Rajasthan Pashudhan gk in Hindi
- राज्य की इस महत्वपूर्ण पशुसंपदा का आंकलन करने हेतु हर पांचवें वर्ष राजस्व मंडल, अजमेर द्वारा पशु गणना की जाती है । नवीनतम 20 वीं पशु गणना 2017 में की गई थी ।
- भारत में प्रथम जनगणना दिसंबर 1919 से अप्रैल 1920 की मध्य हुई थी । राजस्थान में स्वतंत्रता के बाद पहली बार पशु गणना 1951 में की गई ।
- देश का सर्वाधिक पशुधन उत्तर प्रदेश में एवं उसके पश्चात् राजस्थान में पाया जाता है ।
20 वीं पशु जनगणना
- यह राजस्थान में 16 जुलाई, 2017 से प्रारंभ की गई है तथा अंतिम आंकड़े 16 अक्टूबर 2019 को जारी किए गए । यह गणना प्रथम बार डिजिटल पशुगणना थी । राज्य में कुल 56.8 मिलियन (5.68 करोड़) पशुधन एवं 146.23 लाख कुक्कुट हैं । 19वीं पशु गणना 2012 में पशुधन की संख्या 5.77 करोड़ थी , इस प्रकार 20वीं पशु गणना में 1.66% की कमी आई है ।
- राजस्थान में पशु घनत्व 166 प्रति वर्ग किलोमीटर है । राजस्थान में सर्वाधिक पशु घनत्व दौसा ( 292), राजसमंद ( 292) तथा डूंगरपुर ( 289) में है । राजस्थान में न्यूनतम पशु घनत्व जैसलमेर (83) , बीकानेर ( 102) तथा चुरू ( 110) में है ।
- राज्य का सर्वाधिक पशुधन क्रमश: बाड़मेर ( 53.66 लाख) तथा जोधपुर ( 35.90 लाख ) में है , जबकि न्यूनतम पशुधन धौलपुर ( 5.29 लाख) में है ।
- देश के कुल पशुधन का 10.58% पशुधन राजस्थान में उपलब्ध है । यहां देश का 7.20 प्रतिशत गौवंश, 12.47 प्रतिशत भैंस , 14 प्रतिशत बकरी , 10.64 प्रतिशत भेड़ तथा 84.43 प्रतिशत ऊँट उपलब्ध है । राष्ट्रीय उत्पादन में राज्य का योगदान , दूध उत्पाद में 12.6 प्रतिशत एवं ऊन में 34.46 प्रतिशत है ।
- नई गणना के आंकड़ों के मुताबिक 2012 के मुकाबले गायों की जनसंख्या में 4.41% , भैंसो की जनसंख्या में 5.53% , खरगोश की जनसंख्या में 21.51% , मुर्गी- मुर्गों की जनसंख्या में 82.23% की बढो़तरी हुई ।
- ऊंट की संख्या में 34.69%, घोड़ों की जनसंख्या में 10.85% व बकरी की जनसंख्या में 3.81% की कमी आई हैं ।
पशु | कुल संख्या (मिलियन) | देश में स्थान | देश में सर्वाधिक | राज्य में सर्वाधिक | राज्य में न्यूनतम |
बकरी | 20.84 | प्रथम | राजस्थान | बाड़मेर | धौलपुर |
गाय | 13.9 | छठा | पश्चिम बंगाल | उदयपुर | धौलपुर |
भैंस | 13.7 | दूसरा | उत्तर प्रदेश | जयपुर | जैसलमेर |
भेड़ | 7.9 | चौथा | तेलंगाना | बाड़मेर | बांसवाड़ा |
ऊँट | 2.13 | प्रथम | राजस्थान | जैसलमेर | प्रतापगढ़ |
गधे | 0.23 | पहला | राजस्थान | बाड़मेर | टोंक |
घोड़े | 0.34 | तीसरा | उत्तर प्रदेश | बीकानेर | डूंगरपुर |
राजस्थान में पशुधन ( Rajasthan mein Pashudhan)
गौवंश |
