आज हम राजस्थान के प्रसिद्ध ऐतिहासिक व सांस्कृतिक स्थलों में राजस्थान के प्रमुख मंदिर (Rajasthan ke pramukh mandir)की बात करेंगे ।
Temple of Rajasthan List in Hindi
(1) अजमेर जिले के प्रमुख मंदिर
- ब्रह्मा जी का मंदिर (पुष्कर) ➡ यह 14वीं शताब्दी में निर्मित विश्व में ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर है जहां विधिवत पूजा अर्चना की जाती है ।
- सावित्री मंदिर ➡ पुष्कर के दक्षिण में रत्नागिरी पर्वत पर ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री का मंदिर स्थित है ।
- गायत्री मंदिर ➡ पुष्कर के उत्तर में एक पहाड़ी पर प्रसिद्ध गायत्री मंदिर है ।
- सोनी जी की नसियाँ (लाल मंदिर) ➡ सेठ मूलचंद सोनी द्वारा निर्मित आदिनाथ भगवान का जैन मंदिर है । इसे ‘सिद्धकूट चैत्यालय’ भी कहा जाता है ।
- सलेमाबाद ➡ यह निंबार्क संप्रदाय के प्रमुख पीठ है ।
- काचरिया मंदिर (नवग्रह मंदिर) ➡ किशनगढ़ में स्थित इस मंदिर में राधा कृष्ण का स्वरूप विराजमान है ।
- रंगनाथ जी का मंदिर ➡ पुष्कर में द्रविड़ शैली में निर्मित विष्णु मंदिर है । अपनी गोपुरम आकृति के लिए प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण सेठ पूरणमल ने 1844 में करवाया ।
- वराह मंदिर (पुष्कर) ➡ चौहान शासक अर्णोराज द्वारा 12वीं सदी में निर्मित यह मंदिर विष्णु के वराह अवतार का मंदिर है ।
- खुण्डियास धाम ➡ अजमेर-नागौर सीमा पर स्थित द्वितीय रामदेवरा के नाम से प्रसिद्ध बाबा रामदेव का ‘मिनी रामदेवरा’ है ।
- खोड़ा गणेश ➡ किशनगढ़ के निकट स्थित गणपति का मंदिर ।
- श्री मसाणिया भैरवधाम ➡ चमत्कारी देवस्थान ‘श्री मसाणिया भैरवधाम’ अजमेर जिले के राजगढ़ ग्राम में स्थित है । गुरुदेव श्री चंपालाल जी महाराज ने इसकी स्थापना की ।
- नारेली ➡ अजमेर में मदार के पास स्थित दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र है ।
- कपालपीठ दधिमती ➡ पुष्कर से 32 कोस की दूरी पर यह कपालपीठ स्थित है , जहाँ भगवती दधिमती का मंदिर है ।
- रमा बैकुण्ठ मंदिर ➡ पुष्कर झील के पूर्वी भाग में स्थित यह मंदिर रामानुज संप्रदाय का विशाल मंदिर है ।
- धानेश्वर (धाणी-भाटा)➡ अजमेर में सांपला कस्बे के पास खारी व मानसी नदी के संगम के अंतिम छोर पर स्थित धानेश्वर को लघु पुष्कर कहा जा सकता है ।
- पिपलाज माता का मंदिर ➡ ब्यावर
- मथुराधीश मंदिर ➡ सरवाड़
(2) अलवर जिले के प्रमुख मंदिर
- नारायणी माता ➡ अलवर में राजगढ़ तहसील में बरवा डूँगरी की तलहटी में सघन वृक्षों से घिरा यह स्थान सभी संप्रदायों एवं वर्गों का आराध्य स्थल है । नारायणी माता नाइयों की कुलदेवी है ।
- बाबा मोहनराम का थान ➡ यह थान मलिकपुर (भिवाड़ी) गांव में पहाड़ी पर स्थित है ।
- तिजारा जैन मंदिर ➡ यहाँ 8वें जैन तीर्थकर भगवान चंद्रप्रभु का विशाल मंदिर (देहरा स्थल) है ।
- रावण पार्श्वनाथ मंदिर ➡ अलवर शहर में यह जैन मंदिर है ।
- नौगावाँ के जैन मंदिर ➡ अलवर-दिल्ली मार्ग पर स्थित नौगावाँ कस्बा समूचे उत्तरी भारत में दिगंबर जैन समाज का प्रमुख केंद्र माना जाता है । इन जैन मंदिरों में श्री मल्लिनाथ जी का नौचौकिया मंदिर अति प्राचीन है । यहाँ जैन तीर्थकर शांतिनाथ भगवान का ‘ऊपर वाला मंदिर’ भी मौजूद है ।
- नौगजा जैन मंदिर ➡ अलवर शहर से 60 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थान पर विशाल जैन मंदिर के अवशेष हैं जिसमें 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की 27 फीट (9 गज) ऊँची प्रतिमा है ।
- नीलकंठ महादेव मंदिर ➡ सरिस्का अभयारण्य में स्थित यह मंदिर बडगूजर राजा मंथन देव ने टहला (राजगढ़) में बनवाया । यह खजुराहो की तरह बना है ।
(3) बाँसवाड़ा जिले के प्रमुख मंदिर
- घोटिया अम्बा ➡ यहाँ अंबा माता धाम के अलावा घोटेश्वर महादेव , पांडव कुंड और केलापानी तीर्थ है । घोटिया अम्बा कुछ दूर भीमकुण्ड है ।
- आदेश्वर पार्श्वनाथ जी ➡ कुशलगढ़
- घूणी के रणछोड़ रायजी ➡ यह महाभारत कालीन तीर्थ माना जाता है । यह उदयपुर मार्ग पर गनोड़ा के निकट स्थित है । यहाँ भगवान रणछोड़राय की प्रतिमा है । इन्हें हर मनोकामना पूर्ण करने वाला व फसलों के रक्षक देव के रूप में पूजा जाता है ।
- अर्थूणा के मंदिर ➡ बांगड़ के परमार राजाओं द्वारा लगभग 11 वीं-12 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया । अर्थूणा में प्राचीनतम मंदिर गंगेला तालाब के पास स्थित मंडलेश्वर महादेव मंदिर है । यह मंदिर सप्तायतन शैली में निर्मित है व पूर्वाभिमुखी है । यहाँ एक मंदिर समूह हनुमानगढ़ी भी है । हनुमानगढ़ी में नीलकंठ का मंदिर सबसे बड़ा मंदिर है । यहाँ अन्य मंदिरों में सोमनाथ का मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर , कनफटे साधुओं का मंदिर , कुंभेश्वर मंदिर , गदाधर का मंदिर आदि ।
- त्रिपुरा सुंदरी मंदिर ➡ तलवाड़ा से 5 किलोमीटर दूर स्थित 18 भुजाओं वाली त्रिपुर सुंदरी (उमराई गाँव) का मंदिर स्थानीय लोगों में ‘तुरताई माता’ के नाम से भी जाना जाता है । यह मंदिर शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक 3 दुर्गों के मध्य है । इस मन्दिर में माँ स्वयं उल्टे सिंह पर विराजमान है । यह पांचालों की कुलदेवी है ।
- कालिंजरा मंदिर ➡ हारन नदी के किनारे ऋषभदेवजी का प्रसिद्ध जैन मंदिर ।
- छिंछ देवी का मंदिर ➡ यहाँ 12वीं सती का ब्रह्मा जी का मंदिर है जिसमें ब्रह्मा जी की आदमकद चतुर्मुखी मूर्ति विराजमान है तथा आंबलिया तालाब की पाल पर छींछ देवी का प्राचीन मंदिर है ।
- मंडलीश्वर शिवालय ➡ पाणाहेड़़ा में नागेला तालाब की पाल पर स्थित शिवालय , जिसको वागड़ के परमार राजा मंडलीक ने 1059 में बनवाया था ।
- लक्ष्मी नारायण का मंदिर ➡ यह मंदिर महारावल पृथ्वीसिंह की राठौड़ राणी अनोपकुँवरी ने 1799 में बनवाया था ।
- भीलेश्वर महादेव का मंदिर ➡ महारावल जगमाल ने बनवाया था ।
- सूर्य मंदिर ➡ तलवाड़ा स्थित 11वीं सदी का मंदिर , जिसमें श्वेत पत्थर से निर्मित नवग्रहों की मूर्तियां स्थापित है ।
- नन्दिनी माता ➡ बड़ोदिया नामक कस्बे के निकट विशाल पहाड़ी की चोटी पर नन्दिनी माता प्राचीन मंदिर स्थित है ।
- विट्ठल देव का मंदिर
(4) बाराँ जिले के प्रमुख मंदिर
- भंडदेवरा शिवमंदिर (रामगढ़ ,किशनगंज)➡ हाड़ौती का खजुराहो कहा जाने वाला यह मंदिर 10 वीं शताब्दी में नागर शैली में निर्मित है । इसका निर्माण मेदवंशीय राजा मलयवर्मन द्वारा करवाया गया है । यह देवालय पंचायतन शैली का उत्कृष्ट नमूना है । इसे राजस्थान का मिनी खजुराहो भी कहा जाता है ।
- गड़गच्च देवालय (अटरू) ➡ इस मंदिर का निर्माण काल दसवीं शताब्दी के आसपास माना जाता है । यहाँ के फूल देवरा मंदिर को मामा-भांजा का मंदिर कहते हैं ।
- ब्रह्माणी माता मंदिर ➡ यह मंदिर सोरसन के समीप है । इसे शैलीश्रय गुहा मंदिर भी कहते हैं । यहाँ ब्रह्माणी माता की पीठ पर श्रृंगार किया जाता है एवं भक्तगण माता की पीठ के दर्शन करते हैं ।
- काकूनी मंदिर समूह ➡ ये बाराँ जिले छीपाबड़ौद तहसील में मुकंदरा की पहाड़ियों में परवन नदी के किनारे स्थित है । ये शैव, वैष्णव एवं जैन मंदिर आठवीं सदी के बने हुए हैं ।
- बांसथूड़ी शिवालय ➡ यह कोटा-शाहाबाद सड़क मार्ग पर गोराजी का सारण नाले पर निर्मित शिवालय है ।
