भारत के यवन राज्य 

भारत के यवन राज्य : हिन्द- यूनानी ,शक,हुण,पहल्व तथा कुषाण वंश

भारत के यवन राज्य 

 विदेशी आक्रमण एवं आत्मसातीकरण

 भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी आक्रमणकारियों का क्रम है –

(1) हिंद-यूनानी
(2) शक
(3) हुण
(4) पहल्व
(5) कुषाण

हिन्द- यूनानी ( indo-greek kingdom in Hindi) वंश 

  • सेल्यूकस के द्वारा स्थापित पश्चिमी तथा मध्य एशिया के विशाल साम्राज्य को इसके उत्तराधिकारी एन्टिओकस प्रथम ने अक्षुण्ण बनाए रखा ।
  • एन्टिओकस -II के शासनकाल में विद्रोह के फलस्वरूप उसके अनेक प्रांत स्वतंत्र हो गए ।
  • उत्तर- पश्चिमी से पश्चिमी विदेशियों के आक्रमण मौर्योत्तर काल की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना थी । इनमें सबसे पहले आक्रांता थे बिक्ट्रिया के ग्रीक ( यूनानी) , जिन्हें प्राचीन भारतीय साहित्य में यवन कहा गया है ।
  • बैक्ट्रिया की विद्रोह का नेतृत्व डियोडोट्स प्रथम ने किया था ।
  • बैक्ट्रिया पर डियोडोट्स प्रथम के साथ इन राज्यों ने क्रमश: शासन किया – डियोडोट्स -II, यूथिडेमस,डेमिट्रियस,मिनाण्डर,युक्रेटाइडस,एण्टी आलकीडस तथा हर्मिक्स
  • भारत पर सबसे पहले आक्रमण बैक्ट्रिया के शासक डेमिट्रियस ने किया। इसने 190 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण कर अफगानिस्तान, पंजाब एवं सिंध के बहुत बड़े भाग पर अधिकार कर लिया । इसने शाकल को अपनी राजधानी बनाया ।
  • डेमेट्रियस ने भारतीयों के राजा की उपाधि धारण की और यूनानी तथा खरोष्ठी दोनों लिपियों वाले सिक्के चलाए ।
  • डेमेट्रियस के उपरांत यूक्रेटाइड्स ने भारत के कुछ हिस्सों को जीतकर तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया ।
  • हिन्द- यूनानी शासकों में सबसे विख्यात मिनान्डर (165-145 ई.पू.) हुआ । इसकी राजधानी शाकल ( आधुनिक सियालकोट ) शिक्षा का प्रमुख केंद्र था ।
  • मिनान्डर ने नागसेन (नागार्जुन) से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली ।
  • प्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ मिलिंदपन्हो में बौद्ध भिक्षु नागसेन एवं मिनाण्डर की वृहद वार्ता संकलित है ।
  • हिन्द-यूनानी भारत के पहले शासक वे जिनके जारी किये सिक्कों के बारे में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि सिक्के किन- किन राजाओं के हैं ।
  • भारत में सबसे पहले हिन्द-यूनानियों ने ही सोने के सिक्के जारी किए ।
  • हिन्द- यूनानी शासकों ने भारत के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में यूनान की प्राचीन कला चलाई , जिसे हेलेनिस्टिक आर्ट कहते हैं । भारत में गंधार कला इसका उत्तम उदाहरण है ।
  • यूनानियों ने परदे का प्रचलन आरंभ कर भारतीय नाट्यकला के विकास में योगदान किया । चूँकि परदा यूनानियों की देन था इसलिए वह यवनिका के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

