक एवं रेबारी जाति द्वारा गाए जाते हैं ।
  • ‘पाबूजी की पड़’ नायक जाति के भोपों द्वारा ‘रावणहत्था’ वाद्य के साथ बाँची जाती है ।
  • चाँद-डेमा एवं हरमल पाबूजी के रक्षक सहयोगी के रूप में जाने जाते हैं ।
  • पाबूजी के पांच प्रमुख साथी – चाँदोजी, सांवतजी, डेमाजी, हरमलजी राइका एवं सलजी सोलंकी ।
  • थोरी जाति के लोग सारंगी के साथ पाबूजी की यशगाथा गाते हैं , जिसे यहाँ की स्थानीय बोली में ‘पाबू धणी री बाचना’ कहते हैं ।
  • आशिया मोड़जी द्वारा लिखित ‘पाबू प्रकाश’ पाबूजी के जीवन पर एक महत्वपूर्ण रचना है ।
  • पाबूजी के अनुयायियों द्वारा खालीनृत्य किया जाता है ।
  • इन्हें हाड़- फाड़ के देवता भी कहते हैं ।

2. गोगाजी

  • चौहान वंशीय गोगाजी का जन्म 11 वीं सदी में चुरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर जेवरसिंह-बाछल देवी के घर हुआ ।
  • ददरेवा में इनके स्थान को शीर्षमेड़ी कहते हैं जहाँ हर वर्ष गोगाजी का मेला भरता है ।
  • गोगा जी के गुरु का नाम गोरखनाथ था ।
  • गोगाजी का विवाह केलमदे से हुआ ।
  • गोगाजी को ‘सांपों के देवता’ कहा जाता है ।
  • गांव-गांव में खेजड़ी वृक्ष के नीचे गोगाजी के चबूतरे या थान जिसमें पत्थर पर सर्प की आकृति उतकीर्ण होती है, बने हुए हैं ।
  • गोगाजी ने गौ-रक्षार्थ एवं मुस्लिम आक्रांता महमूद गजनवी से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर कर दिए ।
  • गोगाजी को ‘जाहर पीर’ , ‘गोगापीर’ , ‘गोगा बाप्पा’ भी कहते हैं ।
  • राजस्थान का किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले गोगाजी के नाम पर राखी ‘गोगा राखड़ी’ बांधते हैं ।
  • गोगाजी को ‘सर्पदंश’ से बचाव हेतु पूजा जाता है । सर्प काटे व्यक्ति को गोगाजी के नाम की ताँती बाँधी जाती है ।
  • गोगाजी के जन्म स्थान ददरेवा को शीर्ष मेड़ी तथा समाधि स्थल गोगामेडी (नोहर-हनुमानगढ़) को ‘धुरमेड़ी’ भी कहते हैं । गोगामेडी़ में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णा नवमी (गोगा नवमी) को विशाल मेला भरता है ।
  • सांचौर (जालौर) किलौरियों की ढाणी में भी ‘गोगाजी की ओल्डी’ नामक स्थान पर गोगाजी का मंदिर है ।
  • गोगाजी के मंदिर (गोगामेडी) के सभा मंदिर के दरवाजे की ऊंचाई पर ‘बिस्मिल्लाह’ अंकित पत्थर लगा हुआ है । यहाँ पर ‘नरसिंह कुण्ड’ स्थित है ।
  • गोगामेडी के चारों ओर फैला हुआ जंगल ‘वणी’ या ‘ओयण’ कहलाता है ।
  • गोगा जी की सवारी ‘नीली घोड़ी’ थी । गोगा जी की पूजा भाला लिए योद्धा और साथ में उनके प्रतीक सर्प के रूप में होती है । इनको खीर, लापसी और चूरमा का भोग लगता है ।
  • गोगाजी के तीर्थयात्री अपने साथ वहां स्थित ‘गोरखाना तालाब’ की पवित्र मिट्टी ले जाते हैं ।
  • गोगा जी को हिंदू एवं मुसलमान दोनों पूजते हैं ।
  • गोगाजी की पूजा करते समय ‘माठ’ नाम का नगाड़ा या ढोल का प्रयोग किया जाता है ।
  • फिरोजशाह तुगलक ने गोगामेडी़ का निर्माण मकबरानुमा आकृति में करवाया था ।
  • बीकानेर के शासक गंगासिंह ने गोगामेडी़ को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया था ।