(5) बाड़मेर जिले के प्रमुख मंदिर
- श्री रणछोड़राय जी का मंदिर (खेड़) ➡ यह प्रमुख वैष्णव तीर्थ एवं हिंदुओं का पवित्र धाम है जो लूनी नदी के किनारे स्थित है । खेड़ में भूरिया बाबा तथा खोड़िया बाबा रैबारियों के आराध्य देव हैं । यहाँ पंचमुखी महादेव मंदिर , खोड़िया हनुमान मंदिर है ।
- मल्लीनाथ मंदिर ➡ तिलवाड़ा में मल्लिनाथ जी का समाधि स्थल है । यहां उनका प्रसिद्ध मंदिर है ।
- ब्रह्मा का मंदिर (आसोतरा) ➡ इस मंदिर की मूर्ति स्थापना 1984 में की गई । इसे सिद्ध पुरुष खेताराम जी महाराज ने बनवाया । यह भारत का एकमात्र मंदिर है जिसमें सावित्री जी के साथ ब्रह्मा जी की मूर्ति स्थित है ।
- श्री नाकोड़ा ➡ बालोतरा के पश्चिम में भाकरियाँ नामक पहाड़ी पर जैन मतावलम्बियों प्रसिद्ध तीर्थ स्थान ‘नाकोड़ा’ है , जिसे मेवानगर के जैन तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है । इसके मुख्य मंदिर में 23वें जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है । यहाँ नाकोड़ा भैरव जी भी स्थापित है । भक्तों द्वारा इन्हें ‘हाथ का हुजूर’ व ‘जागती जोत’ माना जाता है ।
- किराडू के मंदिर ➡ बाड़मेर के हाथमा गांव के निकट एक पहाड़ी के नीचे स्थित किराडू 10वीं व 11वीं के विष्णु और शिव मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है । यहाँ प्रसिद्ध सोमेश्वर मंदिर हैं । किराडू की स्थापत्य कला भारतीय नागर शैली की है । इसे ‘राजस्थान का खजुराहो’ की संज्ञा दी गई है ।
- वीरातरा माता ➡ चौहटन तहसील में पहाड़ियों पर भोपा जनजाति की कुलदेवी वीरातरा माता का भव्य मंदिर है ।
- नागणेची माता का मंदिर ➡ बाड़मेर जिले में पचपदरा के पास नागालो गांव में नागणेची माता की लकड़ी की मूर्ति दर्शनीय है ।
- आलमजी का मंदिर ➡ यह धोरीमना में स्थित है ।
- पीपाजी का मंदिर ➡ समदड़ी गाँव
(6) भरतपुर जिले के प्रमुख मंदिर
- गंगा मंदिर ➡ यह मंदिर भरतपुर रियासत के शासक महाराजा बलवंत सिंह ने 1846 में बनवाना आरंभ किया था । यह मंदिर बंसी पहाड़पुर के लाल पत्थरों से निर्मित है । इस बारहदरीनुमा गंगा मंदिर की 2 मंजिला इमारत 84 खंभों पर टिकी हुई है । 12 फरवरी 1937 को महाराजा बृजेंद्र सिंह ने गंगा की सुंदर मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई ।
- ऊषा मंदिर (बयाना) ➡ भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी के नाम पर कन्नौज के महाराजा महिपाल की रानी चित्रलेखा ने सन् 956 में बयाना में ऊषा मंदिर का निर्माण करवाया था । बाद में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे तुड़वाकर उषा मस्जिद का रूप दे दिया ।
- लक्ष्मण मंदिर ➡ शहर के बीचो-बीच स्थित लक्ष्मण मंदिर का निर्माण महाराजा बलदेव सिंह ने प्रारंभ किया था जिसे महाराजा बलवंत सिंह जी ने पूर्ण करवाया । संपूर्ण राजस्थान में लक्ष्मण जी का एकमात्र मंदिर ।
- ढंढार वाले हनुमान जी का मंदिर ➡ रूदावल कस्बे में ककुन्द नदी के किनारे स्थित हनुमान जी का मंदिर ।
- जाखम बाबा ➡ नोह ग्राम में शुंगकालीन 8 फीट ऊंची यक्ष प्रतिमा को ‘जाखम बाबा’ के रूप में पूजा जाता है ।
(7) भीलवाड़ा जिले के प्रमुख मंदिर
- शाहपुरा का रामद्वारा ➡ शाहपुरा में रामस्नेही संप्रदाय का प्रधान मठ । स्वामी श्री रामचरण जी महाराज ने 1751 में इस संप्रदाय की मुख्य गद्दी शाहपुरा में स्थापित की । शाहपुरा में फूलडोल का उत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है ।
- सवाई भोज मंदिर ➡ यह आसींद में खारी नदी के तट पर स्थित है लगभग 1100 वर्ष पुराना देवनारायण मंदिर है । यह मंदिर गुर्जर जाति के लोगों के लिए विशेष श्रद्धा का केंद्र है । यह मंदिर 24 बगड़ावत भाइयों में से एक सवाईभोज को समर्पित है ।
- हरणी महादेव का मंदिर ➡ भीलवाड़ा से 6 किलोमीटर दूर स्थित एक झुकी चट्टान के नीचे शिवजी का मंदिर बना हुआ है ।
- तिलस्वाँ मंदिर ➡ माँडलगढ़
- धनोप माता का मंदिर ➡ भीलवाड़ा के धनोप गांव में स्थित मंदिर ,जो राजा धुंध की कुलदेवी थी ।
- बाईसा महारानी का मंदिर ➡ यह प्रसिद्ध देवालय गंगापुर में स्थित है । यह मंदिर ग्वालियर के महाराजा महादजी सिंधिया की पत्नी महारानी गंगाबाई की स्मृति में निर्मित किया गया । यहाँ गंगाबाई की छतरी भी मौजूद है ।
- मंदाकिनी मंदिर ➡ भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया में स्थित है । यहाँ तीन मंदिर- महाकालेश्वर, हजारेश्वर, उण्डेश्वर मंदिर व एक जलकुंड मंदाकिनी जलकुंड है ।
- गाडोली महादेव ➡ भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर में गाडोली महादेव अकेले ऐसे महादेव हैं तो पूर्ण रूप से परिधानों में सजाए जाते हैं । देश का शायद यह पहला शिव मंदिर है जहां फाल्गुन के अलावा भाद्रपद की चतुर्दशी को भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है ।
- देवतलाई के देवनारायण ➡ भीलवाड़ा जिले की कोटड़ी तहसील के देवतलाई गांव का देवनारायण मंदिर सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है । एक ही परिसर में ईसाई, बौद्ध, मुस्लिम, जैन सहित अन्य धर्मों के करीब 70 मंदिर हैं ।
- बागोर गुरुद्वारा ➡ भीलवाड़ा के बागोर गांव में नवनिर्मित गुरुद्वारा श्री कलगीधर बागोर साहिब जन-जन की आस्था का केंद्र है ।
(8) बीकानेर जिले के प्रमुख मंदिर
- करणी माता मंदिर ➡ देशनोक स्थित करणी माता का यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला एवं अधिक संख्या में चूहों के लिए प्रसिद्ध है । करणी माता बीकानेर के राठौड़ राजवंश की कुलदेवी, चूहों की देवी व चारणों की कुलदेवी है । यहाँ काबा (सफेद चूहे ) के दर्शन को शुभ माना जाता है । इस मंदिर में सावन-भादो नाम की दो कढ़ाईयाँ हैं । करणी माता का प्रतीक चिन्ह सफेद चील है । देशनोक स्थित करणी माता के देपावत चरणों के वंशज या पुजारी को बीठू कहा जाता है । करणी माता का बचपन का नाम रिद्धि बाई था । बीकानेर में घिनेरू की तलाई स्थान पर करणी माता ने महाप्रयाण किया ।
- श्री कोलायत जी ➡ यह कपिल मुनि की तपोभूमि है । महर्षि कपिल सांख्य दर्शन के प्रणेता थे ।
- मुकाम-तालवा (नोखा) ➡ विश्नोई संप्रदाय का प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थान । यहाँ इस संप्रदाय के प्रवर्तक जांभोजी का समाधि मंदिर है ।
- लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर ➡ इस भव्य मंदिर का निर्माण राव लूणकरण ने करवाया । इस मंदिर में विष्णु जी व लक्ष्मी जी की मूर्ति प्रतिष्ठित है । इस मंदिर के द्वारा अर्चक परंपरा का सूत्रपात हुआ ।
- हेरम्ब गणपति ➡ बीकानेर के जूनागढ़ दुर्ग में 33 करोड़ देवताओं का मंदिर स्थित है , जिसमें दुर्लभ हेरम्ब गणपति की सिंह पर सवार प्रतिमा है ।
- भांडाशाह का जैन मंदिर ➡ इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसके निर्माण में पानी के स्थान पर घी का इस्तेमाल किया गया था ।
- नेमीनाथ का मंदिर ➡ यह भांडाशाह के भाई द्वारा बनवाया गया ।
- धूनीनाथ का मंदिर ➡ यह मंदिर इसी नाम के एक योगी ने 1808 में बनवाया ।
- नागणेची का मंदिर ➡ इस मंदिर में अपनी मृत्यु से पूर्व ही महिषासुरमर्दिनी कि 18 भुजा वाली मूर्ति राव बीका ने जोधपुर से यहां लाकर स्थापित की थी ।
