Kishangarh History in Hindi

किशनगढ़ (Kishangarh History in Hindi) का इतिहास

आज हम किशनगढ़ के इतिहास (Kishangarh History in Hindi) की बात करेंगे ।

किशनगढ़ राज्य का इतिहास (History of Kishangarh in Hindi)

  • राठौड़ वंश के किशनगढ़ राज्य के संस्थापक महाराजा किशनसिंह (1609-15 ई.) जोधपुर के शासक मोटाराजा राव उदयसिंह के आठवें पुत्र थे ।
  • किशनसिंह ने 1609 ईस्वी में मारवाड़ के पूर्वी छोर ‘सेठोलाव‘ के शासक राव दूदा को पराजित कर अपनी स्वतंत्र जागीर की स्थापना की एवं सेठोलाव को अपनी राजधानी बनाया , जिसे बादशाह जहाँगीर ने तुरन्त इसे अपनी अनुमति प्रदान कर उन्हें खिलअत दी एवं उन्हें महाराजा की उपाधि प्रदान की ।
  • किशनसिंह ने 1612 ई. में किशनगढ़ नगर बसाकर उसे अपनी नई राजधानी बनाया ।
  • मोटाराजा उदयसिंह ने अपनी पुत्री मानमती (किशनसिंह की बहन) का विवाह शहजादे सलीम (जहाँगीर) से किया था ।
  • 21 मई 1615 को किशनसिंह की उसके भतीजे गजसिंह (महाराजा सूरसिंह के पुत्र ) ने हत्या कर दी । इनकी छतरी घूघरा घाटी (अजमेर) में विद्यमान है ।

सहसमल ( 1615-1628 ई.)

  • महाराजा किशन सिंह की हत्या हो जाने के बाद उनका पुत्र सहसमल गद्दी पर बैठा , जो 1628 में स्वर्ग सिधार गया । सहसमल के बाद महाराजा जगमाल सिंह 1628 ईस्वी में किशनगढ़ के शासक बने । 6 फरवरी 1629 को इनका भी देहान्त हो गया ।

महाराजा रूपसिंह :-

  • महाराज जगमालसिंह के निधन के बाद उनके छोटे भाई हरिसिंह किशनगढ़ के सिंहासन पर बैठे । किसी कर्मचारी के विष दे दिए जाने पर इनका 26 अप्रैल 1643 ईस्वी को निधन हो गया ।
  • इसके बाद महाराज रूपसिंह किशनगढ़ के राजा बने । इन्होनें बदख्शां में पठानों के उपद्रवों को शांत कर पठानों से ‘श्याम सुंदर लाल‘ तिरंगा झंडा छीना था , जिसे इन्होनें अपने राज्य का ध्वज बनाया ।
  • इन्होंने रुपनगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया । औरंगजेब के विरुद्ध सामूगढ़ के युद्ध में इन्होनें वीरगति प्राप्त की ।

महाराजा मानसिंह :-

  • महाराजा रूपसिंह के बाद उनके पुत्र मानसिंह किशनगढ़ की गद्दी के स्वामी बने । इनकी बहन चारुमति का विवाह औरंगजेब से करना तय हो गया था परंतु स्वयं चारुमति के बुलाने पर मेवाड़ महाराणा राजसिंह ने स्वयं आकर उससे विवाह किया । मानसिंह ने अपनी छोटी बहन का विवाह औरंगजेब से किया । सन् 1700 में इनकी पाटण में मृत्यु हो गई ।

महाराजा राजसिंह :-

  • मानसिंह के बाद इनके पुत्र महाराजा राजसिंह गद्दी पर बैठे । इन्हें बादशाह बहादुरशाह ने ‘राजसहाय बुलंद मकान महाराजधिराज महाराजा बहादुर राजसिंह’ का खिताब दिया । 1748 ई. में इनका देहांत हो गया ।
  • महाराजा राजसिंह के गुरु रणछोड़दास तथा काव्य गुरु महाकवि वृन्द थे । महाराजा राजसिंह ने ‘बहुविलास’ व ‘रसपाय’ नामक ग्रंथों की रचना की थी । किशनगढ़ की चित्रकला शैली को उन्नत करने में इनका विशेष योगदान रहा था ।