3. रामदेवजी

  • रामदेव जी का जन्म तँवर वंशीय ठाकुर अजमाल जी के यहाँ हुआ । इनकी माता का नाम मैणादे था । ये अर्जुन के वंशज माने जाते हैं ।
  • रामदेव जी का जन्म भाद्रपद शुक्ला द्वितीया (1405 ई.) को बाड़मेर की शिव तहसील के उण्डु कासमेर गाँव में हुआ तथा भाद्रपद सुदी एकादशी ( 1458) को इन्होंने रुणिचा के राम सरोवर के किनारे जीवित समाधि ली थी ।
  • रामदेव जी का विवाह अमरकोट (पाकिस्तान) के सोढ़ा राजपूत दलैसिंह की पुत्री निहालदे ( नेतलदे) के साथ हुआ था ।
  • संपूर्ण राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि राज्यों में ‘रामसा पीर’ , ‘रूणीचा रा धणी’ व ‘बाबा रामदेव ‘ आदि नामों से पुकारा जाता है ।
  • रामदेव जी ने समाज में व्याप्त छुआछूत, ऊंच-नीच आदि बुराइयों को दूर कर सामाजिक समरसता स्थापित की थी ।
  • हिंदू इन्हें कृष्ण का अवतार मानकर तथा मुसलमान ‘रामसा पीर’ के रूप में इनकी पूजा करते हैं ।
  • रामदेव जी के बड़े भाई वीरमदेव को ‘बलराम का अवतार’ माना जाता है । रामदेव जी को ‘विष्णु का अवतार’ भी मानते हैं ।
  • रामदेव जी की बहन का नाम सुगना बाई था, जिनका विवाह पुगलगढ़ के पड़िहार राव विजयसिंह से हुआ ।
  • कामड़िया पंथ रामदेवजी से प्रारंभ हुआ माना जाता है ।
  • इनके गुरु का नाम बालीनाथ था । रामदेव जी ने बाल्यावस्था में ही सातलमेर (पोकरण) क्षेत्र में तांत्रिक भैरव राक्षस का वध कर उसके आतंक को समाप्त किया एवं जनता को कष्ट से मुक्ति दिलाई ।
  • रामदेवरा (रुणिचा) में रामदेव जी का विशाल मंदिर है, जहां हर वर्ष भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है, जिसकी मुख्य विशेषता संप्रदायिक सद्भाव है ।
  • कामड़ जाति की स्त्री द्वारा तेरहताली नृत्य किया जाता है ।
  • इनके अन्य मंदिर जोधपुर के पश्चिम में मसूरिया पहाड़ी पर, बिराँटिया (अजमेर) एवं सुरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़) में भी है । इनका एक मंदिर ‘छोटा रामदेवरा’ गुजरात में भी है ।
  • रामदेव जी के पगल्ये या पगलिए की पूजा की जाती है । इनके मेघवाल भक्तजनों को ‘रिखिया’ कहते हैं । रामदेव जी के भक्त इन्हें श्रद्धापूर्वक कपड़े का बना घोड़ा चढ़ाते हैं ।
  • रामदेव जी का घोड़ा ‘लीला’ था ।
  • बाबा रामदेव के चमत्कारों को ‘पर्चा’ एवं इनके भक्तों द्वारा गाए जाने वाले भजनों को ‘ब्यावले’ कहते हैं ।
  • रामदेव जी के मंदिरों को ‘देवरा’ कहा जाता है , जिन पर श्वेत या 5 रंगों की ध्वजा (नेजा) फहराई जाती है ।
  • रामदेव जी एकमात्र देवता कवि थे । इनकी रचित ’24 बाणियाँ’ प्रसिद्ध है ।
  • रामदेव जी के रात्रि जागरण को ‘जम्मा’ कहते हैं ।
  • डालीबाई रामदेव जी की अनन्य भक्त थी । रामदेव जी ने इसे अपनी धर्म बहन बनाया था । डालीबाई ने रामदेव जी से 1 दिन पूर्व उनके पास ही जीवित समाधि ली थी । वहीं डाली बाई का मंदिर है ।
  • मक्का से आये पांच पीरों को रामदेव जी ने ‘पंच पीपली’ स्थान पर पर्चा दिया था । इसलिए इन्हें ‘पीराँ का पीर’ भी कहा जाता है ।
  • भैरव राक्षस , लखी बनजारा तथा रतना राईका का संबंध रामदेव जी से था ।
  • रामदेव जी की फड़ मुख्यत: बीकानेर व जैसलमेर जिले में बांची जाती है ।
  • मल्लीनाथ जी बाबा रामदेव के समकालीन थे ।