- राजरतन बिहारी मंदिर ➡ महाराजा रत्न सिंह ने 1846 में अपने नाम से राज रतन बिहारी का मंदिर बनवाना आरंभ किया था ।
- रसिक शिरोमणि का मंदिर ➡ यह मंदिर महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया ।
- श्री चिंतामणि मंदिर ➡ मुकाम में स्थित यह मंदिर जैसलमेर के पीले पुत्थरों से रथाकृति में बना हुआ है ।
- अंता देवी का मंदिर ➡ इस मंदिर में ऊंट पर आरूढ़ देवी की प्रतिमा है ।
- सूसानी देवी का जैन मंदिर ➡ यह मोरखाणा में स्थित है । यह मंदिर केंद्र सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है ।
- चतुर्भुज का मंदिर ➡ बीकानेर में यह मंदिर जोरावर सिंह की राजमाता सीसोदिणी ने बनवाया ।
- पूर्णश्वर महादेव मंदिर ➡ बीकानेर के भीनासर कस्बे में संत पूर्णानंद का मंदिर ‘श्री पूर्णेश्वर महादेव मंदिर’ के नाम से विख्यात है । यहाँ ‘बाप जी का मेला’ लगता है ।
- पूर्णासर बालाजी ➡ पूर्णासर गांव में खेजड़ी की पुराने पेड़ के साथ स्थित हनुमान जी का प्राचीन मंदिर ।
- सांडेश्वर मंदिर ➡ बीकानेर में यह जैन मंदिर ।
- शिवबाड़ी ➡ यहाँ महाराजा डूंगरसिंह द्वारा बनाया गया लालेश्वर का शिव मंदिर है जो उन्होंने अपने पिता महाराज लालसिंह की स्मृति में बनवाया ।
(9) बूँदी जिले के प्रमुख मंदिर
- बीजासण माता ➡ यह प्रसिद्ध मंदिर इंद्रगढ़ में स्थित है । इसे इंद्रगढ़ का मंदिर भी कहते हैं ।
- केशोरायपाटन ➡ यहाँ स्थित केशवराय जी के प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण 1601 में बूँदी के राजा शत्रुसाल ने करवाया था । यहाँ मुनि सुब्रतनाथ का प्रसिद्ध जैन मंदिर है ।
- गरडिया महादेव का मंदिर ➡ यह मंदिर बूँदी की तालेरा तहसील के डाबी गांव में चंबल नदी के किनारे स्थित है ।
(10) चित्तौड़गढ़ जिले के प्रमुख मंदिर
- मातृकुंडिया ➡ चित्तौड़गढ़ जिले के राशमी पंचायत समिति क्षेत्र में स्थित है हरनाथपुरा गांव के पास बहने वाली चंद्रभागा और बनास नदी के किनारे स्थित यह तीर्थ ‘मेवाड़ का हरिद्वार’ भी कहा जाता है । यहाँ प्रसिद्ध लक्ष्मण झूला भी है ।
- समिद्धेश्वर मंदिर (चित्तौड़गढ़ दुर्ग) ➡ यह मंदिर 11वीं शताब्दी में मालवा के परमार राजा भोज ने बनवाया था । यहाँ प्राप्त शिलालेख के अनुसार महाराणा मोकल ने 1428 में इसका जीर्णोद्धार करवाया । यह शिव मंदिर नागर शैली में बना हुआ है । इसे मोकलजी का मंदिर भी कहते हैं ।
- सांवलिया जी मंदिर ➡ चित्तौड़गढ़ के मंडफिया गाँव में सांवलिया जी का विश्वविख्यात मंदिर स्थित है । यहाँ काले पत्थर की श्री कृष्ण मूर्ति है । इसे अफीम के देवता के रूप में पूजते हैं ।
- मीरा मंदिर ➡ यह मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में इंडो-आर्य शैली में निर्मित है ।
- श्रृंगार चँवरी ➡ शांतिनाथ जैन मंदिर जिसे महाराणा कुंभा के कोषाधिपति के पुत्र वेलका ने 1448 में बनवाया था , जो चित्तौड़गढ़ किले में ही स्थित है ।
- सतबीस देवरी ➡ 11 वीं सदी में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अंदर बना एक भव्य जैन मंदिर जिसमें 27 देवरियाँ होने के कारण ‘सतबीस देवरी’ कहलाता है ।
- कुंभ श्याम मंदिर ➡ आठवीं शताब्दी में चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुंभ श्याम मंदिर व कालिका माता (सूर्य मंदिर) जैसे विशाल प्रतिहार कालीन मंदिरों का निर्माण हुआ । ये दोनों विशाल मंदिर महामारू शैली के हैं ।
- तुलजा भवानी मंदिर ➡ चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अंतिम द्वार रामपोल से दक्षिण की ओर तुलजा भवानी माता का मंदिर है , जिसका निर्माण उड़णा राजकुमार पृथ्वीराज के दासी पुत्र बनवीर ने करवाया था । इसी के पास पुरोहित जी की हवेली स्थित है ।
- असावरी माता का मंदिर ➡ भदेसर पंचायत समिति के पास निकुंभ में असावरी माता (आवरी माता) का मंदिर है , जहाँ लकवे के मरीजों का इलाज किया जाता है ।
- बड़ोली के शिव मंदिर ➡ उत्तर गुप्तकालीन यह मंदिर परमार राजा हुन ने बनवाया था । यह बामनी और चंबल नदी के संगम क्षेत्र में राणा प्रताप सागर बांध के निकट चित्तौड़गढ़ की भैंसरोडगढ़ में स्थित है । इन मंदिरों को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का कार्य 1821 में जेम्स टॉड ने किया । यह 9 मंदिरों का समूह है । इसमें सबसे प्रमुख मंदिर घाटेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है । ये मंदिर गुर्जर-प्रतिहार कला का उत्कृष्ट उदाहरण है ।
- शनि महाराज (आलीधाम) ➡ कपासन, चित्तौड़गढ़ में स्थित शनि महाराज का मंदिर । यहां चर्म रोग का उपचार किया जाता है ।
(11) चुरू जिले के प्रमुख मंदिर
- ददरेवा ➡ यह गोगा जी का जन्म स्थान है । गोगा नवमी को गोगाजी के राखी चढाई जाती है । भाद्रपद मास में कृष्णा नवमी को मेला भरता है ।
- सालासर बालाजी ➡ इस मंदिर की स्थापना 1754 में महात्मा श्री मोहनदास जी ने की थी । भारत का एकमात्र हनुमान मंदिर जिसमें दाढ़ी-मूंछ युक्त हनुमान जी की पूजा की जाती है ।
- तिरुपति बालाजी (सुजानगढ़) ➡ वैंकटेश्वर फाउंडेशन ट्रस्ट ने 1994 में सुजानगढ़ में भगवान वैंकटेश्वर तिरुपति बालाजी के मंदिर का निर्माण करवाया । यह आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर की प्रतिकृति है । यह उत्तरी भारत का पहला तिरुपति मंदिर है ।
- स्यानण का मंदिर ➡ स्यानण गाँव की डूंगरी पर काली मां का प्रसिद्ध मंदिर है ।
- सागर सिंधी मंदिर ➡ यह अपनी बेजोड़ कांच की जड़ाई और स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है ।
- इच्छापूर्ण बालाजी ➡ यह चुरू जिले के सरदारशहर तहसील में स्थित है ।
- डूँगर बालाजी ➡ ये मंदिर चुरू जिले के बिदासर तहसील में गोपालपुरा गांव के पास एक पहाड़ी पर स्थित है ।
(12) दौसा जिले के प्रमुख मंदिर
- मेहंदीपुर बालाजी ➡ हनुमानजी का यह प्रसिद्ध मंदिर सिकन्दरा से महुवा के बीच पहाड़ी के पास स्थित है । दो पहाड़ियों के बीच की घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी कहते हैं ।
- हर्षद (समृद्धि देवी) माता का मंदिर (आभानेरी)➡ यह मंदिर आठवीं शताब्दी की प्रतिहार कला का अनुपम उदाहरण है । यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय का है । इस मंदिर का निर्माण राजा चाँद ने करवाया था । यह मंदिर महामेरू शैली में बना हुआ है । इस मंदिर में लगभग 33 करोड़ देवी देवताओं के चित्र बनाए गए हैं । महमूद गजनवी ने इस मंदिर को क्षतिग्रस्त किया ।
- झांझीरामपुरा ➡ झांझीरामपुरा की स्थापना ठाकुर रामसिंह ने की । यहाँ झाझेश्वर महादेव का मंदिर है । यहाँ एक ही जलहरी में 121 महादेव हैं । यहाँ काल बाबा का मंदिर स्थित है ।
- आंतरी चतुर्भुज नाथ ➡ बामनवास (लालसोट) के रिवाली गाँव में ।
(13) धौलपुर जिले के प्रमुख मंदिर
- सैपऊ महादेव ➡ पार्वती नदी किनारे सैपऊ कस्बे मंदिर में चमत्कारी शिवलिंग है ।
- महाकालेश्वर मंदिर ➡ सरमथुरा कस्बे में स्थित इस मंदिर में भाद्रपद शुक्ला सप्तमी से चतुर्दशी तक विशाल मेला भरता है ।
- मचकुंड तीर्थ ➡ यह प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल है जिसे सभी तीर्थों का भांजा कहा गया है । यह गंधमादन पर्वत पर स्थित है । यहाँ गुरु गोविंद सिंह की स्मृति में शेर शिकार गुरुद्वारा बना हुआ है ।