महाराजा सावंतसिंह :-

  • महाराजा राजसिंह के बाद उत्तराधिकार की लड़ाई के कारण इनका राज्याभिषेक दिल्ली में ही हुआ । जोधपुर के शासक बख्तसिंह ने नाराज होकर इन्हें कुमाऊं भेज दिया , जहाँ से ये वृंदावन आकर भगवद्भक्ति में लीन हो गए एवं अपना नाम नागरीदास रख लिया । 1756 ईस्वी को वे पुन: रुपनगढ़ आये । परंतु वे वापस अपनी प्रेयसी बणी ठणी के साथ वृंदावन चले गए । वृंदावन में उनके निवास स्थान को ‘नागरीदास का डेरा’ कहते थे ।
  • किशनगढ़ में इन्होंने देवराज महल (वर्तमान में फूल महल होटल) बनवाया । 28 अगस्त 1764 को इनका वृंदावन में निधन हो गया । इनके पुत्र सरदारसिंह 1756 ई. से ही रूपनगढ़ रियासत का शासन प्रबंध संभाल रहे थे । 10 अप्रैल 1766 ईस्वी को सरदार सिंह जी का निधन हो गया ।
  • महाराज सावंतसिंह (नागरीदास) स्वयं एक अच्छे कवि व साहित्यकार होने के साथ-साथ विद्वानों एवं कवियों के आश्रय दाता थे । महाराज सावंतसिंह की रचनाएं क्रमश: – मनोरथ मंजरी , रसिक रत्नावली , देहदशा, बिहारी चंद्रिका आदि थी ।
  • इनके सभी ग्रंथों का संग्रह 1898 ई. में बीकानेर महाराजा सादुलसिंह की आज्ञा से ‘नागर समुच्चय‘ नाम से सागर यंत्रलाय मुंबई से प्रकाशित किया गया था । ‘नागर समुच्चय’ के तीन भाग (१) वैराग्य सागर (२) श्रृंगार सागर (३) पद सागर थे । अत: 69 ग्रंथों का यह संग्रह था । इनके सभी ग्रंथों का संपादन कर डॉ फैयाज अली द्वारा 1974 ईस्वी में ‘नागरीदास ग्रंथावली’ के नाम से केंद्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली से प्रकाशित करवाया गया ।

महाराजा बिड़दसिंह :-

  • सरदारसिंह के निधन के बाद उनका भतीजा बिड़दसिंह ( बहादुरसिंह का पुत्र ) रूपनगढ़ का शासक बना ।
  • सरदार सिंह के समय किशनगढ़ राज्य के दो हिस्से कर ‘रुपनगढ़’ सरदार सिंह जी को एवं ‘किशनगढ़’ बहादुर सिंह जी को दिया गया था ।
  • 15 फरवरी 1782 को बहादुर सिंह जी का निधन हो गया । इसके बाद उनके पुत्र बिड़दसिंह किशनगढ़ के शासक भी बने । अत: अब रूपनगढ़ व किशनगढ़ को पुन: एकीकृत किशनगढ़ रियासत कर दिया ।
  • बिड़दसिंह 1778 ई. में राजपाट अपने पुत्र प्रतापसिंह के भरोसे छोड़ वृंदावन चले गए , जहाँ 1788 में इनका निधन हो गया । इसके बाद महाराजा प्रतापसिंह 1788 ई. में किशनगढ़ के राजा हुए । 1798 ई. में इनका निधन हो गया ।

