sisodiya vansh history in Hindi

सिसोदिया वंश ( Sisodiya Vansh History in Hindi) का इतिहास

आज हम सिसोदिया वंश (Sisodiya Vansh History in Hindi) के इतिहास की बात करेंगे । जिसमें महाराणा अमरसिंह प्रथम से लेकर महाराणा भोपालसिंह के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

महाराणा अमरसिंह प्रथम का इतिहास ( History of Amar Singh First)

अमरसिंह प्रथम ( 1597-1620 ई.)

  • महाराणा अमरसिंह का जन्म 16 मार्च 1559 को चित्तौड़गढ़ दुर्ग में हुआ । महाराणा प्रताप के देहांत के बाद 19 जनवरी 1597 ई. को चावंड में इनका राज्याभिषेक किया गया ।
  • महाराणा अमरसिंह ने सैन्य शासन का एक अलग विभाग गठित कर उसका अध्यक्ष हरिदास झाला को बनाकर उसे संपूर्ण सैन्य संचालन का भार दे दिया ।
  • बादशाह अकबर ने 1599 ई. में शहजादा सलीम को मेवाड़ पर आक्रमण करने भेज दिया , परंतु शहजादा थोड़े समय तक उदयपुर तक जाकर वापस लौट गया । इसके बाद महाराणा अमरसिंह ने एक-एक कर मुगल थानों पर आक्रमण कर अधिकार करना प्रारंभ किया । बागोर के थाने के अधिकारी सुल्तान खाँ, ऊँटाला के किले के कलूम खाँ आदि को राजपूती सेना ने मौत के घाट उतारकर वहाँ अधिकार स्थापित कर लिया ।
  • 1605 ई. में सलीम बादशाह जहाँगीर के नाम से दिल्ली का सम्राट बना । इसके बाद उसने 1605 में बादशाह अकबर की नीति का अनुसरण करते हुए परवेज आसिफ खाँ एवं जफरबेग के नेतृत्व में मुगल सेना को मेवाड़ अभियान पर रवाना किया ।‘तुजुके जहाँगिरी’ के अनुसार इस अभियान में मुगलों को कोई विशेष सफलता नहीं मिल पाई ।
  • जहाँगीर ने 1608 ई. में महाबतखाँ के नेतृत्व में पुन: मेवाड़ में सेना भेजी । वह सागर खाँ को चित्तौड़ एवं जगन्नाथ का मांडलगढ़ छोड़कर बिना कोई विशेष सफलता प्राप्त किए लौट आया ।उसके बाद 1609 ई. एवं 1612 ई. में पुन: अब्दुल्ला एवं राजा बासू के नेतृत्व में सेना मेवाड़ भेजी गई । इसके हमलों के कारण महाराणा अमर सिंह को 1613 में चावंड एवं मेरपुर को छोड़ना पड़ा ।
  • सभी प्रकार से कोई सफलता प्राप्त होती न देख 1613 ई. में बादशाह जहाँगीर ने शहजादा खुर्रम ( शाहजहाँ) को मेवाड़ अभियान का नेतृत्व प्रदान किया । 5 फरवरी 1615 ई. को महाराणा अमरसिंह ने जहांगीर की अधीनता स्वीकार कर ली
  • महाराणा अमरसिंह के काल को राजपूत काल का अभ्युदय कहा जाता है ।
  • 26 जनवरी 1620 को महाराणा अमरसिंह का देहांत उदयपुर में हुआ और उनकी अन्त्येष्टि आहड़ में गंगोद्भव के निकट हुई । आहड़ की महासतियों में सबसे पहली छतरी महाराणा अमरसिंह की है ।
  • पंडित गौरीशंकर ओझा ने अमरसिंह को ‘वीर पिता का वीर पुत्र‘ कहा है ।

महाराणा कर्णसिंह का इतिहास ( Maharana Karan Singh History in Hindi)

महाराणा कर्णसिंह ( 1620-1628 ई.)

  • महाराणा कर्ण सिंह का जन्म 7 जनवरी 1584 को और राज्याभिषेक 26 जनवरी 1620 को हुआ ।
  • सन् 1620 ई. में शहजादा खुर्रम ने अपने पिता जहाँगीर से विद्रोह किया । उस समय शहजादा खुर्रम महाराणा कर्णसिंह के पास भी आया । माना जाता है कि वह पहले कुछ दिन देलवाड़ा की हवेली में ठहरा , फिर पिछोला झील के जगमंदिर में ठहराया गया ।
  • महाराणा कर्णसिंह ने जगमंदिर महलों को बनवाना शुरू किया था , जिसे उनके पुत्र महाराणा जगतसिंह प्रथम ने समाप्त किया । इस कारण ये महल जगमंदिर कहलाते हैं ।
  • मार्च, 1628 में महाराणा कर्णसिंह का देहांत हो गया ।
  • महाराणा कर्णसिंह ने दिलकुश महल, कर्ण विलास, जनाना रावला, रसोड़े का महल , चंद्र महल , बड़ा दरीखाना ( सभा शिरोमणि ) आदि का निर्माण करवाया ।
  • इनके अलावा इन्होंने उदयपुर शहर के परकोटे ( शहरपनाह ) का निर्माण प्रारंभ किया, जो पूरा बाद में हुआ ।

महाराणा जगतसिंह प्रथम का इतिहास ( Maharana Jagat Singh First History in Hindi)

महाराणा जगतसिंह प्रथम ( 1628-1652 ई.)

