Sawai Jai singh History in Hindi

सवाई जयसिंह द्वितीय (Sawai Jai singh History in Hindi) का इतिहास

आज हम सवाई जयसिंह द्वितीय (Sawai Jai singh History in Hindi) का इतिहास की बात करेंगे ।

आमेर के सवाई जयसिंह द्वितीय का इतिहास (History of Sawai Jai singh in Hindi)

सवाई जयसिंह द्वितीय (1700-1743 ई.)

  • सवाई जयसिंह का जन्म 3 दिसंबर 1688 को हुआ । अपने पिता विष्णुसिंह के निधन के बाद 1700 ई. में आमेर का शासक बना ।
  • मुगल बादशाह औरंगजेब ने इनके रणकौशल से प्रसन्न होकर इनको ‘सवाई’ की उपाधि दी । इसके बाद जयपुर के सभी राजा अपने नाम से पहले सवाई पद का प्रयोग करने लगे ।
  • नवम्बर, 1701 में यह बादशाह औरंगजेब के पास दक्षिण में बुरहानपुर गए । वहाँ इन्हें मराठों के खेलना के दुर्ग के विरुद्ध अभियान में भेजा गया ।
  • 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु हो गई । उसके पुत्रों आजम और मुअज्जम में युद्ध हुआ । जयसिंह ने आजम का साथ दिया तथा जयसिंह के भाई विजय सिंह ने मुअज्जम का साथ दिया । दोनों पक्षों में 2 जून 1707 ई. में जाजऊ के मैदान जो आगरा के पास ही है, युद्ध हुआ जिसमें मुअज्जम विजयी रहा तथा बहादुरशाह प्रथम के नाम से गद्दी पर बैठा । बहादुरशाह ने विजयसिंह को आमेर का शासक बना दिया तथा आमेर का नाम बदलकर मोमीनाबाद/इस्लामाबाद रख दिया और आमेर का फौजदार सैयद हुसैन खाँ को बनाया गया ।
  • बहादुरशाह के इस कार्य से असंतुष्ट होकर सवाई जयसिंह ने जोधपुर के शासक अजीतसिंह व उदयपुर के महाराणा अमरसिंह द्वितीय को अपनी ओर मिला लिया ।
  • जयसिंह एवं अजीतसिंह बहादुरशाह के साथ दक्षिण में कामबख्श के विरुद्ध अभियान पर जा रहे थे तो मण्डलेश्वर के बाद वे शाही सेना से अलग होकर उदयपुर की तरफ चल दिए । वहाँ मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय को उन्होंने अपने पक्ष में कर तीनों की संयुक्त सेना से मुगलों के विरुद्ध लड़ने की योजना बनाई । इस हेतु इन तीनों के मध्य देबारी स्थान पर यह समझौता ‘देबारी समझौता’ हुआ ।
  • तीनो सेनाओं ने सर्वप्रथम जुलाई 1708 ई. में अजीतसिंह का अधिकार मारवाड़ में स्थापित करवाया ।
  • महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने अपनी पुत्री चन्द्रकुँवरी का विवाह जयसिंह के साथ इस शर्त के साथ किया कि उससे होने वाला पुत्र ही आमेर के शासन का उत्तराधिकारी होगा । मारवाड़ के अजीतसिंह ने भी अपनी पुत्री सूरजकुँवर का विवाह जयसिंह से किया ।
  • 1 जून 1710 को सम्राट बहादुरशाह ने सवाई जयसिंह को आमेर का राजा स्वीकार कर लिया ।
  • 1712 ईस्वी में बहादुरशाह की मृत्यु के बाद जहाँदरशाह मुगल सम्राट बना । जहाँदरशाह की मृत्यु के बाद फर्रूखशियर मुगल बादशाह बना ।
  • फर्रूखशियर ने सवाई जयसिंह को सात हजारी मनसब जात व सवार देकर उसे 1713 ई. में मालवा का सूबेदार बना दिया ।
  • सवाई जयसिंह ने जाटों की विद्रोह को दबाया तथा चूड़ामन को संधि के लिए विवश किया । इससे प्रसन्न होकर बादशाह फर्रूखशियर ने जयसिंह को ‘राजाधिराज’ का खिताब दिया ।
  • 1719 ई. में बादशाह फर्रूखशियर की सैयद बंधुओं द्वारा हत्या कर दी गई तथा मुहम्मदशाह (रंगीला) मुगल सम्राट बना ।
