Mirza Raja Jai singh History in Hindi

मिर्जा राजा जयसिंह (Mirza Raja Jai singh History in Hindi) का इतिहास

आज हम मिर्जा राजा जयसिंह (Mirza Raja Jai singh History in Hindi) का इतिहास की बात करेंगे ।

आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह का इतिहास (History of Mirza Raja Jai singh in Hindi)

मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667 ई.)

  • आमेर के शासक भावसिंह की मृत्यु के बाद जयसिंह (महासिंह का पुत्र ) 23 दिसंबर 1621 को 11 वर्ष की आयु में आमेर के राजा बने ।
  • इनका जन्म 29 मई 1611 को हुआ था । इनकी माता का नाम दमयंती था ।
  • इनके लंबे शासनकाल में उन्होंने तीन मुगल बादशाह – जहाँगीर, शाहजहाँ एवं औरंगजेब के साथ कार्य किया ।
  • जयपुर के कछवाहा वंश में उन्होंने सर्वाधिक अवधि 46 वर्ष तक निर्बाध रूप से शासन किया ।
  • राजा जयसिंह को बादशाह जहाँगीर ने 3000 जात व 1500 सवारों का मनसब दिया । सन् 1623 में सर्वप्रथम इन्हे अहमदनगर के शासक मलिक अम्बर के विरुद्ध भेजा गया था , जहाँ उन्होंने अपने अद्भुत रणकौशल से उसे दबा दिया ।
  • 1625 ई. में जयसिंह को दलेल खाँ पठान का विद्रोह दबाने भेजा गया , जहाँ उन्होंने बड़ी सफलता से दलेल खाँ को परास्त किया ।
  • शाहजहाँ के मुगल बादशाह बनने के बाद जयसिंह का मनसब 4000 कर दिया गया ।
  • 1629 ई. में उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रदेश में उजबेगों के उपद्रव को सफलतापूर्वक दबा दिया ।
  • 1630 ई. में राजा जयसिंह ने खानेजहाँ लोदी के विद्रोह को दबाया ।
  • शाहजी भौंसले (मराठा सरदार ) के विरुद्ध कार्यवाही में उनके साहसिक कार्यों से प्रसन्न होकर शाहजहाँ ने इनका मनसब 5000 कर दिया ।
  • 1636 ई. में शाहजहाँ के बीजापुर व गोलकुंडा के विजय अभियान में राजा जयसिंह शाही सेना के अग्रभाग के सेनानायक थे । इसके अलावा गौड़ देश के विरुद्ध अभियान में भी राजा जयसिंह ने मुगलों विजय दिलवाई ।
  • 1638 ई. में शाहजहाँ द्वारा इन्हें ‘मिर्जा राजा’ की पदवी से सम्मानित किया गया ।
  • 1649 ई. में राजा जयसिंह को शहजादा शूजा के साथ कंधार अभियान पर भेजा गया ।
  • 1651 ई. में मिर्जा राजा जयसिंह को सादुल्ला खाँ के साथ कंधार युद्ध में नियुक्त किया गया । इनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर उन्हें द्वारा के पुत्र सुलेमान शिकोह के साथ काबूल की सूबेदारी दी गई एवं इनका मनसह 6 हजारी सवार व जात कर दिया गया ।
  • 1656 ई. में शाहजहाँ के पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध छिड़ जाने पर जयसिंह ने शाही सेना के साथ शुजा की सेना को बहादुरपुर में घेर लिया । बादशाह ने प्रसन्न होकर राजा जयसिंह का मनसब 7 हजारी जात व सवार कर दिया ।
  • उत्तराधिकारी युद्ध में औरंगजेब की विजय होने पर राजा जयसिंह ने मथुरा में 25 जून 1658 को औरंगजेब से भेंटकर अपने सहयोग का आश्वासन दिलाया । इन्होंने जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह को दारा शिकोह का साथ न देने हेतु राजी किया एवं उन्हें औरंगजेब से मिलवाया ।
  • औरंगजेब के दारा शिकोह के विरुद्ध दौराई (अजमेर) के अंतिम युद्ध में मिर्जा राजा जयसिंह ने सेना के अग्रभाग का नेतृत्व किया ।
  • 30 सितंबर 1664 को मिर्जा राजा जयसिंह को दिलेर खाँ के साथ शिवाजी के विरुद्ध अभियान पर भेजा गया ।

