Tonk History in Hindi

टोंक (Tonk History in Hindi) के नवाबों का इतिहास

आज हम टोंक के नवाबों के इतिहास (Tonk History in Hindi) की बात करेंगे ।

टोंक राज्य का इतिहास (History of Tonk in Hindi)

  • रसिया की टेकरी की तलहटी में बसा टोंक प्रारम्भ में टूँकड़ा के नाम से जाना जाता था । इस क्षेत्र के प्रारंभिक निवासी संभवत: मालव थे ।
  • मालवों ने इस क्षेत्र में आकर मालव नगर को अपनी राजधानी बनाया जो अब नगर (नगर फोर्ट) के नाम से जाना जाता है । नगर एवं रेढ़ के उत्खनन में यहाँ मालव जनपद के सिक्के एवं अन्य सामग्रियां मिली है । बाद में यह क्षेत्र गुप्त शासकों के अधीन हो गया ।
  • माना जाता है कि 946 ईसवी के आसपास दिल्ली के तँवर वंशी राजा तुगपाल के चाचा क्षेत्रपाल अपने भतीजे से अप्रसन्न हो इस क्षेत्र में आ गये तथा यहाँ टेकरी की तलहटी में इस कस्बे को बसाया ।
  • कविराज श्यामलदास ने भी अपनी ग्रंथ वीर विनोद में इसका उल्लेख किया है कि 946 ईसवी को रामसिंह ने टोंक कस्बे को बसाया जिसे उस समय टूँकड़ा नाम दिया ।
  • यह भी मान्यता है कि अकबर के समय जयपुर के शासक मानसिंह ने भोला नामक ब्राह्मण को टोकरा परगने के 12 गांव का भूमि दान दिया था , जिसने इन 12 गांवों के समूह को मिलाकर टूँकड़ा नाम दिया था । कालांतर में यह टोंक कहलाने लगा ।
  • सन् 1402 में राव डूंगरसी सोलंकी के टोंक व टोडा का शासक होने का अनुमान है । इसके बाद लल्लन खाँ पठान ने उन्हें पराजित कर यहां अपना अधिकार कर लिया , जिसे डूंगरसी ने मेवाड़ के महाराणा रायमल व खींची चौहान पीपाजी की सहायता से पुन: जीत लिया ।
  • राव डूंगरसी के बाद उनके पुत्र जोगाजी टोंक के तथा रतनसिंह टाडा के शासक बने । राव जोगाजी नेे यहाँ दुर्ग का निर्माण कराया जो भोमगढ़ दुर्ग के नाम से जाना जाता है ।
  • अकबर के शासन काल में यह क्षेत्र मुगल साम्राज्य के अधीन कर लिया गया । अकबर ने टोंक क्षेत्र का प्रबंध करने हेतु मोमिन मन्सूर को टोंक का हाकिम नियुक्त किया ।
  • सम्राट शाहजहाँ ने टोंक व टोडा के क्षेत्र उदयपुर के महाराणा रायसिंह को सौंप दिए । औरंगजेब ने इन परगनों को मुगल खालसे में मिलाने का हुक्म दिया । शहजादा मुअज्जम की सिफारिश पर औरंगजेब ने यह परगना बूँदी नरेश बुद्धसिंह के हवाले कर दिया , जिसे बाद में जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने छीन लिया ।
  • जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह ने 1750 ई. के लगभग टोंक व रामपुरा का इलाका मल्हारराव होल्कर को दे दिया ।
  • 1804 ई. में टोंक व रामपुरा क्षेत्रों पर ब्रिटिश सेना ने अधिकार कर लिया । कुछ समय बाद ही जसवंतराव होल्कर ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर 1806 ई. में अपने सेनानायक अमीर खाँ पिंडारी को सौंप दिया ।
  • 15 नवंबर 1817 ईस्वी को अंग्रेजी सरकार व अमीर खाँ पिंडारी के मध्य संधि हुई , इसके तहत टोंक रियासत की स्थापना की गई एवं अमीर खाँ पिण्डारी को वहाँ का शासक ‘नवाब’ (पहला नवाब) बनाया गया ।
