Rajasthan ke Durg/Kile

राजस्थान के प्रमुख दुर्ग (किले) । Rajasthan ke Durg/Kile

आज हम राजस्थान के प्रमुख दुर्ग (किले) [ Rajasthan ke Durg/Kile ] की बात करेंगे ।

Forts of Rajasthan in Hindi

  • राजस्थान के दुर्ग व किले स्थापत्य की दृष्टि से उत्कृष्ट और अनूठे हैं । वीरता एवं शौर्य के जीते- जागते प्रतीक यह दुर्ग, किले एवं गढ़ अपने अनूठे स्थापत्य, विशिष्ट संरचना एवं अद्भुत शिल्प-सौंदर्य के कारण दर्शनीय हैं ।
  • राजस्थान के अधिकांश दुर्गों का निर्माण पहाड़ियों पर ही हुआ है तथा इनका निर्माण राजपूत शासकों ने ही करवाया है । वहाँ शत्रुओं के विरुद्ध प्राकृतिक साधन थे ।

दुर्ग का वर्गीकरण :-

शुक्रनीति में दुर्ग के निम्न 9 प्रकार बताए गए हैं । शुक्रनीति में सैन्य दुर्ग को सभी दुर्गों से श्रेष्ठ माना गया है ।

(1) एरण दुर्ग :- जिस दुर्ग का मार्ग कांटो और पत्थरों से परिपूर्ण हो । उदाहरण- रणथंभौर दुर्ग ।

(2) पारिख दुर्ग :- वह दुर्ग जिसके चारों ओर गहरी खाई हो । उदाहरण – भरतपुर किला, डीग व बीकानेर का जूनागढ़ किला ।

(3) पारिध दुर्ग :- वह दुर्ग जिसके चारों ओर ईंट, पत्थर और मिट्टी से बनी बड़ी-बड़ी दीवारों का परकोटा हो । उदाहरण – चित्तौड़ दुर्ग व कुंभलगढ़ दुर्ग ।

(4) वन दुर्ग :- वह दुर्ग जो चारों ओर से वनों से घिरा हुआ हो । उदाहरण- जालौर का दुर्ग ।

(5) धन्व दुर्ग (धान्वन) :- वह दुर्ग अथवा किला जिसके चारों ओर मरुस्थल हो । उदाहरण – जैसलमेर का किला, भटनेर का किला, अकबर का किला, बीकानेर का किला, चौमूं का किला ।

(6) जल दुर्ग (उदक) :- वह दुर्ग अथवा किला जो चारों ओर से पानी से घिरा हो । उदाहरण :- गागरोण का किला , भैंसरोड गढ़ किला , शेरगढ़ ।

(7) गिरि दुर्ग (पार्वत) :- वह दुर्ग जो चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हो । राजस्थान में सर्वाधिक दुर्ग इस श्रेणी के हैं । उदाहरण :- रणथंभौर का किला ।

(8) सैन्य दुर्ग :- वह दुर्ग जिसकी व्यूह रचना में चतुर वीरों के होने से अभेद्य हो । यह दुर्ग सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है ।

(9) सहाय दुर्ग :- इसमें शूरवीर एवं सदा अनुकूल रहने वाले बांधव लोग रहते थे । उदाहरण – चित्तौड़, जालौर तथा सिवाना दुर्ग , सहाय दुर्ग ।

अन्य महत्वपूर्ण :-

  • काग मुखी :- वह दुर्ग जो आगे की ओर बिल्कुल संकरा और पीछे की तरफ फैला हुआ हो । उदाहरण- जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग ।
  • पाशीब :- किले की प्राचीर से हमला करने के लिए रेत और अन्य वस्तुओं से निर्मित एक ऊँचा चबूतरा ।
  • मिट्टी के दुर्ग :- हनुमानगढ़ का भटनेर दुर्ग तथा भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग मिट्टी से बने हुए हैं ।
  • जीव रखा :- मुख्य मार्ग से होने वाली आक्रमण को विफल करने वाली रक्षा भित्ति थी ।
  • कवसीस :- किले के ऊपर एक साथ चार-पाँच घोड़ो के एक साथ चल सकने योग्य चौड़ी प्राचीर पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ये गुमटियाँ बनाई जाती थी ।
  • जयपुर :- यहाँ सर्वाधिक किले पाए जाते हैं ।

Rajasthan ke kile (राजस्थान के किलो की सूची )

(1) चित्तौड़गढ़ का किला (चित्रकूट दुर्ग )

राजस्थान का गौरव , गढ़ों का सिरमौर वीरता एवं शौर्य की क्रीड़ास्थली तथा त्याग व बलिदान का पावन तीर्थ चित्तौड़गढ़ दुर्ग गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम स्थल के समीप अरावली पर्वतमाला के एक विशाल पर्वत शिखर (1850 फीट ऊँचे) पर बना हुआ है जिसे राजा चित्रांग (चित्रांगद) ने बनवाया था ।

▶ इस दुर्ग की लंबाई लगभग 8 किलोमीटर व चौड़ाई 2 किलोमीटर है । दुर्ग का संपूर्ण व्यास 16 किलोमीटर का है । चित्तौड़गढ़ किले की आकृति ‘व्हेल मछली’ के समान है । दिल्ली से मालवा और गुजरात जाने वाली मार्ग पर स्थित है ।

▶ चित्तौड़गढ़ राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट (आवासीय दुर्ग) है ।

▶ क्षेत्रफल की दृष्टि से चित्तौड़गढ़ का दुर्ग राज्य का सबसे विशाल दुर्ग है ।

▶ चित्तौड़गढ़ का दुर्ग राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमें खेती की जाती है ।

▶ राजस्थान में कहावत कही जाती है कि गढ़ तो गढ़ चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया ।

▶ महाराणा कुंभा को इस चित्रकूट दुर्ग का ‘आधुनिक निर्माता’ कहा जाता है ।

➡ यह दुर्ग ‘किलो का सिरमौर’ (दुर्गाधिराज) कहलाता है ।

▶ यह राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी द्वार तथा मालवा का प्रवेश द्वार है ।

▶ चित्तौड़गढ़ दुर्ग में तीन साके हुए हैं :-

(1) सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी व राणा रत्नसिंह के मध्य युद्ध । इस साके में रानी पद्मावती ने जौहर किया । वीर गोरा और बादल वीरगति को प्राप्त हुए । अलाउद्दीन खिलजी ने दुर्ग का नाम खिज्राबाद रखा । यह राजस्थान का दूसरा साका था । (पहला साका-रणथंभौर दुर्ग का )

(2) सन् 1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह तथा महाराणा विक्रमादित्य के मध्य युद्ध । राजमाता हाडी रानी कर्मवती ने जौहर किया ।

(3) सन् 1567 में मुगल बादशाह अकबर व महाराणा उदयसिंह के मध्य युद्ध । जयमल और पत्ता लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ।

▶नौ कोठा महल/नवलखा महल (बनवीर द्वारा निर्मित ) , हरामियों का बड़ा , घी-तेल की बावड़ी स्थित है ।

▶ इस दुर्ग में वीर कल्ला राठौड़ व बाघसिंह के छतरियाँ स्थित है ।

▶ इस दुर्ग में विजय स्तंभ एवं जैन कीर्ति स्तंभ स्थित है ।

▶ चित्तौड़ दुर्ग का सबसे बड़ा आकर्षण राणा रत्नसिंह की रानी पद्मावती का महल है ।

▶ श्रृंगार चंवरी चित्तौड़ दुर्ग में स्थित शांतिनाथ का जैन मंदिर है ।

▶ इस दुर्ग में गोरा-बादल , नवलखा बुर्ज , भीमलत कुंड स्थित है ।

▶ इस दुर्ग में 7 अभेद्य प्रवेश द्वार है ।

▶ कुंभश्याम मंदिर , मीरा बाई मंदिर , साममिद्धेश्वर मंदिर , नीलकंठ महादेव मंदिर , तुलजा भवानी का मंदिर , कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर , सात बीस देवरी जैन मंदिर , चित्रांग मोरी तालाब आदि दर्शनीय स्थल है ।

(2) भैंसरोडगढ़ का किला (चित्तौड़गढ़ )

▶ यह जल दुर्ग चित्तौड़गढ़ जिले में चंबल और बामनी नदियों के संगम स्थल पर स्थित है । इसका निर्माण भैंसाशाह नामक व्यापारी तथा रोडा चारण ने मिलकर करवाया था । इसे राजस्थान का वेल्लोर कहा जाता है ।

▶ कर्नल टॉड ने इसे अभेद्य दुर्ग तथा ‘व्यापारिक काफिलों के सुरक्षार्थ उपयोग ” बताया है ।

(3) कुंभलगढ़ दुर्ग (राजसमंद )

▶ मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर सादड़ी गाँव के समीप राजसमंद जिले में अरावली पर्वतमाला की 3568 फीट ऊंची चोटी पर स्थित गिरी दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने शिल्पी मंडन की देखरेख में 1448-58 ई. के मध्य बनवाया ।

▶ उपनाम :- मत्स्येन्द्र , कुम्भलमेर , कुम्भलकर , माहोर , मेवाड-मारवाड़ सीमा का प्रहरी, मारवाड़ की छाती पर उठी हुई तलवार , मेवाड़ की आंख , मच्छेंद्रपुर , कुंभलमेरू , कमल मीर ।

▶ कुंभलगढ़ दुर्ग अरावली पर्वत श्रृंखला की जरगा, हेमकूट , नील हिमवंत , गन्धमादन के मध्य स्थित है ।

▶ इस दुर्ग के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि यह इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है ।

▶ कर्नल जेम्स टॉड ने इस दुर्ग की तुलना ‘एट्रुस्कन’ से की है ।

▶ कुंभलगढ़ दुर्ग में एक लघु दुर्ग ‘कटारगढ़’ (मेवाड़ की तीसरी आँख) स्थित है जिसमें ‘झाली रानी का मालिया’ महल एवं ‘बादल महल’ प्रमुख है । कटारगढ़ के उत्तर में झालीबाब बावड़ी तथा मामादेव का कुंड है । इस कुंड के पास ही कुंभा द्वारा निर्मित कुभास्वामी विष्णु मंदिर है ।

▶ इसी दुर्ग में स्वामीभक्त पन्नाधाय ने महाराणा उदयसिंह को बचाया तथा उनका लालन-पालन किया । इसी दुर्ग में उदयसिंह का मेवाड़ के महाराणा के रूप में राज्य अभिषेक हुआ ।

▶ इसी दुर्ग के महाराणा फतेहसिंह द्वारा निर्मित बादल महल (पैलेस ऑफ क्लाउड्स) में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था । गोगुंदा में अपना राजतिलक होने के बाद महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़ से ही मेवाड़ का शासन प्रारम्भ किया था । महाराणा प्रताप ने इसी दुर्ग से हल्दीघाटी के युद्ध की तैयारी की थी ।

▶ 1578 में इस किले पर सर्वप्रथम शाहबाज खाँ(अकबर का सेनापति) का अधिकार हुआ ।

▶ कुंभलगढ़ दुर्ग के पूर्व में हाथिया गुढ़ा की नाल है तथा किले की तहलटी में महाराणा रायमल के बड़े पुत्र व राणा सांगा के भाई कुंवर पृथ्वीराज की 12 स्तंभो की छतरी (वास्तुकार-घषनपना) बनी हुई है जो ‘उडणा राजकुमार’ के नाम से प्रसिद्ध था ।

