आंग्ल-मराठा युद्ध

आंग्ल-मराठा युद्ध (संघर्ष ) | Anglo-Maratha Wars in Hindi

भारत के इतिहास में तीन आंग्ल-मराठा युद्ध हुए है –
(१) प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782 ई.)
(२) द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1806 ई.)
(३) तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818 ई.)

(1) प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782 ई.)

➡ आंग्ल-मराठा युद्ध के प्रथम दौर के कारण मराठा के आपसी झगड़े तथा अंग्रेजों की महत्वकांक्षी थी । क्लाइव के समान कंपनी महाराष्ट्र में द्वैध शासन स्थापित करना चाहती थी ।

➡ 1775 ईस्वी में रघुनाथ राव तथा अंग्रेजों के मध्य सूरत की संधि हुई । इसी संधि के फलस्वरूप प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ ।

➡ 1882 ई. सालबाई की संधि (अंग्रेज तथा महादजी सिन्धिया के बीच ) से प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध समाप्त हो गया तथा एक दूसरे के विजित क्षेत्र लौटा दिये गये ।

➡ पेशवा माधव नारायणराव और अंग्रेजों के बीच सालबाई की संधि संपन्न करवाने में महादजी सिन्धिया ने मध्यस्थता की । इस संधि का दूरगामी उद्देश्य मराठों और अंग्रेजों के बीच दूरगामी शांति स्थापित करना ।

(2) द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1806 ई.)

➡ इस संघर्ष का दूसरा दौर फ्रांसीसी भय से संलग्न था । 1800 ई. में पूना के मुख्यमंत्री नाना फड़नवीस की मृत्यु हो गई । इनकी मृत्यु मराठों के लिए अभिशाप बन कर आई ।

➡ नाना फड़नवीस से मुक्त होने के बाद बाजीराव द्वितीय ने अपना घिनौना रूप दर्शाया । उन्होंने अपनी स्थिति को बनाए रखने के लिए मराठा सरदारों में झगड़े करवाएं तथा षड्यन्त्र रचे ।

➡ 1801 ई. में पेशवा ने जसवन्त राव होल्कर के भाई बिट्ठू जी की हत्या कर दी । होल्कर ने पूना पर आक्रमण कर सिंधिया व पेशवा की सेनाओं को पराजित कर पूना पर अधिकार कर लिया । उसने अमृतराव के पुत्र बिनायकराव को पूना की गद्दी पर बैठा दिया ।

➡ बाजीराव द्वितीय ने भाग कर बेसीन में शरण ली और 1802 ई. को अंग्रेजों से एक संधि ( बेसीन की सन्धि) की । इस संधि के अनुसार –
(१) पेशवा ने अंग्रेजी संरक्षण स्वीकार कर भारतीय तथा अंग्रेज पदातियों की सेना को पूना में रखना स्वीकार किया ।
(२) पेशवा ने सूरत नगर कंपनी को दे दिया ।
(३) पेशवा ने निजाम से चौथ प्राप्त करने का अधिकार छोड़ दिया और अपनी विदेशी मामले कंपनी के अधीन कर दिए ।

➡ मराठों के लिए संधि राष्ट्रीय अपमान के समान था अत: भोसले ने अंग्रेजों को चुनौती दी । गायकवाड़ और होल्कर इस युद्ध से अलग रहे । वेलेजली तथा लार्ड लेक ने मराठों को पराजित करके उन्हें संधि के लिए विवश किया ।

भोसले ने विवश होकर 1803 ई. में अंग्रेजों से देवगांव की संधि की । उसने कटक और वर्धा नदी के पश्चिमी भाग अंग्रेजों को दे दिये ।

➡ सिन्धिया ने 1803 ईसवी में सुरजी-अर्जन गाँव की सन्धि से गंगा तथा यमुना के क्षेत्र कंपनी को दे दिए ।

➡ अप्रैल 1804 ईस्वी में होल्कर तथा कंपनी के बीच युद्ध छिड़ गया । यद्यपि आरंभ में होल्कर को कुछ सफलता मिली परंतु अंत में उसे पराजित होना पड़ा । विवश होकर होल्कर ने अंग्रेजों ( सर जार्ज बालों से) से राजपुर घाट की संधि की ।

(3) तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818 ई.)

➡ इस युद्ध का तृतीय तथा अंतिम चरण लार्ड हेस्टिंग्स के आने पर प्रारंभ हुआ ।

➡ हेस्टिंग्स के पिण्डारियों के विरुद्ध अभियान से मराठों के प्रभुत्व को चुनौती मिली । अत: दोनों दल युद्ध में खिंच आये ।

➡ इस सुव्यवस्थित अभियान के कारण हेस्टिंग्स ने नागपुर के राजा को 27 मई 1816 को, पेशवा को 13 जून 1817 को तथा सिन्धिया को 5 नवंबर 1817 को अपमान जनक सन्धियाँ करने पर बाध्य किया ।

➡ विवश होकर पेशवा ने दासत्व का बंधन तोड़ने का एक अन्य प्रयत्न किया किंतु असफल रहा । बाजीराव द्वितीय का पूना प्रदेश अंग्रेजी राज्य में विलय कर दिया गया ।

➡ इस युद्ध के बाद मराठा शक्ति और पेशवा के वंशानुगत पद को समाप्त कर दिया गया ।

➡ पेशवा बाजीराव द्वितीय ने कोरेगाँव एवं अष्टी के युद्ध में हारने के बाद फरवरी,1818 ई. में मेल्कम के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया । अंग्रेजों ने पेशवा के पद को समाप्त कर बाजीराव द्वितीय को पुणे से हटाकर कानपुर के निकट बिठूर में पेंशन पर जीने के लिए भेज दिया , जहाँ 1853 ई. में इसकी मृत्यु हो गई ।

मराठा द्वारा की गई संधियाँ

  • पुरन्दर की संधि (1665) – जयसिंह व शिवाजी
  • सूरत की संधि (1775)- रघुनाथ राव व ईस्ट इंडिया कंपनी
  • राक्षस भुवन की संधि (1763) – पेशवा माधवराव तथा निजाम
  • कंकापुर की संधि (1769)- माधवराव एवं जनोजी
  • संगोला की संधि ( 1750) – बालाजी बाजीराव एवं रामराजा
  • झलकी की संधि (1752) – बालाजी बाजीराव एवं हैदराबाद के निजाम
  • पुरन्दर की संधि ( 1776) – पेशवा माधवराव नारायणराव एवं अंग्रेज
  • बड़गांव की संधि (1779) – पेशवा माधवराव नारायणराव एवं अंग्रेज
  • सालबाई की संधि (1782) – पेशवा माधवराव नारायणराव एवं अंग्रेज
  • बसीन की संधि (1802) – बाजीराव द्वितीय एवं अंग्रेज
  • देवगांव की संधि (1803) – बरार के भोंसले एवं अंग्रेज
  • सुर्जी-अर्जुन गांव की संधि (1803) – सिन्धिया व अंग्रेज
  • राजापुर घाट की संधि ( 1804) – होल्कर तथा अंग्रेज
  • पूना की संधि ( 1817) – बाजीराव द्वितीय एवं अंग्रेज
  • ग्वालियर की संधि (1817) – दौलतराव सिंधिया व अंग्रेज
  • मंदसौर की संधि ( 1818) – होल्तर तथा अंग्रेज

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