(1) गीर प्राप्ति क्षेत्र – अजमेर, भीलवाड़ा, किशनगढ़, चित्तौड़गढ़, बूंदीविशेषता – मूल रूप से गुजरात के गिर वन में पाई जाने वाली यह नस्ल राजस्थान में रैंडा तथा अजमेर में अजमेरा नाम से जानी जाती है । यह द्विप्रयोजनीय नस्ल है । इस गाय के कान केले के पत्तों जैसे होते हैं । यह गाय अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध है । इसके उपनाम – काठियावाड़़ी , सूरती व डेक्कने है । (2) थारपारकर प्राप्ति क्षेत्र – जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, जालौर विशेषता – इस नस्ल का उत्पत्ति स्थल मालाणी प्रदेश (बाड़मेर) है । बैल कम परिश्रमी परंतु गायें अधिक दूध देने वाली होती है । यह गाय प्रतिदिन लगभग 11 से 14 लीटर दूध देती है । यह गाय मूलत: कराची (पाकिस्तान) के पास थारपारकर जिले की है । थारपारकर गाय गुजरात व राजस्थान में पाई जाती है , इसे उजली सिंधी कहते हैं । (3) नागौरी प्राप्ति स्थल – नागौर, जोधपुर जिले का उत्तरी पूर्वी भाग व नोखा ( बीकानेर ) विशेषता – इसकी उत्पत्ति स्थल नागौर जिले का सुहालक प्रदेश माना जाता है । नागौरी बेल दौड़ने में तेज, मजबूत, भार वाहन तथा कृषि कार्यों में उत्तम क्षमता वाला होता है । इस नस्ल रंग सफेद तथा भूरा होता है । (4) राठी प्राप्ति क्षेत्र – बीकानेर, श्रीगंगानगर, जैसलमेर व चुरू के कुछ भाग विशेषता – दूध उत्पादन की दृष्टि से श्रेष्ठ नस्ल । गाय की नस्ल “राजस्थान की कामधेनु” मानी जाती है । यह गाय लाल सिंधी व साहिवाल की मिश्रित नस्ल है । (5) कांकरेज प्राप्ती स्थल – बाड़मेर सांचौर व नेहड़ क्षेत्र (जालौर ) व जोधपुर के कुछ भाग विशेषता – इसे सांचोरी नस्ल भी कहा जाता है । जालौर, सिरोही, पाली तथा बाड़मेर जिले में पाई जाने वाली भारत की सबसे भारी नस्ल है । इसका मूल स्थान गुजरात का कच्छ का रण है । यह बैल अधिक बोझा ढोने, कठोर भूमि को जोतने व तीव्र गति के लिए प्रसिद्ध है । (6) हरियाणवी प्राप्ति क्षेत्र – सीकर, झुंझुनू, जयपुर, गंगानगर, हनुमानगढ़ व चुरु विशेषता – इस नस्ल के गोवंश की मस्तिष्क के मध्य हड्डी उठी होती है । औसत 5 से 8 किलोग्राम दूध देती है । इसका मूल स्थान- रोहतक, हिसार व गुड़गांव है । (7) मालवी प्राप्ति क्षेत्र – झालावाड़, डुँगरपुर, बांसवाड़ा कोटा व उदयपुर विशेषता – इसका मूल स्थान झालावाड़ का मालवी क्षेत्र है तथा यह भारवाही नस्ल है । (8) साँचोरी प्राप्ति क्षेत्र – सांचौर, उदयपुर, पाली, सिरोही (9) मेवाती प्राप्ति क्षेत्र – अलवर, भरतपुर विशेषता – इसे कोठी नस्ल भी कहा जाता है । यह हल जोतने व बोझा ढोने हेतु उपयुक्त । विदेशी नस्ल – ➡ जर्सी – मध्य एवं पूर्वी राजस्थान में पाई जाती है । इसकी उत्पत्ति अमेरिका में हुई । इसके दूध में वसा की मात्रा 4% होती है । ➡ हॉलिस्टिन – मध्य व पुर्वी राजस्थान में पाई जाती है । इसकी उत्पत्ति हॉलैण्ड तथा अमेरिका है । इसके शरीर पर काले सफेद चकत्ते होते हैं । ➡ रेड डेन – इसकी उत्पत्ति डेनमार्क में हुई । |
भैंस |
(1) जाफराबादी प्राप्ति क्षेत्र – राजस्थान के दक्षिणी भाग में विशेषता – इसका मूल निवास स्थान गुजरात का काठियावाड़ है । यह नस्ल ‘ श्रेष्ठ मादा जानवर का पुरस्कार” जीत चुकी है । (2) मुर्रा (खुंडी) प्राप्ति क्षेत्र – जयपुर, उदयपुर, अलवर, गंगानगर व भरतपुर विशेषता – यह मांटगुमरी/ मुल्तान ( पाकिस्तान) की मूल नस्ल है । राज्य में सर्वाधिक भैंसे इस नस्ल की है । दूध उत्पादन की दृष्टि से श्रेष्ठ नस्ल । इस नस्ल की भैंस के दूध में वसा की मात्रा ( 7-8℅) सर्वाधिक होती है । मुर्रा भैंस को देहली बफैलो कहते हैं । (3) सूरती प्राप्ति क्षेत्र– उदयपुर व उसके आसपास के दक्षिणी भाग में विशेषता – यह गुजरात की नस्ल है । (4) मेहसाणा प्राप्ति क्षेत्र – सिरोही व जालौर जिले में विशेषता – यह नस्ल मुर्रा और सूरती की नस्लों के संयोग से बनी है । ➡ अन्य नस्लें – नागपुरी, बदावरी व रथ |