▶ यह दुर्ग 36 किलोमीटर लंबे तीहरे सुरक्षा परकोटे से सुरक्षित घिरा हुआ है जो अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड में दर्ज हैं । इसलिए इसे भारत की महान दीवार कहते हैं ।

▶ यह दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ के राजाओं की शरण स्थली रहा है ।

▶ कुंभलगढ़ दुर्ग के उत्तर की तरफ से पैदल रास्ता ‘टूँट्या का होड़ा’ , पूर्व की तरफ हाथी गुढा की नाल में जाने का रास्ता ‘दाणीवटा’ एवं दुर्ग की पश्चिम दिशा का रास्ता ‘टीडाबारी’ कहलाता है ।

(4) रणथम्भौर दुर्ग

▶ सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथम्भौर दुर्ग- अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा थंभौर पहाड़ी पर स्थिति दुर्ग जो 994 ई. में रणथम्मन देव द्वारा बनाया गया था । इस दुर्ग में गिरी दुर्ग व वन दुर्ग दोनों की विशेषताएँ विद्यमान है । इस दुर्ग का वास्तविक नाम ‘रन्त:पुर’ है , जिसका अर्थ है रण की घाटी में स्थित नगर ।

▶ इस किले में गणेश जी का त्रिनेत्र मंदिर , हम्मीर महल , रानी महल, बादल महल, सुपारी महल , जौहर महल , हम्मीर की कचहरी, 32 खंभों की छतरी , रनिहाड़ तालाब , फौजी छावनी , पीर सदरूद्दीन की दरगाह , जँवरा-भँवरा (जौरा-भौरा), जोगी महल , लक्ष्मी नारायण मंदिर , पद्मला तालाब स्थित है ।

▶ दुर्ग का प्रवेश द्वार ‘नौलखा दरवाजा’ के नाम से जाना जाता है । इसके अलावा हाथीपोल, गणेशपोल, सूरजपोल तथा त्रिपोलिया दरवाजा प्रमुख प्रवेश द्वार है । त्रिपोलिया दरवाजा ‘अंधेरी दरवाजा’ भी कहलाता है ।

▶ अबुल फज़ल ने लिखा है कि ‘अन्य सब दुर्ग नंगे हैं जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है ।’

▶ रानी कर्मावती ने इस किले में अधूरा स्वप्न भवन का निर्माण करवाया ।

▶ हम्मीर देव ने अपनी मालवा विजय की स्मृति में इस दुर्ग के भीतर पुष्पक भवन का निर्माण करवाया था ।

▶ रणथम्भौर दुर्ग अंडाकृति वाले एक ऊँचे पहाड़ पर बना है ।

▶ इस किले में एक ही स्थान पर मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघर स्थित है ।

▶ महाराणा सांगा को खानवा के युद्ध में घायल होने के पश्चात इस दुर्ग में लाया गया था ।

▶ सवाई माधोपुर में स्थित खंडार के किले को रणथम्भौर के सहायक दुर्ग व उसके पृष्ठ रक्षक के रूप में जाना जाता है । इसके पूर्व में बनास व पश्चिम में गालंडी नदियाँ बहती है । दुर्ग में शारदा तोप विद्यमान है ।

▶ इसे चित्तौड़गढ़ किले का छोटा भाई कहते हैं । दुर्ग में ‘हम्मीर घोटा’ विद्यमान है ।

▶ अजमेर शासक पृथ्वीराज तृतीय के तराइन के द्वितीय युद्ध में हार जाने के बाद उसके पुत्र गोविंदराज ने यहां अपना शासन स्थापित किया था ।

▶ जुलाई 1301 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी तथा हम्मीर देव के मध्य युद्ध । दुर्ग का यह साका राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है ।

(5) जालौर दुर्ग (सुवर्णगिरि दुर्ग)

▶ यह दुर्ग सूकड़ी नदी के दाहिने किनारे सुवर्णगिरि (सोनगिरी या कनकाचल) पहाड़ी पर स्थित है । डाँ दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया ।

▶ झालर और सोहन बावड़ी इस किले में स्थित है ।

▶ इस दुर्ग में जोधपुर नरेशों का राजकोष रखा जाता था ।

▶ संकट काल में मारवाड़ के राजाओं का आश्रय स्थल ।

▶ पश्चिमी राजस्थान का सबसे प्राचीन और सुदृढ़ दुर्ग ।

▶ यहाँ सुंधा पर्वत शिलालेख स्थित है ।

▶ पद्मनाथ द्वारा रचित कान्हड़देव प्रबंध में जालौर युद्ध का वर्णन है । इस दुर्ग का प्रसिद्ध साका वर्ष 1311-12 में हुआ । अलाउद्दीन खिलजी तथा कान्हड़देव सोनगरा के मध्य युद्ध ।

▶ जालौर का दुर्ग दिल्ली से गुजरात जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है । इस कारण इसे मुस्लिम आक्रांताओं का अनेक बार सामना करना पड़ा ।

▶ इस दुर्ग के भीतर आशापुरा माता का मंदिर स्थित है, जिसके सामने बीरमदेव ने कटार घोंपकर आत्महत्या की ।

▶ संत मल्लिक शाह की दरगाह, परमार कालीन कीर्ति स्तंभ , स्वर्णगिरि मंदिर, तोपखाना मस्जिद आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल है ।

▶ जालौर दुर्ग के अन्य नाम सोनगढ़, सोनलगढ़, जाबालिपुर एवं जालहुर हैं ।

▶ दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार ‘सूरजपोल’ है जो धनुषाकार छत से ढका हुआ है । दुर्ग का दूसरा प्रवेश द्वार ध्रुवपोल, तीसरा चाँदपोल एवं चौथा सिरेपोल है ।

▶ दुर्ग के भीतर महाराजा मानसिंह के महल , चामुंडा माता एवं जोग माता के मंदिर , दहियों की पोल आदि ऐतिहासिक भवन है ।

▶ दुर्ग में पहाड़ी के शिखर पर ‘वीरमदेव की चौकी’ उसके शौर्य एवं पराक्रम का स्मरण कराती है । किले के भीतर जाबलिकुंड , सोहनबाव आदि जलकुंड है ।

(6) मेहरानगढ़ (जोधपुर दुर्ग )

▶ जोधपुर की चिड़ियाटूँक पहाड़ी (पंचेटिया पर्वत) पर अवस्थित इस गिरि दुर्ग के निर्माण की नींव जोधपुर के संस्थापक गांव जोधा ने 12 मई 1459 को रखी तथा उसके चारों ओर जोधपुर नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया ।

▶ मयुराकृति को होने के कारण इस किले को मयूरध्वजगढ़ या मोरध्वजगढ़ तथा गढ़ चिंतामणि भी कहते हैं ।

▶ रूडीयार्ड किपलिंग ने इस दुर्ग के निर्माण के बारे में कहा है कि -‘इसका निर्माण फरिश्तों, परियों एवं देवताओं की करामात है ।’

▶ जैकलिन कैनेडी ने इस दुर्ग को ‘विश्व का आठवां आश्चर्य’ कहा है ।

▶ इस दुर्ग की नींव में भांभी जाति का राजिया नामक एक व्यक्ति जीवित चुना गया ।

▶ महाराजा मानसिंह द्वारा स्थापित जयपाल व पुस्तक प्रकाश पुस्तकालय इसी दुर्ग में स्थित है ।

▶ यहाँ महाराजा अभयसिंह द्वारा निर्मित फूल महल स्थित है ।

▶ यहाँ नीलम जड़ित मरकत-मणि के दो गुलाबी प्यालेनुमा जलाशय ( गुलाब सागर, गुलाब सागर का बच्चा) स्थित है ।

▶ दुर्ग के भीतर मोती महल (महाराजा सूरजसिंह द्वारा निर्मित), भूरे खां की मजार , फतह महल (महाराजा अजीत सिंह द्वारा निर्मित ) , ख्वाबगाह , तख्त विलास , दौलतखाना , चोखेलाव महल , बिचला महल स्थित है ।

▶ दौलतखाने के आंगन में महाराजा तख्तसिंह द्वारा निर्मित सिणगार चौकी है , जहाँ जोधपुर के राजाओं का राजतिलक होता था ।

▶ जल आपूर्ति के प्रमुख स्रोत के रूप में राणीसर तथा पदमसागर तालाब विशेष उल्लेखनीय हैं ।

▶ जोधपुर दुर्ग के दो बाहरी प्रवेश द्वार हैं जिनमें उत्तर- पूर्व में ‘जयपोल’ (महाराजा मानसिंह) तथा दक्षिण-पश्चिमी में शहर के अंदर से ‘फतेहपोल’ (महाराजा अजीतसिंह) है । इसका एक अन्य मुख्य प्रवेश द्वार ‘लोहापोल’ है । दुर्ग के अन्य द्वारों में ध्रुवपोल, सूरजपोल , इमरतपोल, भैंरोपोल तथा कांगरापोल है ।

▶ इस दुर्ग के साथ वीर शिरोमणि दुर्गादास , कीरतसिंह सोढ़ा और दो अतुल पराक्रमी क्षत्रिय योद्धा -धन्ना व भींवा के पराक्रम, बलिदान, स्वामी भक्ति और त्याग की गौरव गाथा जुड़ी हुई है ।

▶ लोहापोल के पास जोधपुर के अतुल पराक्रमी वीर योद्धा धन्ना व भींवा की 10 खम्भों की स्मारक छतरी (महाराजा अजीत सिंह द्वारा निर्मित ) हैं ।

▶ इस दुर्ग में शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित मस्जिद , महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश पुस्तकालय तथा मेहरानगढ़ संग्रहालय दर्शनीय है ।

▶ महाराजा सूरजसिंह द्वारा निर्मित मोती महल की छत व दीवारों पर सोने की पॉलिश का महीन कार्य महाराजा तख्तसिंह ने करवाया ।

▶ राव जोधा ने दुर्ग निर्माण के समय इसमें चामुंडा माता का मंदिर बनवाया था । अन्य मंदिरों में आनंद धनजी का मंदिर एवं मुरली मनोहर जी का मंदिर मुख्य हैं ।

▶ जोधपुर के राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेची माता का मंदिर भी मेहरानगढ़ दुर्ग के अंदर विद्यमान है ।

▶ मेहरानगढ़ दुर्ग में अनेक उत्कृष्ट तोपें – किलकिला , शंभूबाण , गजनी खाँ , कालका, भवानी,नागपली , नुसरत , गजक , गुब्बारा आदि यहाँ सुप्रसिद्ध तोपें हैं ।

(7) जैसलमेर का किला (सोनारगढ़)

▶ जैसलमेर री ख्यात के अनुसार सोनारगढ़ या सोनगढ़ के नाम से प्रसिद्ध इस दुर्ग की नींव भाटी शासक राव जैसल ने 12 जुलाई 1155 को रखी । उसकी मृत्यु होने पर उसके पुत्र व उत्तराधिकारी शालिवाहन द्वितीय ने इस दुर्ग का अधिकांश निर्माण कार्य करवाया ।