  • महाराणा कर्णसिंह के बाद उनके पुत्र जगतसिंह प्रथम मार्च 1628 में मेवाड़ के महाराणा बने । उनका विधिवत् राज्याभिषेक 28 अप्रैल 1628 को हुआ ।
  • जगतसिंह बहुत ही दानी व्यक्ति थे ।
  • उन्होंने जगन्नाथ राय ( जगदीश ) का भव्य विष्णु का पंचायतन मंदिर बनवाया । यह मंदिर अर्जुन की निगरानी और सूत्रधार भाणा और उसके पुत्र मुकुंद की अध्यक्षता में बना । इस मंदिर की विशाल प्रशस्ति जगन्नाथ राय प्रशस्ति की रचना कृष्णभट्ट ने की ।
  • महाराणा जगतसिंह ने पिछोला में मोहन मंदिर और रूप सागर तालाब का निर्माण करवाया । इन्होंने पिछोला झील पर जगमंदिर महलजगनिवास बनवाया ।
  • जगन्नाथ राय ( जगदीश ) के पास वाला धाय का मंदिर महाराणा की धाय नौजूबाई द्वारा बनवाया गया । इसका उल्लेख इसी मंदिर में उत्कीर्ण मेवाड़ी भाषा की 1705 ई. की प्रशस्ति में किया गया है ।
  • महाराणा जगतसिंह के समय ही प्रतापगढ़ की जागीर मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा मेवाड़ से स्वतंत्र करा कर एक नई रियासत ‘प्रतापगढ़‘ बना दी गई ।
  • महाराणा जगतसिंह ने जहाँगीर के साथ संधि की शर्त के विरुद्ध चित्तौड़ दुर्ग की मरम्मत का काम शुरू करवा दिया , जो महाराणा राजसिंह के समय तक चलता रहा ।
  • महाराणा जगतसिंह का निधन 1652 में उदयपुर में हुआ ।
  • महाराणा जगतसिंह के समय कवि विश्वनाथ ( वेद्य नारायण का पुत्र ) ने सन् 1700 में 14 सर्गों के ‘ जगत् प्रकाश‘ काव्य की रचना की ।

महाराणा राजसिंह का इतिहास ( Maharana RajSingh History in Hindi)

महाराणा राजसिंह ( 1652-1680 ई.)

