Gupt Vansh History Notes in Hindi

गुप्त वंश या गुप्त काल का इतिहास

गुप्त काल (गुप्त साम्राज्य ) Gupt Vansh History Notes in Hindi

गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ । गुप्त वंश का संस्थापक श्री गुप्त था । गुप्त काल को भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ कहा गया है ।

संस्थापक : श्री गुप्त

वास्तविक संस्थापक : चंद्रगुप्त प्रथम

राजधानी : पाटलिपुत्र

अंतिम सम्राट : विष्णुगुप्त

स्रोत :

(1) वायु पुराण
(2) देवी चंद्रगुप्त नाटक
(3) महरौली लौह स्तंभ
(4) प्रयाग प्रशस्ति

उपाधियां :-

भारत का नेपोलियन– समुद्रगुप्त
सौ युद्धों का विजेता –समुद्रगुप्त
शकारि —चंद्रगुप्त द्वितीय
विक्रमादित्य –चंद्रगुप्त द्वितीय
धरणीबंध– समुंद्र गुप्त

गुप्त काल का इतिहास

गुप्त काल के प्रमुख शासक –

श्रीगुप्त (275-300 ई.)

⚪श्रीगुप्त गुप्त वंश का प्रथम राजा व गुप्त वंश का संस्थापक था ।

चंद्रगुप्त प्रथम (319-335 ई.)

⚪गुप्त वंश का प्रथम शक्ति संपन्न सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम था, जिसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की ।

⚪चंद्रगुप्त प्रथम के समय 9 मार्च 319 ई. में ‘गुप्त संवत्’ का प्रारंभ हुआ, जो उनके राज्यारोहण की तिथि है ।

⚪चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवि राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया ।

समुंद्र गुप्त (335-380 ई.)

⚪चंद्रगुप्त प्रथम के बाद उसका पुत्र समुंद्र गुप्त सम्राट बना । प्रयाग प्रशस्ति लेख ,एरण अभिलेख एवं प्राप्त मुद्राओं से समुद्रगुप्त के इतिहास की जानकारी मिलती है ।

⚪इसने आर्यवर्त के नौ शासकों और दक्षिणावर्त के 12 शासकों को पराजित किया । इन्हीं विजयों के कारण डॉ वी.ए.स्मिथ ने समुद्रगुप्त को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा है ।

⚪समुंद्रगुप्त का दरबारी कवि हरिषेण था , जिसने इलाहाबाद प्रशस्ति लेख की रचना की ।

⚪समुंद्रगुप्त विष्णु का उपासक था तथा अश्वमेघकर्ता की उपाधि धारण की ।

⚪यह संगीत प्रेमी था और वीणा वादन करते हुए सिक्के जारी किए ।

⚪समुंद्रगुप्त ने विक्रमंक की उपाधि धारण की, इसे कविराज भी कहा जाता था ।

चंद्रगुप्त द्वितीय ( 380-412 ई.)

⚪चंद्रगुप्त द्वितीय का अन्य नाम देवगुप्त ,देवराज ,देवश्री, तथा उपाधियाँ विक्रमांक, विक्रमादित्य ,परमभागवत आदि थी ।

⚪इनको सांची अभिलेख में ‘देवराज’ एवं वाकाटक लेखों में ‘देवगुप्त’ कहा गया है ।

⚪चंद्रगुप्त-ll के शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फाहियान भारत आया ।

⚪शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चंद्रगुप्त द्वितीय ने चांदी के सिक्के चलाए ।

⚪दिल्ली के निकट महरौली लौह स्तंभ लेख से ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त द्वितीय ने सिंधु नदी पार कर वहलिकों पर विजय प्राप्त की ।

कुमारगुप्त प्रथम (415-454 ई.)

⚪चंद्रगुप्त द्वितीय का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त प्रथम बना ।

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने की थी । इस विश्वविद्यालय को ऑक्सफोर्ड ऑफ महायान बौद्ध कहा जाता है ।

⚪कुमारगुप्त ने महेंद्रादित्य ,श्री महेंद्र तथा अश्वमेघ महेंद्र आदि उपाधियाँ धारण की ।

स्कंदगुप्त ( 455-467 ई.)