▶ यह दुर्ग त्रिकूटाकृति का है जिसमें 99 बुर्जें हैं । यह गहरी पीले रंग के पत्थरों से निर्मित है जो सूर्य की धूप में स्वर्णिम आभा बिखेरते है । इसी वजह से इसे सोनारगढ़ कहा जाता है । इसके अलावा इसे राजस्थान का अंडमानरेगिस्तान का गुलाब भी कहते हैं ।

▶ यह बिना चूने के सिर्फ पत्थर पर पत्थर रखकर बनाया गया है जो इसके स्थापत्य की अनूठी विशेषता है । जैसलमेर का दुर्ग विश्व का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी छत लकड़ी की बनी हुई है ।

▶ जैसलमेर दुर्ग में हस्तलिखित ग्रंथों का एक दुर्लभ भंडार है । इन ग्रंथों का सबसे बड़ा यह संग्रह जैन आचार्य जिनभद्रसूरी के नाम पर ‘जिनभद्रसूरी ग्रंथ भंडार’ कहलाता है ।

▶ जैसलमेर दुर्ग राजस्थान में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बाद दूसरा सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है ।

▶ दुर्ग का दोहरा परकोटा कमरकोट कहलाता है ।

▶ अक्षयपोल किले का मुख्य प्रवेश द्वार है । गणेशपोल, सूरजपोल, हवापोल अन्य प्रवेश द्वार हैं ।

▶ यहाँ महारावल अखैसिंह द्वारा निर्मित सर्वोत्तम विलास (शीश महल), गज विलास, जवाहर विलास दर्शनीय है ।

▶ महारावल मूलराज द्वितीय ने रंग महल व मोती महल बनवाए ।

▶ दुर्ग में 12 वीं सदी में निर्मित आदिनाथ जैन मंदिर अन्य सभी मंदिरों से प्राचीन है । दुर्ग के भीतर स्थित जैसल कुआँ प्राचीन पेयजल स्रोत हैं ।

▶ सिलावटों ने बादल महल का निर्माण करवाया था । यह 5 मंजिला महल है । इस महल पर ब्रिटेन की वास्तुकला की छाप दिखाई देती है ।

▶ महारावल बैरीशाल के शासनकाल में भगवान विष्णु के लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण प्रतिहार शैली में बनवाया गया ।

▶ महारावल वैरिसिंह ने अपनी रानी रत्ना के नाम पर रत्नेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया था और अपनी रानी सूर्यकंवर की स्मृति में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया ।

▶ इस दुर्ग को जनवरी 2005 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया ।

▶ वर्ष 2009 में इस दुर्ग पर ₹5 का डाक टिकट जारी किया गया ।

▶ यह दुर्ग राज्य की ‘उत्तरी सीमा का प्रहरी’ कहलाता है ।

▶ जैसलमेर दुर्ग महलों में पत्थर पर बारीक खुदाई एवं कलात्मक जालियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है ।

▶ इस दुर्ग के पश्चिम में अमरसागर पोल एवं पूर्व में घड़सीसर का दरवाजा है । दुर्ग के अंदर ही घड़सीसर का तालाब है ।

▶ जैसलमेर दुर्ग के बारे में कहावत प्रसिद्ध है कि ‘पत्थर के पैर व लोहे के शरीर तथा काठ के घोड़े पर सवार होकर ही पहुंचा जा सकता है ।’

▶ इस दुर्ग के अंदर टीवमराय जी का मंदिर , दशहरा चौक , गज महल , खुशाल राजराजेश्वरी का मंदिर स्थित है ।

▶ जैसलमेर के प्रसिद्ध ढाई साके निम्न है :-
(१) जैसलमेर दुर्ग का प्रथम साका भाटी शासक मूलराज एवं दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के मध्य 1308 -13 के मध्य हुआ था ।

(२) दुर्ग का दूसरा साका दिल्ली के फिरोजशाह तुगलक व रावल दूदा के मध्य युद्ध के समय हुआ ।

(३) तीसरा ‘अर्द्ध साका’ 1550 में जैसलमेर के राम लूणकरण व कंधार के अमीर अली के मध्य युद्ध में हुआ था । इस युद्ध में वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ इसलिए इसे अर्द्ध साका माना जाता है ।

(8) सिवाणा दुर्ग (बाड़मेर)

▶ राजा भोज के पुत्र वीर नारायण पंवार द्वारा 10वीं शताब्दी में निर्मित यह दुर्ग हल्देश्वर की पहाड़ी पर स्थित है । प्रारंभ में इसका नाम कुम्थाना का किला था ।

▶ सिवाणा का किला संकटकाल में मारवाड़ (जोधपुर) के राजाओं का शरण स्थल रहा है ।

▶ यह जालौर के दुर्ग की कुंजी के रूप में जाना जाता है ।

▶ इस दुर्ग में जयनारायण व्यास को बंदी बनाकर रखा गया था ।

▶ इस दुर्ग में 2 साके हुए हैं :- (१) 1308 में अलाउद्दीन खिलजी व वीर सातलदेव सोनगरा के मध्य युद्ध में । अलाउद्दीन ने इस दुर्ग का नाम खैराबाद रखा ।
(२) जोधपुर नरेश मोटा राजा उदयसिंह व वीरकल्ला रायमलोत के मध्य युद्ध में ।

(9) जूनागढ़ किला (बीकानेर)

▶ यह पारिख दुर्ग, भूमि दुर्ग व धान्वन दुर्ग की श्रेणी में आता है । इस दुर्ग की आकृति चतुर्भुजाकार है ।

▶ बीकानेर के किले की नींव राव बीकाजी द्वारा 1485 में रखी गई और एक छोटी किले का निर्माण करवाया जो एक चट्टान पर स्थित है जो ‘बीकाजी का टेकरी’ कहलाती है । इसे ‘राती घाटी’ किला भी कहते हैं । वर्तमान किले ‘जूनागढ़’ का निर्माण 1593-94 में रायसिंह द्वारा करवाया गया ।दुर्ग में 37 विशाल बुर्जे स्थित है ।

▶ सूरजपोल किले का सबसे प्राचीन और मुख्य प्रवेश द्वार हैं । इसके दोनों तरफ विशाल हाथियों पर सवार चित्तौड़ के दो प्रसिद्ध वीर जयमल राठौड़ का पत्ता सिसोदिया की मूर्ति है ।

▶ दुर्ग में महाराजा गंगासिंह का बनाया हुआ दलेल निवास महल है ।

▶ दुर्ग परिसर में रायसिंह द्वारा निर्मित चंद्रमहल व फूल महल स्थित है ।

▶ बीकानेर राज्य में महाराजा गजसिंह के समय में बादल महल, शीश महल आदि इमारतों का निर्माण हुआ ।

▶ राजस्थान में पहली बार इसी दुर्ग में लिफ्ट लगाई गई ।

▶ इसका निर्माण हिंदू तथा मुस्लिम शैली के समन्वय से हुआ है ।

▶ दुर्ग के बारे में कहते हैं -‘दीवारों के भी कान होते हैं पर जूनागढ़ के महलों की दीवारें तो बोलती है ” ।

▶ अनूपमहल का निर्माण महाराजा अनूप सिंह ने करवाया था , जिसमें बीकानेर के राजाओं का राजतिलक किया जाता था ।

▶ कर्णमहल (दरबार हॉल) का निर्माण अनूप सिंह द्वारा अपने पिता के नाम पर करवाया गया ।

▶ दुर्ग में रामसर तथा रानीसर नामक दो कुएँ स्थित हैं ।

▶ इस दुर्ग को ‘जमीन का जेवर’ व ‘राती घाटी का किला’ की उपमा दी गई है ।

▶ इस दुर्ग में अनूप संग्रहालय , फूल महल, चंद्र महल, अनूप महल, कर्ण महल, लाल निवास , छत्र महल, गज मंदिर, गंगा निवास, रतन निवास , मोती महल, सरदार निवास , चीनी बुर्ज, सुनहरी बुर्ज, विक्रम विलास , सूरत निवास आदि प्रमुख महल है ।

▶ दुर्ग की अन्य इमारतों में उष्ट्र शाला (शूतर खाना) , अश्वशाला , घंटाघर आदि है ।

▶ इस महल में रखा ‘हिण्डोला’ कला का उत्कृष्ट नमूना है ।

(10) भटनेर का किला (हनुमानगढ़)

घग्गर नदी के मुहाने पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण भाटी राजा भूपत ने तीसरी शताब्दी में करवाया । यह दुर्ग दिल्ली-मुल्तान मार्ग पर स्थित है । यह राजस्थान का उत्तरी प्रवेश द्वार का रक्षक है । इस दुर्ग का मुख्य शिल्पी केकेया था ।

▶ 1001 ईस्वी में महमूद गजनवी ने भटनेर पर अधिकार किया ।

▶ यह दुर्ग सर्वाधिक विदेशी आक्रमण (मध्य एशिया से) सहने वाला दुर्ग है ।

▶ 1398 में तैमूरलंग ने राव दूलचन्द भाटी को हराकर इस पर अधिकार कर लिया था । इस समय हिंदू स्त्रियों ने नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा भी जौहर का अनुष्ठान किये जाने के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं । इस दुर्ग के बारे में तैमूरलंग ने लिखा कि ‘मैंने इतना मजबूत और सुरक्षित दुर्ग
पूरे हिंदुस्तान में कहीं नहीं देखा ‘ ।

▶ बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह द्वारा 1805 में मंगलवार के दिन इस किले को फतह किए जाने के कारण इसका नाम हनुमानगढ़ रख दिया गया ।

▶ भटनेर दुर्ग में दिल्ली सुल्तान बलबन के किलेदार शेरखाँ की कब्र विद्यमान है ।

▶ भटनेर दुर्ग की एक प्रवेश द्वार पर महाराजा दलपत सिंह और उसकी 6 रानियों की आकृतियां बनी हुई है , जो दलपत सिंह की मृत्यु पर भटनेर में सती हो गई थी ।

▶ दुर्ग में गोरखनाथ का मंदिर है ।

(11) चूरू का किला

▶ यह दुर्ग 1739 ईस्वी में ठाकुर कुशाल सिंह द्वारा बनवाया गया । दुर्ग में गोपीनाथ का मंदिर स्थित है ।

▶ इस दुर्ग के स्वामी ठाकुर शिवसिंह के समय बीकानेर की सेना ने अंग्रेजों के साथ इस दुर्ग पर आक्रमण किया तथा दुर्ग के चारों ओर घेरा डालकर गोलों की बरसात की तो जवाब में अदर से भी गोले बरसाये जाने लगे , परंतु दुर्ग में गोले समाप्त हो जाने पर शहर के नागरिकों व सुनारों ने ठाकुर को चाँदी लाकर दी तथा चांदी के गोले बनाकर उन पर दागे गये । चाँदी के गोली देखकर आक्रमणकारी आश्चर्यचकित हो गए तथा उन्होंने वहां के नागरिकों की भावनाओं का आदर करते हुए दुर्ग से घेरा उठा लिया ।

(12) नागौर का किला (अहिछत्रपुर दुर्ग)