  • महाराणा जगतसिंह के निधन के बाद उनके पुत्र राजसिंह को 10 अक्टूबर 1652 को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया गया । इनका विधिवत् राज्याभिषेक 4 जनवरी 1653 ईस्वी को किया गया ।
  • इनकी माता जनादे ( मेड़तिया राठौड़ राजसिंह की पुत्री ) थी । महाराणा राजसिंह का जन्म 24 सितंबर 1629 ई. को उदयपुर में हुआ था ।
  • महाराणा राजसिंह ने एकलिंगजी जाकर रत्नों का तुलादान किया । रत्नों के तुलदान का संपूर्ण भारत में यह एकमात्र लिखित उदाहरण है ।
  • महाराणा राजसिंह रणकुशल, साहसी, वीर , निर्भीक, सच्चे क्षत्रिय , बुद्धिमान , धर्मनिष्ठ और दानी राजा थे । उन्होंने महाराणा जगतसिंह द्वारा प्रारंभ की गई चित्तौड़ के किले की मरम्मत का कार्य जारी रखा ।
  • सर्वप्रथम मांडलगढ़ के किले, जिसे बादशाह ने किशनगढ़ के राठौड़ शासक रूपसिंह को दे दिया था ,उस पर महाराणा ने अधिकार कर लिया ।
  • मई , 1658 में महाराणा ने मुगल इलाके छीनने हेतु राजकुल की टीका दौड़ परंपरा को माध्यम बनाया । उन्होंने टीका दौड़ हेतु उदयपुर से कुच किया ।
  • औरंगजेब के मुगल बादशाह बन जाने पर महाराणा ने कुँवर सुल्तानसिंह को शाही दरबार में आगरा भेजा ।
  • वर्ष 1658 में ही औरंगजेब ने किशनगढ़ के शासक रूपसिंह की पुत्री चारुमति से विवाह करने हेतु उसके भाई व किशनगढ़ के राजा को राजी कर लिया । चारुमति वैष्णव धर्म के अनुयायी होने के कारण मुस्लिम बादशाह से विवाह को तैयार नहीं हुई । उसने किसी तरह मेवाड़ महाराणा राजसिंह को अपनी व्यथा लिख भेजी कि आप स्वयं उससे विवाह कर उसके धर्म की रक्षा करें । महाराणा राजसिंह सेना सहित किशनगढ़ जाकर 1660 ई. में चारूमति को ब्याह लाये ।
  • महाराणा राजसिंह सिरोही के शासक अखैराज को उसके पुत्र उदयभान द्वारा कैद कर राज्य हथिया लेने सेना भेजकर पुन: राज्य शासन अखैराज को दिलवाया ।
  • बादशाह औरंगजेब द्वारा 1669 ई. में सभी हिंदू मंदिरों को तुड़वाने का आदेश दिया गया । महाराणा राजसिंह ने श्रीनाथजी आदि की मूर्तियों को लेकर अपने गोसाई दामोदर, गोपीनाथ आदि को बुलाकर सीहाड़ (नाथद्वारा) में श्रीनाथजी की मूर्ति एवं कांकरोली में द्वारकाधीश की मूर्ति स्थापित करवाई ।
  • बादशाह औरंगजेब ने 2 अप्रैल 1679 ई. में सभी हिंदुओं से जजिया कर वसूल करने का फरमान जारी किया ।
  • महाराणा राजसिंह ने मारवाड़ के शासक जसवंतसिंह राठौड़ के निधन के बाद उनके पुत्र अजीतसिंह को शरण दी ।
  • उन्होनैं औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर को भी संरक्षण प्रदान किया ।
  • ओढ़ा गाँव में भोजन के किसी के द्वारा जहर दिए जाने के कारणवश अचानक महाराणा राजसिंह का 22 अक्टूबर 1680 ई. निधन हो गया ।
  • महाराणा राजसिंह ने 1664 ई. में उदयपुर में अंबा माता का एवं कांकरोली में द्वारकाधीश मंदिर बनवाया । उदयपुर से पश्चिम में बड़ी गांव के पास जनासागर तालाब बनवाया ।
  • महाराणा राजसिंह ने 1662 ई. गोमती नदी के तट पर राजसमंद झील का निर्माण करवाया । राजसमंद झील के पास सर्वऋतु विलास का निर्माण करवाया । राजसिंह ने राजसमंद में राजनगर का निर्माण करवाया ।
  • महाराणा राजसिंह ने राजसमंद झील की नौ चोकी पाल पर तार्कों में 25 बड़ी-बड़ी शिलाओं पर 25 सर्गों का राज प्रशस्ति महाकाव्य खुदाया है , जो भारतवर्ष में सबसे बड़ा शिलालेख और शिलाओं पर खुदे हुए ग्रंथों में सबसे बड़ा है । इसकी रचना रणछोड़ भट्ट तैलंग ने की थी । राजसिंह ने राजसमंद झील के पास राजनगर (वर्तमान में राजसमंद ) का निर्माण करवाया ।
  • महाराणा राजसिंह ने अपने पिता के शासनकाल में ही सर्वऋतु (सरबत विलास ) महल तथा देबारी की घाटी का किला बनवाया । इन्होंने 1668 ई. में उदयपुर में रगसागर तालाब बनवाया, जो बाद में पिछोला झील में मिला दिया गया ।
  • महाराणा राजसिंह की रानी रामसरदे ने 1675 ई. में देबारी के पास जया नामक बावड़ी ( त्रिमुखी बावड़ी) बनवाई ।
  • महाराणा राजसिंह के समय के 13 शिलालेख मिले हैं , जिनसे इनके शासनकाल की मेवाड़ की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति , औरंगजेब से हुए युद्ध व महाराणा द्वारा दिये गये दानों आदि की जानकारी प्राप्त होती है ।
  • महाराणा राजसिंह के शासनकाल में हाड़ी रानी सलह कँवर ने अपना सिर काटकर रावल रतन सिंह के पास भेजा गया । इन्ही हाडी़ रानी के बलिदान पर साहित्यकार मेघराज मुकुल ने सेनाणी कविता लिखी है ।

महाराणा जयसिंह का इतिहास ( Maharana JaiSingh History in Hindi)

महाराणा जयसिंह ( 1680-1698 ई.)

