सवाई प्रतापसिंह व उसके उत्तराधिकारियों का इतिहास

सवाई प्रतापसिंह व उसके उत्तराधिकारियों का इतिहास

आज हम सवाई प्रतापसिंह व उसके उत्तराधिकारियों का इतिहास की बात करेंगे ।

आमेर के सवाई प्रतापसिंह का इतिहास (History of Sawai Pratap Singh in Hindi)

सवाई प्रतापसिंह (1778-1803 ई.)

  • महाराजा पृथ्वीसिंह की नि: संतान मृत्यु हो जाने पर उनके छोटे भाई प्रताप सिंह 16 अप्रैल 1778 को जयपुर के सिंहासन पर बैठे ।
  • महाराजा प्रताप सिंह का विवाह जोधपुर शासक विजयसिंह की पौत्री से 1785 में संपन्न हुआ ।
  • प्रतापसिंह भगवान गोविंद देव जी को जयपुर का स्वामी तथा स्वयं को उनका दीवान मानते थे । इसी कारण उनके आदेशों का आरंभ ‘श्री दीवान बचनात’ शब्दों से होता था ।

तुंगा का युद्ध :- सवाई प्रतापसिंह ने मराठा के विरुद्ध जोधपुर महाराजा विजयसिंह , शिवपुर व करौली के शासकों के साथ संघ बनाया । जुलाई 1787 ईस्वी में दौसा में स्थित तुंगा (वर्तमान में जयपुर जिले में ) नामक स्थान पर मराठा सरदार महादजी सिंधिया व ‘राठौड़-कछवाहा गठबंधन’ की सेनाओं के मध्य अनिर्णायक युद्ध हुआ ।

  • 1790 ई. के पाटण एवं मेड़ता के युद्ध में सिंधिया की सेना ने डिबॉय एवं लकवा दादा के नेतृत्व में मारवाड़ एवं जयपुर की संयुक्त सेना को हरा दिया । 5 जनवरी 1791 को सांभर की संधि हुई ।
  • 1799 ई. में आयरलैंड के सेनानायक जॉर्ज थॉमस ने खेतड़ी के ठाकुर के साथ जयपुर राज्य के शेखावटी इलाके पर आक्रमण कर दिया , जहाँ फतेहपुर के युद्ध में जयपुर की सेना को भारी क्षति उठानी पड़ी ।
  • सिंधिया ने लकवा दादा के सेनापतित्व में जयपुर रियासत के मालपुरा (टोंक) पर अप्रैल, 1800 में आक्रमण कर दिया । मालपुरा के युद्ध में महाराजा प्रताप सिंह की पराजय हुई एवं उसे ₹2500000 खिराज के देने पड़े ।
  • 1 अगस्त 1803 ईस्वी को महाराजा सवाई प्रतापसिंह का निधन हो गया ।

महाराजा सवाई प्रतापसिंह का योगदान :-

(१) साहित्य :-

  • सवाई प्रतापसिंह ‘ब्रजनिधि’ नाम से ढूँढाड़ी एवं ब्रज भाषा में काव्य रचना करते थे ।
  • उन्होंने ‘ब्रजनिधि मुक्तावली’ , ब्रज श्रृंगार , ब्रजनिधि पद , प्रीतिलता , प्रेम प्रकाश , प्रीति पच्चीसी , प्रेम पंथ , दु:खहरण वेलि, स्नेह संग्राम , मुरली विहार, फागरंग , रंग चौपड़ एवं रमक झमक बत्तीसी आदि काव्य ग्रंथों की रचना की ।
  • सवाई प्रतापसिंह के काव्य गुरू गणपति भारती थे ।