4. हड़बू जी

  • हड़बूजी भूंडोल (नागौर) के राजा मेहाजी साँखला के पुत्र थे व मारवाड़ के राव जोधा के समकालीन थे ।
  • लोक देवता रामदेव जी, हड़बूजी के मौसेरे भाई थे , जिनकी प्रेरणा से हड़बूजी ने अस्त्र-शस्त्र त्याग कर योगी बालीनाथ से दीक्षा ली तथा बाबा रामदेव के समाज सुधार के लक्ष्य के लिए उन्होंने आजीवन पूर्ण निष्ठा से कार्य किया ।
  • बेंगटी (फलौदी) में हड़बूजी का मुख्य पूजा स्थल है एवं इनके पुजारी सांखला राजपूत होते हैं और ‘हड़बूजी की गाड़ी’ की पूजा की जाती है ।
  • ‘साँखला हरभू का हाल’ इनके जीवन पर लिखा प्रमुख ग्रंथ है ।
  • ये शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे ।

5. मेहाजी मांगलिया

  • मेहाजी सभी मांगलियों के इष्टदेव के रूप में पूजे जाते हैं । मेहाजी का सारा जीवन धर्म की रक्षा और मर्यादाओं के पालन में बीता ।
  • जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ।
  • मेहाजी राठौड़ शासक राव चूँड़ा के समकालीन थे ।
  • बापणी में इनका मंदिर है । भाद्रपद माह की कृष्ण जन्माष्टमी को मांगलिया राजपूत मेहाजी की अष्टमी मनाते हैं ।
  • ‘किरड़ काबरा’ घोड़ा मेहाजी का प्रिय घोड़ा था ।

6. तेजाजी

  • लोक देवता तेजाजी खड़नाल (नागौर) के नागवंशीय जाट थे । इनका जन्म 1073 ई. में माघ शुक्ल चतुर्दशी को हुआ था ।
  • तेजाजी के पिता ताहड़ जी एवं माता रामकुँवरी थी । तेजाजी का विवाह पेमलदे से हुआ ।
  • तेजाजी को परम गौ रक्षक एवं गायों का मुक्तिदाता माना जाता है । इन्हें ‘काला और बाला’ देवता भी कहते हैं ।
  • इन्होंने लाछा गूजरी की गायें मेरों के मीणाओं से छुड़वाने हेतु 1103 ई. भाद्रपद शुक्ला दशमी को सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर) में अपने प्राण त्याग दिए ।
  • इनके थान पर सर्प व कुत्ते काटे प्राणी का इलाज होता है । प्रत्येक किसान तेजाजी के गीत (तेजाटेर) के साथ ही खेत में बुवाई प्रारंभ करता है ।
  • इनके मुख्य मंदिर अजमेर जिले के सुरसुरा , ब्यावर , सेंदरिया एवं भावतां में हैं । उनके जन्म स्थान खड़नाल में भी इनका मंदिर है ।
  • नागौर जिले के परबतसर कस्बे में तेजाजी का विशाल पशु मेला भाद्रपद शुक्ला दशमी को भरता है ।
  • सर्पदंश का इलाज करने वाले तेजाजी के भोपे को ‘घोड़ला’ कहते हैं ।
  • तेजाजी की घोड़ी लीलण (सिणगारी) थी ।