महाराजा कल्याण सिंह :-

  • 1798 ई. में किशनगढ़ की गद्दी पर प्रतापसिंह के पुत्र कल्याण सिंह बैठे । इन्होंने 1817 ईस्वी में अंग्रेजों से संधि कर ली । किशनगढ़ से अंग्रेजों द्वारा खिराज न लेना स्वीकार किया गया ।
  • कल्याणसिंह 1822 ईस्वी के लगभग किशनगढ़ राज्य का शासन प्रबंध अपने पुत्र मोहकमसिंह (मौखम) को सौंपकर दिल्ली में मुगल बादशाह के पास चले गए , जहाँ 1838 ई. में इनका निधन हो गया ।
  • कल्याणसिंह के निधन के बाद उनके पुत्र मोहकमसिंह का राज्याभिषेक किया गया । इनका 30 मई 1840 ईस्वी को देहांत हो गया ।

महाराजा पृथ्वी सिंह :-

  • महाराजा मोहकमसिंह के नि:संतान स्वर्ग सिधार जाने पर कचौलिया के ठाकुर भीमसिंह के छोटे पुत्र पृथ्वीसिंह को गोद लेकर 1840 ईस्वी में किशनगढ़ का राजा घोषित किया गया ।
  • पृथ्वीसिंह के समय कौंसिल के स्थान पर राज्य का पहला दीवान (प्रधानमंत्री) अभयसिंह को बनाया गया । इनके समय में 1857 ईसवी का स्वतंत्रता संग्राम हुआ ।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती ने किशनगढ़ राज्य के अलावा राजपूताना के करौली , भरतपुर, धौलपुर, जयपुर, उदयपुर, जोधपुर एवं शाहपुरा रियासतों की यात्रा की थी ।
  • 26 दिसंबर 1879 को महाराजा पृथ्वीसिंह का निधन हो गया ।

महाराजा शार्दुल सिंह :-

  • महाराजा पृथ्वीसिंह के बाद उनके पुत्र महाराजा शार्दुल सिंह किशनगढ़ के राजा बने । इन्होंने अपने पुत्र मदनसिंह के नाम पर किशनगढ़ रेलवे स्टेशन के पास मदनगंज मंडी की स्थापना की ।
  • 1900 ई. में उनका निधन हो गया ।
  • महाराजा शार्दुल सिंह के बाद महाराजा मदनसिंह किशनगढ़ की राज गद्दी पर बैठे । ये पोलो के अच्छे खिलाड़ी थे । इन्होंने किशनगढ़ राज्य में फांसी के दंड को समाप्त कर दिया । इन्होंने अपने अंतिम दिनों में किशनगढ़ में मझेला पैलेस में रहना आरंभ कर दिया था । 1926 ईस्वी में इनका देहांत हो गया ।

महाराजा यज्ञनारायण सिंह :-

  • महाराजा मदनसिंह के कोई पुत्र न होने पर इनके चाचा के पुत्र यज्ञनारायण सिंह 9 दिसंबर 1926 को किशनगढ़ के शासक बने ।
  • 3 फरवरी 1939 को महाराजा यज्ञनारायण सिंह की उत्तराधिकारी के अभाव में स्वर्ग सिधार जाने पर जोरावर के ठाकुर के पुत्र सुमेरसिंह को 24 अप्रैल 1939 को किशनगढ़ का राजा बनाया गया ।
  • 25 मार्च 1948 को किशनगढ़ रियासत का राजस्थान संघ में विलय कर दिया गया । महाराजा सुमेरसिंह को आधुनिक साइकिल पोलो का पिता कहा जाता था ।
  • किशनगढ़ में 1844 ईसवी में कन्या वध प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया ।
  • करकेड़ी की छतरियाँ :- किशनगढ़ सलेमाबाद मार्ग पर करकेड़ी ग्राम में किशनगढ़ के महाराजा जवानसिंह का संगमरमर निर्मित भव्य समाधि स्थल व स्मारक ।

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