⚪स्कंदगुप्त को अभिलेखों में देवराज, विक्रमादित्य ,शक्रोपन कहा गया है ।

⚪इसके शासनकाल में ही हुणों का आक्रमण शुरू हो गया था ।

⚪स्कंदगुप्त ने गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार किया ।

गुप्तकाल की सांस्कृतिक उपलब्धियां

⚪गुप्त राजाओं का शासन काल आर्थिक दृष्टि से समृद्धि एवं संपन्नता का काल माना जाता है । इस काल में कृषि लोगों का मुख्य व्यवसाय था ।

⚪अमरकोष में 12 प्रकार की भूमि का उल्लेख मिलता है ।

⚪कपड़े का निर्माण करना इस काल का सर्वप्रथम उद्योग था । अमरकोष में कताई, बुनाई ,हथकरघा, धागे इत्यादि का संदर्भ आया है ।

⚪मंदसौर अभिलेख से पता चलता है कि रेशम बुनकरों की श्रेणी में एक भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था ।

⚪व्यापारियों की एक समिति होती थी जिसे निगम कहा जाता था । निगम का प्रधान श्रेष्ठि कहलाता था । व्यापारियों के समूह को सार्थ तथा उनके नेताओं को सार्थवाह कहा जाता था ।

⚪सोने के सिक्के को गुप्त अभिलेखों में दीनार कहा जाता था ।

⚪पुलिस विभाग का मुख्य अधिकारी दण्डपाशिक कहलाता था ।

⚪गुप्त काल में उज्जैन सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था ।

⚪गुप्त राजा ने सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएं जारी की जिनको दिनार कहा जाता है ।

⚪गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म के अनुयायी थे । विष्णु का वाहन गरुड़ गुप्तों का राज चिन्ह था ।

संस्कृत गुप्त राजाओं की शासकीय भाषा थी ।

⚪गुप्त काल में चांदी के सिक्कों को रुप्यका का कहा जाता था ।

⚪मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्त काल में ही हुआ था ।

⚪चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कवि कालिदास थे तथा आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरी थे ।

⚪गुप्त काल में विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंचतंत्र को संसार का सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ माना गया है ।

⚪आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम एवं सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ लिखे ।

⚪चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहने वाले प्रमुख विद्वान वराहमिहिर, धन्वंतरि, ब्रह्मगुप्त आदि थे ।

⚪संस्कृतिक उपलब्धियों के कारण गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा गया है ।

गुप्त काल के अभिलेख

प्रयाग प्रशस्ति :- कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति में हमें समुद्रगुप्त की दिग्विजय और उनकी महत्ता के संबंध में वर्णन मिलता है ।

भीतरी अभिलेख :- इसमें स्कंद गुप्त द्वारा हूणों की पराजय तथा पुष्यमित्रों के साथ हुए युद्ध का वर्णन मिलता है । यह गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) में स्थित है ।

मंदसौर अभिलेख :- संस्कृत विद्वान वत्सभट्टी द्वारा रचित इस अभिलेख में कुमारगुप्त के राज्यपाल वन्तुवर्मा और सूर्य मंदिर के निर्माण का उल्लेख है । यह मध्य प्रदेश में दशपुर में स्थित है ।

विलसढ़ का स्तंभ अभिलेख :- इसमें कुमारगुप्त प्रथम तक की वंशावली है । यह कुमारगुप्त प्रथम का प्रथम अभिलेख है ।

जूनागढ़ अभिलेख :- इसमें गुप्त संवत् का उल्लेख है । यह स्कंद गुप्त का महत्वपूर्ण अभिलेख है ,इसमें हूण आक्रमण की सूचना मिलती है ।

एरण अभिलेख :- यह 510 ईसवी का भानु गुप्त का अभिलेख है । इसमें प्रथम बार सती प्रथा का अभीलेखिय साक्ष्य प्राप्त होता है ।

गुप्त काल के प्रमुख मंदिर

स्थान मंदिर /स्तूप
भूमरा (नागोद)शिव मंदिर
तिगवा (जबलपुर)विष्णु मंदिर
देवगढ़ (झांसी)दशावतार मंदिर
शिरपुरलक्ष्मण मंदिर
उदयगिरीविष्णु मंदिर
भीतरगांव (कानपुर )ईटों का मंदिर
सारनाथधमेख स्तूप
नालंदाबौद्ध विहार
खोहशिव मंदिर

गुप्त काल की महत्वपूर्ण रचनाएं

रचनाएंलेखक
ऋतुसंहार, मेघदूत, कुमारसंभव, रघुवंश ,मालविकाग्निमित्रम्, अभिज्ञान शाकुंतलम् , विक्रमोर्वशीयमकालिदास
मुद्राराक्षस, देवीचंद्रगुप्तम्विशाखदत्त
काव्यदर्शन, दशकुमार चरितदण्डिन
स्वप्नवासवदत्ता, चारूदत्ता,अरूभंगभास
पंचतंत्रविष्णु शर्मा
मृच्छकटिकम्शूद्रक
कामसूत्र, न्यायभाष्यवात्सयायन
महायानसूत्रालंकारअसंग
रावण वध ,भट्टी काव्यवत्सभट्टी
वृहत्संहिता, पंचसिद्धांतिकावराहमिहिर
अमरकोषअमरसिंह
आर्यभट्टियम, सूर्य सिद्धांतआर्यभट्ट

Leave a Reply

Discover more from GK Kitab

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Scroll to Top