7. देवनारायण जी

  • देवनारायण जी का जन्म 1243 ई. में आसीन्द (भीलवाड़ा) में बगड़ावत कुल के नागवंशीय गुर्जर परिवार में हुआ ।
  • वे सवाईभोज और सेढू के पुत्र थे । इनका जन्म नाम उदयसिंह था ।
  • देवनारायण जी का घोड़ा ‘लीलागर (नीला) था ।
  • इनकी पत्नी धार नरेश जयसिंह देव की पुत्री पीपलदे थी ।
  • इन्होंने अपने पिता की हत्या का बदला भिनाय के शासक को मारकर लिया ।
  • देवमाली / देहमाली (ब्यावर) में इन्होंने देह त्यागी । देवमाली को ‘बागड़ावतों का गाँव ‘ कहते हैं ।
  • देवनारायण जी का मूल देवरा आसींद के पास गोठां दड़ावत में है । इनके अन्य प्रमुख देवरे देवमाली , देवधाम जोधपुरिया (टोंक) व देव डूंगरी पहाड़ी (चित्तौड़गढ़) में है ।
  • देवनारायण जी के देवरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर बड़ी ईटों की पूजा की जाती है ।
  • इनके प्रमुख अनुयायी गुर्जर जाति के लोग हैं जो देवनारायण जी को विष्णु का अवतार मानते हैं ।
  • देवनारायण जी की पड़ गूजर भोपों द्वारा ‘जंतर वाद्य’ की संगत में बाँची जाती है । यह राज्य की सबसे बड़ी पड़ है ।
  • देवनारायण जी का मेला भाद्रपद शुक्ला छठ व सप्तमी को लगता है ।
  • देवधाम जोधपुरिया (टोंक) में देवनारायण जी मंदिर में बगड़ावतों की शौर्य गाथा का चित्रण किया हुआ है ।
  • देवनारायण जी औषधिशास्त्र के ज्ञाता थे । इन्होंने गोबर तथा नीम का औषधि के रूप में प्रयोग के महत्व को प्रचारित किया ।
  • देवनारायण जी ऐसे प्रथम लोक देवता है जिन पर केंद्रीय सरकार के संचार मंत्रालय ने 2010 में ₹5 का डाक टिकट जारी किया था ।
  • लोक देवता देवनारायण जी पर फिल्म बन चुकी है जिसमें देवजी की भूमिका नाथू सिंह गुर्जर ने निभाई थी ।
  • उपनाम :- (१) देवजी (२) लीला घोड़ा का असवार (३) 11वीं कला का असवार (४) साडू माता का लाल (५) उधा जी ।

8. कल्ला जी

  • वीर कल्ला राठौड़ का जन्म मारवाड़ के सामियाना गाँव में राव अचलाजी (मेड़ता शासक राव दूदाजी के पुत्र ) के घर 1544 ई . को हुआ ।
  • भक्त शिरोमणि मीरा इनकी बुआ थी ।
  • योगी भैरवनाथ इनके गुरु थे ।
  • चित्तौड़ के तीसरे शाके ( 1567) में महाराणा उदय सिंह जी की ओर से अकबर के विरुद्ध लड़ते हुए यह वीरगति को प्राप्त हुए । युद्ध में घायल वीर जयमल को उन्होंने अपने कंधे पर बिठाकर युद्ध किया था और दोनों ही युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे । युद्ध भूमि में चतुर्भुज के रूप में दिखाई गई वीरता के कारण इनकी ख्याति ‘चार हाथ वाले लोक देवता’ के रूप में हुई ।
  • इन्हें ‘शेषनाग का अवतार’ माना जाता है ।
  • सामलिया क्षेत्र (डूँगरपुर) में इनकी काले पत्थर की प्रतिमा स्थापित है ।
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में भैरव पोल पर कल्लाजी राठौड़ की एक छतरी बनी हुई है ।
  • रनेला (रूणेला) इस वीर का सिद्ध पीठ है ।
  • उपनाम :- (१) बालब्रह्मचारी (२) योगी कमधण (३) केहर (४) कल्याण ।