(२) संगीत :-

  • सवाई प्रतापसिंह के संगीत गुरु उस्ताद चाँद खाँ थे ।
  • इनके दरबारी कवि पुण्डरीक विट्ठल ने नर्तन निर्णय , ब्रजकला निधि, राग चन्द्रसेन आदि संगीत ग्रंथों की एवं राधा कृष्ण ने ‘राग रत्नाकार’ ग्रंथ की रचना की ।
  • प्रतापसिंह के दरबार में 22 विभिन्न क्षेत्रों के संगीतज्ञों एवं गुणीजनों की एक मंडली थी , जो ‘गंधर्व बाईसी’ के नाम से प्रसिद्ध थी ।
  • प्रताप सिंह ने प्रसिद्ध संगीतज्ञ ब्रह्मर्षि ब्रजपाल भट्ट के नेतृत्व में एक संगीत सम्मेलन आयोजित करवाया तथा प्रसिद्ध संगीत ग्रंथ ‘राधा गोविंद संगीत सार’ का लेखन कार्य करवाया ।

(३) चित्रकला :-

  • इनके शासनकाल में राधा कृष्ण की लीलाओं, बारहमासा, नायिकाभेद आदि विषयों का चित्रण पर्याप्त मात्रा में हुआ ।
  • भगवान कृष्ण के गोवर्धन धारण का अति संजीव चित्रण इन्हीं के काल की चित्रकला की विशेषताओं का द्योतक है ।

(४) स्थापत्य कला :-

प्रतापसिंह ने जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वारा बनाया गया जल महल का निर्माण कार्य पूर्ण करवाया ।

हवामहल ( Hawa Mahal Jaipur) :-

  • इन्होंने 1799 ई. में जयपुर में 5 मंजिले प्रसिद्ध ‘हवामहल’ का निर्माण करवाया । हवामहल के वास्तुकार लालचंद उस्ता थे । हवामहल भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है , इसकी बाहरी आकृति भगवान कृष्ण के मुकुट जैसी है । इसे राजस्थान का एयर दुर्ग कहते हैं ।
  • हवामहल में छोटी-बड़ी कुल खिड़कियों की संख्या 953 है । हवामहल में मुख्य खिड़कियों की संख्या 365 है । हवामहल में झरोखों की संख्या 152 है ।
  • हवामहल 5 मंजिला है –
    (१) पहली मंजिल – शरद मंदिर/ प्रताप मंदिर
    (२) दूसरी मंजिल – रतन मंदिर
    (३) तीसरी मंजिल – विचित्र मंदिर
    (४) चौथी मंजिल – प्रकाश मंदिर
    (५) पांचवी मंजिल- हवा मंदिर

राजस्थान में अन्य हवा महल :-
(१) राजा भोपालसिंह ने 1760 में ग्रीष्म ऋतु में विश्राम के लिए खेतड़ी (झुंझुनू) में राजस्थान का द्वितीय हवामहल , जो नौ महलों वाला शेखावटी का हवामहल बनवाया ।
(२) कुचामन दुर्ग (नागौर )
(३) तिजारा की पहाड़ी (अलवर)

महाराजा जगतसिंह द्वितीय ( 1803-1818 ) का इतिहास

  • महाराजा सवाई प्रतापसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र जगतसिंह 2 अगस्त 1803 ईस्वी को जयपुर के राजा बने ।
  • मेवाड़ महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुँवर के विवाह को लेकर जयपुर और जोधपुर में 1807 में गिंगोली का युद्ध हुआ , जिसमें जयपुर की सेना ने जोधपुर के मानसिंह को हराया ।
  • महाराजा जगतसिंह का अपनी पासवान व नर्तकी रसकपूर से अत्यधिक प्रेम होने के कारण उनको बदनाम राजा कहा जाता है ।
  • इन्होनें बृजबिहारीजी का मंदिर बनवाया ।
  • 12 दिसंबर 1818 को इन्होंने मराठों एवं पिण्डारियों के आक्रमणों व लूट-खरोट से सुरक्षा हेतु अंग्रेजी सरकार के संधि की ।
  • 21 दिसंबर 1818 को जगतसिंह द्वितीय का निधन हो गया ।