  • महाराणा राजसिंह के बाद उनके पुत्र जयसिंह का राज्याभिषेक कुरज गाँव ( राज प्रशस्ति के अनुसार कंडज गाँव) में हुआ ।
  • इनका जन्म 5 दिसंबर 1653 ई. को रानी सदाकुँवरी के गर्भ से हुआ था ।
  • इन्होंने 1687 ई. में गोमती, झामरी, रूपारेल एवं बगार नामक नदियों के पानी को रोककर ढेबर नामक नाके पर संगमरमर की जयसमंद झील बनवाई । इसे ढेबर झील भी कहते है । इस झील में ‘बाबा का मगरा‘ व ‘पाइरी‘ नामक टापू है ।
  • मुगल शहजादे आजम से 21 जून 1681 ई. को महाराणा जयसिंह ने संधि की । इस संधि के परिणामस्वरुप मेवाड़ में ‘जजिया कर‘ समाप्त किया गया ।
  • महाराणा जयसिंह ने फव्वारे ( जलयंत्र) तथा महल सहित बाग बनवाया ।
  • महाराणा राजसिंह का निधन 23 सितंबर 1698 ई. में हुआ ।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय का इतिहास ( Maharana Amar Singh Second History in Hindi)

महाराणा अमरसिंह द्वितीय ( 1698-1710 ई.)

  • महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अमरसिंह द्वितीय 28 सितंबर 1698 ई. को मेवाड़ के सिंहासन पर बैठे । इनका विधिवत् राज्याभिषेक 15 जनवरी 1700 ई. को हुआ ।
  • उन्होंने बागड़ व प्रतापगढ़ को पुन: अपने अधीन किया एवं जोधपुर व आमेर को मुगलों से मुक्त करवाकर क्रमश: अजीतसिंह एवं सवाई जयसिंह को वापस वहां का शासक बनाया ।
  • इन्होंने अपनी पुत्री चन्द्रा कँवर का विवाह जयपुर महाराजा सवाई जयसिंह से किया ।
  • इन्होंने औरंगजेब के पुत्रों मुअज्जम एवं शाह आलम के उत्तराधिकार युद्ध में मुअज्जम का पक्ष लिया । जाजव के युद्ध में आजम को हरा मुअज्जम बादशाह शाहआलम बहादुरशाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा ।
  • महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने राज्य के सभी सरदारों की दो श्रेणियां – 16 ( प्रथम श्रेणी ) एवं 32 ( द्वितीय श्रेणी ) नियत कर उनकी जागीरें निर्धारित कर दी ।
  • ये एक अच्छे प्रबंधकर्ता साबित हुए । इन्होंने अमरशाही पगड़ी प्रारंभ की ।
  • महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने अपने समय केवल शिवप्रसन्न अमर विलास महल ( बाड़ी महल) बनवाया ।

महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय का इतिहास ( Maharana Sangram Singh Second History in Hindi)

महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय ( 1710-1734 ई.)

  • महाराणा अमरसिंह द्वितीय के बाद उनके पुत्र संग्रामसिंह द्वितीय 10 दिसंबर 1710 को मेवाड़ के शासक बने । इनका विधिवत् राज्याभिषेक 26 अप्रैल 1711 को हुआ, जिसमें जयपुर के शासक सवाई जयसिंह भी आए थे ।
  • इन्होंने जयपुर नरेश सवाई जयसिंह के साथ मिलकर मराठों के विरुद्ध राजस्थान के राजपूतों को संगठित करने हेतु हुरड़ा सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई थी , परंतु इससे पूर्व ही उनका देहांत हो गया ।
  • इनके द्वारा उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी , सीसारमा गाँव में वैद्यनाथ का विशाल मंदिर , नाहर मगरी के महल, उदयपुर के महलों में चीनी की चित्रशाला आदि बनवाये तथा वैद्यनाथ मंदिर की प्रशस्ति लिखवाई ।
  • कविया करणीदास के काव्य से प्रसन्न हो , इन्होनें उसे लाख पसाव ( लक्ष प्रसाद) दिया ।
  • जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह द्वारा बहकावे में आकर वीर दुर्गादास को मारवाड़ से निकाले जाने पर वह महाराणा संग्रामसिंह की सेवा में आ गया । महाराणा ने उसे विजयपुर की जागीर दी एवं फिर रामपुरा का हाकिम नियुक्त किया । वहीं वीर दुर्गादास का निधन हो गया तथा उज्जैन में क्षिप्रा नदी तट पर उनको अंतिम संस्कार किया गया ।
  • महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय का निधन 11 जनवरी 1734 ई. को हुआ ।
  • कर्नल जेम्स टॉड ने इनके लिये लिखा है कि ‘बापा रावल की गद्दी का गौरव बनाये रखने वाला अंतिम राजा हुआ ।’

महाराणा जगतसिंह द्वितीय का इतिहास ( Maharana Jagat Singh Second History in Hindi)

महाराणा जगतसिंह द्वितीय ( 1734-1751 ई.)

  • महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद जगतसिंह द्वितीय ने 11 जनवरी 1734 ईस्वी को मेवाड़ की सत्ता संभाली ।
  • इनके समय अफगान आक्रमणकारी नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण कर उसे लूटा ।
  • मराठों ने इन्हीं के शासन ने मेवाड़ में पहली बार प्रवेश कर इनसे कर वसूल किया ।
  • जगतसिंह द्वितीय ने पिछोला झील में 1746 में जगतनिवास महल बनवाया ।
  • इनके दरबारी कवि नेकराम ने ‘जगतविलास‘ ग्रंथ लिखा ।
  • इन्होंने मराठों के विरुद्ध राजस्थान के राजाओं को संगठित करने के उद्देश्य से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरड़ा नामक स्थान पर राजाओं ( उदयपुर, जोधपुर, जयपुर, कोटा, बीकानेर, किशनगढ़, नागौर आदि के ) का सम्मेलन आयोजित कर एक शक्तिशाली मराठा विरोधी मंच बनाया , लेकिन यह मंच बाद में निजी स्वार्थों के कारण असफल हो गया ।
  • महाराणा जगतसिंह द्वितीय के समय मेवाड़, कोटा एवं मल्हाराव होल्कर की संयुक्त सेना , जयपुर महाराजा ईश्वरीसिंह की सेना से राजमहल ( टोंक) के युद्ध में 1 मार्च, 1747 ई. को परास्त हुई ।
  • महाराणा जगतसिंह द्वितीय का 5 जून 1751 को देहांत होने पर जेल में कैद उनके पुत्र प्रतापसिंह को सलूंबर के रावत जैतसिंह ने कैद से निकाल कर राजगद्दी पर आसीन किया । परंतु यह मात्र 3 वर्ष ही शासन कर 10 जनवरी 1754 को स्वर्ग सिधार गये । इनके बाद इनके पुत्र राजसिंह द्वितीय मेवाड़ के महाराणा बने तथा 7 वर्ष के बाद 3 अप्रैल 1761 को निधन हो गया ।
  • राजसिंह द्वितीय के नि:संतान स्वर्ग सिधार जाने पर उनके छोटे भाई अरिसिंह 3 अप्रैल 1761 ई. को राजसिंहासन पर बैठाया गया । 9 मार्च 1773 को बूँदी के शासक राव अजीतसिंह ने शिकार खेलते समय धोखे से महाराणा को मार दिया ।
  • इनके बाद इनके पुत्र हम्मीरसिंह द्वितीय मेवाड़ के शासक बने । इनकी माता ने शासन प्रबंध पर अधिकार करने के उद्देश्य से राज्य के निस्वार्थ सेवक अमरचंद बड़वे को विष देकर मरवा दिया । हम्मीरसिंह द्वितीय की 6 जनवरी 1778 को बंदूक फट जाने पर हुए घाव के कारण मृत्यु हो गई ।
  • इनके बाद महाराणा भीमसिंह मेवाड़ के शासक बने ।

महाराणा भीमसिंह का इतिहास ( Maharana Bheem Singh History in Hindi)

महाराणा भीमसिंह ( 1778-1828 ई.)

  • हम्मीरसिंह द्वितीय के अल्पायु में मृत्यु को प्राप्त होने पर उनके बाद उनके छोटे भाई भीमसिंह को 7 जनवरी 1778 ई. को मेवाड़ के सिहासन पर बैठाया गया ।
  • महाराणा भीमसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णाकुमारी का रिश्ता जोधपुर नरेश भीमसिंह से तय किया था, परंतु विवाह से पूर्व ही जोधपुर नरेश की मृत्यु हो जाने के कारण उन्होंने कृष्णाकुमारी का रिश्ता जयपुर नरेश जगतसिंह से तय कर दिया । इस पर मारवाड़ के शासक मानसिंह ने एतराज किया । फलस्वरूप जयपुर शासक जगतसिंह ने भाड़ैत के अमीर खाँ पिण्डारी की सहायता से मार्च 1807 में गिंगोली नामक स्थान पर जोधपुर की सेना को युद्ध में हराया । अन्तत: महाराणा भीमसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णाकुमारी को जहर दे दिया ।
  • 1818 ई. में महाराणा भीमसिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी से अधीनस्थ पार्थक्य संधि कर ली । इस प्रकार मेवाड़ एक विदेशी शक्ति की दासता का शिकार हो गया ।
  • संधि के बाद फरवरी, 1818 में कर्नल जेम्स टॉड पॉलीटिकल एजेंट बनकर उदयपुर आया । उसने मेवाड़ की स्थिति को सुधारने हेतु शासन प्रबंध अपने हाथों में ले लिया । उसने एक समझौता पत्र ( कौलनामा) तैयार कर मेवाड़ के सभी सरदारों से हस्ताक्षर करवा लिए ।
  • महाराणा भीमसिंह का 30 मार्च 1828 को निधन हो गया । इनकी रानी परमेश्वरी ने पिछोला झील के तट पर भीमपद्मेश्वर शिवालय बनवाया ।
  • इनके समय चारण कवि किसना आढ़ा ने ‘भीम विलास‘ ग्रंथ की रचना की । इनके समय भीमगढ़ दुर्ग एवं टॉडगढ़ दुर्ग का निर्माण हुआ ।
  • महाराणा भीमसिंह के बाद उनके कुंवर जवानसिंह मेवाड़ के महाराणा बने । इनके समय 1831 ईस्वी में गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक अजमेर यात्रा के समय महाराणा ने उनसे अजमेर आकर मुलाकात की । इन्हीं महाराणा के समय नेपाल के महाराजा राजेंद्र विक्रम शाह ने अपने पूर्वजों की प्राचीन राजधानी के अवलोकन हेतु अपने प्रतिनिधि उदयपुर भेजें । तब से मेवाड़ के नेपाल से संबंध पुन: बने ।
  • महाराणा जवानसिंह ने पिछोला झील के तट पर जल निवास महल बनवाये । 30 अगस्त 1838 को इनका देहांत हो गया । इनके कोई पुत्र न होने के कारण बागोर के शासक शिवदानसिंह जी के पुत्र सरदारसिंह को मेवाड़ का महाराणा बनाया गया ।
  • सरदारसिंह के समय जनवरी, 1841 ईसवी में खेरवाड़ा में मेवाड़ भील कोर का गठन किया गया ताकि भीलों के उपद्रवों को दबाया जा सके । इसका प्रथम कमांडर कर्नल जेम्स टॉड को माना जाता है ।
  • इनको 1842 में बीमारी से देहांत हो गया ।