▶ ख्यातों के अनुसार चौहान राजा सोमेश्वर के सामंत कैमास ने 1211 में नागौर के किले (धान्वन दुर्ग) की नींव रखी । यह किला वीर अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथाओं के कारण इतिहास में अपना एक अलग स्थान रखता है ।

▶ इस किले की सुदृढ़ प्राचीर व जल परिखा (खाई) महत्वपूर्ण सामरिक विशेषता है । दुर्ग का परकोटा लगभग 5000 फीट लंबा है तथा इसकी प्राचीर में 28 विशाल बुर्जे बनी हुई है ।

सम्राट अकबर ने 1570 में इसी दुर्ग में नागौर दरबार लगाया था तथा जिसमें राजस्थान के कई राजाओं ने अधीनता स्वीकार की ।

▶ जोधपुर के राजकुमार बख्तसिंह ने इस दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया ।

▶ नागौर दुर्ग के स्थापत्य की प्रमुख विशेषता यह है कि दुर्ग के बाहर से दागे गये तोप के गोले दुर्ग के महलों को क्षति पहुंचाए बिना ही ऊपर से निकल जाते थे ।

▶ दुर्ग के भीतर बादल महल (आभा महल) राव अमरसिंह द्वारा बनाया गया था ।

▶ मोती महल (हाड़ी रानी का महल) , शीश महल (अकबरी महल) तथा पट्टरानियों का महल स्थित है ।

▶ अकबर ने यहाँ अकबरी मस्जिद का निर्माण करवाया ।

▶ इस दुर्ग को 2007 में यूनेस्को द्वारा साफ सफाई के लिए ‘अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

▶ इसे नागादुर्ग , नागडर , नागाणा और अहिछत्रपुर दुर्ग के नाम से जाना जाता है ।

▶ नागौर किले में बावड़ी से पानी को महल की भीतरी भागों तक ले जाने की व्यवस्था ‘ग्रीक’ शैली पर आधारित की गई । दुर्ग के भीतर एक फव्वारा है जिसे सम्राट अकबर ने बनवाया था ।

▶ नागौर के दुर्ग में दूसरे एवं तीसरे प्रवेश द्वार के बीच का भाग ‘घूघस’ कहलाता है ।

▶ दुर्ग के 6 द्वार – सिराईपोल, बिचलीपोल , कचहरीपोल, सूरजपोल , धूपीपोल व राजपोल है ।

(13) आमेर दुर्ग (जयपुर)

▶ प्राचीन काल में अम्बावती, आम्बेर , अंबरीश और अम्बिकापुर आदि नामों से प्रसिद्ध । अरावली पर्वतमाला की कालीखोह पहाड़ी पर स्थित गिरी दुर्ग है ।

▶ राजा मानसिंह प्रथम द्वारा 1592 में निर्मित आमेर दुर्ग के महल हिंदू-मुस्लिम शैली के समन्वित रूप हैं। यहाँ शीश महल , शिला माता का मंदिर, जगत शिरोमणि मंदिर प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है ।

▶ यहाँ प्रसिद्ध मावठा जलाशय तथा दिलाराम का बाग (मिर्जा राजा जयसिंह निर्मित) स्थित है ।

▶ सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित आमेर दुर्ग के प्रवेश द्वार गणेशपोल को फर्ग्यूसन ने विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्रवेश द्वार माना है ।

▶ 1707 में मुगल बादशाह बहादुरशाह ने आमेर दुर्ग पर अधिकार कर उसका नाम मोमीनाबाद रखा ।

▶ मावठा झील के मध्य में स्थित सुगंधित केसर की क्यारियों का निर्माण 1664 में मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया ।

▶ मिर्जा राजा जयसिंह ने दीवान-ए-खास (शीश महल/जय मंदिर) का निर्माण कराया , जिसे महाकवि बिहारी ने दर्पण धाम कहा है ।

▶ मिर्जा राजा जयसिंह ने आम दरबार के लिए दीवान-ए-आम की स्थापना करवायी ।

▶ दीवान-ए-खास की छत पर बना हुआ यश मन्दिर संगमरमर की सुंदर व अलंकृत जालियों के लिए विख्यात है ।

▶ रानियों के मनोरंजन व हँसी-मजाक के लिए सुहाग मंदिर (सौभाग्य मंदिर) की स्थापना की गई ।

▶ यहाँ राजाओं का ग्रीष्मकालीन आवास ‘सुखमंदिर’ स्थित है ।

▶ आमेर के महलों में महाराजा मानसिंह के महल , रनिवास, शीला देवी का मंदिर , अंबिकेश्वर महादेव मंदिर , नृसिंह जी का मंदिर , जगत शिरोमणि मंदिर , गणेश पोल , शीश महल , बारादरी, कदमी महल (सबसे पुराना महल) आदि स्थित है ।

▶ बिशप हैबर ने आमेर के महलों की तुलना क्रेमलिन तथा अलब्रह्मा के महलों से की है ।

▶ जयपोल के अंदर जाते ही विशाल प्रांगण ‘जलेब चौक’ है ।

▶ महलों के पीछे महाराजा पृथ्वीराज की रानी बालाबाई की साल स्थित है ।

▶ जून, 2013 में आमेर दुर्ग को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची में शामिल कर लिया गया है ।

(14) जयगढ़ दुर्ग (जयपुर)

▶ यह दुर्ग चील्ह का टीला नामक स्थान पर मावठा झील के ऊपर स्थित है , जिसका निर्माण आमेर दुर्ग व महल परिसर की सुरक्षा हेतु व आमेर के राजा मानसिंह प्रथम द्वारा लाए हुए खजाने को रखने के लिए करवाया गया था ।

▶ डॉ. गोपीनाथ शर्मा व जगदीश सिंह गहलोत के अनुसार जयगढ़ दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने करवाया ।

▶ जयगढ़ दुर्ग के तीन मुख्य प्रवेश द्वार है –
(१)डूँगर दरवाजा (नाहरगढ़ की तरफ)
(२) अवनि दरवाजा (आमेर महल की तरफ)
(३) भैंरू दरवाजा

▶ जयगढ़ में एक लघु दुर्ग ‘विजयगढ़ी’ भी है जहाँ महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने छोटे भाई विजय सिंह को कैद में रखा था ।

▶ जयगढ़ दुर्ग के भीतर मध्यकालीन शस्त्रास्त्रों का विशाल संग्रहालय बना हुआ है ।

▶ यहाँ तोपें ढालने विशाल कारखाना भी था । यहाँ महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा इसी कारखाने में निर्मित ‘जयबाण’ एशिया की सबसे बड़ी तोप मानी जाती है , स्थित है ।

▶ इस दुर्ग में एक कठपुतली घर भी है ।

▶ दुर्ग में विजयगढ़ी के पार्श्व में सात मंजिला प्रकाश स्तंभ (दीया बुर्ज) स्थित है ।

▶ यहाँ कछवाहों राजाओं राजकोष रखा हुआ था । श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्रित्व काल में गुप्त खजाने के लिए खुदाई हुई ।

▶ जयगढ़ दुर्ग अपनी पानी के टांको के लिए भी प्रसिद्ध है ।

▶ जलैब चौक , सुभट निवास , खिलबत , लक्ष्मी निवास, ललित मंदिर, विलास मंदिर, सूर्य मंदिर , राणावत जी का चौंक , आराम मंदिर आदि प्रमुख महल है ।

(15) नाहरगढ़ दुर्ग

▶ नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह ने 1734 ईस्वी में मराठों के विरुद्ध सुरक्षा की दृष्टि से करवाया था । इसका पूर्व नाम सुदर्शनगढ़ था ।

▶ अरावली पर्वतमाला में स्थित यह किला जयपुर के मुकुट के समान है ।

▶ इसका नाहरगढ़ नाम लोकदेवता नाहरसिंह भोमिया के नाम पर पड़ा है, जिनका स्थान किले की प्राचीर में प्रवेश द्वार के निकट बना हुआ है ।

▶ सवाई माधोसिंह ने इसमें रानियों हेतु माधवेन्द्र पैलेस का निर्माण करवाया ।

▶ नाहरगढ़ दुर्ग में एक जैसे 9 महल है जो महाराजा माधोसिंह द्वितीय ने अपने 9 पासवानों हेतु बनाए थे । ये है – सूरज प्रकाश, खुशहाल प्रकाश , जवाहर प्रकाश , ललित प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, आनंद प्रकाश, चंद्र प्रकाश, रत्न प्रकाश, व बसंत प्रकाश ।

▶ महाराजा जगतसिंह की प्रेमिका रसकपूर को इसी किले में कैद करके रखी गई थी ।

▶ नाहरगढ़ में दिवंगत राजाओं की गैटोर की छतरियां बनी हुई है ।

▶ इस किले में सुदर्शन कृष्ण भगवान का मंदिर है । अत: इसे सुलक्षण दुर्ग भी कहते हैं ।

▶ इस किले को जयपुर की ओर झांकता हुआ किला भी कहा जाता है ।

▶ 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महाराजा रामसिंह ने ब्रिटिश रेजिमेंट की पत्नी व अन्य यूरोपीय लोगों को नाहरगढ़ दुर्ग में सुरक्षा प्रदान की थी ।

▶ दुर्ग के अन्य भवनों में हवा मंदिर, महाराजा माधोसिंह का अतिथि ग्रह एवं सिलहखाना प्रसिद्ध है ।

(16) माधोराजपुरा का किला (जयपुर)

▶ यह किला जयपुर जिले की फागी तहसील के पास माधोराजपुरा कस्बे में स्थित है । इसे महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने मराठों पर विजय के उपरांत बनवाया था ।

▶ महाराजा जयसिंह तृतीय के धाय माँ रूपा बढारण को इस किले में बंदी रखा गया था ।

▶ इस किले में गुंबद की आकृति का भवन है जिसे ‘चक्कीपाड़ा’ कहते हैं ।

(17) चौमूं का किला (चौमुहांगढ़)

▶ ठाकुर कर्णसिंह ने 1595-97 ई. के लगभग बेणीदास नामक एक संत के आशीर्वाद से इस दुर्ग की नींव रखी । पहले इसे रघुनाथगढ़ कहा जाता था । इसे धाराधारगढ़ भी कहा जाता है ।

▶ माधोसिंह ने यहाँ ‘हवा मंदिर’ नाम से अतिथि गृह का निर्माण करवाया ।

▶ इसमें महलों का निर्माण ढूँढाड़ शैली में करवाया गया है ।

▶ यहाँ स्थित देवी निवास जयपुर के अल्बर्ट हॉल की प्रतिकृति है ।

▶ कमल पुष्प की पत्तियों का अंकन है ।

▶ 1798 ई. में ठाकुर कृष्ण सिंह ने कस्बे के चतुर्दिक परकोटे का निर्माण करवाया । परकोटे के प्रमुख चार दरवाजे हैं – बावड़ी दरवाजा , पीहाला दरवाजा, होली दरवाजा एवं रावण दरवाजा ।

▶ दुर्ग के अंदर भव्य महलों में कृष्ण निवास, रतन निवास, शीश महल, मोती महल एवं देवी निवास उल्लेखनीय है ।

(18) अजयमेरू दुर्ग (तारागढ दुर्ग)