9. मल्लीनाथ जी

  • मल्लिनाथ जी का जन्म 1358 ईस्वी में मारवाड़ के राव तीड़ा ( सलखा जी) के जेष्ठ पुत्र के रूप में हुआ । इनकी माता का नाम जाणीदे था ।
  • मल्लीनाथ जी भविष्यदृष्टा एवं चमत्कारी पुरुष थे , जिन्होंने विदेशी आक्रांताओ से जनसाधारण की रक्षा करने एवं जनता का मनोबल बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
  • मंडोर पर राठौड़ वंश के शासक राव चूँड़ा इनके भतीजे थे । मल्लिनाथ जी ने राव चूँड़ा को मंडोर व नागौर विजय में सहायता प्रदान की थी । इन्होंने मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को परास्त किया था ।
  • तिलवाड़ा (बाड़मेर) में इनका प्रसिद्ध मंदिर है । यहाँ हर वर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक 15 दिन का मेला भरता है , जहां बड़ी संख्या में पशुओं का क्रय विक्रय भी होता है ।
  • इनकी रानी रूपादे का मंदिर तिलवाड़ा से कुछ दूरी पर मालाजाल गांव में स्थित है ।
  • इन्हीं के नाम पर बाड़मेर के मालाणी क्षेत्र का नाम पड़ा ।
  • इन्होंने 1399 ई. में ‘कुंडापंथ’ की स्थापना की ।

10. देव बाबा

  • पशु चिकित्सा व आयुर्वेद का अच्छा ज्ञान होने के कारण देव बाबा गुर्जरों व ग्वालों के पालनहार एवं कष्ट निवारक के रूप में पूजनीय है ।
  • भरतपुर के नंगला जहाज गांव में देव बाबा का मंदिर है जहां हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पंचमी तथा चैत्र शुक्ला पंचमी को मेला भरता है ।

11. मामा देव

  • स्यालोदड़ा (सीकर) में इनका मंदिर है ।
  • इस लोक देवता को मिट्टी का घोड़ा अर्पित किया जाता है ।
  • एकमात्र ऐसे लोक देवता जिनकी मूर्ति ना होकर काष्ठ का एकमात्र तोरण होता है ।
  • ये मुख्यत: गांव के रक्षक एवं बरसात के देव हैं ।
  • इन्हें प्रसन्न करने हेतु भैंसे की बलि दी जाती है ।

12. तल्ली नाथ जी

  • तल्लीनाथ जी जालौर जिले के अत्यंत प्रसिद्ध लोक देवता है ।
  • इनका वास्तविक नाम गांगदेव राठौड़ तथा इनके पिता का नाम बीरमदेव था ।
  • ये शेरगढ़ (जोधपुर) ठिकाने के शासक थे ।
  • इनके गुरु जालंधर नाथ थे ।
  • जालौर के पाँचोटा गांव के निकट पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्लीनाथ जी की मूर्ति स्थापित है ।

13. आलमजी

  • जेतमलोठ राठौड़ वंशीय ‘आलमजी’ को बाड़मेर जिले के मालाणी प्रदेश के राड़धरा क्षेत्र में लोक देवता के रूप में पूजा जाता है ।
  • ‘आलमजी का धोरा’ इनका थान (ढांगी नामक रेतीले टीले पर) है, जहां भाद्रपद शुक्ला द्वितीय को इनका मेला भरता है ।

14. वीर बग्गाजी

  • लोक देवता बग्गाजी का जन्म बीकानेर के रीड़ी गांव के एक जाट कृषक राम मोहन के घर हुआ था । सुल्तानी इनकी माँ थी ।
  • संपूर्ण जीवन गौ-सेवा में व्यतीत किया और अंत में मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए ।
  • जाखड़ समाज में कुल देवता के रूप में पूजा जाता है ।

15. भूरिया बाबा (गौतमेश्वर)