महाराणा स्वरूपसिंह का इतिहास ( Maharana Swaroop Singh History in Hindi)

महाराणा स्वरूपसिंह ( 1842-1861 ई.)

  • महाराणा सरदारसिंह के कोई पुत्र नहीं होने के कारण इन्होंने अपने सबसे छोटे भाई स्वरूप सिंह को गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी बनाया । ये 15 जुलाई 1842 को मेवाड़ के शासक बने ।
  • इन्होंने मेवाड़ में जाली सिक्कों के प्रचलन को समाप्त करने हेतु नये स्वरूपशाही सिक्कों का प्रचलन किया । इन सिक्कों पर पृष्ठ भाग पर ‘दोस्ती लंधन‘ एवं अग्र भाग पर ‘चित्रकूट उदयपुर‘ लिखा हुआ है ।
  • इनके समय में कन्या वध पर 1844 ई. एवं डाकन प्रथा पर 1853 में प्रतिबंध लगाया गया । इसके अलावा उन्होंने सती प्रथा पर भी 15 अगस्त 1861 को रोक लगाने का आदेश जारी किया तथा जीवित समाधि प्रथा को भी पाबंद किया ।
  • इनके शासनकाल में विजय स्तंभ पर बिजली गिरने से इसका ऊपरी भाग क्षतिग्रस्त हो गया, जिसे इन्होंने पुननिर्मित करवाया ।
  • 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम इन्हीं महाराणा के काल में हुआ । 16 नवंबर 1861 को बीमारी के कारण उनका देहांत हो गया ।
  • महाराणा स्वरूपसिंह जी ने गोवर्द्धन विलास महल , गोवर्द्धन सागर तालाब , पशुपतेश्वर महादेव मंदिर, जगत शिरोमणि मंदिर बनवाया ।
  • इनकी मृत्यु पर इनकी एक पासवान ऐजांबाई सती हुई , जो इस राजपरिवार में सति होने की अंतिम घटना थी ।

महाराणा शंभुसिंह का इतिहास ( Maharana Shambhu Singh History in Hindi)

महाराणा शंभुसिंह ( 1861-1872 ई.)

  • महाराणा स्वरूपसिंह के कोई पुत्र नहीं होने के कारण उन्होंने अपने भाई के पौत्र शंभुसिंह को दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया , जो 17 नवंबर 1861 को मेवाड़ के राजसिंहासन पर बैठे ।
  • महाराणा की अवयस्कता के कारण पॉलिटिकल एर्जेंट मेजर टेलर की अध्यक्षता में रीजेंसी कौंसिल का गठन कर शासन प्रबंध किया जाने लगा ।
  • इनके काल में सती प्रथा व दास प्रथा , बच्चों के क्रय-विक्रय आदि कुप्रथाओं पर कठोर प्रतिबंध लगाए गए एवं ‘शंभु पलटन‘ नाम से नई सेना का गठन किया गया ।
  • 16 जुलाई 1874 को महाराणा का निधन हो गया । इनके साथ किसी भी रानी को सति नहीं होने दिया गया । मेवाड़ में यह पहले शासक थे जिनके साथ कोई सति नहीं हुई ।

महाराणा सज्जनसिंह का इतिहास ( Maharana Sajjan Singh History in Hindi)

महाराणा सज्जनसिंह ( 1874-1884 ई.)