▶ अजमेर जिले के इस गिरी दुर्ग का निर्माण 7वीं शताब्दी में चौहान शासक अजयपाल ने तारागढ़ पर्वत की बीठली पहाड़ी पर करवाया । इसलिए इसे गढ़बीठली कहा जाता है ।

▶ इसी दुर्ग की तलहटी में चौहान शासक अजयराज ने 1113 ई. में अजमेर शहर की स्थापना की ।

▶ मेवाड़ के राणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज ने इस दुर्ग के कुछ भाग बनवाये और अपनी वीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा ।

▶ तारागढ़ के भीतर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरा साहब की दरगाह भी हैं । यह दरगाह तारागढ़ के प्रथम गवर्नर मीर सैयद हुसैन खिंगसवार की है तथा प्रिय ‘घोड़े की मजार’ भी है ।

▶ इस पहाड़ी के ठीक नीचे एक प्राचीन गुफा शीशाखाना है जिससे अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान फाईसागर के निकट चामुंडा माता के मंदिर की पहाड़ियों पर दर्शन हेतु जाया करते थे ।

▶ मुगल उत्तराधिकारी युद्ध ने शाहजादा दाराशिकोह ने इसी दुर्ग में आश्रय लिया था ।

▶ इसे ‘राजस्थान का जिब्राल्टर’ कहा जाता है ।

▶ अरावली पर्वतमाला के मध्य में स्थित होने के कारण इस दुर्ग को ‘अरावली का अरमान ‘ , ‘राजस्थान का हृदय’ और ‘राजपूताने की कुंजी’ कहा जाता है ।

▶ इतिहासविद् हरबिलास शारदा (अखबार-उल-अखयार) ने इस दुर्ग को भारत का प्रथम गिर दुर्ग कहा है ।

▶ अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैटिंक ने 1832 में इसे सैनिकों के लिए आरोग्य सदन में परिवर्तित करा दिया ।

▶ शेरशाह सूरी ने पानी की व्यवस्था के लिए ‘हफ्ज जमाल’ (शीरचश्म) नामक चश्मे का निर्माण करवाया ।

▶ राव मालदेव ने अजमेररू दुर्ग में किले के ऊपर अरहठ से पानी पहुंचाने का प्रबंध किया ।

▶ तारागढ़ दुर्ग के प्रवेश द्वारों में विजयपोल, लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा , भवानीपोल, हाथीपोल , अरकोट दरवाजा तथा बड़ा दरवाजा प्रमुख हैं ।

▶ इस दुर्ग की प्राचीर में 14 बुर्जें हैं जिनमें घूँघट , गूगड़ी , नगारची, बान्द्रा, फतेह बुर्ज आदि स्थित है ।

▶ यहाँ स्थित प्रमुख कुण्डों में नाना साहिब का झालरा , इब्राहिम शरीफ का झालरा , बड़ा झालरा शामिल है ।

▶ तारागढ़ पहाड़ी पर राज्य सरकार ने पृथ्वीराज स्मारक स्थापित किया है जहां पर पृथ्वीराज चौहान की घोड़ी पर सवार प्रतिमा है ।

▶ बिशप आर हैबर ने इसे ‘दूसरा जिब्राल्टर’ नाम दिया था ।

(19) अकबर (मैग्जीन) का किला (अजमेर)

▶ अकबर का किला अजमेर नगर के मध्य स्थित है , जिसे मैग्जीन (सिलहखाना या शस्त्रागार) या अकबर का दौलतखाना भी कहते हैं ।

▶ मुगलों द्वारा मुस्लिम-हिंदू दुर्ग निर्माण पद्धति से बनाया हुआ यह एकमात्र दुर्ग राजस्थान में है । इस दुर्ग का निर्माण 1571-72 ई. में किया गया था ।

▶ अकबर द्वारा राजपूताना के राज्यों की गतिविधियों पर नजर रखने एवं मालवा व गुजरात अभियानों के सफल संचालन हेतु तथा अजमेर यात्रा पर अपनी सुरक्षा आवास स्थल के रूप में दुर्ग का निर्माण करवाया गया था ।

▶ 1576 ई. के हल्दीघाटी के युद्ध की अंतिम योजना भी इसी दुर्ग में बनी थी ।

▶ इंग्लैंड के सम्राट जेम्स प्रथम के दूत सर टामस रो ने इसी स्थान पर बादशाह जहाँगीर को अपना परिचय पत्र प्रस्तुत किया था एवं ईस्ट इंडिया कंपनी हेतु भारत में व्यापार की अनुमति प्राप्त की थी ।

▶ यहाँ राजपूताना म्यूजियम स्थापित है ।

▶ भारत के गवर्नर जनरल व वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 1905 में खाटू से प्राप्त पीले पत्थरों से जीर्णोद्धार करवाया था ।

(20) शाहाबाद का किला (बाराँ)

▶ शाहाबाद का प्राचीन दुर्ग बाराँ में मुकुन्दरा पर्वत श्रेणी की भामती पहाड़ी पर स्थित है । यह दुर्ग 9 वीं शताब्दी में परमारों का बनवाया गया माना जाता है । इसका पुनर्निर्माण चौहान राजा मुकुटमणिदेव ने 1521 ईस्वी में करवाया था ।

▶ शेरशाह सूरी के कालिंजरा अभियान के दौरान इसका नाम सलीमाबाद रखा गया । मुगलों के शासन काल में इस दुर्ग का वर्तमान नाम शाहाबाद पड़ा ।

▶ शाहाबाद का किला ‘कुण्डाखोह’ नामक गहरे प्राकृतिक झरने से घिरा हुआ है ।

▶ शाहजहाँ ने यहाँ के अंतिम चौहान राजा इंद्रमन को हराकर दुर्ग पर मुगल स्थापित किया ।

▶ चौहान राजा इंद्रमन ने बादल महल बनवाया था । बादल महल के दोनों दरवाजों के समीप अललपंख (दो पंख युक्त हाथी की विशाल प्रतिमाएँ) लगी हुई है ।

▶ दुर्ग में रखी विशाल तोप ‘नवलबाण” दूर तक मार कर सकती थी ।

(21) शेरगढ़ का किला (बाराँ)

▶ यह दुर्ग बाँरा की अटरू तहसील में परवन नदी के किनारे पर स्थित है । इस दुर्ग का निर्माण नागवंशीय शासकों ने करवाया था । उस समय इसका नाम कोशवर्धन था, परंतु बाद में शेरशाह सूरी के नाम पर इसका नाम शेरगढ़ रखा गया ।

▶ यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है , जहाँ पर सर्वनाम व उसकी रानी श्रीदेवी के पुत्र देवदत्त द्वारा एक बौद्ध विहार और मठ बनवाया गया ।

▶ अमीर खाँ पिंडारी ने अंग्रेजों के खौफ से शेरगढ़ दुर्ग में शरण ली ।

▶ झाला जालिमसिंह ने शेरगढ़ का जीर्णोद्धार करवाया और अपने रहने हेतु महल ‘झालाओं की हवेली’ बनवाई ।

▶ 2011 में यहां 2500 ईसा पूर्व की प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं ।

▶ यह दुर्ग प्राचीन जैन शिल्प कला के लिए विख्यात है ।

▶ दुर्ग में सोभनाथ मंदिर, चारभुजा मंदिर , अमीर खाँ के महल , भव्य राजा प्रसाद आदि विद्यमान है ।

(22) गागरोण का दुर्ग (झालावाड़ )

  • दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के सबसे प्राचीन व विकट दुर्गों में से एक गागरोण दुर्ग एक उत्कृष्ट जलदुर्ग है , जिसे झालावाड़ में आहू और कालीसिंध नदियों के संगम स्थल ‘सामेलजी’ के निकट डोड (परमार) राजपूतों द्वारा निर्मित करवाया गया था । इन्हीं के नाम पर डोडगढ़ या धूलरगढ़ कहते थे ।
  • चौहान कल्पद्रुम के अनुसार खींची राजवंश के संस्थापक देवनसिंह ने 12 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इसे डोड शासक बीजलदेव से जीतकर इसका नाम गागरोण रखा । यह दुर्ग मुकुंदरा की पहाड़ी पर बना हुआ है ।
  • जैतसिंह के समय ही प्रसिद्ध सूफी संत हमीदुद्दीन चिश्ती खुरासान से गागरोण आये । इनकी समाधि ‘मीठे शाह की दरगाह’ यहाँ अभी भी विद्यमान है ।
  • भगवान मधुसूदन का मंदिर जो राव दुर्जनसाल हाडा ने बनवाया ।
  • कोटा रियासत के सिक्के डालने के लिए निर्मित टकसाल ।
  • रामानंद के शिष्य संत नरेश पीपाजी की छतरी जहां प्रतिवर्ष उनकी पुण्यतिथि पर मेला भरता है ।
  • कोटा के झाला जालिमसिंह द्वारा निर्मित विशाल परकोटा ‘जालिमकोट’ एवं औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा इस दुर्ग में मौजूद है ।
  • गागरोण दुर्ग तिहरे परकोटे से सुरक्षित है । रामबुर्ज एवं ध्वज बुर्ज इसकी विशाल बुर्जे हैं । दुर्ग के पास की ऊंची पहाड़ी को ‘गीध कराई’ कहते थे ।
  • पाषाणकालीन उपकरण हेतु प्रसिद्ध है ।
  • मुद्फ्फर (अरीदा/ढेंकुली) गागरोण दुर्ग में पत्थरों की वर्षा करने वाला यंत्र है ।
  • दुर्ग के अन्य नाम – डोडगढ़ , घूसरगढ, गर्गराटपुर, मुस्तफाबाद ।
  • विख्यात पक्षी विज्ञानी सलीम अली ने गागरोण क्षेत्र में पाये जाने वाले गागरोणी तोतों के संबंध में अपनी पुस्तक ‘द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स’ में किया है । इनकी जाति हीरामन हिद्धलखा है ।
  • गागरोण के साके :-
    (१) 1423 ई. में मांडू के सुल्तान होशंगशाह व भोज के पुत्र अचलदास खींची के मध्य युद्ध । अचलदास खींची की रानी उमादे ने जौहर किया । यह गागरोण दुर्ग का पहला साका था ।

(२) 1444 ई. में मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम व अचलदास खींची के पुत्र पाल्हणसी के मध्य युद्ध । यह गागरोण दुर्ग का दूसरा साका था ।

(23) शेरगढ़ का किला (धौलपुर)

▶ धौलपुर के पास चंबल नदी के किनारे बने इस दुर्ग का निर्माण कुषाण वंश के शासन काल में राजा मालदेव द्वारा करवाया गया था ।

▶ पूर्वी राजस्थान के द्वारगढ़ के रूप में प्रसिद्ध यह दुर्ग चंबल नदी के किनारे ऊँचे बीहड़ में स्थित है ।

▶ राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है, जो राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित है ।

▶ मुगल काल में इस दुर्ग का उपयोग फौजी चौकी के रूप में किया जाता था ।

▶ सैय्यद की मजार दुर्ग में स्थित है ।

▶ राजा कीरतसिंह ने ही धौलपुर की प्रसिद्ध अष्टधातु की विशाल हुनहुँकार तोप का निर्माण करवाया था

(24) कोटा का किला

▶ कोटा में चंबल नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित यह दुर्ग का निर्माण हाड़ा चौहान शासक माधोसिंह ने करवाया था ।

