Marwad ka itihas

महाराणा क्षेत्रसिंह,महाराणा लाखा और महाराणा मोकल का इतिहास

आज हम सिसोदिया वंश के महाराणा क्षेत्रसिंह,महाराणा लाखा और महाराणा मोकल (Marwad ka itihas)के इतिहास की बात करेंगे ।

महाराणा क्षेत्रसिंह (1364-1382 ई.)

  • महाराणा हम्मीर (Maharana Hamir) का उत्तराधिकारी उसका ज्येष्ठ पुत्र क्षेत्रसिंह बना । इसने अजमेर, माण्डल, जहाजपुर एवं छप्पन के प्रदेशों को विजित किया तथा मालवा के सुल्तान दिलावर खाँ गौरी को परास्त किया ।
  • महाराणा क्षेत्रसिंह ने बूँदी के हाडा़ओं को पराजित कर बूँदी को अपने अधीन किया तथा ईडर पर आक्रमण कर वहाँ के शासक रणमल को कैद कर लिया ।
  • इस आक्रमण का उल्लेख कुंभलगढ़ के शिलालेख से ज्ञात होता है ।
  • 1382 ईस्वी में क्षेत्रसिंह का देहावसान हो गया । इसके 7 पुत्र एवं कई औरस पुत्र ( जिनमें चाचा व मेरा भी थे ) हुए ।

महाराणा लाखा ( 1382-1421 ई.) –

Maharana Lakha History in Hindi

  • महाराणा हम्मीर के पौत्र व क्षेत्रसिंह (खेता) के पुत्र लक्षसिंह ( राणा लाखा) सन् 1382 में चित्तौड़ के राज्य शासन पर बैठे ।
  • इनके राजस्व काल में मगरा जिले के जावर गांव में चांदी की खान निकल आई, जिससे चांदी और सीसा बहुत मात्रा में निकलने लगा, जिससे राज्य की आय में अत्यधिक वृद्धि हुई ।
  • महाराणा लाखा के काल में ही एक बनजारे ने पिछोला झील का निर्माण करवाया, जिसके किनारे परवर्ती काल में उदयपुर के राज महलों का निर्माण करवाया गया । इस झील में बीजरी नामक स्थान पर नटनी (गलकी) की स्मृति में ‘नटनी का चबूतरा’ बनाया गया । इसे “स्वरूप सागर झील” भी कहते हैं ।
  • महाराणा लाखा के शासनकाल में मंडोर के शासक राव चूँड़ा का पुत्र राव रणमल अपने पिता से नाराज होकर मेवाड़ की सेवा में आ गया था ।
  • सिसोदिया वंश के एकमात्र शासक जिन्होंने 62 वर्ष की आयु में मारवाड़ के रणमल राठौर की बहन हंसाबाई से विवाह किया ।
  • राव चूड़ा लाखा का पुत्र था, इन्हें भीष्म पितामह की उपाधि प्रदान की गई । अपने पिता के लिए हंसाबाई से विवाह करने से इंकार कर दिया एवं आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली ।
  • रणमल राठौड़ की बहन हंसाबाई के साथ महाराणा लाखा का विवाह हुआ, जिससे महाराणा मोकल का जन्म हुआ ।
  • राजकुमार चूँड़ा के त्याग से प्रसन्न होकर उनके पिता महाराणा लाखा ने चूँड़ा को मोकल का संरक्षक बनाया एवं यह नियम बना दिया कि आगे से मेवाड़ के महाराणाओं के सभी पट्टों, सनदों एवं परवानों पर राजकुमार चूँड़ा व उसके वंशजों के भाले के निशान की छाप अंकित होगी ।
  • झोटिग भट्ट एवं धनेश्वर भट्ट संस्कृत के विद्वान लाखा के दरबारी विद्वान थे ।
  • तारागढ़ (बूँदी ) छद्म अभियान :- बूँदी नरेश हामा जी ( हम्मीर सिंह हाड़ा) से तारागढ़ प्राप्त करने में असफल रहने पर लाखा द्वारा ली गई प्रतिज्ञा – ‘जब तक बूँदी नहीं जीत लूंगा अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा ‘ । मेवाड़ी सरदारों ने लाखा की इस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए मिट्टी का तारागढ़ (चित्तौड़) में बनवाकर लाखा से विजयी करवाया । इस अभियान में नकली तारागढ़ की रक्षा करते हुए कुंभकर्ण हाड़ा ने अपनी जान दी ।
  • महाराणा लाखा की मृत्यु 1421ई. के बाद चूँड़ा ने महाराणा मोकल को राज्य शासन पर बिठाया ।

महाराणा मोकल ( 1421 – 1433 ई.)

Maharana Mokal History in Hindi

  • राज्यभिषेक के समय मोकल की आयु 12 वर्ष होने के कारण मेवाड़ का शासन उसकी ओर से मोकल के बड़े भाई राजकुमार चूड़ा द्वारा सफलतापूर्वक चलाया जाता रहा । परंतु मोकल की माता हंसाबाई द्वारा मारवाड़ से अपने भाई राव रणमल को बुलवा लिया गया । उसके बाद राव रणमल ने धीरे-धीरे मेवाड़ के शासन पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया ।
  • महाराणा मोकल के दरबार में योगेश्वर एवं भट्ट विष्णु जैसे प्रकांड विद्वान एवं फना, वसील एवं मना जैसे कुशल शिल्पी थे ।
  • मोकल ने अपने आराध्य देव एकलिंगजी के मंदिर के चारों ओर परकोटा का निर्माण करवाया ।
  • महाराणा मोकल ने धीरे-धीरे अपनी शक्ति का संगठन कर लिया तथा 1428 ईस्वी में नागौर के शासक फिरोज खां को रामपुर के युद्ध में परास्त कर दिया तथा फिर जालौर व सांभर पर विजय हासिल कर गुजरात के अहमदशाह को हराया । उसके बाद जहाजपुर दुर्ग को जीतकर बूँदी के हाड़ाओं को हराया ।
  • महाराणा मोकल ने समिद्धेश्वर मंदिर ( त्रिभुवन नारायण का मंदिर ) का जीर्णोद्धार करवाया तथा द्वारिकानाथ (विष्णु) का मंदिर बनवाया ।
  • गुजरात द्वारा 1433 ईस्वी में मेवाड़ पर किए गए आक्रमण का मुकाबला करने हेतु सेना सहित जा रहे महाराणा मोकल को धोखे से जीलवाड़ा स्थान पर महाराणा क्षेत्रसिंह की पासवान के पुत्र चाचा और मेरा द्वारा हत्या कर दी गई । इसमें महपा पँवार का भी हाथ था ।
  • मोकल के समय दिल्ली पर सैयद वंश शासक मुबारक शाह का शासन था ।

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