  • 1722 में सवाई जयसिंह को जाटों के विद्रोह को दबाने हेतु भेजा । चूड़ामन की मृत्यु हो गई तो उसने उसके भतीजे बदनसिंह को अपनी ओर मिला लिया तथा जाट विद्रोह दबाने में सफल रहा । इससे प्रसन्न होकर बादशाह मोहम्मदशाह ने सवाई जयसिंह को ‘राजराजेश्वर श्री राजाधिराज’ की उपाधि दी ।
  • सवाई जयसिंह ने बदनसिंह को डीग का शासक स्वीकार करते हुए बृजराज की उपाधि से विभूषित किया ।
  • सवाई जयसिंह के प्रयासों से मराठों की शक्ति का दमन करने के लिए 17 जुलाई 1734 ईस्वी में हुरड़ा सम्मेलन (वर्तमान में भीलवाड़ा ) में बुलाया गया । इस सम्मेलन का अध्यक्ष मेवाड़ महाराणा जगतसिंह द्वितीय था । शासकों के भिन्न- भिन्न स्वार्थ होने के कारण यह सम्मेलन असफल रहा ।
  • सवाई जयसिंह बूंदी के उत्तराधिकारी के झगड़े में पड़कर राजस्थान में मराठों को आक्रमण करने के लिए आमंत्रित कर लिया जिसके बाद में भयंकर परिणाम निकले । इस प्रकार राजस्थान में मराठों का सर्वप्रथम प्रवेश बूँदी में हुआ ।
  • महाराजा सवाई जयसिंह कूटनीतिज्ञ, प्रसिद्ध योद्धा, संस्कृति एवं फारसी का प्रखंड विद्वान होने के साथ ही गणित और ज्योतिष का भी अच्छा ज्ञाता था ।
  • 1725 ईस्वी में सवाई जयसिंह ने नक्षत्रों की शुद्ध सारणी ‘जीज मुहम्मद शाही’ बनवाई तथा ‘जयसिंह कारिका’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की रचना की ।
  • जयसिंह ने अपने आश्रित विद्वान जगन्नाथ से यूक्लिड की रेखागणित का संस्कृत में अनुवाद करवाया ।
  • जयसिंह ने ‘सिद्धान्त कौस्तुभ’ तथा ‘सम्राट सिद्धांत ‘ नामक ग्रंथों की रचना की ।
  • सवाई जयसिंह के दरबार का अन्य ज्योतिष शास्त्री व खगोल शास्त्री केवलराम था । केवलराम ने लोगोरिथ्म का फ्रेंच से संस्कृत में अनुवाद किया जिसको ‘विभाग सारणी’ कहा जाता है । केवलराम ने 8 ग्रंथों – जय विनोद सारणी , तारा सारणी , मिथ्याजीवछाया सारणी, दुकपक्ष सारणी , जय विनोद , राम विनोद , दुकपक्ष ग्रंथ और ब्रह्म प्रकाश की रचना की । इसके अलावा इनका अन्य ग्रंथ ‘निरस’ है ।
  • भट्ट पुण्डरीक रत्नाकार ने ‘जयसिंह कल्पद्रुम’ ग्रंथ की रचना की । इसके पुत्र सुधाकर पुण्डरीक ने ‘साहित्य सार संग्रह ‘ एवं उसके भतीजे ब्रजनाथ भट्ट ने ‘ब्रह्म सूत्राणु भाष्यवृति’ व ‘पद्यतंरगिणी’ ग्रंथों की रचना की ।
  • इनके समय जनार्दन भट्ट गोस्वामी ने ‘मंत्र चंद्रिका ‘ , ‘श्रृंगार शतक ‘ , ‘ललिताची प्रदीपका’, ‘वैराग्यशतक’ आदि ग्रंथों की रचना की ।
  • चक्रपाणी द्वारा तंत्रशास्त्र पर ‘पंचायतन प्रकाश’ ग्रंथ की रचना की गई ।
  • सवाई जयसिंह के दरबार का सर्वाधिक प्रसिद्ध साहित्यकार श्री कृष्ण भट्ट था , जिसे सवाई जयसिंह ने ‘कवि कलानिधि’ एवं ‘राम रसाचार्य’ की उपाधि से अलंकृत किया । कृष्ण भट्ट नेे ‘राघवगीतम'(रामरासा) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की । इसके अलावा ‘वेदांत पंचविशति’ , ‘ईश्वरविलास महाकाव्य ‘ , ‘पद्य मुक्तावली’ , ‘वृत्त मुक्तावली’ , प्रशस्ति मुक्तावली’ , ‘ सरस रसास्वाद’ , ‘रामगीतम्’ , ‘सुन्दरी स्तवराज’ आदि प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की ।
  • महाराजा सवाई जयसिंह के समय में गलताजी के प्रसिद्ध रामानंदी मठाधीश स्वामी प्रियदास द्वारा ‘भक्तमाल टीका ‘ व ‘भागवत भाष्य’ ग्रंथों की रचना की गई । इसी समय कवि सूरत मिश्र ने ‘बिहारी सतसई’ पर पिंगल भाषा में टीका लिखा ।