- राधा बिहारी मंदिर ➡ धौलपुर कस्बे में धौलपुर पैलेस के पास स्थित भव्य मंदिर जिसमें ताजमहल की तरह ही बारीक नक्काशी धौलपुर के लाल स्टोन पर की गई है ।
(14) डूँगरपुर जिले के प्रमुख मंदिर
- देव सोमनाथ ➡ यह प्राचीन शिव मंदिर सोम नदी के किनारे देवगांव में स्थित है । यह गुर्जर-प्रतिहार कालीन महामारू शैली का पंचायतन मंदिर है ।
- बेणेश्वर धाम ➡ माही, सोम और जाखम नदियों के संगम पर नेवटापारा गाँव के पास स्थित बेणेश्वर धाम आदिवासियों का महातीर्थ है । इसे महारावल आसकरण में बनवाया था । भारत का एकमात्र मंदिर है जहां खंडित शिवलिंग की पूजा होती है । इस स्थान पर माघ माह में विशाल मेला लगता है जो आदिवासियों का कुंभ, बांगड़ का कुंभ और बांगर का पुष्कर कहलाता है ।
- गवरी बाई का मंदिर ➡ वागड़ की मीरां गवरी बाई का मंदिर डूंगरपुर में महारावल शिवसिंह ने निर्मित कराया ।
- संत मावजी का मंदिर (साबला) ➡ पूंजपुर के निकट साबला गांव में संत मावजी का मुख्य हरि मंदिर है । मावजी को विष्णु का कल्कि अवतार माना जाता है ।
- विजय राजेश्वर मंदिर ➡ गैबसागर (डूँगरपुर)
- नागफैनजी मंदिर ➡ इस मंदिर में देवी पद्मावती , नागफैनजी पार्श्वनाथ व धरणेन्द्र की मूर्तियां हैं ।
- वसुंधरा देवी का मंदिर ➡ यह प्राचीन मंदिर डूंगरपुर के वसूंदरा गाँव में स्थित है ।
- बोरेश्वर महादेव का मंदिर ➡ सोलज गाँव के निकट सोम नदी के किनारे स्थित है ।
- भुनेश्वर ➡ यह शिव मंदिर डूंगरपुर से 9 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है ।
- मुरली मनोहर का मंदिर ➡ महारावल वैरिशाल की रानी शुभकुँवरी ने बनवाया ।
- शिवज्ञानेश्वर मंदिर ➡ महारावल शिवसिंह द्वारा गैब सागर झील के तट पर अपनी माता की स्मृति में बनवाया ।
- फूलेश्वर महादेव मंदिर ➡ महारावल शिवसिंह की रानी फूलकुंवरी ने बनवाया ।
- राधे बिहारी का मंदिर ➡ महारावल उदयसिंह द्वित्तीय द्वारा निर्मित मंदिर ।
- महालक्ष्मी का मंदिर ➡ महारावल विजय सिंह जी अपनी माता हिम्मत कुँवरी की स्मृति में बेणेश्वर में यह मंदिर बनवाया ।
- रामचंद्र जी का मंदिर ➡ गैब सागर की पाल पर महारावल उदयसिंह द्वित्तीय की पटरानी उम्मेद कुँवरी द्वारा निर्मित ।
- गोवर्धन नाथ का मंदिर ➡ इस मंदिर का निर्माण महारावल पुंजराज ने करवाया था ।
(15) हनुमानगढ़ जिले के प्रमुख मंदिर
- गोगामेडी ➡ ‘सर्पों के देवता’ एवं ‘जाहरपीर’ आदि नामों से प्रसिद्ध लोकदेवता गोगाजी के समाधि स्थल गोगामेडी (नोहर, हनुमानगढ़) में भद्रपद कृष्णा नवमी पर एक माह का गोगामेडी का मेला भरता है । गोगामेडी को ‘धुर मेड़ी’ भी कहते हैं । गोगामेडी बनावट मकबरे के समान है । यहाँ ‘बिस्मिल्लाह’ शब्द अंकित है । यह स्थल सांप्रदायिक सद्भाव एवं एकता की मिसाल है ।
- सिला माता ➡ हनुमानगढ़ में प्राचीन सरस्वती नदी के प्रवाह क्षेत्र में स्थित सिला माता का स्थान जिसे मुस्लिम संप्रदाय के अनुयायी सिला पीर भी कहते हैं । इस सिला पर नमक मिलाकर पानी चढ़ाया जाता है ।
- भद्रकाली मंदिर ➡ हनुमानगढ़ के अमरपुरा थेहड़ी में स्थित मां भद्रकाली मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र सुदी अष्टमी और नवमी को मेला भरता है । इस मंदिर की स्थापना बीकानेर के महाराजा रामसिंह ने की थी ।
- ब्राह्मणी माता (पल्लू) ➡ पल्लू में प्राचीन गढ़ कल्लूर के खंडहरों पर स्थित माता ब्रह्माणी के मंदिर में प्रत्येक माह की शुक्ला अष्टमी को मेला भरता है ।
(16) जयपुर जिले के प्रमुख मंदिर
- गलताजी ➡ ‘जयपुर के बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध प्राचीन पवित्र कुंड जहां गालब ऋषि का आश्रम था । वर्तमान में बंदरों की अधिकता के कारण यह Monkey Valley के नाम से प्रसिद्ध है । गलता को ‘उत्तर तोताद्रि’ माना जाता है । संत कृष्णदास पयहारी ने यहाँ रामानंदी संप्रदाय की पीठ की स्थापना की । पर्वत की सर्वोच्च ऊंचाई पर सूर्य मंदिर का निर्माण सवाई जयसिंह के दीवान कुपाराम द्वारा बनाया गया था ।
- देवयानी ➡ यह सांभर के निकट देवयानी गांव में स्थित एक पौराणिक तीर्थ है । यहां प्रसिद्ध देवयानी कुण्ड है , जिसमें वैशाख पूर्णिमा को विशाल स्नान पर्व का आयोजन होता है ।
- शीतला माता का मंदिर ➡ चाकसू में शील की डूँगरी नामक पहाड़ी पर शीतला माता का मंदिर है । शीतला माता का पुजारी कुम्हार होता है । यह मंदिर जयपुर के महाराजा श्री माधोसिंह जी ने बनवाया था । यहाँ शीतला माता खंडित अवस्था में पूजी जाती है ।
- गणेश मंदिर ➡ जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर मोती डूंगरी की तलहटी में गणेश जी का मंदिर स्थित है , जो महाराजा माधोसिंह प्रथम के काल में बनाया गया ।
- बिरड़ा मंदिर (लक्ष्मी नारायण मंदिर ) ➡ इसका निर्माण प्रसिद्ध उद्योगपति गंगा प्रसाद बिड़ला के हिंदुस्तान चैरिटेबल ट्रस्ट ने करवाया । इस मंदिर में बीएम बिरड़ा संग्रहालय है ।
- श्री गोविंददेव जी का मंदिर ➡ गौड़ीय संप्रदाय के इस मंदिर का निर्माण 1735 में जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया । यह मंदिर जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर वाला मंदिर है ।
- जगत शिरोमणि मंदिर ➡ इस मंदिर का निर्माण राजा मानसिंह प्रथम की रानी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की असमय मृत्यु पर उनकी याद में बनवाया । यह आमेर राज्य सबसे अधिक विख्यात एवं भव्य प्रसाद है । इस मंदिर में कृष्ण की काली मूर्ति को मानसिंह ने चित्तौड़ विजय के पश्चात् लाए थे । इसे लालजी का मंदिर भी कहते हैं ।
- चूलगिरी के जैन मंदिर ➡ जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर जयपुर शहर के बाहर ऊंची पहाड़ी पर यह जैन मंदिर है । इसका निर्माण जैन आचार्य देशभूषण जी महाराज की प्रेरणा से कराया गया । यहाँ मंदिर के मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान है ।
- कल्कि मंदिर ➡ बड़ी चौपड़ के नीचे कलयुग के अवतार कल्कि भगवान का ऐतिहासिक विष्णु मंदिर है । यह मंदिर संसार का पहला कल्कि मंदिर है । इस मंदिर का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने करवाया ।
- पदमप्रभु मंदिर (पदमपुरा-बाड़ा) ➡ जयपुर नगर से 35 किलोमीटर दूर गांव पदमपुरा में यह विशाल दिगंबर जैन मंदिर है । यहाँ पदम प्रभु की प्रतिमा स्थापित है ।
- शिला माता का मंदिर (अन्नपूर्णा देवी) ➡ आमेर महलों में शीला देवी का दूग्ध धवल मंदिर है । शिलामाता कच्छवाहा राजपरिवार की आराध्य देवी है । शिला माता की यह मूर्ति पाल शैली में काले संगमरमर में निर्मित है । इस मूर्ति को जयपुर के महाराजा मानसिंह प्रथम बंगाल से लाए थे ।
- नकटी माता का मंदिर ➡ जयपुर के निकट अजमेर रोड पर जय भवानीपुरा में नकटी माता का प्रतिहारकालीन मंदिर है ।
- खलकाणी माता का मंदिर ➡ जयपुर के निकट लुणियावास गांव में खलकाणी माता का प्रसिद्ध मंदिर है । यहाँ प्रतिवर्ष गधों का मेला आयोजित होता है ।
- जमुवाय माता का मंदिर ➡ जयपुर के निकट जमवारामगढ़ में स्थित इस मंदिर का निर्माण दुलहराय ने करवाया था ।