महाराजा जयसिंह तृतीय ( 1818-1835) का इतिहास

  • महाराजा जगतसिंह के निधन के बाद उनके कोई वारिस न होने के कारण नरवर के जागीरदार मोहनसिंह को जयपुर के सिंहासन पर बैठाया ।
  • स्व. जगतसिंह की भटियाणी रानी ने 25 अप्रैल 1819 ईस्वी को कुंवर जयसिंह को जन्म दिया । उसी दिन ये जयपुर के राज सिंहासन पर बिठाए गए ।
  • 4 फरवरी 1835 को राजस्थान के ए.जी.जी पर जयपुर की जनता ने आक्रमण कर दिया । इस आक्रमण में कैप्टन ब्लैक मारा गया ।
  • 6 फरवरी 1835 को महाराजा जयसिंह का निधन हो गया ।

महाराजा रामसिंह द्वितीय ( 1835-1880) का इतिहास

  • महाराजा रामसिंह अपने पिता जयसिंह तृतीय की मृत्यु के बाद 16 माह के आयु में जयपुर के महाराजा बने ।
  • महाराजा के नाबालिग होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने मेजर जॉन लुडलो ने जनवरी, 1843 ई. में जयपुर का प्रशासन संभाला तथा उन्होंने सती प्रथा, दास प्रथा एवं कन्या वध, दहेज प्रथा आदि पर रोक लगाने के लिए आदेश जारी किए ।
  • 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन में महाराजा रामसिंह ने अंग्रेजों की भरपूर सहायता की । अंग्रेजी सरकार ने इन्हें ‘सितार-ए- हिंद’ की उपाधि प्रदान की ।
  • 1857 ईसवी में महाराजा द्वारा राज्य में कला एवं नृत्य के प्रोत्साहन हेतु जयपुर में मदरसा-ए-हुनरी खोला । 1865 ई. में इसका नाम ‘महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स’ कर दिया गया था , जो वर्तमान में ‘राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्टस’ के नाम से प्रसिद्ध है ।
  • 1867 ई. में महाराजा रामसिंह ने पहली बार राजकीय परिषद् बनवाई जो राज्य के कार्यों में सहायता व सलाह देती थी ।
  • फरवरी 1876 ई. में प्रिंस अल्बर्ट ने जयपुर की यात्रा की । उनकी यात्रा की स्मृति में जयपुर में अल्बर्ट हॉल का शिलान्यास करवाया गया । अल्बर्ट हॉल का निर्माण स्थापत्य की हिंदू-मुस्लिम एवं ईसाई शैलियों के समिश्रण पर करवाया गया । अल्बर्ट हॉल आकार में पिरामिड के आकार का एवं बनावट में लंदन के ‘ऑपेरा हाउस’ से समानता रखता है । अल्बर्ट हॉल का नक्शा सर स्विन्टन जैकब ने तैयार किया ।
  • महाराजा सवाई रामसिंह ने 1879 ई. में चाँदी की टकसाल, जयपुर में रियासत के पहले रंगमंच ‘राम प्रकाश थियेटर’ की स्थापना करवाई ।
  • इन्होंने 1 मार्च 1861 को जयपुर में मेडिकल कॉलेज खोला परंतु विद्यार्थियों की संख्या कम होने के कारण 1868 ई. में इसे बंद करना पड़ा ।
  • इनके समय 1844 में जयपुर में महाराजा कॉलेज तथा संस्कृत कॉलेज तथा महाराजा लाइब्रेरी का निर्माण हुआ ।
  • महाराजा कॉलेज के प्रथम प्राचार्य पं. शिवदीन बनाये गये । यह कॉलेज उत्तरी भारत के सबसे पुरानी कॉलेजों में शुमार है ।
  • महाराजा रामसिंह ने रामगढ़ बांध एवं राम सागर झील का निर्माण करवाया ।
  • रामसिंह के काल में तीन बार 1865,1866 एवं 1878 में दयानंद सरस्वती जयपुर आये ।
  • रामसिंह ने संस्कृत चर्चा के लिए मौज मंदिर की स्थापना की ।
  • इनके समय में जयपुर की सभी इमारतों का गुलाबी रंग करवाया गया । इसी वजह से बाद में जयपुर को गुलाबी नगरी कहा जाने लगा ।
  • इनके समय रामनिवास बाग 1869 ई. में बनना शुरू हुआ ।
  • इनके काल को जयपुर की उन्नति का स्वर्णयुग कहा जा सकता है ।
  • 18 सितंबर 1880 ईस्वी को महाराजा सवाई रामसिंह का निधन हो गया ।

महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय (1880-1922) का इतिहास

  • सवाई रामसिंह के नि:संतान मर जाने से उनके गोद लिए हुए कायमसिंह (ईसरदा ठाकुर के छोटो पुत्र) 19 सितंबर 1880 को सवाई माधोसिंह द्वितीय के नाम से जयपुर के सिंहासन पर बैठे ।
  • 1902 ई. में ब्रिटिश सम्राट एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह में शामिल होने इंग्लैंड गये ।
  • इन्होंने 1903 में झुंझुनू व सवाई माधोपुर तक रेल लाइन बिछा के राज्य में रेल सेवा की शुरुआत करवाई ।
  • सवाई माधोसिंह ने पंडित मदन मोहन मालवीय का जयपुर में भव्य स्वागत कर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए ₹500000 दिए थे ।
  • इनके समय में 19वीं सदी का छप्पनिया अकाल (1899 ई.) पड़ा था ।
  • 21 फरवरी 1887 ई. को अल्बर्ट हॉल म्यूजियम का उद्घाटन AGG सर एडवर्ड बेडफोर्ड द्वारा किया गया ।
  • इन्होंने अपने गुरू के आदेश पर वृंदावन में माधव बिहारी जी का भव्य मंदिर बनवाया तथा इनकी रानी साहिबा ने बरसाना में मंदिर बनवाया ।
  • सवाई माधोसिंह द्वारा जयपुर में मेहमान नवाजी के लिए मुबारक महल बनवाया गया । यह इमारत हिंदू , इस्लामिक तथा ईसाई शैलियों का खूबसूरत नमूना है । वर्तमान में यह सिटी पैलेस म्यूजियम के रूप में है ।
  • सवाई माधोसिंह का उपनाम बब्बर शेर था ।
  • इनके समय में ब्रज वल्लभ कवि ने ‘जयपुर बहार’ ग्रंथ की रचना की ।
  • 1904 में इन्होंने सर्वप्रथम जयपुर में डाक टिकट एवं पोस्टकार्ड का प्रचलन करवाया ।
  • सवाई माधोसिंह ने महकमाखास का गठन करवाया ।
  • सवाई माधोसिंह ने ईसरदा के ठाकुर सवाईसिंह के दूसरे पुत्र मोर मुकुट सिंह को 24 मार्च 1921 को गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया ।
  • 7 दिसंबर 1922 को सवाई माधोसिंह का लकवे की बीमारी से देहांत हो गया ।

महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय (1922-1949 ई.) का इतिहास

