आज हम शाहपुरा के गुहिल वंश(Shahpura History in Hindi)के इतिहास की बात करेंगे ।

शाहपुरा राज्य का इतिहास (Shahpura History in Hindi)
- मेवाड़ महाराणा जगतसिंह ( 1628-1652) के समय दिल्ली पर मुगल बादशाह शाहजहाँ का शासन था । बादशाह शाहजहाँ ने सन् 1631ई. में महाराणा अमरसिंह के पौत्र सुजानसिंह (सूरजमल के पुत्र ) को राजा का खिताब प्रदान किया तथा उसे अजमेर सूबे का परगना फूलिया चौरासी तथा शाहपुरा व मेवाड़ के कुछ गांव दे दिये ।
- सूरजमल ने 14 दिसंबर 1631 को शाहपुरा को अपनी राजधानी बनाया तथा शाहपुरा की स्वतंत्र रियासत की स्थापना की ।
- सूरजमल की मृत्यु के बाद शाहपुरा के शासक मेवाड़ के सामंतों की तरह हो गये । उन्हें मेवाड़ महाराणा की सेवा में उपस्थित होना पड़ता था ।
- 1667 ई. के लगभग शाहपुरा मेवाड़ से स्वतंत्र हो गया तथा शाहपुरा के शासक भरतसिंह के शासनकाल तक स्वतंत्र बने रहे ।
- शाहपुरा के शासक उम्मेदसिंह के समय यहाँ विकास व जनसाधारण के कल्याण के अनेकानेक कार्य- कई विद्यालय, पुस्तकालयों, विधवाश्रमों एवं चिकित्सालयों की स्थापना आदि करवाये गये ।
- सन् 1717 ईस्वी में मेवाड़ महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने 23 गाँव शाहपुरा रियासत को दिये ।
- भरतसिंह को औरंगजेब ने शाहपुरा में सिक्के ढालने की स्वीकृति प्रदान कर दी थी ।
- सन् 1734 में राजपूताने के अधिकांश राजपूत राजाओं द्वारा मराठों के विरुद्ध एकता स्थापित करने हेतु हुरड़ा सम्मेलन शाहपुरा रियासत के हुरड़ा स्थान पर हुआ था ।
- राज्य की सभी रियासतों में 1930 के बाद उत्तरदायी शासन की स्थापना कराने हेतु प्रजामंडल आंदोलन प्रारंभ हुए ।
- अप्रैल 1938 में लादूराम व्यास , रमेश चंद्र ओझा एवं अभयसिंह ने ‘शाहपुरा प्रजामंडल‘ की स्थापना की ।
- राजस्थान में शाहपुरा की छोटी सी रियासत के महाराजा उम्मेदसिंह द्वितीय ने 1946 ईस्वी में प्रजामंडल के नेता गोकुल लाल असावा के प्रधानमंत्रित्व में अंतरिम सरकार का गठन कर दिया । यह राज्य की पहली लोकप्रिय सरकार थी ।
- 14 अगस्त 1947 को महाराजा सुदर्शन देव ने गोकुल लाल असावा के प्रधानमंत्रित्व में यहां पूर्ण उत्तरदायी सरकार का गठन किया गया ।
- राजस्थान के एकीकरण के दूसरे चरण में 25 मार्च 1948 को राज्य की अन्य आठ रियासतों के साथ शाहपुरा रियासत को मिलाकर यहां के शासकों ने राजस्थान संघ का निर्माण किया । इस संघ के प्रधानमंत्री श्री गोकुललाल असावा बनाये गये एवं राजप्रमुख कोटा महाराव भीमसिंह बनाये गये ।
कल्याणपुर के गुहिल :-
कल्याणपुर से सातवीं सदी के ताम्रपत्र प्राप्त हुए हैं जिनसे ज्ञात होता है कि वहाँ के गुहिलवंशी राजा पद् ने शिवालय का निर्माण करवाया था । उत्तराधिकारियों में देवगण, भाविहित, भेतति आदि शासक होने का प्रमाण मिलता है ।
चाटसू के गुहिल :-
- चाटसू ( वर्तमान चाकसू , जयपुर ) एवं नगर क्षेत्र में पूर्व मध्यकाल में गुहिल वंश का शासन होने के प्रमाण मिले हैं ।
- गुहिल वंश की चाटसू शाखा का संस्थापक भर्तृभट्ट था । इसी वंश के परवर्ती शासकों में ईशन भट्ट, उपेंद्र भट्ट एवं गुहिल हुए ।
- गुहिल का पुत्र धनिक एक धर्मात्मा शासक था । धनिक के बाद के प्रतापी शासकों में आहुक, कृष्णराज , शंकरगण, नागभट्ट द्वितीय, हर्ष आदि प्रमुख है ।
- चाटसू अभिलेख में उल्लेख है कि गुहिल शासक ‘शंकरगण‘ ने गौड़ो को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार मध्य प्रदेश तक कर लिया था । शंकरगण ने महामहीमृत की राजकुमारी ‘यज्ञा‘ से विवाह किया । इसका उत्तराधिकारी हर्ष व उसका पुत्र भोज प्रथम भी बड़े पराक्रमी शासक सिद्ध हुए , जिन्होंने अरबों के आक्रमणों को विफल कर दिया था । इनके वंशज गुहिल द्वितीय , भट्ट, बालदित्य आदि ने प्रतिहार शासकों को युद्धों में सहायता प्रदान की थी । परवर्ती काल में चाटसू के गुहिल चौहानों के अधीन हो गए ।
मालवा के गुहिल :-
- चाटसू के गुहिलों के वंशज कालांतर में मालवा प्रदेश में आकर बस गये । इंगोदा (धार के पास) के दानपत्र ( 1133 ई.) में चाटसू के गुहिल शासक भर्तृभट्ट के वंशज पृथ्वीपाल, तिहूणपाल एवं विजयपाल आदि के नामों का उल्लेख है ।
- कुमारपाल द्वारा परमार शासक बल्लाल 1151 ई. में हराकर मालवा प्रदेश पर अपना पुन: अधिकार स्थापित किया ।
- मालवा के गुहिल वंश के वंशजों में सूरजपाल, अमृतपाल, सोमेश्वर आदि प्रमुख है ।
धोड़ के गुहिल :-
725 ई. के एक लेख से ज्ञात होता है कि धोड़ ( जहाजपुर के निकटवर्ती क्षेत्र ) पर गुहिल वंश की एक शाखा का आधिपत्य था । संभवत: वे चित्तौड़ के मौर्य शासक धवल देव के सामंत थे ।