- वामनदेव मंदिर ➡ जयपुर जिले की शाहपुरा तहसील के मनोहरपुर कस्बे के मध्य स्थित राज्य का भगवान वामन का एकमात्र वामनदेव मंदिर वास्तुकला का नायाब नमूना है ।
- बृहस्पति मंदिर ➡ राजस्थान का प्रथम बृहस्पति मंदिर जहां बृहस्पति भगवान की सेवा पाँच फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है ।
- नृसिंह मंदिर ➡ आमेर में स्थापित इस मंदिर की प्रतिष्ठा राजा पृथ्वीराज की रानी बालाबाई के गुरू कृष्णदास पयहारी ने नृसिंह की शालिग्राम रूप की मूर्ति को एक कक्ष में प्रतिष्ठित कर की थी ।
- ज्वाला माता का मंदिर ➡ जोबनेर कस्बे में ज्वाला माता का प्राचीन शक्तिपीठ है । ज्वाला माता खंगारोतों की कुल देवी है ।
- त्रयंबकेश्वर मंदिर ➡ यह राजस्थान का पहला त्रयंबकेश्वर मंदिर चाकसू में स्थित है ।
(17) जैसलमेर के प्रमुख मंदिर
- रामदेवरा ➡ पोकरण के निकट रुणिचा बाबा रामदेव का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है । यह राष्ट्रीय एकता एवं सांप्रदायिक सद्भाव का मुख्य केंद्र है । इस मंदिर के पुजारी तँवर जाति के राजपूत होते हैं । यात्रियों को ‘जातरू’ कहा जाता है । रामदेव जी को प्रिय श्वेत तथा नीले घोड़े चढ़ाए जाते हैं । रामदेवरा में उनकी बहन डाली बाई की समाधि भी है । रामदेवरा से 12 किलोमीटर दूरी पर पंच पीपली नामक धार्मिक स्थल है ।
- अमर सागर जैन मंदिर ➡ जैसलमेर के निकट अमर सागर तालाब के किनारे 1871 में बना यह भव्य जैन मंदिर हिम्मतराम बाफना द्वारा बनाया गया है ।
स्वांगिया जी के मंदिर ➡ स्वांगिया जी भाटियों की कुलदेवी है । स्वांगिया देवी का प्रतीक त्रिशूल है । जैसलमेर में इनके सात मंदिर है –
(१) काला डूंगर राय का मंदिर
(२) भादरियाराय का सुग्गा माता मंदिर
(३) तनोट राय का मंदिर (थार की वैष्णो देवी ) (४) तेमडीराय का मंदिर (द्वितीय हिंगलाज माता) (५) घंटियाली राय का मंदिर
(६) देगराय का मंदिर
(७) गजरूप सागर देवालय
- आदिनारायण का मंदिर ➡ जैसलमेर के यदुवंशी शासकों के आदि देव के रूप में आदिनारायण का मंदिर जैसलमेर दुर्ग में स्थित है । आदिनारायण का अष्टधातु का विग्रह यहां ‘टीकमराय’ के नाम से प्रसिद्ध है ।
- भगवान लक्ष्मी नाथ का मंदिर ➡ जैसलमेर दुर्ग में स्थित इस मंदिर का निर्माण रावल लक्ष्मण सिंह के राज्यकाल में किया गया । इसी जन-जन का मंदिर भी कहते हैं ।
- पार्श्वनाथ मंदिर ➡ जैसलमेर दुर्ग स्थित इस मंदिर में मूर्तियों की कुल संख्या 1235 है । इसके शिल्पकार का नाम घन्ना था ।
- संभवनाथ मंदिर ➡ इस मंदिर की स्थापना रावल बैरसिंह के समय हुए । इस देवालय के रंगमहल की गुम्बदनुमा छत दिलवाड़ा मंदिर के समान है । इस देवालय में ‘जिनदत्तसूरी ज्ञान भंडार’ स्थित है । इसमें तिल के बराबर जैन प्रतिमा है ।
- शांतिनाथ एवं कुन्थुनाथ मंदिर ➡ यह जुड़वाँ मंदिर है । प्रथम तल का मंदिर कुन्थुनाथ व ऊपर का शांतिनाथ जी को समर्पित है ।
- चंद्रप्रभु मंदिर ➡ यह तीन मंजिला विशाल जैन मंदिर भगवान चंद्रप्रभु को समर्पित है । रणकपुर के मंदिरों के स्थापत्य के समान इस मंदिर को 12 वीं सदी में निर्मित किया गया था । अलाउद्दीन खिलजी ने जैसलमेर पर आक्रमण के समय इसका विध्वंस कर दिया गया था ।
- लोद्रवा जैन मंदिर ➡ भगवान पर्श्वनाथ को समर्पित है जैन मंदिर । इस मंदिर में सुमेरु पर्वत की संरचना कर अष्टधातु का एक कल्पवृक्ष निर्मित किया गया है ।
- रामकुंडा का मंदिर ➡ यह काक नदी के किनारे स्थित है । इस मंदिर का निर्माण महारावल अमरसिंह की पत्नी मनसुखी देवी ने करवाया ।
- वैशाखी हिंदू महातीर्थ ➡ जैसलमेर के ब्रह्मसागर के पास वैशाखी नामक प्राचीन हिंदू तीर्थ है ।
- चून्धी गणेश मंदिर ➡ जैसलमेर में लोद्रवा मार्ग पर भीलों की ढाणी के पास काक नदी के मध्य गणेश प्राकृतिक प्रतिमा है । इस स्थान को च्यवन ऋषि का आश्रम कहा जाता था । कालान्तर में इसका नाम चून्धी हो गया ।
(18) जालौर जिले के प्रमुख मंदिर
- श्री लक्ष्मीवल्लभ पार्श्वनाथ (72 जिनालय) ➡ भीनमाल में स्थापित यह देश का सबसे बड़ा जैन मंदिर है । यह मंदिर सर्वतोभद्र श्रीयंत्र रेखा पर बनाया गया है । जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ के नाम पर इसका नाम ‘श्री लक्ष्मीवल्लभ पार्श्वनाथ 72 जिनालय’ रखा गया है ।
- सिरे मंदिर ➡ जालौर में कन्यागिरी पर्वत पर यह स्थान योगीराज जालंधरनाथ जी की सिद्ध तपोभूमि है । वर्तमान मन्दिर का निर्माण मारवाड़ रियासत के शासक मानसिंह ने करवाया था ।
- महोदरी (आशापुरी) माता मंदिर ➡ मोदरां (जालौर) के सोनगरा चौहान शासकों की कुलदेवी थी । मार्कण्डेय पुराण के दुर्गो सप्तशती नामक भाग में भगवती दुर्गा का महोदरी अर्थात् बड़े पेट वाली नाम वर्णित है ।
- ओपेश्वर महादेव मंदिर ➡ रामसीन में स्थित यह मंदिर गुर्जर-प्रतिहारकालीन है । मंदिर के निकट गोमती कुंड बावड़ी है ।
- जगत्स्वामी सूर्य मंदिर (जगमडेरा) ➡ भीनमाल
- पातालेश्वर शिव मंदिर ➡ सेवाड़ा गाँव
- सुण्डा माता मंदिर ➡ दांतलावास गाँव में यह मंदिर सुण्डा पर्वत पर 1220 मीटर की ऊंचाई पर एक प्राचीन गुफा में स्थित है । यहाँ माँ अहेटेश्वरी देवी का मंदिर है जिसे चामुंडा माता के नाम से जाना जाता है ।
- नन्दीश्वर दीप तीर्थ ➡ यह मंदिर भीनमाल तहसील में स्थित है । यहाँ 52 जिनालय है ।
- मंडोली तीर्थ ➡ यह जैन संत गुरूवर विजय शांति सूरीश्वर महाराज जी को समर्पित जैन मंदिर है ।
- वीर फत्ताजी का मंदिर ➡ साथू गाँव
- सुभद्रा माता का मंदिर (धूमड़ा माता ) ➡ भाद्राजून
- क्षेमंकरी (खीमज माता) ➡ यह भीनमाल के पास क्षेमंकरी पहाड़ी पर स्थित है । इस माता को मार्गों की रक्षा कर पथ को सुपथ बनाने वाली देवी कहा जाता है । यह सोलंकियों की कुलदेवी मानी जाती है ।
- जगन्नाथ महादेव मंदिर ➡ सोनगरा चौहानों के संस्थापक कीर्तिपाल की पुत्री रुदल देवी द्वारा बनाया गया शिवालय ।
(19) झालावाड़ जिले के प्रमुख मंदिर
- शीतलेश्वर महादेव मंदिर (चंद्रमौलिश्वर) ➡ चंद्रभागा नदी के तट पर झालावाड़ के इस मंदिर का निर्माण राजा दुर्ग्गण के सांमत वाप्पक ने 689 ई. में करवाया था । यह देवालय राजस्थान की तिथियुक्त देवालयों में सबसे प्राचीन है ।
- झालरापाटन का वैष्णव मंदिर (पद्मनाभ मंदिर) ➡ इसे सात सहेलियों का मंदिर भी कहते हैं । कर्नल टॉड ने इसे चारभुजा का मंदिर भी कहा है । यह मंदिर कच्छपघात शैली का है । इस मंदिर में सूर्य की मूर्ति घुटनों तक जूते पहने हुए हैं ।
- झालरापाटन का शांतिनाथ जैन मंदिर ➡ 10-12वीं शताब्दी के मध्य बना यह मंदिर कच्छपघात शैली का है ।
- चांदखेड़ी का जैन मंदिर ➡ झालावाड़ के खानपुर में यह एक प्राचीन जैन मंदिर है जिसमें आदिनाथ की विशाल प्रतिमा स्थापित है ।
- चंद्रभागा मंदिर ➡ चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित सातवीं सदी का मंदिर गुप्तोत्तरकालीन मंदिर है ।
- कायावर्णेश्वर का मंदिर ➡ डग कस्बे के निकट क्यासरा गांव में यह मंदिर स्थित है । इस मंदिर में भगवान शिव का बाणलिंग विद्यमान है जिसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि इसका आकार प्रति 12 वर्षों में एक सुपारी के बराबर बढ़ता है ।
- हरिहरेश्वर मंदिर ➡ झालावाड़ की बदराना गांव में स्थित मंदिर । इस मंदिर में आधा भाग शिव का आधा भाग विष्णु का मूर्ति स्थापित है ।
- कमलनाथ मंदिर ➡ मगवास गाँव
