राजपूत राजवंशों की उत्पत्ति में आज हम गुहिल/गहलोत/सिसोदिया वंश (History of Guhils in Hindi) की बात करेंगे । इसमें हम आपको मेवाड़ राज्य का इतिहास ,उसके शासक आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध कराएंगे ।
गुहिल या गहलोत वंश
उदयपुर (मेवाड़) के प्राचीन नाम शिवि,प्राग्वाट, मेदपाट आदि रहे हैं । इस क्षेत्र पर पहले मेद अर्थात् मेव या मेर जाति का अधिकार रहने से इसका नाम मेदपाट (मेवाड़) पड़ा ।
गुहिल वंश की शाखाएँ :-
- राजस्थान के सर्वाधिक प्राचीन राजवंश शुमार गुहिल वंश का शासन राजस्थान ही नहीं बल्कि राज्य के बाहर भी कई स्थानों पर था । प्राप्त शिलालेखों एवं साहित्यिक स्रोतों से गुहिलों की अनेक शाखाओं का शासन होने की जानकारी प्राप्त होती है ।
- मारवाड़ के प्रसिद्ध इतिहासकार मुहणोत नैणसी ने गुहिलों की 24 शाखाओं का जिक्र अपनी ख्यात ‘मुहणोत नैणसी री ख्यात’ में किया है ।
- चित्तौड़गढ़ प्रशस्ति (रावल समरसिंह के समय की ) में गुहिल वंश की अनेक शाखाओं का उल्लेख है ।
- कविराज श्यामलदास ने गुहिलों की 36 शाखाएँ बताई है । इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने भी गुहिल वंश की 24 शाखाओं का होना स्वीकार किया है ।
- गुहिल वंश की प्रमुख शाखाओं में (१) मेवाड़ के गुहिल (२) वागड़ के गुहिल (३) चाटसू के गुहिल (४) धोड़ के गुहिल (५) काठियावाड़ के गुहिल (६) मारवाड़ के गुहिल (७) कल्याणपुर के गुहिल आदि शामिल है ।
- इनके अलावा मेवाड़ के शासक रावल समर सिंह के छोटे पुत्र कर्ण सिंह (13वीं सदी ) ने नेपाल जाकर वहाँ गुहिल वंश का शासन स्थापित किया ।
मेवाड़ राज्य का इतिहास (History of mewar in Hindi)
- चित्तौड़गढ़, उदयपुर, राजसमंद, प्रतापगढ़, शाहपुरा एवं इनके आसपास का क्षेत्र मेवाड़ या मेदपाट कहलाता था । यहाँ गुहिल वंश का शासन सातवीं सदी से प्रारंभ हुआ, जो स्वतंत्रता प्राप्ति तक रहा ।
- शिलालेखों में मेवाड़ के शासकों की वंशावली गुहिल (गुहादत्त) से शुरू होती है । गुहिल के समय का कोई शिलालेख या ताम्रपत्र प्राप्त नहीं हुआ ।
- संवत 1028 के शिलालेख में मेवाड़ में बप्प (बापा) का शासन होने का उल्लेख है । शिलादित्य (शील) का सन् 646 ई. का सामोली का शिलालेख प्राप्त हुआ है, जिसके आधार पर गुहिल का शासनकाल 566 ई. के आसपास माना गया है ।
- भगवान रामचंद्र के पुत्र कुश के वंशजों में से 566 ई. में मेवाड़ में गुहादित्य (गुहिल) नाम का प्रतापी राजा हुआ ,जिसने गुहिल वंश की नींव डाली ।
- संस्कृत ग्रंथों में इनके लिए गुहिलोत, गोभिलपुत्र, गुहिल्ल, गुहिलपुत्र आदि शब्द के प्रयुक्त किये गये है । हिंदी भाषा में इन्हें गुहिल, गोहिल, गैहलोत या गहलोत कहते हैं ।
- उदयपुर के इस राजवंश ने तब से लेकर राजस्थान के निर्माण तक इसी प्रदेश पर राज्य किया । इतने अधिक समय तक एक ही प्रदेश पर राज्य करने वाला संसार में एक मात्र यही राजवंश है ।
- सभी राजा मुगल साम्राज्य की शासन सत्ता के सामने अपनी स्वतंत्रता स्थिर न रख सके और उन्होंने अपने सिर झुका लिए , तब भी नाना प्रकार के कष्ट सहते हुए भी उदयपुर राज्य ने अपनी स्वतंत्रता और कुल गौरव की रक्षा की । यही कारण है कि आज भी उदयपुर के महाराणा “हिन्दुआ सूरज” कहलाते हैं ।
- “जो दृढ़ राखै धर्म को , तिहिं राखै करतार” – उदयपुर के राज्य चिन्ह में अंकित पंक्तियां है ।
- मेवाड़ के शासकों के कुलदेवता एकलिंगजी (शिवजी) है । एकलिंग जी का मंदिर बप्पा रावल ने बनवाया ।
- मेवाड़ के शासकों की कुलदेवी बायण माता है ।
गुहिल /गहलोत/ सिसोदिया वंश के शासक :-
- गुहिल (गुहादित्य)
- बप्पा रावल (734-753 ई.)
- अल्लट
- नरवाहन
- शक्ति कुमार (977-993 ई.)
- रणसिंह (1158 ई.)
