Maharaja Ajit Singh History in Hindi

महाराजा अजीतसिंह (Maharaja Ajit Singh History in Hindi) का इतिहास

आज हम महाराजा अजीतसिंह (Maharaja Ajit Singh History in Hindi) के इतिहास की बात करेंगे ।

महाराजा अजीतसिंह का जीवन परिचय (History of Maharaja Ajit Singh in Hindi)

महाराजा अजीतसिंह 1708-1724 ई.)

  • 28 नवंबर 1678 को महाराजा जसवंत सिंह का जमरूद (अफगानिस्तान) में निधन हो गया । जमरूद से लौटते हुए लाहौर में जयवंतसिंह की दो रानियों (जसकुँवरी व नरूकी) को 19 फरवरी 1979 को क्रमश: अजीतसिंह और दलथंभण नाम के दो पुत्र हुए । दलथंमण की छोटी अवस्था में मृत्यु हो गई थी ।
  • बादशाह औरंगजेब ने 26 मई 1979 को जसवंतसिंह के बड़े भाई नागौर के स्वामी अमरसिंह के पौत्र इन्द्रसिंह (रायसिंह का पुत्र) को शासक बनाया ।
  • औरंगजेब ने रानियों व अजीत सिंह को कैद कर लिया किंतु वीर दुर्गादास ने गोराधाय व मोहकम सिंह की स्त्री बाघेली की सहायता कैद से छुड़ा लाया । इस कार्य में मेवाड़ महाराणा राजसिंह सिसोदिया ने भी सहायता की । दुर्गादास ने मारवाड़ एवं मेवाड़ के बीच संधि करवाई ।
  • गौराँ धाय को मारवाड़ की पन्नाधाय कहते हैं । गौराँ धाय का नाम मारवाड़ के राष्ट्रीय गीत धूसाँ में शामिल किया गया है ।
  • 20 फरवरी 1707 को बादशाह औरंगजेब का निधन हो गया । औरंगजेब की मृत्यु के समाचार सुनकर अजीतसिंह ने मार्च 1707 में जोधपुर पर सैन्य आक्रमण कर दिया और नायब फौजदार जाफर कुली को भगाकर जोधपुर पर कब्जा किया ।
  • 29 फरवरी 1712 को बादशाह बहादुर शाह का देहांत हो गया । सैयद बंधुओं की सहायता से फर्रूखसियर दिल्ली के तख्त का स्वामी बना ।
  • बादशाह फर्रूखसियर ने अजीतसिंह को ‘राजेश्वर‘ का खिताब दिया था ।
  • इन्दकुंवरी :- महाराजा अजीत सिंह की पुत्री , जिसका विवाह मुगल बादशाह फर्रूखसियर से किया । इन्दकुंवरी ने सैयद बंधुओं की सहायता से 17 अप्रैल 1719 को मुगल बादशाह फर्रूखसियर को मार डाला ।
  • महाराजा अजीतसिंह के समय फर्रूखसियर के बाद तीन बादशाह क्रमश: रफीउद्दरजात, शाहजहाँ द्वितीय और मुहम्मद शाह गद्दी पर बैठे ।
  • 23 जून 1724 को महाराजा अजीतसिंह के पुत्र बख्तसिंह ने उन्हें सोते हुए मार डाला । महाराजा का दाह संस्कार मंडोर में हुआ , जहाँ उनका एक थड़ा (स्मारक) बना हुआ है ।

महाराजा अजीतसिंह के निर्माण कार्य :-

  • जोधपुर दुर्ग में अजीतसिंह ने फतहमहल और दौलतखाने का राजमहल व ख्वाबगाह के महल बनवाये ।
  • मंडोर में उन्होने महाराजा जसवंत सिंह का देवल (जसवंत सिंह रा थड़ा) एवं मंडोर में एक थंभे के आकार का महल बनवाया ।
  • पहाड़ में काटकर बनाई गई वीरों की मूर्तियों वाला दालान सन् 1714 में बनवाया ।
  • जोधपुर किले में स्थित चांदी की पूरे कद की मुरली मनोहर, शिव पार्वती, चतुर्भुज विष्णु और हिंगलाज देवी की मूर्तियां भी 1719 में बनवाई गई ।

महाराजा अजीतसिंह का साहित्य उपलब्धियाँ :-

  • अजीतसिंह एक उच्च कोटि के विद्वान, कवि व लेखक था । इन्होंने गुण सागर , निर्वाण दुहा , भाव निर्मोही आदि ग्रंथों की रचना की ।
  • पंडित श्यायराम ने ‘ब्रह्मांड वर्णन‘ नामक काव्य लिखा ।
  • बालकृष्ण ने ‘अजीत चरित्र‘ की रचना की ।
  • भट्ट जगजीवन ने ‘अजितोदय‘ की रचना की ।

दुर्गादास राठौड़ (Durgadas Rathore)

  • वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म 13 अगस्त 1638 को महाराजा जसवंतसिंह प्रथम के मंत्री आसकरण के यहाँ मारवाड़ के सालवा गांव में हुआ । आसकरण ने मनमुटाव के कारण दुर्गादास तथा उसकी माता का परित्याग कर दिया था तथा उन्हें छोटे से गाँव लूनवा में रख दिया था ।
  • दुर्गादास महाराजा जसवंतसिंह प्रथम की सेवा में चला गया । महाराजा जसवंतसिंह प्रथम के देहांत के बाद राजकुमार अजीतसिंह की रक्षा व उन्हें जोधपुर का राज्य पुन: दिलाने में वीर दुर्गादास राठौड़ का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा ।
  • वीर दुर्गादास मुगलों से 30 वर्ष युद्ध ( 1679-1709) लड़ा । अजीतसिंह के साथ दुर्गादास ने मेवाड़ में शरण ली । औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात अजीतसिंह ने वीर दुर्गादास की मदद से 1707 ई. में जोधपुर पर अधिकार किया ।
  • महाराजा अजीतसिंह ने वीर दुर्गादास को अपने राज्य की निर्वासित कर दिया । वीर दुर्गादास मेवाड़ के शासक अमरसिंह की शरण में तरह चला गया और केलवा की जागीर प्राप्त की ।
  • वीर दुर्गादास को राठौड़ वंश का उद्धारक कहते हैं । दुर्गादास की मृत्यु 22 नवंबर 1718 ई. में हो गई । इनका अंतिम संस्कार क्षिप्रा नदी के तट पर हुआ । वहाँ उनकी एक छतरी बनाई गई है ।
  • जेम्स टॉड ने दुर्गादास को ‘राठौड़ों का यूलीसैस‘ कहा है ।

जोधपुर राज्य (Jodhpur History in Hindi) के राठौड़ वंश का इतिहास में अगली पोस्ट में जोधपुर के राठौड़ शासक अभयसिंह, रामसिंह, बख्तसिंह, विजयसिंह और भीमसिंह के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

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