भेंड़ |
(1) मालपुरी प्राप्ति क्षेत्र – जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर, अजमेर, बूंदी ,भीलवाड़ा विशेषता – इसे देशी नस्ल भी कहा जाता है । इसकी ऊन मोटी होने के कारण गलीचे के लिए उपयुक्त होती है । (2) चोकला या शेखावाटी प्राप्ति क्षेत्र – झुंझुनू, सीकर , चुरू , बीकानेर व जयपुर के कुछ भाग में विशेषता – यह छापरर तथा शेखावाटी नस्ल के नाम से भी जानी जाती है । यह रूस की नस्ल है । इसे “भारत की मेरिनो” भी कहा जाता है । यह सबसे उत्तम किस्म कि ऊन देने वाली नस्ल है । (3) सोनाड़ी ( चनोथर) प्राप्ति क्षेत्र – उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा व भीलवाड़ा विशेषता – यह द्वि-परियोजनीय नस्ल है । इस भेड़ का उपयोग मुख्य रूप से माँस प्राप्ति के लिए किया जाता है । (4) नाली प्राप्ति क्षेत्र – गंगानगर, झुंझुनू, सीकर, बीकानेर व चुरू विशेषता – इनकी ऊन मोटी,घनी एवं सफेद रेशे वाली होती है । यह अधिक ऊन के लिए प्रसिद्ध है । ऊन का रेशा 10 से 14 सेमी लंबा होता है । (5) पूगल प्राप्ति क्षेत्र – जैसलमेर, नागौर व बीकानेर का पश्चिमी भाग विशेषता – इसकी उत्पत्ति स्थान बीकानेर की तहसील पूगल होने के कारण इसी के नाम से इस नस्ल का नाम पूगल हो गया । यह ऊन मध्यम श्रेणी की सफेद होती है । (6) मगरा प्राप्ति क्षेत्र – बीकानेर, जैसलमेर व सीमावर्ती नागौर जिला विशेषता – इसकी ऊन मध्यम श्रेणी की होती है । इसे चकरी तथा बीकानेरी चोकला भी कहा जाता है । (7) मारवाड़ी प्राप्ति क्षेत्र – जोधपुर, बाड़मेर, नागौर, पाली, सिरोही विशेषता – राजस्थान की कुल भेड़ों में सर्वाधिक भेड़े मारवाड़ी नस्ल की है । इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है । (8) जैसलमेरी प्राप्ति क्षेत्र – जैसलमेर, जोधपुर व बाड़मेर का पश्चिमी भाग विशेषता – सबसे लंबी और सर्वाधिक दूध देने वाली नस्ल है । राजस्थान में सबसे ज्यादा ऊन इसी नस्ल से प्राप्त होती है । इसकी ऊन मोटी तथा लंबे रेशे वाली होती है । इस नस्ल की भेड़ों का मुंह काला तथा भूरा होता है । (9) खेरी प्राप्ति क्षेत्र – जोधपुर, पाली एवं नागौर विशेषता – ऊन गलीचे के लिए उपयुक्त । विदेशी नस्लें – ➡ रूसी मेरिनो – टोंक, जयपुर ,सीकर |
बकरियाँ |
