Bharatpur History in Hindi

भरतपुर (Bharatpur History in Hindi) के जाट वंश का इतिहास

आज हम भरतपुर के जाट वंश के इतिहास (Bharatpur History in Hindi) की बात करेंगे ।

भरतपुर राज्य का इतिहास (History of Bharatpur in Hindi)

  • प्रचलित मान्यतानुसार कस्बे का यह नाम भगवान राम के छोटे भाई ‘भरत’ के नाम पर रखा गया था । भगवान राम के छोटे भाई ‘लक्ष्मण’ भरतपुर के जाट वंश के कुलदेवता हैं तथा इस वंश के कुल चिन्ह एवं राज चिन्ह में लक्ष्मण का नाम अंकित किया जाता था ।
  • स्वतंत्रता के समय राजस्थान में जाटों के अधीन दो रियासतें भरतपुर व धौलपुर थी । इन क्षेत्रों में जाट शक्ति का उद्भव मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में हुआ ।
  • औरंगजेब के समय में सबसे पहला संगठित किसान विद्रोह भरतपुर एवं दिल्ली के जाटों द्वारा ही किया गया था । इस क्षेत्र के जाटों ने राजाराम जाट को अपना मुखिया बनाया और उसी के नेतृत्व में बादशाह से विद्रोह किया ।

गोकुल जाट :- 1669 ई. में मथुरा क्षेत्र के जाटों के जमीदार गोकुल के नेतृत्व में मुगलों के खिलाफ पहला जाट विद्रोह किया । तिलपत के युद्ध में मुगल फौजदार हसन अली खाँ ने जाटों को परास्त किया और गोकुल को बंदी बनाकर मार डाला ।

राजाराम जाट :- 1685 ईस्वी में राजाराम के नेतृत्व में दूसरा जाट विद्रोह हुआ । राजाराम ने सिकंदरा (आगरा) में स्थित अकबर के मकबरे को लूटा और मकबरे से अकबर की हड्डियों को निकालकर हिंदू विधि विधान से उसका दाह संस्कार किया । सन् 1689 ई. में औरंगजेब के पौत्र बीदर बक्श व आमेर के कछवाहा वंश के शासक बिशनसिंह के नेतृत्व में शाही सेना ने राजाराम जाट की सेना को पराजित किया तथा इस युद्ध में राजाराम जाट का देहांत हो गया ।

चूड़ामन जाट :-

  • राजाराम की मौत के बाद जाट विद्रोह की कमान उसके पुत्रों के हाथों में रही , लेकिन उसमें राजाराम जैसी सैनिक निर्णय क्षमता नहीं थी । अत: शीघ्र ही जाट आंदोलन की कमान राजाराम के भतीजे चुड़ामन जाट के हाथों में आ गई ।
  • चूड़ामन ने भरतपुर में जाट राज्य की स्थापना की ।
  • चूड़ामन ने औरंगजेब के समय में ही ‘थून’ में किला बनाकर अपने राज्य को सुदृढ़ कर लिया था ।
  • मुगल बादशाह फर्रूखशियर से जयपुर महाराजा सवाई जयसिंह को 1715 ई. में चूड़ामन के नेतृत्व में जाटों द्वारा किए जा रहे विद्रोह को कुचलने का फरमान मिला । जयसिंह ने सेना सहित चूड़ामन पर आक्रमण किया तथा शाही सेना की विजय होने से कुछ समय पूर्व ही बादशाह के वजीर अब्दुल्ला खाँ ने प्रतिनिधि भेजकर चूड़ामन से संधि करवा ली । इस प्रकार जाटों के विद्रोह का दमन नहीं हो सका ।
  • मुगल बादशाह मुहम्मदशाह ने सवाई जयसिंह को पुन: 1721 में भरतपुर के आसपास के क्षेत्र में उग्र रूप धारण कर चुके जाट विद्रोह का दमन करने का जिम्मा सौंपा । सवाई जयसिंह ने सशक्त आक्रमण किया लेकिन चूड़ामन के नेतृत्व में जाटों ने हमले का करारा जवाब दिया । सवाई जयसिंह ने चूड़ामन जाट के भतीजे बदनसिंह को अपनी ओर मिला लिया और उसकी सहायता से थून के किले पर अधिकार कर उस पर मुग़ल अधिपत्य स्थापित कर दिया । चूड़ामन जाट ने आत्महत्या कर ली ।

बदनसिंह ( 1722-1755 ई.)