  • महाराणा शंभुसिंहजी के नि:संतान स्वर्ग सिधार जाने पर बागोर के महाराज शक्तिसिंह जी के पुत्र सज्जन सिंह जी को 8 अक्टूबर 1874 को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया गया ।
  • इनके शासनकाल में गवर्नर जनरल एंड वायसराय लॉर्ड नार्थब्रुक उदयपुर यात्रा पर आये । उदयपुर आने वाले यह पहले गवर्नर जनरल थे ।
  • 1877 ई. में दिल्ली में ब्रिटेन की महारानी के ‘केसर ए हिंद‘ उपाधि ग्रहण करने का भारी महोत्सव हुआ, जिसमें महाराणा भी गये ।
  • महाराणा ने कविराज श्यामलदास की सलाह पद दीवानी , फौजदारी एवं अपील का महकमों की कौंसिल ‘इजलास खास‘ का गठन किया । इसमें 15 सरदार सदस्य थे ।
  • महाराणा ने शहर की व्यवस्था सुचारू करने हेतु पुलिस का प्रबंध किया तथा मौलवी अब्दर्रहमान खाँ को पहला पुलिस सुपरिटेंडेंट नियुक्त किया । महाराणा ने जमीन की पैमाइश करवा कर कृषि बंदोबस्त किया ।
  • 20 अगस्त 1880 को महाराणा ने शासन प्रबंध एवं न्याय कार्य के लिए ‘महेन्द्राज सभा‘ की स्थापना की । इसमें 17 सदस्य थे । इनके समय 1881 ईसवी में प्रथम जनगणना शुरू हुई ।
  • 23 नवंबर 1881 को गवर्नर जनरल लार्ड रिपन ने चित्तौड़ आकर महाराणा को GCSI का खिताब दिया ।
  • महाराणा सज्जनसिंह जी ने अति सुंदर सज्जन निवास उद्यान बनवाया । उन्होंने 1881 में उदयपुर में ‘सज्जन मंत्रालय‘(छापाखाना-प्रिंटिंग प्रेस ) की स्थापना करवाई तथा ‘सज्जन कीर्ति सुधाकर‘ नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ करवाया ।
  • इन्होंने अपने महलों में ‘सज्जनवाणी विलास‘ नामक पुस्तकालय स्थापित करवाया तथा कविराज श्यामलदास को इसका अध्यक्ष बनाया ।
  • महाराणा सज्जनसिंह ने हिंदी साहित्यकार भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र को आग्रह पूर्वक उदयपुर बुलवाया तथा स्वामी दयानंद सरस्वती को भी उदयपुर निमंत्रण किया । महाराणा ने स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर आर्य समाज प्रतिनिधि सभा (परोपकारिणी सभा ) का सभापति का पद स्वीकार किया ।
  • इन्होंने बाँसदरा पहाड़ी पर सज्जनगढ़ पैलेस का निर्माण प्रारंभ किया जो महाराणा फतेह सिंह के समय पूर्ण हुआ ।
  • इन्होंने पिछोला झील के जगनिवास महलों में सज्जन निवास महल बनवाया ।
  • महाराणा ने ‘वॉल्टर जनाना अस्पताल‘ की स्थापना की ।
  • महाराणा सज्जनसिंह जी का निधन 23 दिसंबर 1884 को बीमारी के कारण हो गया ।

महाराणा फतेहसिंह का इतिहास ( Maharana Fateh Singh History in Hindi)

महाराणा फतेहसिंह ( 1884-1930 ई.)