▶ दुर्ग के मुख्य द्वार हैं – पाटनपोल , कैथूनी पोल, सूरजपोल, हाथीपोल एवं किशोरपुरा दरवाजा है ।

▶ कोटा किले के राजाप्रासादों में जैतसिंह महल, माधव सिंह महल , कँवरपदा महल, केसर महल, अर्जुन महल , चंद्र महल, हवा महल , छत्तर महल, झाला जालिम सिंह की हवेली आदि प्रमुख है ।

▶ दुर्ग के भीतर ‘महाराजा माधवसिंह म्यूजियम’ स्थित है ।

(25) तारागढ़ दुर्ग (बूँदी)

▶ तारागढ़ दुर्ग का निर्माण बूँदी के राव देवा के वंशज राव बरसिंह ने 1354 ई. में करवाया । किले की बाहरी दीवार का निर्माण 18वीं सदी में फौजदार दलील ने करवाया था ।

▶ इस दुुर्ग के भीतर 16वीं सदी में एक ऊँची विशाल लाट (भीमबुर्ज) का निर्माण शक्तिशाली तोप ‘गर्भ गुंजन’ को रखने हेतु करवाया गया था ।

▶ कर्नल टॉड ने बूँदी के राजमहलों को राजस्थान के सभी रजवाड़ों के राजप्रासादों में सर्वश्रेष्ठ बताया है ।

▶इस दुर्ग में छत्र महल, अनिरुद्ध महल, रतन महल, बादल महल, फूल महल आदि स्थापत्य कला के उत्कृष्ट व अत्यंत सुंदर उदाहरण है । अन्य महलों में जीवरक्खा महल, दीवान ए आम , सिलहखाना , नौबत खाना , दूधा महल आदि महत्वपूर्ण है ।

▶ महाराव उम्मेद सिंह के समय निर्मित चित्रशाला (रंग विलास) बूँदी चित्रशैली का उत्कृष्ट उदाहरण है ।

▶हाथी पोल ,गणेश पोल एवं हजारी पोल तारागढ़ दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार हैं । इसके अलावा पाटन पोल, भैरव पोल, चौगान पोल एवं शुकल बारी दरवाजा है ।

▶ रानी महल नामक तालाब स्थित है । 1699 ई. में निर्मित रानी जी की बावड़ी एशिया में अपनी निर्माण शैली के कारण प्रसिद्ध है ।

(26) दौसा का किला

▶ दौसा जिले में देवगिरी पहाड़ी पर सूप (छाजले) की आकृति का यह गिरी दुर्ग कछवाहा वंश की प्रथम राजधानी था ।

▶ दुर्ग में प्रवेश हेतु ‘हाथीपोल’ एवं ‘मोरी’ दो दरवाजे हैं। दुर्ग का निचला भाग दोहरे परकोटे से आबद्ध है । परकोटे में मोरी द्वार के निकट ‘राजाजी का कुआं’ है । पास ही स्थित बावड़ी के पास बैजनाथ महादेव मंदिर व नीलकंठ महादेव का मंदिर है ।

▶ दुर्ग की सबसे ऊंची गढ़ी के पास एक विशालकाय तोर रखी है । गढ़ी के अंदर ’14 राजाओं की साल’ है ।

(27) सोजत दुर्ग (पाली)

इस दुर्ग का निर्माण राव जोधा के पुत्र नीम्बा द्वारा पाली जिले में सुकड़ी नदी के मुहाने पर ‘नानी सीरड़ी’ नामक डूँगरी पर करवाया ।

जोधपुर के शासक राव मालदेव ने इस दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया ।

राव मालदेव के पुत्र राम ने इस दुर्ग में रामेलाव तलाब बनवाया ।

जनानी ड्योढ़ी, तबेला , दरीखाना आदि दुर्ग के अंदर स्थित मुख्य भवन है ।

जोधपुर महाराजा विजयसिंह ने सोजत के इस दुर्ग की मरम्मत करवाई थी तथा एक अन्य पहाड़ी पर एक नया दुर्ग ‘नरसिंहगढ़’ बनवाया था ।

(28) अचलगढ़ दुर्ग (सिरोही)

▶ इस दुर्ग का निर्माण परमार शासकों द्वारा किया गया था । आबू पर्वत क्षेत्र को ही प्राचीन ग्रंथों में अर्बुंदाचल या अर्बुद गिरी कहा गया है ।

▶ कर्नल टॉड ने माउंट आबू को ‘हिन्दु ओलम्पस’ (देव पर्वत) कहा है ।

▶ गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा ने अचलगढ़ पर आक्रमण किया और कुछ प्राचीन देवी प्रतिमाओं को नष्ट किया , लेकिन मधुमक्खियों का एक बड़ा दल आक्रमणकारियों पर टूट पड़ा जिससे आक्रमणकारियों को भागना पड़ा । इस घटना की स्मृति में यह स्थान आज भँवराथल के नाम से प्रसिद्ध है ।

▶ दुर्ग में राणा कुंभा व उसके पुत्र उदा की मूर्तियां व सावन भादों झील भी आकर्षक है ।

▶ मंदाकिनी कुंड व सिरोही के महाराव मानसिंह का स्मारक, शांतिनाथ जैन मंदिर, रेवती कुंड, गोमती कुंड, भृगु आश्रम, चामुंडा मंदिर , कफूर सागर सरोवर , ओखा रानी का महल आदि यहाँ के प्रमुख स्थान है ।

▶ दुर्ग के पास ही भरथरी की गुफाएँ स्थित है ।

▶ अचलगढ़ दुर्ग के प्रवेश द्वार- हनुमान पोल, गणेश पोल, चंपापोल एवं भैंरवपोल है ।

▶ यहाँ गौमुख जी के मंदिर में सर्वधातु की 14 मूर्तियां अवस्थित है ।

(29) बसंतगढ़ दुर्ग (सिरोही)

▶ यह दुर्ग सिरोही जिले में पिंडवाड़ा के पास पहाड़ी पर स्थित है । इसका पुर्ननिर्माण मेवाड़ महाराणा कुंभा ने गुजरात के मुस्लिम शासकों के आक्रमण को रोकने हेतु बनवाया था ।

▶ दुर्ग में सूर्य मंदिर एवं दत्तात्रेय का मंदिर (ब्रह्मा जी) स्थित है ।

▶ खीमेल के मंदिर के शिलालेख से ज्ञात होता है कि इस दुर्ग का इतिहास 7वीं सदी से है ।

▶ दुर्ग की पहाड़ी पर खींवल माता का प्रसिद्ध मंदिर विद्यमान है ।

(30) बाला दुर्ग (अलवर)

▶ 1106 ई. में आमेर नरेश काकिलदेव के छोटे पुत्र अलघराज ने एक पर्वत शिखर पर एक छोटा किला बनवाया था तथा उसके नीचे एक नगर अलपुर बसाया गया था । 12वीं सदी में इस दुर्ग पर चौहानों का अधिकार हो गया और उन्होंने इस दुर्ग का विस्तार करवाया । उन्होंने दुर्ग में महल एवं माता आराध्य देवी (चतुर्भुजा देवी) का मंदिर बनवाया ।

▶ शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारी सलीम शाह के काल में चाँद काजी ने यहाँ सलीमसागर जलाशय से बनाया गया ।

▶ भरतपुर नरेश सूरजमल ने सूरजकुंड व सूरज महल बनवाया ।

▶ अलवर दुर्ग को ‘आँख वाला किला’ भी कहा जाता है ।

▶ नौगजा बुर्ज , काबुल एवं खुर्द बुर्ज , बंगला बुर्ज आदि प्रमुख बुर्ज है । दुर्ग में पांच प्रमुख प्रवेश द्वार हैं – चाँदपोल , सूरजपोल, कृष्णपोल, लक्ष्मण पोल व जयपोल ।

▶ दुर्ग के भीतर निकुंभ महल, सीताराम जी का मंदिर है ।

(31) राजोरगढ़ (नीलकण्ठ) दुर्ग

▶ यह दुर्ग अलवर जिले में टहला कस्बे के पास अरावली पर्वतमाला की एक पहाड़ी पर स्थित है ।

▶ 10 वीं सदी में बड़गूजर शासक मंथनदेव ने भव्य नीलकंठ महादेव मंदिर बनवाया । तभी ये यह नगर नीलकंठ राजोरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।

▶ यहाँ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा व मंदिर है , जिसे नौगजा मंदिर कहते हैं । इस कस्बे को पारानगर भी कहते हैं ।

(32) कांकवाड़ी का किला (सरिस्का)

▶ यह दुर्ग प्रसिद्ध सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण्य (अलवर) के घने जंगल में स्थित हैं । इसमें गिरी दुर्ग एवं वन दुर्ग दोनों की विशेषताएं मौजूद है ।

▶ इस दुर्ग में खतरनाक राजनीतिक बंदियों एवं युद्ध बंदियों को कैद में रखा जाता था ।

▶ दुर्ग की ऊपरी मंजिल पर भित्तिचित्रों से अलंकृत बारहदरी बनी हुई है ।

▶ मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस दुर्ग में अपने पराजित भाई दारा शिकोह को कैद रखा था ।

▶ अलवर के पायलेट गजट के अनुसार इस अभेद्य दुर्ग का निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया था ।

(33) नीमराणा का किला

‘पंचमहल’ के नाम से विख्यात इस किले का निर्माण 1464 ई. में चौहान शासकों द्वारा करवाया गया था । यह एक गिरी दुर्ग हैं ।

▶ नीमराणा दुर्ग पर पृथ्वीराज के वंशज चौहानों का अधिकार रहा । यह पृथ्वीराज चौहान के वंशजों की तृतीय राजधानी थी ।

▶ नीमराणा कस्बा जयपुर-दिल्ली हाईवे पर बहरोड़ व शाहजहाँपुर के बीच में स्थित है । यह क्षेत्र ‘राठ क्षेत्र’ कहलाता था ।

▶ वर्तमान में नीमराणा एक औद्योगिक हब बन चुका है । नीमराणा दुर्ग को 2008 में ‘नीमराणा फोर्ट पैलेस’ होटल में तब्दील कर दिया गया है ।

(34) भानगढ़ दुर्ग (भूतहा किला)

▶ अजबगढ़ (अलवर) से कुछ दूरी पर स्थित इस रहस्यमयी दुर्ग का निर्माण जयपुर महाराजा मानसिंह के भाई माधौसिंह ने 1631 में करवाया था । वर्तमान में यह ‘भूतहा किले’ (खण्डहरों का नगर) के रूप में प्रसिद्ध है ।

▶ यह दुर्ग सरिस्का अभ्यारण्य की सीमा के पास पहाड़ी पर स्थित है । यह सांवण नदी के तट पर स्थित है ।

▶ दुर्ग में प्रवेश के 4 दरवाजे – लाहोरी गेट, अजमेरी गेट, फूलबाड़ी गेट एवं दिल्ली गेट है ।

▶ दुर्ग के मुख्य द्वार के पास गोपीनाथ मंदिर, मंगला देवी मंदिर, केशव राय मंदिर, सोमेश्वर मंदिर एवं नवीन मंदिर आदि बने हुए हैं ।