पुरन्दर की संधि :- मिर्जा राजा जयसिंह ने शिवाजी के विरुद्ध अभियान द्वारा शिवाजी को मुगल सम्राट से संधि करने के लिए विवश कर दिया तथा औरंगजेब की अधीनता स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया । 11 जून 1665 को शिवाजी व जयसिंह के मध्य संधि हो गई जिसे पुरंदर की संधि कहते हैं ।

  • मिर्जा राजा जयसिंह का अंतिम अभियान बीजापुर था परंतु वह पूर्णतया असफल रहा ।
  • मिर्जा राजा जयसिंह की मृत्यु 2 जुलाई 1667 ईस्वी को बुरहानपुर में हो गई ।
  • आमेर में उनके बनवाये हुए कई महल तथा ‘जयगढ़ दुर्ग’ आदि उनकी वास्तुकला के प्रति गहरी रूचि का घोतक है , जो उत्तर मुगलकालीन राजपूत-मुगल शैली के प्रतीक हैं ।
  • इसके अलावा उन्होंने औरंगाबाद में जयसिंहपुर नगर बसाया ।
  • उन्होंने जयगढ़ दुर्ग में एक तोप बनाने का कारखाना बनवाया । यहीं मध्य एशिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण का निर्माण करवाया ।
  • मिर्जा राजा जयसिंह के दरबार में प्रसिद्ध कवि बिहारीलाल ने ‘बिहारी सतसई’ की रचना हिंदी में की । जयसिंह ने बिहारी को प्रत्येक दोहे पर एक स्वर्ण मुद्रा दी ।
  • कुलपति मिश्र द्वारा ’52 ग्रंथों’ की रचना तथा दरबारी कवि रामकवि के द्वारा ‘जयसिंह चरित्र’ की रचना की गई ।
  • इनके शासनकाल में ही धर्म प्रदीप , भक्ति रत्नावली , भक्ति निर्णय , भक्ति निवृति, हरनकर रत्नावली आदि महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना हुई ।

महाराजा रामसिंह प्रथम ( 1667-1689 ई.)

  • मिर्जा राजा जयसिंह की मृत्यु के बाद 8 सितंबर 1667 को जेष्ठ पुत्र रामसिंह आमेर की राजगद्दी पर विराजमान हुए ।
  • औरंगजेब द्वारा शिवाजी को कैद किए जाने के दौरान रामसिंह ने शिवाजी की पूर्णतया रक्षा की ।
  • औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह के निधन के बाद इन्हें 4 हजारी जात व सवार का मनसब दिया ।
  • 19 सितंबर 1689 को महाराजा रामसिंह प्रथम का निधन हो गया ।

महाराजा बिशनसिंह ( 1689-1699 ई.)

  • महाराजा रामसिंह के पुत्र कृष्ण सिंह ( किशनसिंह) का मुगल सेवा में दक्षिण में देहांत हो गया था । अत: महाराजा रामसिंह के निधन के बाद इनके पौत्र बिशनसिंह को 19 सितंबर 1689 को आमेर की गद्दी पर बैठाया गया ।
  • बादशाह औरंगजेब ने महाराजा बिशनसिंह को मुल्तान भेजा जहां इन्होंने सक्खर के किले को जीता । इसके बाद शहजादा मुअज्जम के साथ काबुल के पठानों के विद्रोह का दमन करने हेतु वहां गए ।
  • 10 जनवरी 1700 को महाराजा बिशनसिंह का काबुल में देहांत हो गया ।

आमेर (Aamer History in Hindi) के कछवाहा वंश के इतिहास में अगली पोस्ट में आमेर के शासक सवाई जयसिंह द्वितीय के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

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