Rajasthan ki Prachin Sabhyata
नवपाषाण युग के बाद के काल की सभ्यताओं का ज्ञान राज्य से विभिन्न पुरातात्विक स्थलों की उत्खनन से हुआ । राज्य में उत्खनित प्रमुख स्थलों का संक्षिप्त विवरण निम्न है –

राजस्थान के पुरातात्विक स्थल
(1) कालीबंगा सभ्यता
इस पुरातात्विक स्थल का ज्ञान सर्वप्रथम सन् 1952 श्री अमलानंद घोष को हुआ था , फिर यहाँ का उत्खनन कार्य बी.बी. लाल एवं बी.के.थापर द्वारा 1961 से 1969 तक किया गया । यह स्थल वर्तमान में हनुमानगढ़ जिले में प्राचीन सरस्वती नदी ( घग्घर) के तट पर है ।
विशेषताएं –
🔸कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ – “काले रंग की चूड़ियां” है ।
🔸भूकंप का प्राचीनतम साक्ष्य मिला है, इस सभ्यता में पवित्र स्नान का विशेष महत्व था ।
🔸बेलनाकार मुहर व सबसे पहले ज्ञात भूकंप के साक्ष्य यही मिले हैं ।
🔸यहां विश्व में हल से जुताई किये हुए खेत के सबसे प्रारंभिक अवशेष मिले हैं ।
🔸अग्नि कुंड (हवन कुंड ), तंदूरी चूल्हे के दृश्य एवं अलंकृत ईंट मिली है ।
🔸तांबे के बैल की आकृति कालीबंगा से मिली है ।
🔸सूती कपड़े के साक्ष्य मिले हैं ।
🔸यहां एक ही खेत में साथ-साथ दो फसलों को उगाने का साक्ष्य प्राप्त होता है ।
🔸इतिहासवेत्ता दशरथ शर्मा ने इसे सिंधु घाटी साम्राज्य की तीसरी राजधानी कहा है ।
🔸यहाँ लकड़ी से निर्मित नालियां प्राप्त हुई है ।
🔸यहाँ का परिवार मातृसत्तात्मक था ।
🔸यह नगरीय प्रधान सभ्यता थी तथा यहां पर नगर निर्माण सुनियोजित नक्शे के आधार पर किया गया था ।
🔸कालीबंगा से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले हैं ।
🔸कालीबंगा एकमात्र हड़प्पा कालीन स्थल था जिसका निचला शहर ( सामान्य लोगों के रहने हेतु ) भी किले से घिरा हुआ था ।
🔸कालीबंगा में युग्म समाधियाँ मिली है । कालीबंगा में कब्रगाह के साक्ष्य मिले हैं ।
(2) आहड़ सभ्यता
आहड़ का प्राचीन नाम ताम्रवती नगरी था । 10-11वीं शती में यह आघाटपुर या आधारपुर (आधार दुर्ग) के नाम से भी जाना जाता था ।
पंडित अक्षय कीर्ति व्यास को सर्वप्रथम 1953 ईस्वी में यहां लघु स्तर पर उत्खनन करवाने का श्रेय है ।
उदयपुर के निकट आयड़ व बनास नदी के संगम पर इस गांव के एक ऊंचे टीले धूलकोट ( स्थानीय नाम ) का व्यापक उत्खनन सर्वप्रथम आर. सी. अग्रवाल ने 1956 ने करवाया तथा बाद में 1961-62 में वी.एन मिश्रा एवं एच.डी. सांकलिया द्वारा उत्खनन करवाया गया ।
🔸यह सभ्यता ताम्र युगीन सभ्यता थी ।
🔸यहां पर सामूहिक भोजन की व्यवस्था थी ।
🔸यहां कुछ अनाज रखने के बड़े भाण्ड भी गड़े हुए मिले हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘गौरे’ व ‘कोठे’ कहा जाता था ।
🔸यहां खुदाई में छह तांबे की मुद्राएं व तीन मुहरें, स्फटिक आदि की गोल मणियाँ, लाल व भूरे चित्रित मृदभाण्ड, मूसल, बिना हत्थे के छोटे जलपात्र आदि मिले हैं ।
(3) रंगमहल सभ्यता
रंगमहल भी प्राचीन सरस्वती (घग्गर) नदी के पास स्थित है , जहाँ डॉ. हन्नारिड के निर्देशन में एक स्वीडिश एक्सीपीडिशन दल द्वारा 1952-54 में खुदाई की गई ।
🔸यहां कुषाणकालीन एवं पूर्वगुप्तकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
🔸यहां से मिली हुई विभिन्न मृणमूर्तिंयाँ गांधार शैली की मालूम होती है ।
🔸घंटाकार मृद्पात्र, पंचमार्क एवं कनिष्ककालीन मुद्राएं , टोंटीदार घड़े आदि वस्तुएं यहां की विशिष्टता है ।
🔸इस सभ्यता की प्रमुख बस्तियाँ रंग महल, बड़ापोल, डाबेरी, मुड़ा आदि हनुमानगढ़ के समीप स्थित है ।
(4) बैराठ सभ्यता
