आज हम धौलपुर के जाट वंश के इतिहास (Dholpur History in Hindi) की बात करेंगे ।
धौलपुर राज्य का इतिहास (History of Dholpur in Hindi)
- धौलपुर राजस्थान का सुदूर पूर्वी छोर है । इसकी सीमाएँ उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश से मिलती है ।
- ऐसी मान्यता है कि दिल्ली के तोमर शासक धवलदेव (धोला) ने धवलपुरी (धौलाडेरा) नामक कस्बा बसाया था जो धौलपुर के नाम से जाना जाता है ।
- पृथ्वीराज चौहान तृतीय के शासनकाल में यह उनके अधीन था । तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद दिल्ली के साथ ही इस क्षेत्र पर भी मुसलमानों का शासन स्थापित हो गया ।
- 1489 ई. में दिल्ली सुल्तान सिकंदर लोदी ने धौलपुर व आसपास के क्षेत्रों पर आक्रमण कर यहाँ के शासकों से खिराज वसूल किया ।
- 1502 ई. में पुन: सिकंदर लोदी ने यहां अपनी सेना भेजी जिसे यहाँ के शासक विनायक देव (ग्वालियर का सामंत ) ने परास्त कर वापस भगा दिया ।
- 1504 ई. में स्वयं सिकंदर लोदी सेना लेकर धौलपुर पर चढ़ आया , तब यहाँ का राजा विनायक देव ग्वालियर चला गया । सिकंदर लोदी ने धौलपुर की गद्दी पर कमरूद्दीन को बैठा दिया ।
- 1517 ई. में मेवाड़ महाराणा सांगा ने दिल्ली सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर धौलपुर, बयाना आदि क्षेत्र अपने अधीन कर लिए ।
- 1526 ईसवी में बाबर ने पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर मुगल वंश के शासन की स्थापना कर दी ।
- 1527 ईस्वी के खानवा के युद्ध में राणा सांगा की सेना पर निर्णायक विजय के बाद बाबर का इन क्षेत्रों पर अधिकार हो गया ।
- शेरशाह सूरी द्वारा दिल्ली पर अधिकार कर लेने पर इन क्षेत्रों पर भी उसका शासन स्थापित हुआ । शेरशाह सूरी ने क्षेत्र में शेरगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया ।
- जहाँगीर के शासनकाल में धौलपुर की जागीर शाही अमीर फतेहाबाद खाँ व महावत खाँ को दी गई थी ।
- शाहजहाँ के पुत्रों औरंगजेब व दारा के बीच उत्तराधिकार का ‘चबूतरा का युद्ध’ धौलपुर के पास ही रणक्षेत्र में हुआ था । इसी युद्ध में बूंदी के शासक रामसिंह की मृत्यु हुई थी ।
- औरंगजेब की मृत्यु के बाद कमजोर हो रही मुगल सत्ता का फायदा उठाकर बहादुरशाह के समय भदौरिया के कल्याणसिंह ने धौलपुर पर कब्जा कर लिया ।
- 1761 ई में धौलपुर पर भरतपुर के महाराजा सूरजमल का अधिकार हो गया ।
- राजस्थान में जाट राजाओं द्वारा शासित 2 राज्यों में से भरतपुर के अलावा दूसरी रियासत धौलपुर थी । धौलपुर के जाट वंश का उद्भव गोहद गाँव से माना जाता है ।
- धौलपुर के जाट वंश के किसी पूर्वज को मराठा सरदार बाजीराव पेशवा की सेवा में रहने से गोहद गाँव का हाकिम बनाया गया था । इन्हीं के वंशज लोकेंद्र सिंह ने 1761 में मराठों की अहमदशाह अब्दाली से पराजय के बाद ग्वालियर पर अपना अधिकार कर मुगल बादशाह से राणा का खिताब हासिल किया ।