(1) मारवाड़ी ( लोही ) प्राप्ति क्षेत्र – उत्तरी पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थल व अर्द्धमरूस्थलीय क्षेत्र विशेषता – राज्य की सबसे पुरानी नस्ल । दूध तथा मांस उत्पादन की दृष्टि से उत्तम नस्ल है । (2) बारबरी प्राप्ति क्षेत्र – अलवर, बांसवाड़ा, भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुर, धौलपुर विशेषता – सर्वाधिक सुंदर नस्ल । (3) जखराना ( अलवरी ) प्राप्ति क्षेत्र – अलवर विशेषता – सर्वाधिक दूध देने वाली नस्ल । मूल स्थान- बहरोड (अलवर ) । (4) सिरोही प्राप्ति क्षेत्र – सिरोही, जालौर, उदयपुर व अजमेर विशेषता – मांस के लिए उपयुक्त । (5) शेखावाटी प्राप्ति क्षेत्र – सीकर व झुंझुनूं विशेषता – बिना सींग वाली व अच्छा दूध देने वाली नस्ल । काजरी के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित । (6) परबतसरी प्राप्ति क्षेत्र – परबतसर, अजमेर, जयपुर, टोंक विशेषता – हरियाणा की बीछल व राजस्थान की सिरोही नस्ल का मिश्रण । (7) जमुनापरी प्राप्ति क्षेत्र – कोटा, बूंदी, झालावाड़ विशेषता – दूध देने के लिए प्रसिद्ध बकरी की नस्ल , बहुप्रयोजनीय नस्ल है । यह भार ढोने,माँस तथा दूध के लिए उपयोगी है । |
ऊँट |
(1) बीकानेरी प्राप्ति क्षेत्र – बीकानेर, नागौर, जोधपुर, चूरू, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ विशेषता – बोझा ढोने व हल जोतने हेतु प्रसिद्ध नस्ल । (2) जैसलमेरी प्राप्ति क्षेत्र – जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर का दक्षिणी भाग । विशेषता – यह ऊंट सवारी एवं रेतीले भाग में दौड़ के लिए प्रसिद्ध है । ➡ अन्य नस्लें – मारवाड़ी, जोधपुर, सिंधी, कच्छी, अलवरी । |
घोड़ा |
(1) मालाणी प्राप्ति क्षेत्र – जोधपुर, जालौर, सिवाना (बाड़मेर ) विशेषता – घोड़े की श्रेष्ठ नस्ल । काठियावाड़ी तथा सिंधी नस्ल के मिश्रण से उत्पन्न । घुड़दौड़ के लिए देश की उत्तम नस्लों में से एक । (2) मारवाड़ी प्राप्ति क्षेत्र – मारवाड़ क्षेत्र विशेषता – राजस्थान में सर्वाधिक अश्व इसी नस्ल के हैं । (3) काठियावाड़ी प्राप्ति क्षेत्र – गुजरात से लगे हुए राज्य के क्षेत्र विशेषता – इस नस्ल के घोड़े सुंदर, मजबूत कद- काठी तथा दौड़ने के लिए उत्तम होते हैं । इस नस्ल का सिर अरबी घोड़े से मिलता है । |
सुअर
भारत में सर्वाधिक सूअर उत्तर प्रदेश में है ।
राजस्थान में सर्वाधिक सुअर जयपुर तथा सबसे कम बांसवाड़ा में है ।
अलवर में लार्ज व्हाइट योर्कशायर सुअर पाले जाते हैं ।
कुक्कुट /मुर्गी
- उन्नत नस्ल की सर्वाधिक मुर्गियां अजमेर, उदयपुर, भीलवाड़ा एवं जयपुर में पाई जाती है ।
- राजस्थान में पाई जाने वाली विदेशी नस्ल की मुर्गीयाँ असील व सफेद लेग हॉर्न है ।
- राजस्थान में पाई जाने वाली मुर्गी की देसी नस्लें ट्रैनी व बरसा है ।
- देसी नस्ल की सर्वाधिक मुर्गियां बांसवाड़ा में पाई जाती है ।
- संकर नस्ल की मुर्गियाँ सर्वाधिक अजमेर में पाई जाती है ।
- अजमेर को राजस्थान का अंडे की टोकरी के नाम से जाना जाता है ।
- बर्ड फ्लू मुर्गियों में होने वाला रोग है ।
- रानीखेत मुर्गियों का रोग है ।
- मुर्गी की नसबंदी को डिबींकिग कहते हैं ।
मत्स्य पालन
- राजस्थान मत्स्य अधिनियम 1953 में पारित किया गया ।
- उदयपुर में मत्स्य सर्वेक्षण व अनुसंधान केंद्र 1958 में स्थापित किया गया ।
- राजस्थान में स्वतंत्र मत्स्य विभाग की स्थापना 1982 में की गई ।