  • टोंक रियासत में राजपूताना एजेंसी के 3 जिले – टोंक , रामपुरा (अलीगढ़) व निम्बाहेड़ा तथा सेंट्रल एजेंसी के 3 जिले – छबड़ा, पिराणा व सिरोंज को शामिल किया गया ।
  • 1834 ई. में अमीर खाँ का इंतकाल हो गया । उसके बाद उसका पुत्र वजीर मोहम्मद (वजीरूद्दौला) खाँ टोंक का नवाब बना ।
  • अमीर खाँ ने टोंक की प्रसिद्ध सुनहरी कोठी एवं जामा मस्जिद के भवन का निर्माण प्रारंभ करवाया तथा वजीरूद्दौला ने 1834 ई. में इनका निर्माण पूर्ण करवाया एवं इन्होंने इसे अपना दीवान-ए-खास बनाया ।
  • नवाब मोहम्मद इब्राहिम खान ने सुनहरी कोठी की दूसरी मंजिल का निर्माण करवाया तथा सुनहरी कोठी एवं जामा मस्जिद में सोने की नायाब नक्काशी एवं चित्रकारी करवाई । तभी से इसका नाम सुनहरी कोठी पड़ा । इसलिए सुनहरी कोठी का निर्माण कर्ता इब्राहिम खाँ को माना जाता है ।
  • नवाब वजीरूद्दौला के शासनकाल में 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ । इस समय इनके सैनिक क्रांतिकारियों से मिल गए तथा नीमच के क्रांतिकारी सैनिकों को टोंक आमंत्रित कर लिया । उन्होंने टोंक के नवाब को किले में कैद कर लिया एवं शहर पर अधिकार कर लिया । टोंक की सेना क्रांतिकारी सैनिकों के साथ दिल्ली चली गयी ।
  • क्रांति के समाप्त होने पर नवाब ने विद्रोही शाहबजादे मुनीर खाँ को कैद में डाल दिया । नवाब वजीरूद्दौला का 1865 ई. में इंतकाल हो गया ।
  • वजीरूद्दौला के बाद उनके शाहबजादे मोहम्मद अली खाँ 1865 ई. में टोंक रियासत के नवाब बने । 28 अगस्त 1867 को इन्हें नवाब पद से हटा दिया गया । ये बाद में बनारस चले गए तथा अंत समय तक वहीं रहे । मोहम्मद अली खाँ के 2 वर्ष के शासनकाल में फारसी की जगह उर्दू को सरकारी कार्य की भाषा बनाया गया तथा स्टांप ड्यूटी अनिवार्य की गई । इसके अलावा रियासत में नवाबी सिक्के ‘चँवरशाही’ का प्रचलन प्रारंभ किया गया ।
  • मोहम्मद अली खाँ के बाद उनके बड़े पुत्र शहजादे हाफिज मोहम्मद इब्राहिम खाँ को 20 दिसंबर 1867 को टोंक का नवाब बनाया गया ।

हाफिज सआदत अली खाँ :- 1930 में टोंक का नवाब बनने के बाद सआदत अली खाँ ने टोंक रियासत के विकास हेतु कई कार्य करवाये । बनास नदी पर पुल का निर्माण करवाया तथा सआदत अस्पताल बनवाया ।

  • इनके काल में 1939 को ‘मुजलिस-ए-आम’ का गठन किया गया जिसमें सरकारी एवं गैर सरकारी कुल 26 सदस्य थे । इनके शासनकाल में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया । उन्होंने घंटाघर , म्युनिसिपल टाउन हॉल आदि का निर्माण करवाया । इनका 23 मई 1947 को देहांत हो गया ।
  • 31 मई 1947 को उनके सौतेले भाई फारुख अली खाँ को टोंक का नवाब बनाया गया । इनके शासनकाल में 25 मार्च 1948 को टोंक रियासत का राजस्थान संघ में विलय हो गया ।

Leave a Reply

Discover more from GK Kitab

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Scroll to Top