- 1767 ई. के लगभग मराठों ने गोहद पर आक्रमण कर वहां के राजा से खिराज वसूल किया । 2 दिसंबर 1779 ई. को अंग्रेज सरकार ने इस इलाके में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से गोहद के शासक लोकेंद्र सिंह को अपने अधीन किया तथा ग्वालियर का दुर्ग भी मराठों से छीन कर उसे दे दिया ।
- 1782 ई. में माधवराव सिंधिया ने आक्रमण कर ग्वालियर व गोहद पर अधिकार कर लिया तथा लोकेंद्र सिंह को कैद में डाल दिया जहां कुछ समय बाद उसका देहांत हो गया ।
- 17 जनवरी 1804 ईसवी को अंग्रेज सरकार ने महादेवजी सिंधिया को हराकर ग्वालियर व गोहद पर अधिकार कर लिया एवं लोकेंद्र सिंह के पुत्र कीर्ति सिंह को गोहद का शासक बना दिया ।
- 22 नवंबर 1804 ईसवी को सिंधिया से अंग्रेज सरकार की संधि हो जाने पर ग्वालियर व गोहद उसे वापस दे दिए गए तथा कीर्तिसिंह को धौलपुर , बाड़ी एवं राजाखेड़ा परगने देकर इसकी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर दी गई । इस प्रकार अंग्रेज सरकार द्वारा जनवरी 1804 ई. में ग्वालियर रियासत के एक भाग से धौलपुर की नई रियासत बना दी गई ।
- 1836 ईसवी में राजा कीर्तिसिंह का निधन हो गया ।
महाराज राणा भगवंत सिंह ( 1836-73 ई.)
- महाराजा कीर्तिसिंह के बाद उनका पुत्र भगवंतसिंह धौलपुर के सिंहासन पर बैठा ।
- 1863 ई. में सर दिनकर राव के भाई गंगाधर राव को राज्य का प्रधान नियुक्त किया गया ।
- इनके शासनकाल में 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ था ।
- 9 फरवरी 1873 को महाराजा राणा भगवंतसिंह का देहांत हो गया ।
महाराजा राणा निहालसिंह ( 1873-1901 ई.)
- महाराजा राणा भगवंत सिंह के निधन के बाद उनके पौत्र निहाल सिंह 9 वर्ष की आयु में फरवरी 1873 को धौलपुर के सिंहासन के स्वामी बने ।
- राज्य का प्रबंध रावराजा सर दिनकर को सौंपा गया । फिर मेजर डेन्ही पॉलिटिकल एजेंट की निगरानी में किया गया । 1884 ई. में राज्य के समस्त अधिकार महाराजा को सौंपे गये ।
- 1901 में महाराजा राणा निहाल सिंह का निधन हो गया ।
- इनके बाद इनके पुत्र रामसिंह को धौलपुर की गद्दी पर बैठाया गया परंतु 1905 ईसवी तक राज्य का शासन कार्य अंग्रेजी अधिकारियों द्वारा ही चलाया गया । 1911 में उनकी मृत्यु हो गई ।
- महाराजा राणा रामसिंह के कोई पुत्र नहीं होने के कारण उनके छोटे भाई उदयभान सिंह को 1911 ई. में धौलपुर का शासक बनाया गया ।
- लंदन में 1931 में हुए प्रथम गोलमेज सम्मेलन में यहां के शासक उदयभान सिंह नरेंद्र मंडल के सदस्य की हैसियत से सम्मिलित हुए ।
- महाराजा राणा उदयभान सिंह 1931 में नरेंद्र मंडल के अध्यक्ष पद हेतु चुनाव लड़ा लेकिन वे पटियाला के महाराजा भूपेंद्रसिंह से पराजित हो गए ।
- 18 मार्च 1948 को धौलपुर का मत्स्य संघ में विलय हो गया और महाराणा उदयभान सिंह को इसका राजप्रमुख बनाया गया ।
महत्वपूर्ण तथ्य :-
➡ राजस्थान में अंग्रेजों द्वारा गठित की गई रियासतें :- (१) धौलपुर (1804) (२) टोंक ( 1817) (३) झालावाड़ (1838)