- बांसवाड़ा में पहली बार संवल प्रजाति की मछली को मोनोकल्चर द्वारा पौंड निर्माण कर पाला जा रहा है ।
- उदयपुर के बड़ा तालाब में पहला मत्स्य अभ्यारण्य बनाया है ।
- मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय उदयपुर में है ।
- मत्स्य पालन केंद्र – बांसवाड़ा, राजसमंद, उदयपुर, हनुमानगढ़ और भरतपुर ।
- जलाशयों व पोखरों में मच्छरों की संख्या को नियंत्रण करने हेतु गंबूचिया मछलियाँ छोड़ी जाती है ।
राजस्थान में डेयरी विकास
- राजस्थान सहकारी दुग्ध संघ की स्थापना 1973 में की गई ।
- डेयरी से संबंधित श्वेत क्रांति तथा ऑपरेशन फ्लड है ।
- सर्वाधिक दुग्ध संकलन कर्ता संघ बीकानेर है ।
- अजमेर स्थित राजस्थान की सबसे पुरानी डेयरी पद्मा डेयरी है ।
- बस्सी (जयपुर) में राज्य की पहली मेट्रो डेयरी स्थापित की गई है ।
- बीकानेर में भारत की प्रथम केंमल मिल्क डेयरी खोली गई है ।
- राजस्थान को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन द्वारा भरतपुर और करौली जिले में नई डेयरी प्लांट की स्थापना की जा रही है ।
- राजस्थान में डेयरी का विकास भी सहकारिता के आधार पर हुआ है ।
- राजस्थान राज्य सहकारी डेयरी फेडरेशन का नाम 1977 ईस्वी में राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन कर दिया गया । इसका मुख्यालय जयपुर में है ।
- जयपुर में एक टेट्रापैक दुग्ध संयंत्र ( सरस डेयरी ) कार्यरत है ।
- राजस्थान में सर्वाधिक दुग्ध जयपुर, अलवर व सबसे कम बांसवाड़ा जिले में उत्पादित होता है ।
- राजस्थान का दुग्ध विज्ञान महाविद्यालय उदयपुर में स्थापित है ।
- 2002-03 में निजी क्षेत्र का राज्य के पहले पशु विज्ञान व चिकित्सा महाविद्यालय की स्थापना जयपुर में अपोलो कॉलेज ऑफ वेटरनरी मेडिसिन के नाम से स्थापित किया गया है ।
- बीकानेर जिले के भोजासर गांव में राजस्थान की पहली महिला दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति खोली गई है ।
पशु विकास योजनाएँ
(1) मुख्यमंत्री पशुधन निशुल्क दवा योजना – 15 अगस्त 2012
(2) अविका क्रेडिट कार्ड योजना , अविका कवच योजना ( 2004-05 )
(3) एडमास योजना – 1 अप्रैल 1999
(4) कामधेनु (हीफर) की परियोजना – 1997- 98
(5) गोपाल योजना – 2 अक्टूबर 1990 ( दक्षिण- पूर्वी 10 जिले )
(6) कड़कनाथ योजना – बांसवाड़ा जिले में
राजस्थान के पशु संस्थान
- 13 अप्रैल 2005 को राजस्थान राज्य पशुपालन कल्याण बोर्ड का गठन ।
- जामड़ोली (जयपुर ) – यहां राजस्थान पशुधन विकास बोर्ड का गठन 25 मार्च 1998 को किया गया । पशु पोषाहार संस्थान की जामडोली में वर्ष 1991 में स्थापना की गई ।
- जयपुर – यहां राज्य गौ सेवा आयोग की स्थापना 23 मार्च 1995 को की गई । राजस्थान गौशाला पिंजरपोल संघ स्थित है ।
- बनीपार्क (जयपुर ) – भारतीय पशुपालन विकास एवं अनुसंधान संस्थान लिमिटेड
- दुर्गापुरा (जयपुर ) – राज्य का पहला बायो सीएनजी प्लांट ।
- हिंगोनिया गौशाला – जयपुर में स्थित है, यहां गोमूत्र से ऑर्गेनिक फिनाइल बनाया जाएगा ।
- मोहनगढ़ (जैसलमेर ) – वृहद चारा बीज उत्पादन फार्म ।
