Karauli History in Hindi

करौली (Karauli History in Hindi) के यादव वंश का इतिहास

आज हम करौली के यादव वंश के इतिहास (Karauli History in Hindi) की बात करेंगे ।

करौली राज्य का इतिहास (History of Karauli in Hindi)

  • राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित वर्तमान करौली जिला स्वतंत्रता से पूर्व करौली रियासत का भाग था । स्वतंत्रता के समय यहाँ यदुवंशी (यादव वंश) शासकों का राज था , जो स्वयं को चंद्रवंशी क्षत्रिय एवं यदुवंशी भगवान श्री कृष्ण के वंशज मानते हैं ।
  • महाजनपद काल में इस क्षेत्र का कुछ भाग मत्स्य जनपद का एवं कुछ भाग सूरसेन जनपद का भाग था । सूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा थी ।
  • 10वीं सदी के उत्तर्रार्द्ध में मथुरा में यदुवंशी राजा विजयपाल राज्य कर रहा था । 983 ई. के आसपास विजयपाल मथुरा को छोड़कर इस पहाड़ी क्षेत्र में आ बसा तथा उसने 995 ईसवी के लगभग इस क्षेत्र में एक दुर्ग ‘विजय मंदिर गढ़’ का निर्माण करवाया तथा अपनी राजधानी बनाया । यही दुर्ग आज बयाना दुर्ग के नाम से जाना जाता है ।
  • 1046 ई. के आसपास गजनी के तुर्क आक्रमणकारियों ने विजय मंदिर गढ़ पर आक्रमण कर उसे बारूद से उड़ा दिया । इसमें विजयपाल के परिवारजन मारे गये तथा बयाना के दुर्ग पर मुसलमानों का अधिकार हो गया ।
  • विजयपाल के सबसे बड़े पुत्र तिमनपाल (तवनपाल) ने बयाना दुर्ग पर मुस्लिम आक्रमण के 12 वर्ष बाद पुन: यहाँ बयाना से 23 किलोमीटर दूरी पर तिमनगढ़ (तवनगढ़) का नया दुर्ग बनवाया ।
  • तिमनपाल के पुत्र धर्मपाल ने अपने शासनकाल में धौलडेरा में जाकर ‘धौलगढ़’ बनवाया, जिसे अब धौलपुर का दुर्ग कहते हैं । इसी के पास धौलपुर शहर बसा हुआ है ।
  • धर्मपाल के पुत्र कंवरपाल ने गोलारी में एक किला बनवाया । मुस्लिमों से युद्ध में धर्मपाल की मौत के बाद कंवरपाल वहाँ से अंधेरा कटोला में चला गया ।
  • कंवरपाल के वंश में 1327 ई. में अर्जुनपाल राज्य की गद्दी पर बैठा । उसने पहले मियां मक्खन को पराजित कर मंदिर (मंडरायल) का किला अपने अधीन किया । उसके बाद पंवारो व दोरों से मित्रता कर अपना इलाका विस्तृत किया । अर्जुनपाल ने 1348 ईसवी के लगभग कल्याणपुर नगर बसाया तथा वहाँ कल्याणपुर जी का मंदिर बनवाया । यही नगर आज करौली के नाम से प्रसिद्ध है । उसने अंजनी माता का मंदिर व गढ़कोट का दुर्ग भी बनवाया ।
  • मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में यहां का शासक गोपालदास था , जो सम्राट अकबर की सेवा में था । बादशाह ने उसे प्रसन्न होकर ‘रणजीत नक्कारा’ दिया था , जो अभी भी करौली राजघराने में मौजूद है ।
  • गोपालदास ने मांचलपुर के दुर्ग में महलों का निर्माण तथा बहादुरगढ़ का किले का निर्माण करवाया ।
  • सन् 1707 ई. में यहां के यदुवंशी शासक धर्मपाल द्वितीय ने करौली को अपनी राजधानी बनाया ।