▶ यहीं पुरोहित जी की हवेली भी विद्यमान है । इसके बाद नाचन की हवेली एवं जौहरी बाजार स्थित है ।

▶ वर्तमान में इस किले के खंडहर ‘आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया’ द्वारा संरक्षित है ।

▶ बाबूनाथ नामक शापित स्थान , शींडा तांत्रिक , राजकुमारी रत्नावली की कथाएँ इस दुर्ग के साथ जुड़ी हुई है ।

(35) लोहागढ़ दुर्ग (भरतपुर)

▶ जाट महाराजा सूरजमल द्वारा स्थापित भरतपुर दुर्ग का निर्माण 1733 ई. में सौगर के निकट प्रारम्भ तथा 8 वर्ष में बनकर तैयार हुआ ।

▶ इसे पूर्वी सीमा का प्रहरी भी कहा जाता है ।

▶ 1805 में अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक इस किले को जीतने में असफल रहा , इसीलिए इस दुर्ग को ‘लॉर्ड लेक का वाटरलू’ कहा जाता है । भरतपुर महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों पर इस विजय के उपलक्ष्य में 1806 में दुर्गे की ‘फतेह बुर्ज’ का निर्माण करवाया गया ।

▶ राजेश्वरी माता भरतपुर के जाट वंश की कुलदेवी है ।

▶ राजस्थान का सबसे नवीन व सर्वाधिक निचाई पर स्थित दुर्ग । दुर्ग निर्माण की परंपरा में अंतिम दुर्ग है । यह दोहरी प्राचीर से घिरा हुआ दुर्ग है । मैदानी दुर्गों की श्रेणी में यह विश्व का सर्वश्रेष्ठ दुर्ग है । मिट्टी से निर्मित अजेय (लोह) दुर्ग है ।

▶ किले के चारों ओर की खाई में मोती झील (रूपारेल व बाण गंगा नदियों के जल को रोककर) में सुजान गंगा नहर द्वारा पानी लाया जाता था ।

▶ लोहागढ़ में स्थित विशाल हॉल को कचहरी कलां कहते थे । 18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद्घाटन समारोह इसी दुर्ग में हुआ था ।

▶ भरतपुर दुर्ग के प्रवेश द्वार गोपालगढ़ में अष्ट धातु से निर्मित दरवाजें लगे हुए हैं , जिनको महाराजा जवाहर सिंह ने लाल किले से लाये थे । भरतपुर के किले के दक्षिणी द्वार को लोहिया दरवाजा कहा जाता है । किले में सबसे प्रमुख ‘जवाहर बुर्ज’ महाराजा जवाहरसिंह की दिल्ली विजय के स्मारक के रूप में हैं ।

▶ किले में स्थित प्रमुख इमारतें – रानी किशोरी और रानी लक्ष्मी के महल , गंगा मंदिर, राजेश्वरी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, बिहारी जी का मंदिर एवं जामा मस्जिद प्रमुख है ।

(36) बयाना दुर्ग (भरतपुर )

▶ करौली के यादव राजवंश के महाराजा विजयपाल ने अपनी राजधानी मथुरा को असुरक्षित जानकर यह दुर्ग मानी (दमदमा) पहाड़ी पर 1040 ईसवी के लगभग बनवाया था । इसलिए इसे विजयमंदिर गढ भी कहते हैं ।

▶ बयाना दुर्ग के भीतर लाल पत्थरों से बनी 8 मंजिली ऊँची लाट या स्तंभ है जो भीमलाट (ऊषा लाट) के नाम से प्रसिद्ध है । इसे राजस्थान की कुतुब मीनार कह सकते हैं । इसे महाराजा विष्णुवर्द्धन ने बनवाया था ।

▶ यहाँ विक्रम संवत् 1012 में रानी चित्रलेखा द्वारा निर्मित उषा मंदिर हिंदू स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है ।

▶ यहाँ समुद्रगुप्त द्वारा बनाया गया विजय स्तंभ है जो राजस्थान का पहला विजय स्तंभ कहा जाता है ।

▶ यहाँ लोदी मीनार , अकबर की छतरी, जहाँगीरी दरवाजा , सराय सादुल्ला , दाऊद खान की मीनार आदि दर्शनीय है ।

▶ हुमायूँ ने अपने चचेरे भाई मोहम्मद जमान मिर्जा को इस दुर्ग में कैद कर रखा था ।

▶ बयाना दुर्ग नील के उत्पादन तथा मूर्तियों की तस्करी के लिए प्रसिद्ध है ।

▶ राजस्थान का ऐसा दुर्ग है जिसमें सर्वाधिक कब्रें हैं ।

▶ प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ दशरथ शर्मा ने बयाना का प्राचीन नाम ‘भादानक’ बताया है । मध्ययुगीन मुस्लिम ग्रंथों में इसके बयाना व सुल्तानकोट दोनों नाम मिलते हैं ।

(37) तिमनगढ़ दुर्ग (करौली)

▶ बयाना से कुछ दूरी पर करौली में स्थित इस दुर्ग का निर्माण बयाना के महाराजा विजयपाल के पुत्र त्रिभुवनपाल (तवनपाल) ने 11 वीं शताब्दी में करवाया था । इस दुर्ग को त्रिपुरार नगरी के नाम से भी संबोधित किया जाता है ।

▶ उपनाम – तिमनगढ़ दुर्ग, तवनगढ व त्रिभुवनगढ़ ।

▶ तिमनपाल के पुत्र धर्मपाल ने धौलदेहरा (धौलपुर) दुर्ग का निर्माण करवाया तथा इसके दूसरे पुत्र कुँवरपाल ने गोलारी में कुँवरगढ़ दुर्ग बनवाया ।

▶ तिमनगढ़ दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार ‘जगनपोल’ एवं ‘सूर्यपोल’ है । दुर्ग में 60 दुकानों का एक बड़ा बाजार,खास महल ,ननंद भोजाई का कुआं, राजगिरी, दुर्गाध्यक्ष के महल आदि इमारतें हैं ।

(38) भोपालगढ़ दुर्ग (खेतड़ी )

▶ भोपालगढ़ दुर्ग का निर्माण खेतड़ी के तत्कालीन शासक ठाकुर भोपाल सिंह ने 1770 ई. में करवाया था ।

▶ भोपालगढ़ दुर्ग को ‘खेतड़ी का हवामहल’ भी कहते हैं ।

▶ यह महल अपने संकीर्ण गलियारों के कारण प्रसिद्ध है ।

(39) मांडलगढ़ दुर्ग (भीलवाड़ा)

▶ यह गिरी दुर्ग भीलवाड़ा जिले में बनास, बेड़च और मेनाल नदियों के त्रिवेणी संगम के समीप अरावली पर्वत माला में स्थित है । इस किले के पास ही बीजासण नामक पहाड़ी स्थित है ।

▶ श्रृंगी ऋषि शिलालेख के अनुसार मंडलाकृति (कटोरेनुमा) का होने के कारण इसका नाम मांडलगढ़ पड़ा ।

▶ दुर्ग के अंदर दो कुंडेश्वर व जालेश्वर महादेव मंदिर , ऋषभदेव का जैन मंदिर , सागर व सागरी जलाशय, जालेसर एवं देव सागर तालाब , रूपसिंह राठौड़ द्वारा निर्मित महल इसके स्थापत्य के प्रमुख उदाहरण है ।

▶ यह सिद्ध योगियों का प्रसिद्ध केंद्र भी रहा है ।

(40) बनेड़ा दुर्ग (भीलवाड़ा)

इस दुर्ग का निर्माण 1730 ई. में प्रारंभ हुआ । यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जो निर्माण से लेकर अभी तक अपनी मूल स्वरूप में यथावत् स्थित है ।

यहाँ 18वीं शताब्दी के जैन मंदिर में प्रवेश द्वार के ऊपर अनहड़ पंखगजचार का चित्र मिलता है ।

अन्य महत्वपूर्ण दुर्ग :-

(41) कुचामन का किला

▶ कुचामन के किले को जागीरी किलो का सिरमौर माना जाता है । यह नागौर जिले का गिरी दुर्ग है । ऐसा माना जाता है कि यहां के पराक्रमी मेड़तिया शासक जालिमसिंह ने पनखण्डी नामक महात्मा की आशीर्वाद से कुचामन के किले की नींव रखी ।

▶ दुर्ग में स्थित हवामहल राजपूत स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है । पाताल्या हौज एवं अंधेर्या हौज दुर्ग के प्रमुख पानी के कुंड है । दुर्ग के उत्तर में हाथी टीबा स्थित है ।

▶ इस किले का कभी शत्रु सेना के सामने पतन नहीं हुआ । इस कारण यह किला अणखला किला कहलाता है ।

(42) फतेहपुर दुर्ग

▶ यह शेखावाटी का सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दुर्ग है । यह दुर्ग कायमखानियों द्वारा निर्मित किया गया था , जो मूल रूप से ददरेवा के चौहान एवं गोगाजी के वंशज थे । इस दुर्ग की नींव 1453 ई. में फतनखाँ कायमखानी ने रखी तथा फतेहपुर कस्बा बसाया ।

▶ यहाँ तेलिन का प्रसिद्ध महल भी है तो हिंदू मुस्लिम स्थापत्य शैली में निर्मित है ।

(43) लक्ष्मणगढ़ दुर्ग

▶ शेखावाटी में बेड़ (बेर) नामक एक पहाड़ी की चोटी पर सीकर के पश्चिम(लक्ष्मणगढ़ ) में यह किला स्थित है , जिसका निर्माण रावराजा लक्ष्मण सिंह ने 1805 में करवाया था ।

▶ यह दुर्ग केवल बुर्जों से बना है दीवार से नहीं । इसके अलावा इसका मुख्य द्वार जो खिड़की की के समान अत्यधिक छोटा है ।

(44) भूमगढ़ /भोमगढ़ दुर्ग

टोंक जिले में स्थित इस दुर्ग का निर्माण 17वीं शताब्दी में भोला नामक ब्राह्मण द्वारा अपने प्रदेश की रक्षार्थ करवाया गया । टोंक के नवाब अमीर खाँ पिंडारी ने इस दुर्ग का पुनरूद्धार किया ।

(45) सज्जनगढ़ दुर्ग

▶ उदयपुर में अरावली पर्वत श्रेणियों की बांसदरा पहाड़ी पर स्थित इस गिरी दुर्ग का निर्माण मेवाड़ शासक महाराणा सज्जनसिंह ने करवाया ।

▶ यह दुर्ग ‘उदयपुर का मुकुटमणि’ नाम से भी प्रसिद्ध है ।

▶ दुर्ग में महाराणा सज्जनसिंह ने 1881 में वाणी विलास पैलेस (सज्जनगढ़ पैलेस) एवं गुलाब बाड़ी का निर्माण करवाया ।

(46) नाहरगढ़ दुर्ग (बाराँ)

बाराँ जिले में स्थित यह दुर्ग दिल्ली के लाल किले के सम्मान लाल पत्थरों से निर्मित है ।

(47) करणसर दुर्ग (जयपुर )

जयपुर जिले में हिंगोदिया के निकट समतल मैदान में चार बुर्जों वाला दुर्ग ‘करणसर दुर्ग’ स्थित है जो एक लघु स्थल दुर्ग है । बहादुर राणावत द्वारा निर्मित कराए गए इस दुर्ग की प्राचीन इतनी चौड़ी है कि उस पर 4 घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं ।