जयपुर नगर की स्थापना :- सवाई जयसिंह ने 18 नवंबर 1727 ईस्वी को जयनगर (वर्तमान जयपुर) की नींव पंडित सम्राट जगन्नाथ के हाथों रखवाई । जयपुर का नक्शा बंगाली वास्तुविद् व तांत्रिक विद्याधर भट्टाचार्य के निर्देशन में तैयार करवाया गया । विद्याधर ने इसे तैयार करते समय प्राचीन संस्कृत ग्रंथ ‘शिल्पसूत्र’ के नियमों व सूत्रों का पूरा ध्यान रखा । जयपुर का निर्माण कार्य 1729 ई. में पूर्ण हुआ । जयपुर शहर 9 चौकड़ियों का शहर है । जयपुर के लिए ‘पिंक सिटी’ शब्द का पहली बार प्रयोग ब्रिटिश पत्रकार स्टेनले रीड ने अपनी पुस्तक ‘रॉयल टूर टू इंडिया’ में किया है । जयपुर शहर के 7 दरवाजे हैं । पूर्वी दरवाजा सूरजपोल , पश्चिमी दरवाजा चांदपोल , उत्तरी दरवाजा ध्रुवपोल ( जोरावरसिंह गेट ) तथा दक्षिण की ओर चार दरवाजे हैं – घाट गेट, सांगानेरी गेट, न्यू गेट व अजमेरी गेट ।