- अकलेरा व डग (झालावाड़ ) – अवशीतन केंद्र
- पाली – यहां कैटल फीड प्लांट स्थित है ।
- जोहड़बीड़ (बीकानेर) – गिद्धों के लिए प्रदेश का पहला कंजर्वेशन रिजर्व क्षेत्र ।
- अजमेर – इस संभाग में गो अभ्यारण स्थापित करने जा रहा है । अजमेर में पहला हेरिटेज जीन स्थापित है ।
- चूरू – यहां पशुपालन जीन की स्थापना की जाएगी ।
- अलवर – यहां राजकीय सूअर फार्म स्थापित है ।
- पशु आहार संयंत्र – जोधपुर, लालगढ़ (बीकानेर ), नदबई (भरतपुर ) व तबीजी (अजमेर ), झोटवाड़ा (जयपुर ) ।
- बीकानेर – यहां स्थित केंद्रीय अश्व उत्पादन परिषद में चेतक घोड़े के वंशज तैयार किए जाएंगे ।
राजस्थान में पशु प्रजनन केंद्र
- गोवर्धन फार्म बस्सी (जयपुर ) – यहां संचालित सीमन बैंक हिमानीकृत वीर्य बनाने वाला राज्य का एकमात्र केंद्र है ।
- उरमूल डेयरी – बीकानेर
- गोवत्स परिपालन केंद्र – नोहर (हनुमानगढ़ )
- बुल मदर फार्म – चाँदन गांव (जैसलमेर )
- पशुधन अनुसंधान केंद्र – वल्लभनगर (उदयपुर )
- केंद्रीय पशु प्रजनन केंद्र – सूरतगढ़ (गंगानगर )
- राष्ट्रीय ऊष्ट्र अनुसंधान केंद्र – जोहड़बीर (बीकानेर )
- पश्चिमी क्षेत्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र – अविकानगर (टोंक )
- बकरी प्रजनन फार्म – रामसर (अजमेर )
- शूकर प्रजनन फार्म – अलवर
- भेड़ प्रजनन फार्म – फतेहपुर (सीकर )
- केंद्रीय भेड़ व ऊन अनुसंधान संस्थान – अविकानगर ,मालपुरा (टोंक )
- केंद्रीय ऊन विकास बोर्ड – जोधपुर
- भेड़ व ऊन प्रशिक्षण संस्थान – जयपुर
- केंद्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला- बीकानेर
राजस्थान के पशु मेले
(1) श्री मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा ,बाड़मेर
(2) श्री बलदेव पशु मेला मेड़ता, नागौर
(3) श्री वीर तेजाजी पशु मेला परबतसर, नागौर
(4) श्री बाबा रामदेव पशु मेला मानासर, नागौर
(5) श्री गोमती सागर पशु मेला झालरापाटन ,झालावाड
(6) श्री चंद्रभागा पशु मेला झालरापाटन, झालावाड
(7) श्री गोगा मेडी पशु मेला गोगामेड़ी, हनुमानगढ़
(8) जसवंत पशु मेला भरतपुर
(9) श्री कार्तिक पशु मेला पुष्कर ,अजमेर
(10) श्री महाशिवरात्रि पशु मेला करौली
महत्वपूर्ण तथ्य –
- अधिक हरा चारा खाने से पशुओं में आफरा रोग फैलता है ।
- पशु की आयु निर्धारण के सर्वोत्तम एवं वैज्ञानिक दांत देखकर विधि है ।
- ऊंट की खाल पर चित्रांकन बीकानेर शैली की विशेषता है ।
- बटेवड़ा उपले या कड़े संग्रह हेतु काम आता है ।
- ऊँट की खाल से बनी वस्तु कोपी कहलाती है ।
- बीकानेर का “गंगा रिसाला” ऊँटो का रिक्शा है ।
- राजस्थान में राईका परंपरागत ऊँट पालन पोषण कर्ता है ।
- सींकला, झेरणा, नेतरा तथा गिड़गिड़ी दही बिलौने से संबंधित है ।
- राजस्थान के नागौर जिले में राज्य सरकार सर्वाधिक पशु मेलों का आयोजन करवाती है ।
- राजस्थान में सबसे कम ऊन झालावाड़ तथा सर्वाधिक जोधपुर जिले में उत्पादित होती है ।
- गाय की अच्छी दुग्धदाता नस्ल – गिर, राठी
- राज्य में आलम जी का धोरा गुढामालानी (बाड़मेर) घोड़ों का तीर्थ स्थल माना जाता है ।