  • सवाई माधोसिंह के बाद उनके दत्तक पुत्र मोर मुकुट सिंह 8 सितंबर 1922 को सवाई मानसिंह द्वितीय के नाम से जयपुर के महाराजा बने ।
  • ये जयपुर की एकमात्र महाराजा थे जिन्होंने औपचारिक रूप से सैनिक शिक्षा प्राप्त की थी ।
  • इनका प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल था ।
  • यह जयपुर के अंतिम महाराजा थे ।
  • 25 अप्रैल 1931 को सरकार द्वारा इन्हें लेफ्टिनेंट का पद दिया गया ।
  • इनके सबसे बड़े पुत्र कुँवर भवानी सिंह का जन्म 1931 में हुआ । जयपुर राजपरिवार में 98 वर्ष बाद असली वारिस पैदा हुआ था ।
  • महाराजा मानसिंह द्वारा 1924 को जयपुर में चीफ कोर्ट तथा आबकारी विभाग स्थापित किया गया ।
  • इनके द्वारा 1927 में पहली बार विद्युत सुविधा प्रारंभ करवाई गई ।
  • महाराजा सवाई मानसिंह पोलो के अच्छे खिलाड़ी थे । सवाई मानसिंह 1933 में पहली बार पोलो टीम लेकर विदेश गए । इन्होंने जयपुर में एक बड़ा पोलो मैदान ‘रामबाग पोलो ग्राउंड’ बनवाया ।
  • उन्होंने 1943 में उर्दू के साथ-साथ हिंदी को भी राजभाषा घोषित कर दिया ।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध ( 1939-45) में जयपुर की सेना बर्मा, इटली, मिस्र , साईप्रस , लीबिया , पैलेस्टाइन आदि में लड़ने हेतु भेजी गई । महाराजा ने स्वयं इन युद्धों में दो बार ( 1941 व 1944)भाग लिया ।
  • दिसंबर 1948 को जयपुर नगर में अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ ।
  • देश के स्वतंत्र होने के बाद 30 मार्च 1949 ईस्वी को जयपुर रियासत का वृहत राजस्थान में विलय कर दिया गया तथा इन्हें राजस्थान का पहला राज प्रमुख बनाया गया ।
  • 24 जून 1970 को लंदन में पोलो खेलते हुए हृदय गति रुक जाने से उनका देहांत हो गया ।
  • इन्होंने अपनी रानी गायत्री देवी के लिए मोती डूंगरी पर तख्त-ए-शाही नामक महलों का निर्माण अंग्रेजी वास्तुकला शैली पर करवाया ।
  • महाराजा मानसिंह एक अच्छे विमान चालक भी थे । जयपुर का सांगानेर हवाई अड्डा इन्हीं की देन है ।

गायत्री देवी :-

  • महाराजा मानसिंह का विवाह तीसरी रानी कूचबिहार के महाराजा जितेंद्र नारायण भूप बहादुर की राजकुमारी गायत्री देवी से हुआ था ।
  • ये जयपुर की राजमाता कहलायी ।
  • जयपुर कप की शुरुआत की ।
  • 1943 में महारानी गायत्री देवी स्कूल की स्थापना की ।
  • 1944 में जयपुर में गोल्फ की शुरुआत की । राजस्थान के राजघराना में लोकसभा का चुनाव लड़ने वाली व राजपूताने में अपनी आत्मकथा लिखने वाली प्रथम महिला थी ।
  • 29 जुलाई 2009 को गायत्री देवी का निधन हो गया ।
  • लिलीपूल :- जयपुर में गायत्री देवी का निवास स्थान । इसके एक भाग पर जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा अपना अधिकार बताइए जाने के कारण यह चर्चा में रहा ।

सवाई भवानीसिंह :-

  • इनका जन्म 22 अक्टूबर 1931 को हुआ ।
  • यह महाराजा मानसिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे ।
  • उनके प्रयासों से विश्व में पहली बार जयपुर ने हाथी पोलो की शुरुआत की ।
  • 1971 ईस्वी में सवाई भवानी सिंह को सेना का महावीर चक्र प्रदान किया गया ।
  • श्रीलंका में चलाये गये ऑपरेशन पवन में विशेष भूमिका निभाने के लिए इन्हें 1974 में राष्ट्रपति द्वारा ब्रिगेडियर की रैंक प्रदान की गई ।
  • 16 अप्रैल 2011 को सवाई भवानी सिंह का निधन हो गया ।

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