  • चूड़ामन जाट के बाद उसका पुत्र मोहकमसिंह जाट विद्रोहियों का नेता बना , परंतु कुछ ही समय में युद्ध कौशल में निपूर्ण व कूटनीति में तेज तर्रार बदनसिंह जाटों का नेता बन गया ।
  • सवाई जयसिंह ने बदनसिंह को डीग की जागीर देकर उसे ‘ब्रजराज’ की उपाधि प्रदान की ।
  • बदनसिंह ने कुम्हेर, डीग एवं वैर में नए किले बनवाये । इसने अपना राज्य आगरा एवं भरतपुर तक विस्तृत कर लिया ।
  • 17 मार्च 1722 ईस्वी को बदनसिंह ने भरतपुर रियासत का गठन कर जाट वंश के शासन की स्थापना की एवं स्वयं वहाँ का राजा बना ।
  • बदनसिंह ने वृंदावन में एक मंदिर एवं डीग के किले में कुछ महलों का निर्माण करवाया ।
  • बदनसिंह के पुत्र सूरजमल ने 1733 ईस्वी में सोंधर (सोगर) के निकट स्थित एक पुरानी गढ़ी से खेमा जाट को भगा कर उसके स्थान पर एक नया व सुदृढ़ दुर्ग बनवाया , जो बाद में भरतपुर का दुर्ग या लोहागढ़ कहलाया एवं इसे भरतपुर राज्य की राजधानी बनाया गया । भरतपुर का दुर्ग (लोहागढ़) अजय दुर्ग था , क्योंकि आज तक इस किले को कोई नहीं जीत पाया था ।
  • बदनसिंह ने वैर (बयाना परगना) के किले में स्थित उद्यान में एक महल का निर्माण करवाया जो सफेद महल के नाम से प्रसिद्ध है और उस बगीचे को नौलखा बाग के नाम से जाना जाता है ।
  • 1725 ईस्वी में डीग के जल महलों का निर्माण करवाया ।

महाराजा सूरजमल ( 1755-1763 ई.)

  • बदनसिंह ने अपने जीवनकाल में ही सन् 1755 ई. में राज्य की बागडोर अपने योग्य पुत्र सूरजमल को सौंप दी ।
  • इस समय इसके राज्य में भरतपुर, मथुरा, आगरा, मेरठ, अलीगढ़ आदि जागीरें शामिल थी ।
  • बुद्धिमता एवं राजनीतिक कुशलता व कूटनीतिक के धनी सूरजमल को ‘जाट जाति का प्लेटो’ ( जाटों का अफलातून ) कहा जाता है ।
  • जयपुर में महाराजा सवाई जयसिंह के देहांत के बाद उत्तराधिकार के मामले में सूरजमल ने सवाई ईश्वर सिंह का साथ देकर जयपुर के सिंहासन पर उन्हें बैठाने में अहम भूमिका निभाई ।
  • उन्होंने सन् 1754 ईस्वी में मराठा सरदार मल्हाराव होल्कर द्वारा कुम्हेर पर किए गए आक्रमण को विफल कर दिया था ।
  • 1761 में अहमदशाह अब्दाली के मराठों के विरुद्ध युद्ध में सूरजमल ने मराठों की सहायता की ।
  • सूरजमल ने 12 जून 1761 को आगरा के किले पर अधिकार कर लिया ।
  • 1763 ईस्वी में नजीब खाँ रोहिला के विरुद्ध युद्ध में सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए ।
  • इन्होंने डीग के महलों का निर्माण करवाया ।
  • महाराजा सूरजमल के समय की जानकारी पुरोहित मंगलसिंह द्वारा रचित ग्रंथ ‘सुजान संवत विलास‘ से प्राप्त होती है ।

महाराजा जवाहर सिंह ( 1764-68 ई.)