  • सवाई जयसिंह ने मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा बनवाई गई ‘जयगढ़ दुर्ग’ का कार्य पूर्ण करवाया तथा मराठों से रक्षा हेतु ‘नाहरगढ़ दुर्ग’ का निर्माण करवाया ।
  • इसके अलावा सिसोदिया रानी का महल बनवाया तथा मानसागर झील बनाकर उसमें जल महल का निर्माण करवाया । इस जलमहल का निर्माण कार्य सवाई प्रतापसिंह के काल में पूर्ण हुआ ।
  • सवाई जयसिंह ने गोवर्धन पर्वत पर गोवर्धनजी का मंदिर बनवाया तथा अपने चन्द्रमहल के पास गोविंददेव जी का मंदिर बनवाया । इसके अलावा सिरहड्योढी में कल्किजीका मंदिर निर्मित करवाया ।
  • 1734 ई. में जयपुर में एक बड़ी वेधशाला जंतर- मंतर का निर्माण करवाया , जो देश की सबसे बड़ी वेधशाला है । जयपुर वेधशाला में 14 यंत्र है जो समय मापन, सूर्य व चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी करने , तारों की गति एवं स्थिति जानने, सौरमंडल के ग्रहों के दिक्पात आदि जानने में बहुत सहायक है । इस वेधशाला के ‘सम्राट यंत्र’ (विशाल सूर्य घड़ी ), ‘जयप्रकाश यंत्र ‘ एवं ‘राम यंत्र ‘ प्रमुख यंत्र है । सवाई जयसिंह ने ऐसी ही चार ओर वेधशालाएँ दिल्ली, उज्जैन, बनारस एवं मथुरा में बनवाई है ।

चंद्र महल पैलेस ( सिटी पैलेस) :-

जयपुर में स्थित सवाई जयसिंह का शाही महल , जिसका निर्माण 1729 से 1732 ईसवी के बीच पूर्ण हुआ । इसमें सात मंजिलें हैं –
(१) प्रथम मंजिल – प्रीतम निवास
(२) दूसरी मंजिल – शोभा निवास
(३) तीसरी मंजिल- सुखनिवास
(४) चौथी मंजिल – छवि निवास
(५) पांचवी मंजिल – शीश महल
(६) छठी मंजिल – श्रीनिवास
(७) सातवीं मंजिल – मुकुट मंदिर

  • सवाई जयसिंह अंतिम हिंदू नरेश था जिसने भारतीय परंपरा के अनुकूल अश्वमेध यज्ञ किया । इस यज्ञ की प्रधानता पुंडरीक रत्नाकर ने की थी ।
  • जयसिंह ने राजाओं के अपने निजी पुस्तकालय की स्थापना की । इसमें दुर्लभ ग्रन्थ व पांडुलिपियाँ उपलब्ध है । सवाई जयसिंह ने पोथीखाना का निर्माण करवाया ।
  • सवाई जयसिंह ने 1720 ईस्वी में मुगल बादशाह मोहम्मदशाह से जजिया कर समाप्त करवाया ।
  • सवाई जयसिंह ने गया में हिंदुओं से वसूले जाने वाला तीर्थकर को 1728 में बंद करवाया ।
  • इलाहाबाद सूबे में गंगा स्नान हेतु आने वाले यात्रियों से लिया जाने वाला कर 1733 ई. में समाप्त करवाया ।
  • सवाई जयसिंह ने जयपुर में 36 कारखाने स्थापित करवाई । इन कारखानों में सूरतखाना प्रमुख था ।
  • पैशवा बालाजी बाजीराव और सवाई जयसिंह के मध्य धौलपुर में 18 मई 1741 को धौलपुर समझौता हुआ ।
  • सवाई जयसिंह को इतिहासकारों ने चाणक्य की उपाधि से सम्मानित किया ।
  • इन्हीं के समय 20 मार्च 1739 को दिल्ली पर नादिरशाह ने आक्रमण किया ।
  • 1741 ईस्वी में जोधपुर में हुए गंगवाना का युद्ध में सवाई जयसिंह ने नागौर के बख्तसिंह व जोधपुर के अभयसिंह को पराजित किया था ।
  • 1 सितंबर 1743 ई. को रक्त विकार के रोग के कारण सवाई जयसिंह का निधन हो गया ।

आमेर (Aamer History in Hindi) के कछवाहा वंश के इतिहास में अगली पोस्ट में आमेर के शासक सवाई ईश्वरीसिंह व माधोसिंह प्रथम के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

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