बैराठ जयपुर से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । प्राचीन ग्रंथों में इसका नाम विराटपुर मिलता है जो प्राचीन मत्स्य प्रदेश की राजधानी थी ।
प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर ( वर्तमान बैराठ) में बीजक की पहाड़ी , भीम जी की डूंगरी तथा महादेव जी की डूंगरी आदि स्थानों पर उत्खनन कार्य प्रथम बार दयाराम साहनी द्वारा 1936-37 में तथा पुन: 1962-63 में पुरातत्वविद् नीलरत्न बनर्जी तथा कैलाशनाथ दीक्षित द्वारा किया गया ।
🔸इस स्थल से मौर्यकालीन, बौद्धकालीन एवं मध्यकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
🔸यहां सूती कपड़े में बंधी मुद्राएँ एवं पंचमार्क सिक्के मिले हैं ।
🔸1999 में बीजक की पहाड़ी से अशोककालीन गोल बौद्ध मंदिर एवं स्तूप एवं बौद्ध मठ के अवशेष मिले हैं ,जो हीनयान संप्रदाय से संबंधित है ।
🔸यहां चित्रित स्लेटी मृदभांड का प्रयोग करने वाली संस्कृति एवं ईसा के प्रारंभिक काल की संस्कृतियों का ज्ञान हुआ है ।
🔸1837 ई. में कैप्टन बर्क ने बीजक डूंगरी पर मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में उत्कृष्ट सम्राट अशोक का शिलालेख खोजा ।
🔸यहाँ कुल 36 मुद्राएँ मिली है । इनमें 8 ‘पंचमार्क’ चांदी की मुद्राएं हैं और 28 ‘इण्डो-ग्रीक’ तथा यूनानी शासक की है , जिनमें से 16 मुद्राएँ यूनानी राजा मिनेण्डर की है ।
🔸बैराठ के उत्खनन से प्रमाणित होता है कि हूण शासन मिहिरकुल ने बैराठ का ध्वंस किया ।
🔸यहां से ‘शंख लिपि’ के प्रचुर संख्या में प्रमाण उपलब्ध हुए हैं ।
🔸यहां सवाई राम सिंह के शासनकाल में की गई खुदाई में एक स्वर्ण मंजूषा प्राप्त हुई है जिसमें भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष थे ।
🔸यहां पाषाणयुगीन हथियारों के निर्माण का एक बड़ा कारखाना स्थित था, जहां से बहुत बड़ी संख्या में विभिन्न प्रकार की कुल्हाड़ियाँ व औजार मिले हैं ।
🔸यहां ‘आकर कलर पात्र’ परंपरा एवं ‘ब्लैक एंड रेड पात्र’ परंपरा संस्कृति के अवशेष मिलते हैं ।
🔸विराटनगर के मध्य में अकबर ने एक टकसाल खोली थी ।
🔸व्हेनसॉन्ग द्वारा वर्णित 8 बौद्ध मठों में से दो मठ इस पहाड़ी पर स्थित थे ।
(5) रैढ़ (टोंक) सभ्यता
निवाई तहसील में ढील नदी के किनारे स्थित इस गांव में पूर्व गुप्तकालीन सभ्यता तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
इसकी खुदाई डॉक्टर केदारनाथ पुरी ने 1938-40 के मध्य कराई । यहां लौह सामग्री का विशाल भंडार मिला है ।
इसे प्राचीन भारत का टाटानगर कहा जाता है । यहां एशिया का अब तक का सबसे बड़ा सिक्कों का भंडार भी मिला है ।
(6) नोह सभ्यता
भरतपुर से 6 किलोमीटर दूर आगरा रोड पर स्थित नौह पर गयी खुदाई में पांच सांस्कृतिक युगों के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
यहां कुषाण कालीन एवं मौर्य कालीन अवशेष मिले हैं । यहां से प्राप्त वस्तुओं से ज्ञात होता है कि ईसा पूर्व 12वीं शताब्दी में यहां लोहे का प्रयोग होता था । यहां की खुदाई से एक स्थान से 16 रिंगवेल्स मिले है ।
(7) गिलुंड सभ्यता
राजसमंद जिले में बनास नदी के तट से कुछ दूरी पर स्थित है गिलूण्ड की खुदाई में ताम्रयुगीन सभ्यता एवं बाद के अवशेष मिले हैं ।
इस गांव में 2 टीले हैं । इन टीलों को ग्रामवासी “मोडिया मगरी” के नाम से भी पुकारते हैं । एक टीले की खुदाई 1959-60 में बी.बी. लाल द्वारा की जा चुकी है ।
(8) ओझियाना सभ्यता