  • दक्षिणी राजस्थान के गौड़वाड़ क्षेत्र की मीणा आदिवासियों के इष्ट देव गौतमेश्वर महादेव (भूरिया बाबा या गौतम बाबा ) का प्रसिद्ध मंदिर पाली जिले में नाणा में स्थित है ।
  • इनके अनुयायी कभी गौतमेश्वर जी की झूठी कसम नहीं खाते है ।
  • सिरोही जिले में सुकड़ी नदी (पतित पावनी गंगा ) के किनारे गौतमेश्वर महादेव (भूरिया बाबा) का प्रमुख मंदिर स्थित है ।
  • गौतमेश्वर महादेव का एक लोकतीर्थ प्रतापगढ़ जिले में अरनोद कस्बे के पास भी है , जिसे वहाँ आदिवासी समुदाय पाप विमोचक तीर्थ मानता है । वहाँ स्थित मदागिरी कुंड में स्नान कर लोग पाप मुक्त हो जाते हैं ।

16. वीर फत्ता जी

  • वर्तमान जालौर जिले के साथूँ गाँव में जन्मे वीर फत्ता जी ने लुटेरों से अनुयायी गाँव की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की बलि दी और सदा के लिए लोक देवता के रूप में अमर हो गए ।
  • साथूँ गाँव में इनका विशाल मंदिर है जहां भाद्रपद शुक्ला नवमी को मेला भरता है ।

17. बाबा झूँझार जी

  • सीकर क्षेत्र के इमलोहा गाँव में राजपूत परिवार में जन्मे झूँझार जी ने अपने भाइयों के साथ मिलकर मुस्लिम लुटेरों से गायों व गांव की रक्षा करते हुए अपने प्राण गँवा दिये ।
  • प्रतिवर्ष रामनवमी को इनकी स्मृति में इमलोहा गांव में मेला लगता है । इनका थान प्राय: खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है ।

18. वीर पनराज जी

  • सोलवीं सदी में जैसलमेर के नगा गाँव के क्षेत्रीय परिवार में पैदा हुए पनराज जी ने काठौड़ी गाँव के ब्राह्मण परिवार की गायों को मुस्लिम लुटेरों से बचाते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए ।
  • इनकी स्मृति में पनराजसर गाँव में वर्ष में दो बार मेला भरता है ।

19. हरिराम जी

  • सुजानगढ़- नागौर मार्ग पर झोरड़ा गांव (चूरू) में इनका मंदिर है । इस मंदिर में साँप की बांबी एवं बाबा के प्रतिक के रूप में चरण कमल है ।
  • हरिराम जी के पिता का नाम रामनारायण एवं माता का नाम चन्दणी देवी था ।
  • ये सर्प दंश का इलाज करते थे ।

20. केसरिया कुँवर जी

  • गोगाजी के पुत्र जो लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं । इनका भोपा सर्प दंश के रोगी का जहर मुंह से चूसकर बाहर निकाल देता है ।
  • इनके थान पर सफेद रंग का ध्वज फहराते हैं ।

21. भोमिया जी

  • ये राजस्थान के गांव-गांव में भूमि के रक्षक देवता के रूप में पूजे जाते हैं ।

22. रूपनाथ जी

  • ये पाबूजी के बड़े भाई बूढो़ जी के पुत्र थे । इन्होंने अपने पिता व चाचा (पाबूजी) की मृत्यु का बदला जींदराव खीची को मार कर लिया ।
  • कोलूमंड (जोधपुर) के पास पहाड़ी पर तथा बीकानेर के सिंभूदड़ा (नोखा मंडी ) पर इनके प्रमुख थान हैं ।
  • हिमाचल प्रदेश में इन्हें ‘बालक नाथ’ के रूप में पूजा जाता है ।

23. डूंगजी-जवाहर जी

  • ये दोनों भाई शेखावाटी क्षेत्र में धनी लोगों को लूट कर उनका धन गरीबों एवं जरूरतमंदों में बांट दिया करते थे ।
  • 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।

24. इलोजी

  • राजस्थान में मारवाड़ में ये छेड़छाड़ के अनोखे लोक देवता के रूप में पूज्य हैं ।
  • ये अविवाहितों को दुल्हन , नव दंपतियों को सुखद गृहस्थ जीवन और बाँझ स्त्रियों को संतान देने में सक्षम है ।
  • इनकी मनौती कुमकुम-रोली से मनाई जाती है ।

25. खेतलाजी (खेत्रपाल)

  • क्षेत्र रक्षक, ग्राम रक्षक देवता के रूप में प्रतिष्ठित ।

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