आज हम सिसोदिया वंश के महाराणा रतनसिंह द्वितीय,महाराणा विक्रमादित्य और महाराणा उदयसिंह द्वितीय के इतिहास की बात करेंगे ।
महाराणा रतनसिंह द्वितीय का इतिहास ( Maharana Ratan Singh History in Hindi)
महाराणा रतनसिंह द्वितीय ( 1528-1531)
- महाराणा साँगा की मृत्यु के बाद 5 फरवरी 1528 के आसपास चित्तौड़ के राज्य के स्वामी उनका पुत्र महाराणा रतनसिंह द्वितीय हुए ।
- महाराणा रतनसिंह की सन् 1531 में बूँदी के राजा सूरजमल के साथ आपकी लड़ाई में मृत्यु हो गई ।
- महाराणा रतनसिंह का दाह संस्कार पाटन में हुआ ।
महाराणा विक्रमादित्य का इतिहास ( Maharana Vikramaditya History in Hindi )
महाराणा विक्रमादित्य ( 1531-1536)
- महाराणा रतनसिंह नि:संतान होने के कारण उनके देहांत के बाद उनके छोटे भाई विक्रमादित्य 1531 ई.में मेवाड़ के राजा बने ।
- उनके समय गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने सन् 1533 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया । महाराणा विक्रमादित्य की माता रानी कर्मवती ने मुगल बादशाह हुमायूं से सहायता मांगी , परंतु हुमायूं ने कोई सहायता नहीं की । अत: रानी कर्मवती ने गुजरात के सुल्तान से संधि की ।
- 1534 में बहादुरशाह ने अपने सेनापति रूमी खाँ के नेतृत्व में पुन: मेवाड़ पर आक्रमण किया । महाराणा विक्रमादित्य और उदयसिंह द्वितीय सहित बूँदी भेज दिया गया और देवलिये के रावत बाघसिंह को महाराणा का प्रतिनिधि बनाया गया । वीर रावत बाघसिंह चित्तौड़ दुर्ग के पाड़नपोल दरवाजे के बाहर तथा राणा सज्जा व सिंहा हनुमानपोल के बहार लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । हाडा रानी कर्मवती ने जौहर किया । यह जौहर चित्तौड़गढ़ का दूसरा शाका/जौहर कहलाता है ।
- लेकिन बादशाह हुमायूँ ने तुरंत ही बहादुरशाह पर हमला कर दिया , जिससे सुल्तान कुछ साथियों सहित मांडू भाग गया । बहादुरशाह के हारने पर मेवाड़ के सरदारों ने पुन: चित्तौड़ के किले पर अधिकार कर लिया । फिर विक्रमादित्य पुन: वहाँ के शासक हो गये ।
- 1536 ई. में महाराणा साँगा के भाई कुंवर पृथ्वीराज का अवैध पुत्र बनवीर, महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर मेवाड़ का शासक बना । अपने को उसने सत्ता में बनाए रखने की दृष्टि से उसने अपने भाई उदयसिंह द्वितीय को मारना चाहा । पन्नाधाय ने अपने बेटे चंदन का बलिदान देकर उदयसिंह द्वितीय को बचा लिया तथा कुंभलगढ़ दुर्ग भेज दिया ।
- बनवीर ने तुलजा भवानी मंदिर (चित्तौड़गढ़) का निर्माण करवाया ।
महाराणा उदयसिंह द्वितीय का इतिहास ( Maharana Uday Singh Second History in Hindi )
महाराणा उदयसिंह द्वितीय ( 1540-1572)
- 1537 मे कुछ सरदारों ने उदयसिंह द्वितीय को मेवाड़ का स्वामी मानकर कुंभलगढ़ में उनका राज्याभिषेक किया । वहीं पाली के अखैराज सोनगरा की पुत्री से उदयसिंह का विवाह संपन्न हुआ ।
- 1540 ई. सरदारों एवं महाराणा उदयसिंह ने सेना एकत्रित कर कुंभलगढ़ से ही चित्तौड़ पर चढ़ाई की । रास्ते में मावली के पास बनवीर की सेना कुँवरसी तंवर के नेतृत्व में युद्ध हेतु आ चुकी थी, जिसे महाराणा की सेना ने परास्त कर बनवीर सहित मौत के घाट उतारा ।
- 1540 ई. मेवाड़ के प्रमुख सरदारों के सहयोग से मेवाड़ का शासक बना । 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग में वीर प्रताप का जन्म हुआ ।
- मारवाड़ की ख्यात के अनुसार राव मालदेव ने 1541 ई. में कुँभलगढ़ पर आक्रमण किया, जिसे महाराणा की सेना ने वापस धकेल दिया ।
- सन् 1543 ई. में अफगान बादशाह शेरशाह सूरी ने मारवाड़ के शासक राव मालदेव से अजमेर छीन लिया तथा फिर वह सेना लेकर चित्तौड़ पर आक्रमण किया , उदयसिंह ने उनकी अधीनता स्वीकार कर ली । उदयसिंह मेवाड़ का पहला शासक था जिसने अफगान अधीनता को स्वीकारा ।
- हरमाड़ा का युद्ध :- 1557 ई. में उदयसिंह और मेवात के हाजी खाँ के मध्य हुए इस युद्ध में मारवाड़ के मालदेव की सहायता से हाजी खाँ विजयी रहा ।
- 1559 ई. में महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर शहर की नींव डाली । इसी सन् में उदयसागर झील का निर्माण प्रारंभ हुआ, जो 1565 में पूर्ण हुआ ।
- उदयसिंह के समय मुगल शासक अकबर था , जो साम्राज्यवादी नीति अपना रहा था । अकबर 1567 में चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए पहुँचा । सभी सरदारों की सलाह पर महाराणा उदयसिंह राठौड़ जयमल मेड़तिया ( मेड़ता का स्वामी ) एवं रावत पत्ता सिसोदिया ( आमेट का सरदार ) को सेनाध्यक्ष नियत कर चित्तौड़ से राजपिप्पली के पहाड़ी जंगलों में चले गए ।
- अकबर ने 22 अक्टूबर 1567 को चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर घेरा डाल दिया । यह कार्य उसने सेनापति बख्शीश को सौंपा । अकबर से युद्ध में जयमल और कल्ला राठौड़ हनुमानपोल व भैरवपोल के बीच तथा रावत पत्ता सिसोदिया रामपोल के भीतर वीरगति को प्राप्त हुए ।
- 25 फरवरी 1568 को अकबर ने किले पर अधिकार कर लिया तथा पत्ता सिसोदिया की पत्नी फूल कंवर के नेतृत्व में महिलाओं ने जौहर किया । यह चित्तौड़गढ़ का तीसरा एवं अंतिम साका था ।
- जयमल और पत्ता की वीरता पर मुग्ध होकर अकबर ने आगरा के किले के द्वार पर उनकी पाषाण की मूर्तियां खड़ी करवाई ।
- महाराणा उदयसिंह का 28 फरवरी 1572 ई. को गोगुंदा में देहांत हो गया, जहां उनकी छतरी बनी हुई है ।
- वीरा – मेवाड़ के राणा उदयसिंह की उपपत्नी , अपने साहस और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध थी ।
- धीर बाई (रानी भटियाणी )– उदयसिंह की पत्नी , इसके कहने पर उदयसिंह ने अपनी जेष्ठ पुत्र महाराणा प्रताप के स्थान पर धीर बाई के पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी बनाया ।
- मेवाड़ के सरदारों व अखैराज सोनगरा ने जगमाल के स्थान पर प्रताप को मेवाड़ की गद्दी सौंपी ।