  • अपने पिता सूरजमल के देहांत के बाद जवाहरसिंह भरतपुर के राजा बने ।
  • जवाहरसिंह ने विदेशी सेना का निर्माण किया ।
  • इन्हें मराठों, रूहेलों एवं राजपूतों से अनवरत संघर्ष करना पड़ा ।
  • 1764 ईस्वी में जवाहरसिंह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और लाल किले से ‘अष्टधातु के दरवाजे’ लाकर भरतपुर दुर्ग में लगवाए । दिल्ली विजय की स्मृति में ही जवाहारसिंह ने भरतपुर दुर्ग में जवाहारबुर्ज का निर्माण करवाया ।
  • 27 अगस्त 1768 ईस्वी को इनका निधन हो गया ।
  • जवाहरसिंह के बाद उनके भाई रत्नसिंह भरतपुर के राजा बने परंतु वे केवल सात माह ही शासन कर पाए । 11 अप्रैल 1769 ईस्वी को एक मंदिर में इनकी हत्या कर दी गई ।

महाराजा केसरी सिंह ( 1769-77 ई.)

  • रत्नसिंह के देहांत के बाद राजा जवाहरसिंह के पुत्र केहरसिंह (केसरी सिंह) भरतपुर की गद्दी पर बैठे ।
  • इनकी अवयस्कता के समय इनके चाचा नवलसिंह को राज्य के शासन का मुख्तार बनाया गया ।
  • जवाहरसिंह के भाई रणजीतसिंह ने मराठो एवं सिखों की सहायता से भरतपुर का राज्य प्राप्त करने हेतु आक्रमण कर दिया ।
  • मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के अमीर नजफखाँ ने आक्रमण कर भरतपुर पर अधिकार कर लिया । कुछ समय बाद महाराजा सूरजमल की विधवा राजमाता किशोरी देवी के निवेदन पर नजफखाँ ने भरतपुर राज्य के पुनर्गठन का जिम्मा लिया । नजफखाँ ने पुन: केसरी सिंह को राजा बना कर उसके चाचा रणजीतसिंह को राज्य का दीवान बनाया ।
  • 7 अप्रैल 1777 को केहर सिंह का निधन हो गया ।

महाराजा रणजीतसिंह ( 1777-1805 ई.)

  • अपने भतीजे महाराजा केहर सिंह के निधन के बाद रणजीत सिंह को सभी जाट सरदारों ने अपना मुखिया चुना तथा 8 अप्रैल 1777 को रणजीत सिंह भरतपुर के शासक बने ।
  • 1804 ई. में अंग्रेजी सेना ने लॉर्ड लेक के नेतृत्व में मराठा नेता होल्कर पर आक्रमण कर आगरे के दुर्ग को उससे छीन लिया । मराठा नेता होल्कर ने भरतपुर में महाराजा रणजीत सिंह के यहां शरण ली ।
  • अंग्रेजी सेनापति लॉर्ड लेक के उन्हें वापस मांगने पर रणजीत सिंह ने उन्हें वापस देने से इनकार कर दिया । दिसंबर 1804 में लॉर्ड लेक की सेना ने भरतपुर दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया तथा 5 माह तक घेरा डाला रखा परंतु वे दुर्ग को नहीं जीत पाये ।
  • 6 दिसंबर 1805 ईस्वी को महाराजा रणजीत सिंह का निधन हो गया ।

महाराजा रणधीर सिंह ( 1805-26 ई.)

  • महाराजा रणजीत सिंह के बाद उनका पुत्र रणधीर सिंह 7 दिसंबर 1805 को भरतपुर का राजा बना ।
  • इनके शासनकाल में 1817 ईस्वी में भरतपुर की सेना ने पिण्डारियों के विरुद्ध अंग्रेजी सेना की मदद की ।
  • 1818 की संधि के तहत भरतपुर रियासत का अंग्रेजी सरकार द्वारा खिराज माफ किया गया था ।
  • 7 अक्टूबर 1823 ईसवी को इनका निधन हो गया ।
  • रणधीर सिंह के बाद उनके छोटे भाई बलदेवसिंह राज्य के स्वामी बने । इन्होंने रेजिडेंट राजपूताना जनरल डेविड ऑक्टरलोनी को अपने यहां आमंत्रित किया एवं अपने 6 वर्ष के पुत्र बलवंतसिंह की हिफाजत व हिमायत हेतु उनसे निवेदन किया ।
  • 1 मार्च 1824 को महाराजा बलदेव सिंह का देहांत हो गया ।
  • महाराजा बलदेवसिंह के बाद उनके भतीजे दुर्जनशाल ने (लक्ष्मण सिंह के पुत्र ) 13 मार्च 1825 ईसवी को राज्य पर अधिकार कर उनके पुत्र बलवंत सिंह को कैद कर लिया ।
  • डेविड ऑक्टरलोनी ने दुर्जनशाल को सिंहासन से हटाने हेतु अंग्रेजी सेना बुलाई परंतु गवर्नर जनरल लॉर्ड एमहर्स्ट ने इसे परिवारिक मामला मान फौजें भेजने से इनकार कर दिया । इस अपमान को डेविड ऑक्टरलोनी सहन नहीं कर पाये एवं कुछ समय बाद ही उनका देहांत हो गया ।
  • इसके बाद अंग्रेज सेनापति जनरल केम्बरमेयर सेना लेकर भरतपुर आये एवं आक्रमण कर एक माह में दुर्जनशाल से दुर्ग खाली करा लिया तथा उसे गिरफ्तार कर आगरा भेज दिया एवं भरतपुर के सिंहासन पर बलवंत सिंह को बैठा दिया ।