यह पुरातात्विक स्थल भीलवाड़ा जिले में बदनोर के पास स्थित है । यहां बी आर मीणा व आलोक त्रिपाठी ने सन् 2000 में उत्खनन करवाया । यहां से प्राप्त गाय की लघु मीणकृति बहुत महत्वपूर्ण है ।
(9) गणेश्वर सभ्यता
गणेश्वर का टीला नीमकाथाना जिला सीकर में काँतली नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है । यहां पर उत्खनन कार्य डॉ वीरेंद्र नाथ मिश्र, आर सी अग्रवाल व विजय अग्रवाल ने कराया ।
🔸गणेश्वर सभ्यता को ताम्र युगीन सभ्यताओं की जननी कहा गया है ।
🔸इस स्थल की तिथि 2800 ई. पू. निर्धारित की गई है ।
🔸गणेश्वर के उत्खनन से सैकड़ों ताम्र आयुध व ताम्र उपकरण प्राप्त हुए हैं । इनमें कुल्हाड़ी, तीर, भाले, सुईया, मछली पकड़ने के कांटे तथा विविध ताम्र आभूषण है ।
( 10) नगरी सभ्यता
चित्तौड़गढ़ से 13 किलोमीटर दूर नगरी ( प्राचीन मध्यमिका या मज्यमिका) की खुदाई सर्वप्रथम 1904 में डॉक्टर भण्डारकर ने कराई तथा दुबारा 1962 में केंद्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा करवाई गई ।
🔸यहां शिवी जनपद के सिक्के मिले हैं । यहां गुप्तकालीन कला के अवशेष भी मिले हैं ।
(11) जोधपुरा ( जयपुर ) सभ्यता
यहां के उत्खनन से अंतिम स्तर में शुंग एवं कुषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं तथा लौह उपकरण बनाने की भट्टियां भी मिली है । यहां विभिन्न स्तरों में 2500 ई. पू. से लेकर ईसा की दूसरी सदी की वस्तुएं मिली है ।
(12) सुनारी( झुंझुनूं) सभ्यता
काँतली नदी के तट पर खुदाई में यहां अयस्क से लोहा बनाने की भट्टियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं । ये भारत की प्राचीनतम भट्टियां मानी जाती है ।
(13) तिलवाड़ा (सभ्यता )
बाड़मेर जिले के लूणी नदी के किनारे बसे इस स्थल के उत्खनन से ई. पू. 500 से ई. 200 तक की अवधि में विकसित सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं ।
(14) नलियासर सभ्यता
सांभर(जयपुर) में सांभर झील के निकट इस स्थान पर खुदाई से चौहान युग से पूर्व की सभ्यता का ज्ञान प्राप्त हुआ है ।
(15) नगर (टोंक) सभ्यता
टोंक जिले के उणियारा कस्बे के पास स्थित इस कस्बे, जिसका प्राचीन नाम “मालव नगर” था , में बड़ी संख्या में मालव सिक्के एवं आहत मुद्राएं मिली है । इसके उत्खनन में कुछ लेख मिले हैं जो गुप्तकालीन हैं ।
(16) बागोर सभ्यता
भीलवाड़ा जिले में एक कस्बा है जो भीलवाड़ा से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है । यह कस्बा बनास की सहायक नदी कोठारी के किनारे पर बसा हुआ है । इसका उत्खनन कार्य 1967 में डॉ वीरेंद्र नाथ मिश्र व एल एस लैशनि के द्वारा किया गया ।
बागोरसे कृषि एवं पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं ।
(17) बालाथल की सभ्यता
उदयपुर शहर से लगभग 42 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में वल्लभनगर तहसील में स्थित इस स्थल की खोज 1993 में डॉ वीरेंद्र नाथ मिश्र के नेतृत्व में की गई ।
🔸बालाथल की पूर्व छोर पर एक टिला स्थित है जो लगभग 5 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है ।
🔸यह सभ्यता 3000 ईसा पूर्व से 2500 ई. पूर्व ताम्रयुगीन सभ्यता थी ।
🔸बालाथल से प्राप्त विशेष आकार प्रकार के चमकदार मिट्टी के बर्तन दो प्रकार के हैं – एक खुरदरी दीवारों वाले तथा दूसरी चिकनी मिट्टी की दीवारों वाले ।
🔸बालाथल की खुदाई में 11 कमरों के बड़े भवन की रचना भी प्राप्त होती है जो ताम्रपाषाण काल की द्वितीय अवस्था में निर्मित हुए थे ।
🔸ताम्रपाषाण काल के मानव बालाथल के प्रथम निवासी थे । कृषि व पशुपालन इनके आर्थिक जीवन का आधार था । अत: इन्हें मेवाड़ के प्रथम कृषक की संज्ञा प्रदान की जा सकती है ।
