Jalore ke Chauhan Vansh History in Hindi

जालौर के चौहान वंश का इतिहास

Jalore ke Chauhan Vansh History in Hindi

 राजपूत राजवंशों की उत्पत्ति में हमने पिछली पोस्ट में शाकम्भरी एवं अजमेर के चौहान वंश तथा रणथम्भौर के चौहान वंश की बात की थी । आज हम नाडौल के चौहान वंश व जालौर के चौहान वंश की बात करेंगे । इसमें हम नाडौल के चौहान का विलय, जालौर के चौहानों का उदय , कान्हड़ देव का इतिहास , Songara Chauhan History , सोनगरा चौहान ,अलाउद्दीन खिलजी तथा कान्हड़ देव आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध कराएंगे ।

नाडौल के चौहान

  • चौहानों की इस शाखा का संस्थापक शाकंभरी नरेश वाक्पति का पुत्र लक्ष्मण चौहान था , जिसने 960 ई. के लगभग चावड़ा राजपूतों के आधिपत्य से अपने आपको स्वतंत्र कर चौहान वंश का शासन स्थापित किया ।
  • लक्ष्मण के उत्तराधिकारी क्रमश: शोभित, बलराज, महेंद्र, अहिल, बाला प्रसाद और पृथ्वीपाल आदि शासक हुए ।
  • अहिल ने गुजरात के भीमदेव प्रथम की सेना को पराजित किया । इस वंश के उत्तरवर्ती शासक अराज, अल्हण, कल्हण आदि शासक हुए ।
  • नाडौल शाखा के कीर्तिपाल चौहान ने 1177 ईसवी के लगभग मेवाड़ शासक सामन्तसिंह को पराजित कर मेवाड़ को अपने अधीन कर लिया था।
  • नाडौल शाखा के कीर्तिपाल चौहान ने 1182 ई. में जालौर को प्रतिहारों से छीन कर अपने अधिकार में ले लिया तथा स्वतंत्र शासक बना ।
  • 1205 ईस्वी के लगभग नाडौल के चौहान, जालौर के चौहान शाखा में मिल गये ।

जालौर का चौहान वंश

  • नाडौल शाखा के कीर्तिपाल चौहान ने 1182 ई. में जालौर में सोनगरा चौहान की स्थापना की । जालौर का प्राचीन नाम जाबालीपुर और किले का नाम स्वर्णगिरी था ।
  • कीर्तिपाल को मुहणौत नैणसी री ख्यात में उसे कीतू एक महान राजा कहा गया है । इसका उत्तराधिकारी समर सिंह ने जालौर में सुदृढ़ प्राचीर, कोषागार, शस्त्रागार तथा अन्य सुरक्षा साधनों का निर्माण करवाया ।
  • समर सिंह का उत्तराधिकारी 1205-1257 ई. तक उदयसिंह रहा । जिसके काल में जालौर की सीमा की अधिक वृद्धि हुई तथा उसकी राजनीतिक प्रतिष्ठा भी बढ़ी । उदयसिंह नि:सन्देह अपने काल का उत्तरी भारत का महान शासक था ।
  • उदयसिंह की मृत्यु की पश्चात् उसका पुत्र चाचिगदेव ( 1257-1282 ई.) तक जालौर का शासक रहा ।
  • 1282 ई . में चाचिगदेव की मृत्यु के पश्चात सामंतसिंह जालोर का शासक बना । इसके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश की स्थापना हुई ।

कान्हड़ देव ( 1305-1311 ई.)

  • सांमतसिंह ने अपने योग्य पुत्र कान्हड़ देव को 1305 ई. में राज्य की बागडोर सौंप दी । ये जालौर के सबसे प्रतापी शासक थे ।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने 1308 ई. में कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में मुस्लिम सेना भेजी , जिसने सिवाना के शासक शीतलदेव चौहान पर आक्रमण किया व देशद्रोही सेनापति भवाले की सहायता से किले पर विजय प्राप्त की । युद्ध के दौरान शीतलदेव चौहान, वीरमदेव, वीर पंवार और सोम युद्ध में मारे गए व राजपूत स्त्रियों ने रानी मेणा के नेतृत्व में साका किया । सिवाना का नाम बदलकर “खैराबाद” कर दिया गया । भीनमाल चौहान कालीन विद्या का केंद्र था उसे नष्ट कर दिया गया ।
  • 1311-12 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर पर आक्रमण किया । जालौर के सेनापति दहिया राजपूत बीका को अपनी ओर मिला लिया , इस विश्वासघात के कारण कान्हड़देव पराजित हुआ व राजपूत स्त्रियों ने रानी जैतल दे के नेतृत्व में जौहर किया ।
  • अलाउद्दीन में जालौर को जीतकर जलालाबाद नाम दिया और वहाँ अलाई दरवाजा मस्जिद का निर्माण करवाया , इसे तोप मस्जिद भी कहते हैं । फिरोजा का मकबरा जालौर दुर्ग में स्थित है, जिसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी द्वारा करवाया गया ।
  • जालौर के सोनगरा वंश का अंत हो गया । अलाउद्दीन ने जालौर का कार्यकाल कमालुद्दीन गुर्ग को सौंप दिया । इस युद्ध की जानकारी पद्मनाथ के ग्रंथ कान्हड़दे तथा वीरमदेव सोनगरा की बात में मिलती है ।

Leave a Reply

Discover more from GK Kitab

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Scroll to Top