- नागेश्वर पार्श्वनाथ ➡ चौमहला (झालावाड़)
- द्वारिकाधीश देवालय ➡ झालरापाटन में यह वैष्णव संप्रदाय के बल्लभ संप्रदाय का प्रसिद्ध धाम है । इसी गोमती सागर के जसवा ओडनी का तालाब भी कहा जाता है । इस देवालय का निर्माण 1796 में कोटा राज्य के प्रधानमंत्री झाला जालिम सिंह ने करवाया था । महाराजा राजेंद्र सिंह ने इस मंदिर में हरिजनों को प्रवेश करवाया था ।
(20) झुंझुनूँ जिले के प्रमुख मंदिर
- लोहार्गल ➡ मालकेतु पर्वत की शंखाकार घाटी में यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थित है । इस तीर्थ की 24 कौसी परिक्रमा प्रसिद्ध है । इसे मालखेत जी की परिक्रमा भी कहा जाता है । यहाँ बोरखंडी शिखर एवं सूर्य कुंड आदि दर्शनीय स्थान है ।
- राणीसती का मंदिर ➡ राणी सती का वास्तविक नाम नारायणी था जो अग्रवाल जाति की थी । यह मंदिर झुंझुनू में है । इसे नारायणी बाई का मंदिर भी कहते हैं ।
- रघुनाथजी चूड़ावत का मंदिर ➡ खेतड़ी के इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण राजा बख्तावर की रानी चूड़ावत ने करवाया था । इसमें श्री राम व लक्ष्मण की मूछों वाली मूर्तियों प्रतिष्ठित है ।
(21) जोधपुर जिले के प्रमुख मंदिर
- अधरशिला रामसापीर मंदिर ➡ यह मंदिर बाबा रामदेव का मंदिर है जो जालोरिया का बास में एक सीधी चट्टान पर स्थित है । यहाँ बाबा रामदेव जी के पगल्ये स्थापित है ।
- सम्बोधिधाम ➡ जोधपुर में कायलाना झील के पास इसका निर्माण जैन धर्मावलंबियों द्वारा कराया गया था ।
- सच्चियां माता का मंदिर ➡ 11 वीं सदी में निर्मित ओसियाँ (जोधपुर) में स्थित यह मंदिर हिंदू और ओसवालों में समान रूप से पूजा जाता है । यह ओसवाल समाज की कुलदेवी का मंदिर है । यह मंदिर महिष मर्दिनी की संजीव प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है ।
- महामंदिर ➡ नाथ संप्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल । इस मंदिर का निर्माण जोधपुर नरेश महाराजा मानसिंह ने करवाया था । यह 84 खंभों पर निर्मित भव्य मंदिर है ।
- औसियाँ ➡ 8 से 11वीं सदी के ब्राह्मण व जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध । सूर्य मंदिर, हरिहर मंदिर, सच्चियां माता का मंदिर आदि प्रमुख हैं । इन मंदिरों की शैली ‘महामारू शैली’ है । राजस्थान में पंचायतन मंदिरों की शैली के सर्वप्रथम उदाहरण औसियां के हरिहर मंदिर हैं । यहाँ के सूर्य मंदिर को ‘राजस्थान का ब्लैक पैगोडा’ व ‘राजस्थान का कोणार्क’ भी कहते हैं ।
- 33 करोड़ देवताओं की साल ➡ मंडोर
(22) करौली जिले के प्रमुख मंदिर
- कैलादेवी ➡ कैलादेवी करौली के यदुवंशी राजवंश की कुलदेवी थी । त्रिकूट पर्वत की घाटी में कालीसिल नदी के किनारे मंदिर स्थित है । यहाँ कैलादेवी का प्रसिद्ध लक्खी मेला भरता है ।
- मदन मोहनजी का मंदिर ➡ करौली नरेश गोपालसिंह इस मूर्ति को जयपुर से लाए व वर्तमान देवालय का निर्माण करवाया था । यह मंदिर माध्वी गौड़ीय संप्रदाय का मंदिर है ।
- श्री महावीरजी ➡ प्रदेश के पूर्वी भाग में करौली जिले के हिंडौन उपखंड में गंभीरी नदी के किनारे स्थित श्री महावीरजी विश्व विख्यात लोक तीर्थ हैं । यह स्थान पूर्व में चांदनपुर के नाम से जाना जाता था ।
- अंजनी माता का मंदिर ➡ अंजनी माता की हनुमान जी को स्तनपान कराती हुई भारत की एकमात्र मूर्ति है ।
(23) कोटा जिले के प्रमुख मंदिर
- मथुराधीश मंदिर ➡ कोटा नगर में पाटनपोल के निकट स्थित मथुराधीश मंदिर वल्लभाचार्य संप्रदाय के प्रथम महाप्रभु की पीठिका है ।
- कंसुआ का शिव मंदिर ➡ आठवीं शताब्दी में निर्मित । कहा जाता है कि कण्व ऋषि का आश्रम यही पर था । यह गुप्तोत्तर कालीन शिवालय है । यहाँ सहस्त्र शिवलिंग है । यहाँ आठवीं शताब्दी की कुटिल लिपि में शिवगण मौर्य का शिलालेख है ।
- चारचौमा का शिवालय ➡ दीगोद तहसील के चौमा मालियां गाँव में स्थित गुप्तकालीन शिव मंदिर ।
- विभीषण मंदिर (कैथून) ➡ यह भारत का एकमात्र विभीषण मंदिर है ।
- भीम चौरी ➡ हाड़ौती क्षेत्र में दर्रा मुकुंदरा के मध्य स्थित गुप्तकालीन शिव मंदिर । यह राजस्थान के ज्ञात गुप्तकालीन मंदिरों में प्राचीनतम है । इसे भीम का मंडप माना जाता है ।
- बूढा़दीत का सूर्य मंदिर ➡ कोटा में दीगोद तहसील में यह पंचायतन शैली का प्राचीनतम सूर्य मंदिर हैं ।
- खुटुम्बरा शिव मंदिर ➡ उड़ीसा के मंदिरों के शिखरों से साम्य रखने वाला प्राचीन मंदिर ।
- त्रिकाल चौबीसी मंदिर ➡आर के पुरम कोटा में निर्मित इस मंदिर में तीनों कालों के 72 तीर्थकरों की प्रतिमाएं विराजमान है । यह मंदिर राज्य में इस तरह का दूसरा तथा हाड़ौती क्षेत्र का पहला त्रिकाल चौबीसी मंदिर है । इस मंदिर के मूलनायक मुनि सुव्रतनाथ है ।
- गेपरनाथ शिवालय ➡ यह गुप्तकालीन शिवालय कोटा-रावतभाटा मार्ग पर है । यहाँ गेपरनाथ जलप्रपात भी है ।
- श्री डांढ देवी माताजी मंदिर ➡ यह मंदिर उम्मेदगंज, कोटा में स्थित है । यह मंदिर कैथून के तँवर राजपूतों द्वारा कोटा में 10वीं शताब्दी में बनवाया गया ।
- शिवमठ मंदिर (चंद्रेसल) ➡ यह शिव मंदिर नागा साधुओं द्वारा 10वीं शताब्दी में चंद्रेसल नदी पर बनाया है । इस नदी में मगरमच्छ बहुतायत से पाए जाते हैं ।
- करणेश्वर महादेव ➡ कनवास (सांगोद)
- गोदावरी धाम ➡ यह कोटा में स्थित भगवान हनुमान जी का मंदिर है । यह चंबल नदी के किनारे स्थित है ।
(24) नागौर जिले के प्रमुख मंदिर
- ब्रह्माणी माता का मंदिर ➡ इस बरमाया का मंदिर या योगिनी का मंदिर भी कहा जाता है ।
- गुसाईं मंदिर ➡ गुस्से वाले अवतार-गुसाई जी का यह मंदिर जुंजाला में स्थित है । लोक मान्यता के अनुसार इस प्रसिद्ध स्थान पर ही वामन ने तीसरा डग भरा था ।
- चारभुजानाथ मंदिर ➡ मेड़ता में स्थित इस मंदिर में मीराबाई, तुलसीदास , रैदास की आदमकद प्रतिमाएँ स्थित है । इस मंदिर की स्थापना राव दूदा ने की ।
- कैवाय माता मंदिर ➡ नागौर जिले में परबतसर के निकट किणसरिया गाँव में पर्वत शिखर पर बना कैवायमाता का मंदिर अति प्राचीन है ।
- दधिमती माता का मंदिर ➡ नागौर की जायल तहसील में गोठ और मांगलोद नामक गांव की सीमा पर यह मंदिर दधिमती माता के नाम से विख्यात है ।
- भवांल माता का मंदिर ➡ मेड़ता से 20 किलोमीटर दूर भवांल गांव में स्थित है । इस शक्तिपीठ में चामुंडा और महिषमर्दिनी के स्वरूपों की पूजा होती है ।
- बंशीवाले का मंदिर ➡ नागौर में स्थित इस मंदिर को मुरलीधर का मंदिर भी कहा जाता है ।
- पाडामाता का मंदिर ➡ डीडवाना झील के निकट सरकी माता अथवा पाडामाता का मंदिर है ।
- झोरड़ा ➡ यह गांव बाबा हरिराम की जन्मस्थली है । बाबा हरिराम रेगिस्तानी क्षेत्र के सांप बिच्छू द्वारा डसे लोगों का उपचार करते थे ।
- खरनाल ➡ यह लोकदेवता तेजाजी की जन्मभूमि है । खरनाल गांव में वीर तेजाजी का एक छोटा मंदिर बना हुआ है ।
- रैण ➡ मेड़ता में स्थित रैण रामस्नेही संप्रदाय के महात्मा दरियावजी महाराज की कर्म स्थली है ।
(25) प्रतापगढ़ जिले के प्रमुख मंदिर
- युगल किशोर का विष्णु मंदिर ➡ महारावत सामंतसिंह की रानी दौलत कुँवरी ने देवलिया में युगल किशोर का विष्णु मंदिर बनवाया ।
- रसिक बिहारी का मंदिर ➡ महारावत रघुनाथ सिंह की महारानी केसर कुँवरी ने देवलिया के राजमहलों महलों में रसिक बिहारी का मंदिर बनवाया