  • महाराणा सज्जनसिंह जी के कोई कुँवर नहीं होने के कारण उनके देहांत के बाद महाराजा सग्रामसिंह द्वितीय के वंशज शिवरती के शासक महाराज दलसिंह के पुत्र फतेहसिंह जी को मेवाड़ का शासन सौंपा गया । इन्हें 23 दिसंबर 1884 को गद्दी पर बैठाया गया ।
  • इनके समय 1885 को गवर्नर जनरल एवं वायसराय लॉर्ड डफरिन उदयपुर आये । इन्होंने 1887 में महारानी विक्टोरिया के शासन के स्वर्ण जयंती पर (50 वर्ष ) सज्जन निवास बाग में ‘विक्टोरिया हॉल‘ का निर्माण करवाया ।
  • सन् 1889 में महारानी विक्टोरिया के पुत्र ड्यूक ऑफ कनॉट आर्थर विलियम पैट्रिक उदयपुर यात्रा पर आये । देवाली के नए बाँध की नींव राजकुमार के हाथों रखवा कर उसका नाम ‘कनॉट बाँध‘ रखा ।
  • महाराणा फतेहसिंह ने फतहसागर झील का निर्माण करवाया ।
  • इनके काल में कुख्यात छप्पनिया अकाल पड़ा ।
  • प्रथम विश्वयुद्ध में इंग्लैंड की मदद करने पर इन्हें सरकार ने GCVO की उपाधि प्रदान की ।
  • इनके शासनकाल में 1904 में प्लेग महामारी तथा 1918 में इन्फ्लूएंजा महामारी से हजारों लोग मारे गये ।
  • 1919 ईस्वी में सम्राट जॉर्ज पंचम के जन्मोत्सव पर फतेह सिंह के पुत्र भूपालसिंह जी को अंग्रेजी सरकार ने KCIE का खिताब प्रदान किया जो राजपूताने में किसी राजकुमार को मिलने वाला पहला ऐसा खिताब था ।
  • उन्होंने 28 जुलाई 1921 को राजकाज के अपने अधिकांश अधिकार राजकुमार भूपाल सिंह को सौंप दिए ।
  • महाराणा फतेहसिंह जी ने ‘मेवाड़ लांसर्स‘ नामक नया स्कवाड्रन ( रिसाला) गठित किया ।
  • 24 मई 1930 ईस्वी को महाराणा का दिल की बीमारी से निधन हो गया । महाराणा फतेहसिंह मेवाड़ के पहले महाराणा थे जिन्होंने केवल एक ही विवाह किया । वे बहु विवाह के पक्के विरोधी थे ।

महाराणा भूपालसिंह का इतिहास ( Maharana Bhupal Singh History in Hindi)

महाराणा भूपालसिंह ( 1930-1948 ई.)

  • महाराणा भूपाल सिंह को 25 मई 1930 को मेवाड़ के सिहासन पर बैठाया गया ।
  • इनके समय में बिजोलिया किसान आंदोलन, बेगू किसान आंदोलन, मेवाड़ प्रजामंडल आंदोलन आदि एवं राजस्थान का एकीकरण हुआ ।
  • 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर रियासत का विलय संयुक्त राजस्थान में हो गया । राजस्थान के एकीकरण के बाद ये राजस्थान के ‘महाराज प्रमुख‘ बनाए गए ।
  • यह सिसोदिया वंश के अंतिम शासक थे ।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

टीका दौड़ :- मेवाड़ में महाराणा या किसी सरदार के गद्दीनशीन होने पर किसी दुश्मन के शहर या इलाके का लूटने का दस्तूर टीका दौड़ कहलाता था ।

➡ Tribes of The Hindukush – कर्नल जॉन बिडल़्फ

➡ मांडल में राजा जगन्नाथ कछवाहा की 32 खंभों वाली छतरी है जिस पर एक प्रशस्ति 1603 ई. की उत्कीर्ण है ।

दुश्मन भंजन तोप :- मेवाड़ के महाराणा अरिसिंह के समय की तोप ।

जनरल ऑक्टरलॉनी को 1818 में राजपूताने के रेजिडेंट बनाये गये ।

रेख :- स्थिर की हुई आमाद ( राजस्व)

भोम :- वंश परंपरागत भूमि जिस पर राज्य द्वारा कर नहीं लिया जाता था ।

महसूल (कर) :- गनीम का बराड़ ( युद्ध विषयक कर), हल बराड़ ( हल का कर) , न्योता बराड़ ( विवाह का कर) ।

➡ किशनगढ़ के शासक सावंतसिंह ( नागरीदास) के रचित काव्य ग्रंथ ‘इश्कचमन‘ के उत्तर में मेवाड़ महाराणा अरिसिंह ने भी ‘रसिक चमन‘ काव्य की रचना की ।

रंगड़ :- राजपूतों के लिए अपमान सूचक शब्द ।

जमीयत :- मेवाड़ सरदारों की सेना ।

सीख सिरोपाव :- महाराणा की सेवा से प्रतिवर्ष दशहरे पर नौकरी समाप्त कर अपने ठिकानों को लौटने वाले सरदारों को महाराणा की तरफ से दिया जाने वाला सिरोपाव ।

अमर बलेणा :- मेवाड़ महाराणा द्वारा स्वयं की ओर से किसी को सम्मान के प्रतीक के तौर पर सदा के लिए दिया जाने वाला घोड़ा ।

➡ मेवाड़ महाराणा भीमसिंह ने शाहपुरा के राजा अमरसिंह को ‘राजाधिराज‘ का खिताब दिया गया था ।

पद्मावत की रचना शेरशाह सूरी के शासनकाल में 1540 ईसवी के लगभग मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा की गई थी ।

➡ मेवाड़ महाराणा राजसिंह प्रथम ने मीणा लोगों के सरदार ‘पीथा’ को भूमि दान देखकर गिर्वा की हिफाजत की जिम्मेदारी दी ।

➡ महाराणा राजसिंह ने सैनिक जीवन की अभिव्यक्ति हेतु ‘विजय कटकातु‘ की उपाधि धारण की ।

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