महाराजा बलवंत सिंह ( 1826-53 ई.)

  • अंग्रेजी सेना द्वारा दुर्जनशाल को हटाकर 19 जनवरी 1826 को स्व. बलदेव सिंह के पुत्र बलवंत सिंह को भरतपुर का राजा बना दिया ।
  • इनकी अल्पायु के कारण राज्य का प्रशासन देखने हेतु पॉलिटिकल एर्जेंट की नियुक्ति की गई ।
  • पॉलिटिकल एर्जेंट की रिपोर्ट के कारण महाराजा की माता एवं दीवान बैजनाथ को भरतपुर से बाहर निकाल दिया गया ।
  • 1834 ईसवी में महाराजा के वयस्क होने पर उन्हें अधिकार देकर अंग्रेजी एजेंसी हटा ली गई ।
  • 21 मार्च 1853 ईस्वी को महाराजा बलवंतसिंह का देहांत हो गया ।

महाराजा जसवंत सिंह ( 1853-1893 ई.)

  • अपने पिता बलवंत सिंह के बाद उनके पुत्र जसवंतसिंह 2 वर्ष की आयु में 8 जुलाई 1853 को भरतपुर की राजगद्दी पर बैठाये गये ।
  • 1859 ई. में इनका विवाह पटियाला के महाराजा नरेंद्र सिंह की पुत्री के साथ संपन्न हुआ ।
  • इनके काल में ही 1857 की क्रांति हुई ।
  • इन्हें 1 जनवरी 1877 को अंग्रेज सरकार ने GCSI का खिताब दिया गया ।
  • 22 दिसंबर 1893 ईस्वी को महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र रामसिंह 25 दिसंबर 1893 को भरतपुर की गद्दी पर बैठे ।
  • 1900 ई. में महाराजा रामसिंह ने माउंट आबू में एक नौकर की हत्या कर दी । अत: अंग्रेज सरकार ने उन्हें गद्दी से हटाकर उन्हें दिल्ली छावनी में भेज दिया व उसके अवयस्क पुत्र बालक बृजेंद्र सवाई किशन सिंह को 26 अगस्त 1900 को राजा बना दिया ।
  • 29 अगस्त 1929 ईस्वी को रामसिंह का आगरा में निधन हो गया ।
  • 1919 ई. में बृजेंद्र सवाई किशनसिंह ने सेना का पुनर्गठन किया । उर्दू के स्थान पर हिंदी को राजभाषा बनाया गया ।
  • 1925 ईस्वी में उन्होंने पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा को संबोधित किया ।
  • 1927 में महाराजा ने भरतपुर में हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन करवाया ।
  • 1928 ईस्वी में इन पर अपव्यय का आरोप लगाकर सरकार ने शासन से अलग कर दिया व डीजी मैकजी को राज्य का प्रशासक नियुक्त किया गया ।
  • 27 मार्च 1929 को दिल्ली में बृजेंद्र सवाई किशन सिंह का निधन हो गया ।
  • इसके बाद उनके पुत्र बृजेंद्र सिंह को 14 अप्रैल 1929 को भरतपुर का राजा बनाया गया ।
  • 4 मार्च 1938 को भरतपुर प्रजामंडल का गठन हुआ जिसे सरकार ने अवैध घोषित कर दिया ।
  • देश के स्वतंत्र होने के बाद 18 मार्च 1948 को भरतपुर को मत्स्य संघ में मिला दिया गया ।

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