Hatodi ke Chauhan Vansh History in Hindi

हाड़ौती के चौहान वंश का इतिहास

Hatodi ke Chauhan Vansh History in Hindi

 राजपूत राजवंशों की उत्पत्ति में आज हम हाड़ौती के चौहान वंश की बात करेंगे । इसमें हम बूँदी के चौहानों का उदय, कोटा के चौहानों का इतिहास , झालावाड़ के चौहान आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध कराएंगे ।

हाड़ौती के चौहानों का इतिहास

हाडौ़ती में वर्तमान बूंदी, कोटा, झालावाड़ एवं बारां के क्षेत्र आते हैं । इस क्षेत्र में महाभारत के समय से मत्स्य (मीणा) जाति निवास करती थी । पूर्व में यह संपूर्ण क्षेत्र केवल बूंदी में ही आता था ।

बूँदी के हाडा चौहान

देवा (देव सिंह ) :-

  • 1342 में यहाँ हाड़ा चौहान देवा ने मीणों को पराजित कर यहां चौहान वंश का शासन स्थापित किया ।
  • देवा नाडोल के चौहानों का ही वंशज था ।

हम्मीर सिंह :-

बूंदी का शासक, इनके समय मेवाड़ के महाराणा लाखा ने बूंदी विजय का असफल प्रयास किया, इस युद्ध में कुंभा हाड़ा मारा गया ।

सुर्जन सिंह हाड़ा (1554-1585 ईसवी )

  • बूंदी का शासक, अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध था ।
  • चंद्रशेखर राव (दरबारी कवि) ने ‘सुर्जन चरित्र’ नामक रचना लिखी ।
  • सुर्जन सिंह ने द्वारिका में रणछोड़ मंदिर का निर्माण करवाया ।
  • 1569 ईस्वी में सुर्जन सिंह हाड़ा ने अकबर से संधि कर मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली ।

राव रतनसिंह ( 1607-1621 ई.)

  • जहाँगीर ने इसे 5000 का मनसब दिया तथा न्याय प्रिय होने के कारण इसे ‘रामराज’ और चित्रकला प्रेमी होने के कारण ‘सरबुलन्दराय’ की उपाधि दी ।
  • इसने खुर्रम के विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
  • 1631 ई. में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने कोटा को बूंदी से स्वतंत्र कर बूंदी के शासक राव रतनसिंह के पुत्र माधोसिंह को वहां का शासक बना दिया ।

राव शत्रुशाल ( 1621-1658 ई.)

शत्रुशाल की स्मृति में इसके पुत्र अनिरुद्ध हाड़ा ने 1683 ईसवी में बूंदी में 84 खंभों की छतरी का निर्माण करवाया ।

राव अनिरुद्ध सिंह ( 1681-1695 ई.)

इनकी पत्नी रानी नाथावती ने बूंदी में 1699-1700 ई. में ‘रानीजी की बावड़ी’ का निर्माण करवाया ।

इनका पुत्र जोध सिंह हाडा 1706 ईस्वी में गणगौर की प्रतिमा व अपनी रानियों के साथ नाव में सैर करते समय डूब गया था, तभी से यह कहावत प्रसिद्ध हो गई कि “हाड़ो ले डूब्यो गणगौर

रावराजा बुद्धसिंह (1695-1739 ई.)

  • विधिवत रूप से राजस्थान की आंतरिक राजनीति में मराठों का सर्वप्रथम हस्तक्षेप बूंदी के उत्तराधिकार को लेकर हुआ ।
  • बुद्धसिंह की कछवाही रानी आनंद (अमर) कुँवरी ने 1734 ईस्वी में अपने पुत्र उम्मेद सिंह के पक्ष में मराठा सरदार होल्कर व राणो जी को राखी भेजकर आमंत्रित किया ।

उम्मेद सिंह (1749-1770, 1773-1804 ई.)

  • यह ‘श्री जी’ के नाम से जाना जाता था ।
  • उम्मेद सिंह ने बूंदी के तारागढ़ किले में चित्रशाला का निर्माण करवाया ।

विष्णु सिंह

बूंदी शासक, 1818 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी से सहायक संधि की ।

राम सिंह हाडा (1831-1889 ई.)

  • 1857 की क्रांति के दौरान राजपूताना के इस एकमात्र शासक ने अंग्रेजों का सहयोग नहीं किया ।
  • इन्होंने कन्या वध को प्रतिबंधित किया ।
  • सूर्यमल्ल मिश्रण ने इनके शासनकाल में ही “वंश भास्कर” ग्रंथ की रचना की थी ।
  • देश की स्वाधीनता के कारण बूंदी का राजस्थान संघ में विलय हो गया ।

कोटा के हाड़ा चौहान

माधोसिंह ( 1631-1650 ई.)

  • 1631 ई. में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने कोटा को बूंदी से स्वतंत्र कर बूंदी के शासक राव रतनसिंह के पुत्र माधोसिंह को वहां का शासक बना दिया ।
  • मधोसिंह के बाद उसका पुत्र यहां का शासक बना जो औरंगजेब के विरुद्ध धरमत के उत्तराधिकार युद्ध में मारा गया ।

शत्रुशाल हाड़ा ( 1758-1764 ई.)

इनके समय की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना 1761 ईसवी का भटवाड़ा का युद्ध है जिसमें कोटा की सेना ने जयपुर की सेना को पराजित किया था ।

झाला जालिम सिंह (1769-1823 ई.)

  • कोटा का मुख्य प्रशासक एवं फौजदार था ।
  • 1817 ई. में झाला जालिम सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर दी ।
  • 1837 ई. में अंग्रेजों ने कोटा राज्य से 19 परगने अलग करके झालावाड़ राज्य बनाया ।
  • 1838 ई. में झालावाड़ एक स्वतंत्र रियासत बनी । यह राजस्थान में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई आखरी रियासत थी ।

झालावाड़ के हाड़ा चौहान

मदन सिंह ( 1838-1845 ई.)

  • झालावाड़ का पहला शासक ।

राजराणा राजेंद्र सिंह (1929-1943 ई.)

  • इसने 1930 में गोलमेज सम्मेलन में एक दर्शक के रूप में भाग लिया ।
  • इन्हें अछूत उद्धार के लिए किए गए प्रयासों के लिए जाना जाता है ।
  • ये सुधारक उपनाम से कविताएं लिखा करते थे ।

राजराणा हरिश्चंद्र (1943-1948 ई.)

  • झालावाड़ का अंतिम शासक था ।

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