  • सन् 1750 के आसपास यहाँ का शासक गोपालपाल था । गोपालपाल ने करौली शहर के चारों ओर लाल पत्थर का परकोटा (शहरपनाह), गोपाल मंदिर , नक्कारखाना, नया कल्याण मंदिर एवं मदनमोहन जी का मंदिर बनवाया ।
  • 1753 ई. में गोपालपाल ने मुगल बादशाह मुहम्मदशाह से ‘माही मरातिब’ का खिताब हासिल किया ।
  • 6 फरवरी 1757 ईस्वी को गोपालपाल का देहांत हो गया ।
  • इसके बाद 1804 ईस्वी में गोपालपाल का वंशज हरबख्शपाल करौली का शासक बना । सन् 1812 में नवाब मुहम्मदशाह खाँ से इसका मांची का युद्ध हुआ जिसमें इसने नवाब को पराजित किया ।
  • इसके बाद मराठा नेता सिंधिया ने अपने सेनानायक बैपटिस्ट के नेतृत्व में करौली पर आक्रमण किया जिसे हरबख्शपाल ने खिराज देकर टाला ।
  • 9 नवंबर 1817 को करौली राज्य ने अंग्रेजों के साथ अधीनस्थ पार्थक्य की संधि कर ली ।
  • 1837 ई. में हरबख्शपाल के नि:संतान मर जाने पर प्रतापपाल ( हाड़ौती के राव अमरपाल का पुत्र ) करौली की गद्दी पर बैठा । इनका स्व. हरबख्शपाल की विधवा महारानी से मनमुटाव हो गया । अत: प्रतापपाल करौली शहर छोड़ कर बाहर मंदिर में चले गए । 1849 ईसवी में प्रताप पाल का निधन हो गया ।
  • प्रतापपाल के बाद इन्हीं के रिश्तेदार हाड़ौती कस्बे के राव मदनपाल को 14 मार्च 1854 ईस्वी को गद्दी पर बैठाया ।
  • 1857 ईसवी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में कोटा पर क्रांतिकारियों का अधिकार हो जाने पर करौली के शासक मदनपाल ने महाराजा कोटा की सहायता के लिए अपनी सेना भेजी थी ।
  • 16 अगस्त 1869 ई. को महाराजा मदनपाल का निधन हो गया ।
  • महाराजा मदनपाल के पुत्र न होने के कारण उनका भतीजा लक्ष्मणपाल करौली का शासक बना परंतु 12 सितंबर 1869 को इनका निधन हो जाने पर जयपाल सिंह को करौली का शासक बनाया गया ।
  • जयपाल सिंह ने जयनगर नाम का कस्बा बसाया । 17 नवंबर 1875 में इनकी मृत्यु के बाद इनके रिश्तेदार अर्जुनपाल को 17 जनवरी 1876 को करौली की गद्दी पर बैठाया गया ।
  • महाराजा अर्जुनपाल रियासत का शासन प्रबंध ठीक ढंग से नहीं चला पाया । अत: 1882 ईस्वी में अंग्रेज सरकार ने इन्हें राजकाज से बेदखल कर पॉलिटिकल एर्जेंट को शासन प्रबंध सौंप दिया ।
  • 1886 ई. में अर्जुनपाल का देहांत हो जाने पर उनके दत्तक पुत्र भंवरपाल सितंबर, 1886 में करौली के राजा बने । इनके समय में करौली में रेल लाइन बिछाने का कार्य हुआ ।
  • 1927 ई. में महाराजा भंवरपाल के निधन के बाद उनके रिश्तेदार भोमपाल को करौली का शासक बनाया गया ।
  • भोमपाल के समय में करौली में स्वतंत्रता आंदोलन एवं उत्तरदायी सरकार की स्थापना हेतु प्रयास तेज हुए । 1939 ई. में करौली प्रजामंडल की स्थापना हुई ।
  • अप्रैल 1947 ईस्वी में महाराजा भोमपाल का निधन हो जाने पर गणेशपाल यहां के शासक बने । यह करौली के अंतिम शासक थे ।
  • 18 मार्च 1948 को करौली का मत्स्य संघ में विलय हो गया ।

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