- सामंत सिंह
- कुमार सिंह
- जैत्रसिंह (1213-1253 ई.)
- तेजसिंह (1253-1273 ई.)
- समर सिंह (1273-1302 ई.)
- रावल रतन सिंह (1302-03 ई.)
- महाराणा हम्मीर (1326-1364 ई.)
- महाराणा क्षेत्रसिंह (1364-82 ई.)
- महाराणा लाखा ( 1382-1421 ई.)
- महाराणा मोकल ( 1421-1433 ई.)
- महाराणा कुंभा ( 1433-1468 ई.)
- महाराणा उदा (1468-1473 ई.)
- महाराणा रायमल ( 1473-1509 ई.)
- महाराणा साँगा ( 1509-1528 ई.)
- महाराणा रतन सिंह ( 1528-1531 ई.)
- महाराणा विक्रमादित्य ( 1531-36 ई.)
- महाराणा उदय सिंह ( 1537-72 ई.)
- महाराणा प्रताप ( 1572-1597 ई.)
- महाराणा अमरसिंह प्रथम ( 1597-1620 ई.)
- महाराणा कर्ण सिंह ( 1620-1628 ई.)
- महाराणा जगतसिंह प्रथम ( 1628-1652 ई.)
- महाराणा राजसिंह ( 1652-1680 ई.)
- महाराणा जयसिंह ( 1680-1698 ई.)
- महाराणा अमरसिंह द्वितीय ( 1698-1710 ई.)
- महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय ( 1710-1734 ई.)
- महाराणा जगतसिंह द्वितीय ( 1734-1761 ई.)
- महाराणा भीमसिंह ( 1778-1828 ई.)
- महाराणा सरदारसिंह ( 1838-42 ई.)
- महाराणा स्वरूपसिंह ( 1842-61 ई.)
- महाराणा शंभू सिंह ( 1861-72 ई.)
- महाराणा सज्जन सिंह ( 1874-84 ई.)
- महाराणा फतेहसिंह ( 1884-1921 ई.)
- महाराणा भूपालसिंह ( 1930-48 ई.)
मेवाड़ का गुहिल वंश :-
गुहिल (गुहादित्य)
- मेवाड़ के इतिहास की जानकारी गुहिल (गुहादित्य) के काल से प्रारंभ होती है । गुहादित्य ने 566 ईसवी के आसपास मेवाड़ में गुहिल वंश की नींव डाली । इनके पिता का नाम शिलादित्य व माता का नाम पुष्पावती था ।
- गुहादित्य को गुहिल वंश का संस्थापक/ मूल पुरुष/ आदि पुरुष कहते हैं ।
- गुहिल ने हूण वंश के शासक मिहिरकुल को पराजित कर गुहिल वंश की नींव डाली ।
- गुहिल के वंशज शक्तिकुमार के आटपुर (आहड़) अभिलेख (977 ई.) में गुहादित्य के आनंदपुर (वडनगर) से चित्तौड़ आने का उल्लेख है ।
- गुहादित्य का गोत्र विजयप्पा था ,जो गुजरात में पाया जाता है ।
- 1460 ई. की कुंभलगढ़ प्रशस्ति में तथा एकलिंग महात्म्य में भी गुहिल को आनंदपुर से निकले हुए ब्राह्मणवंश को आनंद देने वाला बताया गया है ।
- गुहिल गुजरात से आकर प्रारंभिक में दक्षिणी पश्चिमी मेवाड़ आ बसे । इस क्षेत्र में हमें इनके प्रारंभ के तीन अभिलेख मिले हैं ।
- इनमें पहला अभिलेख किष्किंधा के शासक महाराजा भट्टी के समय का है । दूसरा अभिलेख भाविहिता नामक चीफ के समय का है तथा तीसरा अभिलेख गुहिल शासक भामट के समय का है ।
- गुहिल के उत्तराधिकारियों में क्रमश: भोज,महेंद्र एवं नाग नामक शासक हुए , जिनके बारे में विशेष जानकारी नहीं मिल पाई है ।
- बड़वों व भाटों की ख्यातों में इन्हें भोजादित्य एवं नागादित्य लिखा गया है ।
- ख्यातों के अनुसार गुहिलों की प्रारंभिक राजधानी ‘नागदा’ (नागद्रह) को गुहिल शासक नागादित्य ने ही बसाया था ।
- नागादित्य का उत्तराधिकारी शिलादित्य (शील) हुआ , जिसके समय के सामोली के अभिलेख में इसे प्रतापी व उत्तम शासक बताया गया है ।
- शिलादित्य के बाद शासन की बागडोर अपराजित के हाथों में आई , जिसके समय का अभिलेख का नागदा के कुंडेश्वर मंदिर में (661 ई.) प्राप्त हुआ है ।
- अपराजित के बाद महेंद्र (द्वितीय) मेवाड़ के सिंहासन पर विराजमान हुआ तथा इसके बाद इसका पुत्र ‘कालभोज’ जिसे बापा भी कहा जाता है ।
इस पोस्ट में हमने आपको मेवाड़ के इतिहास के बारे में जानकारी दी ,जिसमें हमने गुहिल वंश (History of Guhils in Hindi) के राजा गुहिल के बारे में वर्णन किया है । अगली पोस्ट में हम बाप्पा या बापा का वर्णन करेंगे ।