(26) पाली जिले के प्रमुख मंदिर
- चौमुखा जैन मंदिर (रणकपुर) ➡ पाली की देसूरी तहसील में स्थित रणकपुर का प्रमुख का जैन मंदिर माद्री पर्वत की छाया में रणकपुर गांव में महाराणा कुंभा के काल में धरणकशाह द्वारा शिल्पी देपा की देखरेख में 1439 में बनवाया गया था । यह मंदिर भगवान आदिनाथ का मंदिर है । यह ‘नलिनी गुल्म देव विमान’ के आकार प्रकार का है । पूरा मंदिर 1444 स्तंभों पर खड़ा है । इन मंदिरों को स्तंभों का वन भी कहते हैं । इस मंदिर को कवि माघ ने ‘त्रिलोक दीपक’ व आचार्य विमल सूरी ने ‘नलिनी गुल्म विमान’ कहा है ।
- मूंछाला महावीर ➡ कुंभलगढ़ अभयारण्य में घाणेराव के निकट स्थिति 10 वीं सदी के इस मंदिर में मूछों वाले महावीर स्वामी की मूर्ति स्थापित है ।
- नारलाई ➡ पाली में स्थित यह स्थान जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है । नारलाई के जैन मंदिरों में गिरनार तीर्थ बहुत प्रसिद्ध है , जिसमें नेमीनाथ की श्यामवर्णी प्राचीन प्रतिमा है । यहाँ नेमी-राजुल के पद चिन्ह है । यहाँ भंवर गुफा भी है ।
- वरकाणा ➡ पार्श्वनाथ भगवान का प्राचीन मंदिर ।
- राता महावीर का जैन मंदिर ➡ इस मंदिर की तुलना रणकपुर के जैन मंदिर से की जाती है ।
- सांडेराव का शांतिनाथ जिनालय ➡ यह लगभग 1400 वर्ष पुराना जैन मंदिर है इसका निर्माण पांडवों के वंशधर गंधर्वसेन ने कराया था ।
- सिरियारी ➡ पाली जिले के छोटे से गांव सिरियारी में जैन श्वेतांबर तेरापंथ के प्रथम आचार्य श्री भिक्षु का निर्वाण हुआ था ।
- निंबो का नाथ महादेव ➡ पाली जिले में फालना व सांडेराव मार्ग पर पहाड़ी की तलहटी में स्थित मंदिर ।
- सालेश्वर महादेव ➡ पाली के निकट गुढ़ा प्रतापसिंह गांव की पहाड़ी गुफा में स्थित । यहाँ स्थित ‘भीमगौड़ा’ वनवासी पांडवों की याद दिलाता है ।
- नाणा जैन मंदिर ➡ ये लगभग 2500 वर्ष पुराने जैन मंदिर है जो भगवान महावीर के जीवन काल में ही निर्मित हो चुके थे । यहां की मूर्तियों को ‘जीवन्त स्वामी’ के नाम से संबोधित किया जाता है ।
- परशुराम गुफा ➡ सादड़ी से कुछ दूरी पर अरावली पर्वत श्रृंखला में परशुराम की गुफा स्थित है । गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग है । इसे ‘राजस्थान का अमरनाथ’ कहा जाता है ।
- फालना जैन स्वर्ण मंदिर ➡ यह राजस्थान का प्रथम स्वर्ण मंदिर है जो अपने स्थापत्य तथा गुंबद पर स्वर्ण के लिए विशेष पहचान रखता है । इस मंदिर के मूलनायक शंखेश्वर पार्श्वनाथ हैं । श्वेतांबर संप्रदाय के इस मंदिर को ‘गेटवे ऑफ गोडवान’ तथा ‘मिनी मुंबई’ के नाम से जाना जाता है ।
- मरकण्डी माता का मंदिर ➡ नीमाज (पाली)
- नेमिनाथ का मंदिर (वेश्याओं का मंदिर ) ➡ रणकपुर
(27) राजसमंद जिले के प्रमुख मंदिर
- श्री नाथद्वारा ➡ राजसमंद जिले में सीहाड़ गांव में स्थित ‘नाथद्वारा’ बल्लभ संप्रदाय (पुष्टिमार्गीय) वैष्णवों का प्रमुख तीर्थ है । यहाँ श्रीनाथ जी का मंदिर है । श्रीनाथजी को ‘7 ध्वजा का स्वामी’ कहा जाता है । श्राद्ध पक्ष में केले के पत्तों की सांझी मंदिर में सजाई जाती है । यह मंदिर श्री कृष्ण की आठ झांकी के लिए प्रसिद्ध है । श्रीनाथजी का पाना राजस्थान में सबसे अधिक कलात्मक माना जाता है , इसमें 24 श्रृंगारों का चित्रण किया गया है ।
- द्वारिकाधीश मंदिर (कांकरोली) ➡ यहाँ पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय का सुप्रसिद्ध द्वारिकाधीश मंदिर स्थित है ।
- पिप्पलाद माता का मंदिर ➡ उनवास (हल्दीघाटी ) में है । यह मंदिर मेवाड़ के गुहिल सम्राट अल्लट के राज्यकाल में 10 वीं शताब्दी में निर्मित हुए थे ।
- गड़बोर का चारभुजा नाथ मंदिर ➡ यहाँ चारभुजा नाथ जी की बड़ी पुरानी चमत्कारी प्रतिमा है । इस मंदिर के पास गोमती नदी बहती है । इस मंदिर का निर्माण महाराणा मोकल द्वारा करवाया गया था ।
- कुंतेश्वर महादेव मंदिर ➡ फरारा गाँव (राजसमंद )
- रोकड़िया हनुमान
- परशुराम महादेव ➡ खमनौर के पास इस स्थान से बनास नदी का उद्गम होता है । यहाँ भैंरोजी का मठ भी है ।
- मचीन्द्र ➡ राजसमंद जिले में अरावली पर्वत श्रृंखला में मचीन्द्र नामक स्थान पर भील योद्धा सरदार पूँजा की प्रतिमा स्थापित है । इसे मत्स्येन्द्रनाथ की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है ।
- भगवान स्वरूप नारायण मंदिर ➡ यह कुंभलगढ़ तहसील में सेवात्री ग्राम में गोमती नदी के समीप स्थित है ।
(28) सवाई माधोपुर के प्रमुख मंदिर
- त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर ➡ रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क में स्थित है । यहाँ गणेश जी के मुख की पूजा की जाती है ।
- घुश्मेश्वर महादेव (शिवाड़)➡ यहाँ भगवान शिव का बारहवाँ व अंतिम ज्योतिर्लिंग स्थित है ।
- धुँधलेश्वर ➡ गंगापुर सिटी से लगभग 6 किलोमीटर धुँधलेश्वर का प्राचीन शिवालय है । यहाँ भगवान आशुतोष का शिवलिंग स्थित है ।
- रामेश्वरम ➡ खंडार तहसील में चंबल, बनास एवं सीप नदी के संगम पर रामेश्वरम का प्रसिद्ध मंदिर है ।
(29) श्रीगंगानगर के प्रमुख मंदिर
- गुरुद्वारा बुड्ढा जोहड़ ➡ राजस्थान के गंगानगर जिले के रायसिंहनगर कस्बे के पास डाबला गांव के समीप स्थित यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा राजस्थान के प्रमुख गुरुद्वारों में माना गया है । इस गुरुद्वारे का निर्माण संत बाबा फतेह सिंह की देखरेख में करवाया गया । यह राजस्थान का सबसे विशाल गुरुद्वारा है
- डाडा पम्पाराम का डेरा ➡ विजयनगर में पम्पाराम की समाधि स्थित है एवं यह सिक्ख धर्म का प्रसिद्ध स्थल है ।
(30) सीकर जिले के प्रमुख मंदिर
- खाटू श्याम जी ➡ सीकर जिले के खाटू गांव में यह तीर्थ स्थित है । यहाँ भगवान कृष्ण के ही स्वरूप श्यामजी का मंदिर है । यहाँ श्यामजी (बर्बरीक) की शीश पूजा की जाती है । श्याम बाबा को ‘शीशदानी बाबा’ के नाम से भी जाना जाता है ।
- जीणमाता (जयंती माता) ➡ सीकर में रेवासा गांव से दक्षिण की ओर अरावली पर्वतमाला की उपत्यका में यह स्थित है । जीण माता को भँवरों वाली माता भी कहा जाता है ।
- हर्षनाथ का मंदिर ➡ हर्ष की पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर में 10 वीं सदी की लिंगोद्भव मूर्ति में ब्रह्मा व विष्णु को शिवलिंग का आदि एवं अंत जानने हेतु परिक्रमा करते दिखाया गया है । इस मंदिर का निर्माण चौहान शासक विग्रहराज के काल में करवाया गया ।
- शाकंभरी माता का मंदिर ➡ यह आस्था का केंद्र सकराय धाम (सीकर) में अरावली पर्वत में मालकेतु पर्वत पर स्थित है । इस मंदिर में ब्रह्माणी व रुद्राणी की दो मूर्तियां हैं ।
- गणेश्वर का शिव मंदिर ➡ यहाँ गर्म पानी का झरना , जिसे ‘गालव गंगा’ कहते हैं ।
- चित्रकूट धाम ➡ सीकर जिले के श्रीमाधोपुर तहसील में नीमड़ा गांव में स्थित गोपाल मंदिर ।
- श्री पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र ➡ खंडेला गांव एक ओर कांतली नदी के उद्गम स्थल के लिए माना जाता है , दूसरी ओर यहाँ 23वें जैन तीर्थकर पार्श्वनाथ जी का अतिशयकारी मंदिर है ।
- सप्त गौमाता मंदिर ➡ रैवासा गांव में एक सप्त गौमाता मंदिर निर्माण किया गया जो भारत का चौथा एवं राजस्थान का प्रथम सप्त गौमाता मंदिर है ।