शक (Shak Vansh Empire in Hindi) वंश का इतिहास

  • यूनानियों के बाद शक आए । शकों की पाँच शाखाएँ थी और हर शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में अलग-अलग भागों में थी ।
  • पहली शाखा ने अफगानिस्तान, दूसरी शाखा ने पंजाब (राजधानी- तक्षशिला ), तीसरी शाखा ने मथुरा, चौथी शाखा ने पश्चिमी भारत एवं पांचवी शाखा ने ऊपरी दक्कन पर प्रभुत्व स्थापित किया ।
  • शक मूलत: मध्य एशिया के निवासी थे और चारागाह की खोज में भारत आए।
  • “रामायण” एवं “महाभारत” में शक बस्तियों को कम्बोजो और यवनों के साथ रखा गया है ।
  • कालकाचार्य कथानक में भारत पर शकों के आक्रमण का उल्लेख मिलता है, जिसमें उन्हें सगकुल (शक-कुल) कहा गया है ।
  • सिन्धु प्रदेश को जीतकर उन्होंने सौराष्ट्र में शक शासन की स्थापना की ।
  • प्रथम शक राजा मोअ था ।
  • मथुरा से प्राप्त सिंह- शीर्षक लेख में बाद के शक शासक राजबुल को महाक्षत्रप कहा गया है ।
  • मथुरा के शकों ने पूर्वी पंजाब तक अपनी सीमा का विस्तार कर लिया था । इन शकों का विनाश कुषाणों द्वारा किया गया ।
  • 58 ईसा पूर्व में उज्जैन की एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित करके बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की ।
  • शकों पर विजय के उपलक्ष में 58 ईसा पूर्व से एक नया संवत विक्रम संवत् के नाम से प्रारंभ हुआ ।
  • उसी समय से “विक्रमादित्य” एक लोकप्रिय उपाधि बन गयी, जिसकी संख्या भारतीय इतिहास में 14 तक पहुंच गई ।
  • गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय सबसे अधिक विख्यात विक्रमादित्य था ।
  • शकों की अन्य शाखाओं की तुलना में पश्चिम भारत में प्रभुत्व स्थापित करने वाली शाखा ने सबसे लंबे अरसे तक शासन किया ।
  • पश्चिम भारत में शकों के क्षहरात वंश के भूमक तथा नहपान दो शासक ज्ञात हैं ।
  • इन शक शासकों ने सातवाहनों से कुछ प्रदेश जीते और महाराष्ट्र, काठियावाड़, गुजरात पर शासन किया ।
  • नहपान के समय भारत तथा पश्चिमी देशों के बीच समृद्ध व्यापारिक संबंध कायम था ।
  • जोगलथाम्बी नामक स्थान से मिले सिक्कों से यह प्रमाणित होता है कि नहपान, गौतमीपुत्र शातकर्णि से पराजित हुआ था ।
  • नासिक लेख में गोमती पुत्र शातकर्णी को क्षहरात वंश का उन्मूलक कहा गया है ।
  • उज्जैनी तथा काठियावाड़ के शक शासकों में चस्टन का नाम आता है ,जिसने उज्जैनी में शक राजवंश की स्थापना की थी ।
  • शकों का सबसे प्रतापी शासक चस्टन का पौत्र रुद्रदामन प्रथम था, जिसका शासन (130-150 ई.) गुजरात के बड़े भाग पर था ।
  • जूनागढ़ लेख से प्राप्त साक्ष्य के आधार पर रुद्रदामन का साम्राज्य पूर्वी- पश्चिमी मालवा, द्वारका ,जूनागढ़, साबरमती नदी मारवाड़, सिंधु घाटी ,उत्तरी कोकण एवं विन्ध्य पर्वत तक फैला हुआ था ।
  • रुद्रदामन ने काठियावाड़ की अर्धशुष्क सुदर्शन झील (मौर्यों द्वारा निर्मित) का जीर्णोद्धार किया ।
  • रुद्रदामन संस्कृत का बड़ा प्रेमी था । उसने ही सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में लंबा अभिलेख (गिरनार अभिलेख) जारी किया ।
  • भारत में शक राजा अपने को क्षत्रप कहते थे ।
  • भारतीय स्रोतों में शकों को सीथियन नाम दिया गया है ।
  • मुद्राओं से प्रदर्शित होता है कि चस्टन का वंश 305 ईसवी में समाप्त हो गया ।

हूण वंश का इतिहास (Huns Vansh in Hindi)

  • हूण मध्य एशिया की एक बर्बर जाति थी, जिसने शकों की भांति भारतवर्ष में उत्तर- पश्चिम सीमा की ओर से प्रवेश किया ।
  • ये “देत्य” भी पुकारे जाते थे ।
  • सर्वप्रथम 458 ईसवी के लगभग स्कन्दगुप्त के समय इनका आक्रमण हुआ, जिनमें उनकी पराजय हुई ।
  • कालांतर में तोरमाण नामक सरदार ने गुप्त साम्राज्य को नष्ट करके पंजाब, राजपूताना, सिन्ध और और मालवा पर अधिकार कर “महाराजाधिराज” की पदवी धारण की ।
  • तोरमाण का पुत्र महिरकुल था, जिसका राज्य 510 ईसवी से आरंभ हुआ । स्यालकोट इसकी राजधानी थी ।
  • बौद्ध भिक्षुओं से महिरकुल को घृणा थी । उसने अनेक मठों एवं इस स्तूपों को नष्ट किया ।
  • मालवा के शासक यशोधर्मा ने इसे पराजित किया । पराजित होने के बाद यह कश्मीर चला गया और कश्मीर में अपना राज्य कायम किया ।
  • हूणों के आक्रमण के कारण गुप्त साम्राज्य नष्ट हो गया और भारत की राजनीतिक एकता समाप्त हो गई ।

हिन्द- पार्थियन या पहल्व

  • पश्चिमोत्तर भारत में शकों के आधिपत्य के बाद पार्थियाई लोगों का आधिपत्य हुआ ।
  • पार्थियायी लोगों का मूल निवास स्थान ईरान था । भारतीय स्रोतों में इन्हें पहल्व कहा गया है ।
  • सबसे प्रसिद्ध पार्थियाई राजा गोंडोफनिर्स था ।
  • इसी के शासनकाल में सेंट टामस ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए भारत आया था ।

कुषाण वंश (kushan Vansh in Hindi) का इतिहास

  • पार्थियाई लोगों के बाद कुषाण आए ,जिन्हें यूचि एवं तोखरी भी कहते हैं ।
  • इनका मूल निवास स्थान चीन की सीमा पर स्थित चीनी तुर्किस्तान था ।
  • यूची नामक एक कबीला पाँच कुलों में बंट गया था, उन्हीं में एक कुल के थे कुषाण

कुषाण वंश के शासक –

(१) कुजुल कडफिसेस (15-65 ई.)

  • कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस था ।
  • इसने रोमन सिक्कों की नकल करके तांबे के सिक्के ढलवाए तथा महाराजाधिराज की उपाधि धारण की ।
  • इसने दक्षिणी अफगानिस्तान, काबुल, कंधार और पार्थिया के एक भाग को अपने राज्य में मिला लिया ।
  • इसने वैदिक धर्म को अंगीकार किया ।

(२) विम कडफिसेस द्वितीय (65-75 ई.)

  • इसने सिंधु नदी पार करके तक्षशिला और पंजाब पर अधिकार कर लिया ।
  • इसने बड़ी संख्या में सोने के सिक्के चलवाए , जिन की शुद्धता गुप्त काल की स्वर्ण मुद्राओं से उत्कृष्ट है
  • यह शैव मत का अनुयायी था ।
  • इसके कुछ सिक्कों पर शिव, नंदी तथा त्रिशूल की आकृतियां मिलती है ।
  • उसने महेश्वर की उपाधि धारण की ।

(३) कनिष्क

  • कुषाण वंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क था ।
  • इसकी राजधानी पुरुषपुर या पेशावर थी । कुषाणों की द्वितीय राजधानी मथुरा थी ।
  • कनिष्क ने 78 ईसवी (गद्दी पर बैठने के समय ) में एक संवत् चलाया, जो शक- संवत कहलाता है ,जिसे भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लिया जाता है ।
  • बौद्ध धर्म की चौथी बौद्ध संगीति कनिष्क के शासनकाल में कुण्डलवन (कश्मीर) में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई ।
  • कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का अनुयायी था ।
  • कनिष्क का राजवेद्य आयुर्वेद का विख्यात विद्वान चरक था, जिसने चरकसंहिता की रचना की ।
  • महाविभाष सूत्र के रचनाकार वसुमित्र है। इसे ही बौद्ध धर्म का विश्वकोश कहा जाता है ।
  • कनिष्क के राजकवि अश्वघोष ने बौद्धों का रामायण “बुद्धचरित” की रचना की ।
  • वसुमित्र, पार्श्व, नागार्जुन, महाचेत और संघरक्ष भी कनिष्क के दरबार की विभूति थे ।
  • भारत का आइंस्टीन नागार्जुन को कहा जाता है । इनकी पुस्तक माध्यमिक सूत्र ( सापेक्षता का सिद्धांत ) है ।
  • ह्नेनसांग के विवरण एवं चीनी ग्रंथों से प्रकट होता है कि गांधार कनिष्क के अधीन था।
  • कश्मीर पर अधिकार ‘राजतरंगिणी’ से प्रकट होता है । कनिष्क ने कश्मीर को जीतकर वहाँ कनिष्कपुर नामक नगर बसाया ।
  • उसने काशगर, यारकन्द व खोतान पर भी विजय प्राप्त की ।
  • महास्थान (बोगरा ) में पायी गयी सोने की मुद्रा पर कनिष्क की खड़ी मूर्ति अंकित है ।
  • मथुरा जिले में कनिष्क की एक प्रतिमा मिली है । इस प्रतिमा में उसने घुटने तक चोगा और भारी बूट पहने हुए हैं ।
  • गांधार शैली एवं मथुरा शैली का विकास कनिष्क के शासन काल में हुआ था ।

(४) हुविष्क

  • इसके शासनकाल में कुषाण क्षेत्र का प्रमुख केंद्र पेशावर से हटकर मथुरा पहुंच गया ।
  • हुविष्क के सिक्कों पर शिव, स्कंध तथा विष्णु आदि देवताओं की आकृतियां उत्कीर्ण मिलती है ।
  • कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव था ।
  • कुषाण राजा देवपुत्र कहलाते थे । यह उपाधि कुषाणों ने चीनियों से ली ।
  • रेशम मार्ग पर नियंत्रण रखने वाले शासकों में सबसे प्रसिद्ध कुषाण थे । कुषाण साम्राज्य में मार्गों पर सुरक्षा का प्रबंध था ।
नोट– रेशम बनाने की तकनीक का आविष्कार सबसे पहले चीन में हुआ था ।

कुषाणों ने सर्वप्रथम भारत में शुद्ध स्वर्ण मुद्राएं निर्मित करवाई तथा छोटे- छोटे व्यापार व्यवसाय के लिए तांबे एवं चांदी की मुद्राएं चलाई ।

भारत के यवन राज्य 

इन्हें भी देखें-

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