(48) केसरोली दुर्ग (अलवर )

अलवर जिले में स्थित यह दुर्ग राज्य के सबसे पुराने दुर्गों में शामिल किया जाता है । इतिहासकार इसका संबंध महाभारत कालीन मत्स्य जनपद से जोड़ते हैं । वर्तमान में यह एक हैरिटेज होटल बन गया है ।

(49) खंडार का दुर्ग ( सवाई माधोपुर )

यह त्रिभुजाकार गिरी दुर्ग सवाई माधोपुर जिले के खंडार कस्बे में स्थित है । यहाँ अष्टधातु निर्मित ‘शारदा तोप’ अपनी मारक क्षमता हेतु प्रसिद्ध है ।

(50) मंडोर दुर्ग (जोधपुर)

घटियाला शिलालेख एवं जोधपुर शहर के परकोटे के शिलालेख से ज्ञात होता है कि मंडोर दुर्ग का निर्माण सातवीं शताब्दी पूर्व हो चुका था । मंडोर दुर्ग की दीवारों के अवशेष के पास राव रणमल के देवल है तथा यहीं पर राम गांगा एवं चूँड़ा के स्मारक स्थित है ।

मंडोर दुर्ग से कुछ दूरी पर मंडोर के अंतिम परमार शासक नाहरदेव की बावड़ी है । दुर्ग में अभय सिंह के महल एवं बाग स्थित है ।

(51) उटगिरी का किला (करौली )

▶ उपनाम – उदितनगर, उटनगर , अवन्तगढ़ और अनुवन्तगढ़ नाम से भी जाना जाता था ।

‘इमली वाली पोल’ इसका मुख्य प्रवेश द्वार है ।

▶ दुर्ग के भीतर सुदृढ़ बालाकिला स्थित है । वीर विनोद के अनुसार इसका निर्माण महाराजा हरबक्षपाल ने करवाया था । इस दुर्ग के एक स्थान को मेयांवाडा कहते हैं ।

▶ उटगिरी के पुर्व में देवगिरी का प्राचीन किला स्थित है जो यादवों का दुर्ग है ।

(52) वैरगढ़ दुर्ग (भरतपुर)

भरतपुर में स्थित वैरगढ़ दुर्ग का निर्माण जाट शासक सूरजमल के शासनकाल (भाई प्रतापसिंह) में करवाया गया था ।

(53) मंडरायल दुर्ग (करौली)

करौली जिले में चंबल नदी के तट पर एक ऊँची पहाड़ी पर लाल पत्थरों से निर्मित दुर्ग है । एक समय इस दुर्ग पर मियां माखन का अधिकार था । उसी के नाम पर यह मंडरायल दुर्ग कहलाया ।

(54) शहर दुर्ग (सवाई माधोपुर)

सवाई माधोपुर जिले में गंगापुर सिटी से सिकंदरा जाने वाले मार्ग पर शहर गाँव है जिसमें स्थित इस दुर्ग का निर्माण आमेर के कछवाहा की पच्याणोत शाखा के किसी शासक ने करवाया था । इस दुर्ग में देवी सेहरा माता का प्राचीन मंदिर स्थित है । इस दुर्ग के ठाकुर उदयसिंह का पुत्र जगन्नाथ मिर्जा राजा जयसिंह का प्रमुख सेनापति रहा था ।

(55) अजबगढ़ का दुर्ग (अलवर)

अलवर जिले में स्थित इस गिरी दुर्ग का निर्माण 1635 में करवाया गया था ।

(56) डीग का किला (भरतपुर)

भरतपुर जिले में जल महलों एवं बाग बगीचों के लिए प्रसिद्ध डीग कस्बे में स्थित इस दुर्ग का निर्माण जाट शासक बदन सिंह ने 1730 में करवाया था । यहाँ प्रसिद्ध लक्खाबुर्ज है । दुर्ग के मध्य में महाराजा सूरजमल का महल हैं ।

(57) कैर का किला

इसका निर्माण महाराजा बदन सिंह ने 1726 में करवाया था ।

(58) मालकोट का दुर्ग (नागौर)

इस दुर्ग का निर्माण मेड़ता के राजा मालदेव द्वारा करवाया गया था ।

(59) इंदौर का किला (अलवर)

दिल्ली सल्तनत की आँख की किरकिरी बना यह दुर्ग अलवर जिले में स्थित है । इसका निर्माण निकुंभों द्वारा करवाया गया था ।

(60) तिजारा का दुर्ग

महाभारत काल में त्रिगर्त प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध क्षेत्र अब तिजारा हो गया है । अलाउद्दीन लोदी ने यहां एक तालाब एवं विशाल गुंबद (भृर्तहरि की गुंबद) का निर्माण करवाया । तिजारा में हजरत गद्दनशाह पीर की मजार है । इसके पास की पहाड़ी पर हवा बंगला बना हुआ है ।

(61) भाद्राजून दुर्ग

यह वह दुर्ग है जहां मारवाड़ शासक राव चंद्रसेन अकबर द्वारा 1564 में जोधपुर के दुर्ग को फतह करने के बाद चले गए थे ।

(62) नाथों का दुर्ग ‘कोटकास्ता’ किला

जोधपुर महाराजा मानसिंह नाथों के अत्यधिक प्रभाव में थे । उन्होनें भीमनाथ जी महाराज को कास्तां की जागीर दी जिन्होंने इस सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण कराया था ।

(63) गूमट का दुर्ग (धौलपुर)

धौलपुर जिले के बाड़ी कस्बे में इस किले का निर्माण 1444 में किए जाने के उल्लेख किले की एक दरवाजे पर स्थित है फारसी शिलालेख में मिलते हैं । दुर्ग में मुगल बादशाह हुमायू कालीन मस्जिदें विद्यमान है ।

(64) राजगढ़ दुर्ग

अलवर जिले में राजगढ़ कस्बे में स्थित इस दुर्ग का निर्माण अलवर रियासत के संस्थापक कछवाहा महाराजा प्रताप सिंह ने 18 वीं सदी के अंत में राजगढ़ को अपनी प्रारंभिक राजधानी बनाने पर करवाया था ।

(65) खींवसर दुर्ग

नागौर जिले के खींवसर कस्बे में स्थित इस स्थल दुर्ग का निर्माण राव करमसजी ने 1523 के लगभग करवाया था ।

(66) मनोहर थाना दुर्ग

झालावाड़ जिले के मनोहर थाना कस्बे के पास परवन एवं काली खाड़ नदियों के संगम पर स्थित इस जल दुर्ग का निर्माण कोटा महाराव भीमसिंह द्वारा करवाया गया था ।

(67) नवलखाँ दुर्ग

झालरापाटन (झालावाड़) के पास स्थित इस दुर्ग का निर्माण झाला पृथ्वी सिंह ने करवाया था ।

(68) बागोर दुर्ग :- यह दुर्ग खेतड़ी तहसील में स्थित है ।

(69) काकोड़ दुर्ग :- टोंक

(70) इंदरगढ़ का किला :- बूँदी जिले के इन्द्रगढ़ कस्बे में स्थित गिरी दुर्ग ।

(71) पोकरण दुर्ग

जैसलमेर जिले के पोकरण कस्बे में लाल पत्थरों से निर्मित इस दुर्ग का निर्माण 1550 में जोधपुर शासक राव मालदेव ने करवाया था । किले में मंगल निवास, संग्रहालय , तोपें, द्वार, बुर्जियां तथा सुरक्षात्मक दीवार दर्शनीय है ।

(72) सोढ़लगढ़ (सूरतगढ़ )

गंगानगर जिले के सूरतगढ़ शहर में जोहियों का पुराना दुर्ग था जो सोढ़ल के नाम से जाना जाता था । बीकानेर नरेश सूरतसिंह ने 1799 में यहां नया दुर्ग बनवाया , जिसका नाम सूरतगढ़ रखा ।

(73) किलोणगढ़ दुर्ग (बाड़मेर) :- 1552 में राव भीमोजी द्वारा निर्मित गिरी दुर्ग ।

(74) टॉडगढ (अजमेर )

अजमेर जिले में स्थित यह दुर्ग कर्नल टॉड द्वारा निर्मित है । पूर्व में यह स्थान बोराड़वाड़ा कहलाता था । इस दुर्ग में गोपाल सिंह खरवा व विजयसिंह पथिक को नजरबंद रखा गया था ।

(75) ऊँटाला किला

मेवाड़ रियासत का यह दुर्ग उदयपुर जिले की वल्लभगढ़ तहसील में स्थित है ।

(76) बहादुरपुर दुर्ग (करौली)

करौली जिले के डाग क्षेत्र के बीहड़ों में बहादुरपुर दुर्ग का निर्माण यदुवंशी राजा तिवनपाल के पुत्र नागराज ने कराया । इस किले को बेकुन्टपुर भी कहते हैं ।

(77) गढ़ गणेश (जयपुर) :- नाहरगढ़ के सामने की पहाड़ी पर स्थित है ।

(78) दांतारामगढ़ (सीकर) :- इसका निर्माण गुमानसिंह ने 1744 में करवाया ।

(79) कोटड़ा का किला (बाड़मेर)

इस किले का निर्माण किराडू के परमार शासकों द्वारा करवाया गया । यह जैन धर्म की शरण स्थली के रूप में विख्यात रहा । इस दुर्ग का आकार जैसलमेर के किले के समान हैं ।

(80) केहरीगढ़ दुर्ग (अजमेर) :- इस दुर्ग के आंतरिक भाग को ‘जीवरक्खा’ कहते हैं ।

(81) जमवारामगढ़ किला :- जयपुर स्थित इस किले को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया है ।

(82) पचेवर किला (टोंक) :- यहाँ पाड़ा चक्की बनी हुई है ।

(83) गोविंदगढ़ का किला :- जाटों द्वारा निर्मित मिट्टी का दुर्ग ।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

➡ जो दुर्ग दुश्मन द्वारा जीते नहीं गये हों, उन्हें बाला किला कहा जाता है ।

➡ महाराणा कुंभा द्वारा लगभग 32 दुर्गों का निर्माण करवाया गया था जिनमें प्रमुख है – अचलगढ़, कुंभलगढ़, बसंतगढ़, मचान का दुर्ग, कोलन व बदनोर के पास बैराट का दुर्ग ।

➡ राज्य के 6 दुर्गों को वर्ष 2013 में यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत में शामिल किया – चित्तौड़गढ़ दुर्ग, कुंभलगढ़ दुर्ग, जैसलमेर दुर्ग, रणथम्भौर दुर्ग, आमेर दुर्ग व गागरोण दुर्ग ।

➡ टोंक जिले के टोडारायसिंह कस्बे में 13वीं सदी में सोलंकी शासकों ने बनवाई महलों में 9 हाथ के छगो स्थित है ।

➡ सुजानगढ़ (चुरु) के किले को हड़बूजी का कोट कहते हैं ।

➡ जोधपुर के निकट मंडोर में चौथी-पाँचवी शताब्दी के दुर्ग के अवशेष स्थित है , जिसे उल्टा किला भी कहते हैं ।

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