(31) सिरोही जिले का प्रमुख मंदिर
- दिलवाड़ा के जैन मंदिर ➡ ये 11वीं व तेरहवीं सदी के सोलंकी कला की अद्भुत उदाहरण है । डाक विभाग ने 14 अक्टूबर 2009 को दिलवाड़ा जैन मंदिर पर डाक टिकट जारी किया । ये मंदिर नागर शैली में बने हैं । कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार ‘दिलवाड़ा के जैन मंदिर ताजमहल के बाद देश की सबसे सुंदर इमारत है ।’ आबू पर्वत पर दिलवाड़ा में मंदिर परिसर में 5 श्वेतांबर मंदिर है जो निम्न है :-
- (१) विमलशाह का जैन मंदिर :- इसका निर्माण गुजरात के सोलंकी महाराजा भीमदेव के मंत्री एवं सेनापति विमलशाह ने महान शिल्पकार कीर्तिधर के निर्देशन में 1031 में करवाया था । यह मंदिर भगवान ऋषभदेव का है । मंदिर में कुल 57 देवरियाँ है ।
- (२) लूणवसहि मंदिर :- इसका निर्माण सोलंकी राजा वीर धवल के महामंत्री वस्तुपाल व तेजपाल द्वारा शिल्पी शोभन देव के निर्देशन में बनवाया । इस मंदिर में 22वें जैन तीर्थ कर भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा स्थापित है । देवालय में देरानी-जेठानी के गोखले निर्मित हैं ।
- (३) खारातारा वसहि पार्श्वनाथजी मंदिर यह मंदिर 15वीं सदी में मंडलीक ने बनवाया था । इसे चौमुखा पार्श्वनाथजी मंदिर व सिलावटों का मंदिर भी कहते हैं ।
- (४) हस्तीशाला महावीर स्वामी मंदिर :-
(५) पित्तलहर या भामाशाह का मंदिर :- जैन तीर्थंकर आदिनाथ की 108 मन की पीतल प्रतिमा के कारण इस मंदिर को पित्तलहर भी कहते हैं ।
कुँवारी कन्या का मंदिर (रसिया बालम) ➡ देलवाड़ा जैन मंदिर के पीछे पर्वत की तलहटी में यह मंदिर स्थित है । यह मंदिर बालम रसिया के आजीवन प्रेम करने के बावजूद कुंवारे रह जाने का गवाह है ।
- ऋषिकेश मंदिर ➡ उमरणी गाँव (आबू रेलवे स्टेशन )
- भूरिया बाबा (गौतम ऋषि महादेव का मंदिर ) ➡ चौटीला गाँव के पास सुकड़ी नदी के किनारे स्थित हैं ।
- सारणेश्वर महादेव ➡ सिरोही में सिरणवा पहाड़ियों में दूधिया तलाब के पास भगवान शिव का 15वीं शताब्दी का है । यह देवड़ा राजकुल के कुलदेवता का मंदिर है ।
- बाजना गणेश ➡ यह मंदिर सिरोही में एक झरने के पास स्थित है । झरने की आवाज के कारण से ‘बाजना गणेश’ कहा जाता है ।
- नंदीवर्धन ➡ इस गांव में भगवान महावीर के बड़े भाई नंदीवर्धन द्वारा महावीर के जीवन काल में बनाया गया मंदिर स्थित है । इसे जीवंत स्वामी का तीर्थ भी कहते है ।
- मारकण्डेश्वर ➡ अजारी गाँव
- मीरपुर के जैन मंदिर ➡ सिरणवा की पहाड़ियों में ।
(32) टोंक जिले के प्रमुख मंदिर
- कल्याण जी का मंदिर (डिग्गी मालपुरा ) ➡ इसका निर्माण मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह के राज्य काल में राजा डिग्वा ने करवाया । यहाँ विष्णु के चतुर्भुज प्रतिमा है । मुस्लिम इसे कलंह पीर के नाम से पुकारते हैं ।
- जोधपुरिया देवधाम ➡ टोंक जिले की औद्योगिक नगरी निवाई में माशी बाँध , मनोहरपुरा के निकट देवनारायण जी का एक अति प्राचीन जोधपुरिया देवधाम विख्यात है ।
- रामद्वारा सोडा़ ➡ टोंक जिले के सोड़ा गांव में स्थित यह रामस्नेही संप्रदाय का तीर्थ धाम है ।
- गोकर्णेश्वर ➡ टोंक जिले के बीसलदेव गांव में गोकर्णेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर बनास नदी के तट पर स्थित है । यह मंदिर विग्रहराज चतुर्थ ने बनवाया ।
- कंकाली मंदिर
- तेलियों का मंदिर
- यज्ञ के बालाजी का मंदिर
- अन्नपूर्णा मंदिर
(33) उदयपुर जिले के प्रमुख मंदिर
- जगत का अंबिका मंदिर ➡ उदयपुर से 42 किलोमीटर दूर जगत नामक गांव में अंबिका का मंदिर मातृ देवियों को समर्पित होने के कारण शक्तिपीठ कहलाता है । यह मंदिर ‘मेवाड़ का खजुराहो’ या ‘राजस्थान का दूसरों खजुराहो’ कहा जाता है ।
- एकलिंग जी का मंदिर (कैलाशपुरी) ➡ यह मेवाड़ के अधिपति एकलिंग जी का मंदिर है । इसका निर्माण बप्पा रावल ने 734 में करवाया था । इस मंदिर में हरित ऋषि की मूर्ति भी स्थापित है ।
- ऋषभदेव मंदिर ➡ यह मंदिर कोयल नदी पर बसे धुलेव कस्बे में स्थित है । इस मंदिर को केसरिया नाथ का मंदिर भी कहते है । ऋषभदेव की काली पत्थर से निर्मित मूर्ति के कारण काला जी का मंदिर भी कहते हैं ।
- जगदीश मंदिर ➡ राज महलों के पास जगदीश चौक में स्थित इस मंदिर की स्थापना महाराणा जगतसिंह प्रथम द्वारा करवाई गई । इस मंदिर में प्रभु जगन्नाथ राय की काले कसौटी पत्थर की मूर्ति विराजमान है । इस मंदिर को सपने से बना मंदिर भी कहते हैं ।
- सास बहू का मंदिर ➡ नागदा में
- गुप्तेश्वर महादेव (मेवाड़ का अमरनाथ ) ➡ तीतरड़ी- एकलिंगपुरा के बीच हाड़ा पर्वत पर स्थित ।
- बोहरा गणेश
- ईडाणा माता ➡ सलंबूर में
- गोसणजी बाबजी मंदिर ➡ कातनवाडा, सराड़ा (उदयपुर )
महत्वपूर्ण बिंदु :-
➡ आभानेरी का मंदिर :- प्रतिहार काल में निर्मित देवालयों में सर्वाधिक अलंकृत है , जो हर्षद्माता का मंदिर भी कहलाता है । यह चतुर्व्यूह विष्णु का भारत में एक मात्र देवालय था ।
➡ हरिहर मंदिर :- पंचायत मंदिरों में सबसे सुरक्षित देवालय है ।
➡ हेड़ा की परिक्रमा की शुरुआत महाराजा माधोसिंह ने 1876 में की थी । इनके इष्ट गोपाल जी थे ।
➡ नागर शैली :- इस शैली के अंतर्गत भूमिज उपशैली का विकास हुआ । इस शैली की विशेषता मुख्यत: उसके शिखर में परलक्षित है । इस शैली के मंदिर ऊँचे चबूतरे पर आधार से शिखर तक चौपहला या वर्गाकार होता है ।
उदाहरण – रणकपुर का सूर्य मंदिर , चित्तौड़ का अद्भुत नाथ मंदिर , सेवाड़ी का जैन मंदिर (पाली), बिजोलिया का अंडेश्वर मंदिर , झालरापाटन का सूर्य मंदिर ।
➡ महामारु शैली (गुर्जर प्रतिहार कालीन ) :- आठवीं शताब्दी के मध्य भारत और राजस्थान में जो क्षेत्रीय शैली विकसित हुई उसे गुर्जर-प्रतिहार अथवा महामारू शैली कहा गया है । उदाहरण – ओसिया का सूर्य मंदिर , चित्तौड़गढ़ का कालीका मंदिर , सीकर का हर्षनाथ मंदिर , किराडू का सोमेश्वर मंदिर , उदयपुर का सास बहू का मंदिर , पाली का मुकरमंडी माता मंदिर ।
➡ कच्छपघात शैली :- चौदहवीं शताब्दी का डूंगरपुर का सोमनाथ मंदिर इस शैली का उदाहरण है ।
➡ मंदिरों का सर्वप्रथम उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में मिलता है ।
➡ द्रविड़ शैली :- इस शैली का आधार प्राय: वर्गाकार होता है । गर्भगृह के ऊपर का भाग सीधा पिरामिडनुमा बना है । इसका शीर्षभाग गुंबदाकार होता है । प्रांगण का मुख्य प्रवेशद्वार गोपुरम कहलाता है ।
➡ पंचायतन शैली :- यह नागर शैली का ही विस्तृत रूप है । राजस्थान में बड़ोली का शिव मंदिर व ओसियां का हरिहर मंदिर इसके उदाहरण है ।
➡ नगरी (चित्तौड़) में पूर्व गुप्तकालीन बिना छत वाले वैष्णव मंदिरों के अवशेष हैं ।
➡ नाँद (पुष्कर) में कुषाणकालीन शिवलिंग स्थापित है ।
➡ नोह (भरतपुर) में प्राप्त यक्ष ‘जाखबाबा’ की मूर्ति भी कुषाणकालीन है ।
➡ रेढ़ (टोंक) में प्राप्त ‘गजमुखी यक्ष’ प्रतिमा शुंगकालीन है ।
➡ बैराठ (जयपुर) में मौर्यकाल गोल बौद्ध मठ , चैत्य एवं स्तूप के अवशेष हैं ।
➡ सेवाड़ी का जैन मंदिर (पाली) नागर शैली का सबसे पुराना मंदिर है ।
➡ किराडू का सोमेश्वर मंदिर गुर्जर प्रतिहार शैली का अंतिम मंदिर है ।
➡ नीलकंठ (अलवर) में नृत्य गणेश जी की मूर्ति स्थित है ।
➡ कोटा में खड़े गणेश की मूर्ति स्थित है ।