( 18) चंद्रावती सभ्यता
सिरोही जिले में माउंट आबू की तलहटी में आबू रोड के निकट चंद्रावती के नाम से एक प्राचीन शहर के अवशेष हैं । यह प्राचीन शहर सेवाणी नदी के दायें तट पर बसा हुआ था तथा लगभग 50 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था ।
राजस्थान के पुरातत्व विभाग ने 4 जनवरी 2014 से यहां स्थित अवशेषों की खोज के लिए खुदाई प्रारंभ की है । राजस्थान विद्यापीठ , उदयपुर के प्रोफ़ेसर जीवनलाल खरगवाल के अनुसार चंद्रावती नगरी का विकास दो चरणों में हुआ ।
प्रथम चरण ईंट युग का था, इसके बाद पत्थर युग का प्रारंभ हुआ । यहां पर खुदाई कार्य में जापान के पुरातत्व विशेषज्ञ हिन्डो हितोशी भी सहयोग कर रहे हैं ।
शहर के पश्चिमी भाग में एक विशाल किले के अवशेष हैं जो लगभग 26 बीघा में फैला है । मध्य भाग में 33 मंदिर समूह के अवशेष है तो हिंदू तथा जैन धर्म से संबंधित है ।
चंद्रावती के अभिलेख तथा ताम्रपत्र माउंट आबू संग्रहालय में सुरक्षित है । यह परमार शासकों की राजधानी थी , जिनमें यशोधवल तथा धारा वर्ष जैसे प्रतापी राजा हुए हैं ।
यह सभ्यता 11वीं शताब्दी की मानी जाती है । यहां पर पाषाण कालीन उपकरण तथा शैल चित्र भी मिले हैं ।
(19) बरोर सभ्यता ( गंगानगर)
🔸बरोर के उत्खनन से मिले अवशेषों के आधार पर यहाँ की सभ्यता को प्राक्, प्रारंभिक एवं विकसित हड़प्पा काल में बांटा जा सकता है । भारत में एकमात्र यहां से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों में काली मिट्टी पाई गई है ।
(20) ईसवाल ( उदयपुर )
🔸इस स्थान पर खुदाई (2003 में) के दौरान लौह कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
(21) सोंथी ( बीकानेर)
🔸कालीबंगा प्रथम के नाम से विख्यात इस सभ्यता की अमलानंद घोष के नेतृत्व में 1953 में खुदाई की गई ।
(22) दर ( भरतपुर )
🔸इस स्थान पर पाषाणकालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं ।
(23) डडीकर ( अलवर)
🔸5 से 7000 वर्ष पुराने शैलचित्र मिले हैं ।
(24) गरड़दा ( बूँदी)
🔸छाजा नदी के किनारे स्थित गरड़दा क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल के मानव की उत्कृष्ट कला के प्रमाण मिले हैं । इस स्थान पर पहली बर्ड राइडर रॉक पेंटिंग मिली है । यह देश में प्रथम पुरातत्व महत्व की पेंटिंग है ।
(25) कोटड़ा ( झालावाड़ )
🔸दीपक शोध संस्थान ने यहां सातवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य के पुरा अवशेषों की खोज की ।
(26) करनपुरा ( हनुमानगढ़ )
🔸8 जनवरी 2013 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा भादरा तहसील के इस स्थान पर की गई खुदाई में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले हैं जिनमें 4500 वर्ष पुराना मिला मानव कंकाल प्रमुख है ।
(27) बेड़च सभ्यता
🔸यह बेड़च नदी के किनारे पनपी । इसके प्रमुख स्थल निम्न है – बालाथल, गिलूण्ड, महाराज की खेड़ी , करणपुर , उदा खेड़ी , छतरी खेड़ा , पछमता, ऊँचा, जवासिया, दुड़िया , मरमी, हीरोजी का खेड़ा, विरोली, उमन्ड तथा जावरा है ।
महत्वपूर्ण बिंदु –
🔸पुरातत्वविद् ओमप्रकाश कुक्की ने बूँदी से भीलवाड़ा तक 35 किलोमीटर लंबी विश्व की सबसे लंबी शैलचित्र श्रृंखला खोजी । भीलवाड़ा के गैंदी का छज्जा स्थान की गुफाओं में यह शैलचित्र मिले हैं ।
🔸पुरातत्वविद् हरफूल सिंह ने झालावाड़ जिले के गंगधार से गुप्तकालीन मंदिर की संरचना के अवशेष खोजे हैं ।