मराठा साम्राज्य का इतिहास

Maratha Samrajya ka Itihaas in Hindi

  Maratha Samrajya History in Hindi

17वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया आरंभ होने के साथ ही देश में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना का जो सिलसिला आरंभ हुआ उनमें राजनीतिक दृष्टि से सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य मराठों का था ।

आरंभिक इतिहासकारों के अनुसार मराठा के उत्कर्ष में उस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति, औरंगजेब की हिंदू विरोधी नीतियों और उनके परिणाम स्वरूप हिंदू जागरण, मराठा सन्त कवियों का धार्मिक आंदोलन आदि महत्वपूर्ण कारक थे ।

Maratha samrajya ka itihaas in Hindi
Maratha samrajya ka itihaas in Hindi

मराठा साम्राज्य के शासक

छत्रपति शिवाजी ( 1627-1680 ई.)

1627 ई. को पूना के निकट शिवनेर के दुर्ग में शिवाजी का जन्म हुआ । उनको मराठा साम्राज्य का संस्थापक कहा जाता है । उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले और माता का नाम जीजाबाई था ।

शिवाजी के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव उनकी माता जीजाबाई तथा संरक्षक एवं शिक्षक दादा कोंणदेव का पड़ा । इनके गुरू का नाम समर्थ रामदास था ।

शाहजी ने 1637 ईस्वी में शिवाजी को पूना की जागीर प्रदान कर स्वयं बीजापुर चले गए । शिवाजी का विवाह साइबाई निम्बालकर से 1640 ईसवी में हुआ ।

शिवाजी ने ‘हिंदू पद पादशाही’ अंगीकार किया । गाय और ब्राह्मणों की रक्षा का व्रत लिया और ‘हिंदुत्व-धर्मोद्धारक’ की उपाधि धारण की । शिवाजी में हिंदू धर्म की रक्षा की भावना थी , परंतु उनका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक था । उनका मूल उद्देश्य मराठों की बिखरी हुई शक्ति को एकत्रित करके महाराष्ट्र में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना था ।

सर्वप्रथम शिवाजी ने 1643 ईस्वी में बीजापुर के सिंहगढ़ के किले पर अधिकार किया । उसके बाद 1646 ई. में बीजापुर के तोरण नामक पहाड़ी के किले पर अधिकार किया ।

1656 ईस्वी तक शिवाजी ने चाकन, पुरन्दर, बारामती , सूपा , तिकोना, लोहगढ़ आदि विभिन्न किलों पर अधिकार कर लिया ।

1656 में शिवाजी की महत्वपूर्ण विजय जावली की थी । जावली एक मराठा सरदार चंद्र राव मोरे के अधिकार में था ।

अप्रैल 1656 ईसवी में शिवाजी ने रायगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया तथा रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया ।

1657 ई. में शिवाजी का पहली बार मुकाबला मुगलों से हुआ, जब वह बीजापुर की तरफ से मुगलों से लड़ा । इसी समय शिवाजी ने जुन्नार को लूटा । कुछ समय पश्चात मुगलों के उत्तराधिकारी युद्ध का लाभ उठाकर उसने कोंकण पर भी विजय प्राप्त की ।

बीजापुर के सुल्तान ने अपने मुख्य सेनापति अफजल खाँ को सितंबर, 1665 ई. शिवाजी को पराजित करने के लिए भेजा । शिवाजी ने अफजल खाँ की हत्या कर दी ।

1664 ई. में शिवाजी ने सूरत पर धावा बोल दिया । यह मुगलों का एक महत्वपूर्ण किला था । उसने 4 दिन तक लगातार नगर को लूटा ।

औरंगजेब ने शिवाजी को कुचलने हेतु आमेर मिर्जा राजा जयसिंह को भेजा । पुरन्दर की संधि 1665 ई. में महाराजा जयसिंह एवं शिवाजी के मध्य संपन्न हुई । इस संधि के अनुसार :-

(१) शिवाजी को चार लाख हूण वार्षिक आय वाले 23 किले मुगलों को सौपने पड़े ।

(२) मुगलों ने शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को पंचहजारी एवं उचित जागीर देना स्वीकार किया ।

(३) शिवाजी ने बीजापुर के विरुद्ध मुगलों को सैनिक सहायता देने का वादा किया ।

1666 ईस्वी में शिवाजी जयसिंह के आश्वासन पर औरंगजेब से मिलने आगरा आये, पर उचित सम्मान न मिलने पर दरबार से उठकर चले गए । औरंगजेब ने कैद कर जयपुर भवन (आगरा) में रखा , जहाँ से वे 16 अगस्त 1666 ई. में भाग निकले ।

1670 ईस्वी में शिवाजी का मुगलों से पुन: युद्ध आरंभ हो गया । पुरन्दर की सन्धि द्वारा खोये गए अपने अनेक किलों को शिवाजी ने पुन: जीत गया । इन किलों में कोंडना किला सर्वाधिक महत्वपूर्ण था । शिवाजी ने इस किले का नाम सिंहगढ़ रखा ।

1670 ईस्वी में शिवाजी ने पुन: सूरत पर आक्रमण किया और उसे लूटा तथा मुगलों से चौथ की मांग की । 1672 ईस्वी में शिवाजी ने पन्हाला दुर्ग को बीजापुर से छीना ।

5 जून 1674 ई. को शिवाजी ने काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट से अपना राज्याभिषेक रायगढ़ में करवाया तथा ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की ।

शिवाजी का अंतिम महत्वपूर्ण अभियान 1677 ईस्वी में कर्नाटक अभियान था । इस अभियान का मुख्य उद्देश्य बीजापुर के आदिलशाही राज्य पर अधिकार करना था । इसके लिए उन्होंने गोलकुंडा के दो ब्राह्मण मंत्रियों मदन्ना और अखन्ना के माध्यम से गोलकुंडा के सुल्तान के साथ एक गुप्त संधि की ।

इस अभियान में शिवाजी ने जिंजी ,मदुराई , बेल्लूर आदि तथा कर्नाटक एवं तमिलनाडु के लगभग 100 किलों को जीत लिया । जिंजी, उन्होंने अपने दक्षिण भाग की राजधानी बनाया ।

मात्र 53 वर्ष की आयु में 3 अप्रैल 1680 ईस्वी को शिवाजी की मृत्यु हो गई । शिवाजी का उत्तराधिकारी शम्भाजी हुए ।

Leave a Reply

Scroll to Top