Mahajanapadas in Hindi

महाजनपदकालीन भारत एवं मगध साम्राज्य

महाजनपदकालीन भारत एवं मगध साम्राज्य ( Mahajanapadas in Hindi)

 प्रारम्भ में लोग कबीले के रूप में निवास करते थे । जन समूह या कबीला जितने भू-भाग पर रहता था, वह भाग जनपद कहलाया । यह वैदिक काल की राजनैतिक इकाई थी ।

इन जनपदों की अपनी शासन और कानून व्यवस्था होती थी । इनमें से कुछ जनपद राजतंत्रात्मक थे व कुछ जनपद गणतंत्रात्मक थे ।

महाजनपद (Mahajanapadas )

करीब 2500 साल पहले , कुछ जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गए । ऐसे महत्वपूर्ण एवं बड़े जनपदों ने छोटे जनपदों को अपने राज्य में मिला लिया ।इस प्रकार महाजनपद बन गए। प्रत्येक महाजनपद की अपनी-अपनी राजधानियां होती थी । कई राजधानियों में किलेबंदी भी की गई थी ।

महाजनपद के शासक नियमित सेना रखने लगे थी । सिपाहियों को वेतन देकर पूरे साल रखा जाता था । कुछ भुगतान सम्भवत: आहत सिक्कों के रूप में होता था । इन महाजनपदों की संख्या 16 थी ।

16 महाजनपदों की सर्वप्रथम जानकारी बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय में मिलती है ।

प्रमुख महाजनपद का विवरण

1. मत्स्य :-

  • इस राज्य का विस्तार आधुनिक राजस्थान के अलवर जिले से चंबल नदी तक था ।
  • इसकी राजधानी विराटनगर ( बैराठ) थी।
  • महाभारत के अनुसार पांडवों ने यहां अपना अज्ञातवास का समय बिताया था ।

2. काशी :-

  • कई बौद्ध जातक कथाओं में इस राज्य की शक्ति और उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बारे में चर्चा हुई है ।
  • यह प्रारम्भ में महाजनपदकाल का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था ।
  • इसकी राजधानी वाराणसी थी, जो अपने वैभव ज्ञान एवं शिल्प के लिए बहुत प्रसिद्ध थी ।

3. कौशल:-

  • इस राज्य का विस्तार आधुनिक उत्तरप्रदेश के अवध क्षेत्र में था ।
  • रामायण में इसकी राजधानी अयोध्या बतायी गई है ।
  • प्राचीन काल में दिलीप, रघु, दशरथ और श्रीराम आदि सूर्यवंशीय शासकों ने इस पर शासन किया था ।
  • बौद्ध ग्रंथों में इसकी राजधानी श्रावस्ती कही गई है ।
  • बुद्ध के समय यह चार शक्तिशाली राजतन्त्रों में से एक था।

4. अंग –

  • यह राज्य मगध के पश्चिम में स्थित था ।
  • इनमें आधुनिक बिहार के मुंगेर और भागलपुर जिले सम्मिलित थे ।
  • मगध व अंग राज्यों के बीच चम्पा नदी बहती थी ।
  • चम्पा इसकी राजधानी का भी नाम था ।
  • यह उस काल के व्यापार एवं सभ्यता का प्रसिद्ध केंद्र था ।
  • अंग और मगध के मध्य निरंतर संघर्ष हुआ करते थे। अंत में यह मगध में विलीन हो गया ।

5. मगध –

  • इस राज्य का अधिकार क्षेत्र आधुनिक बिहार के पटना और गया जिलों के भू प्रदेश पर था।
  • इसकी प्राचीनतम राजधानी गिरिव्रज थी । बाद में राजगृह व पाटलिपुत्र राजधानी बनी ।
  • बुद्ध के काल में यह चार शक्तिशाली राजतन्त्रों में से एक था ।

6. वज्जि

  • यह राज्य गंगा नदी के उत्तर में नेपाल की पहाड़ियों तक विस्तृत था ।
  • पश्चिम में गंडक नदी इसकी सीमा बनाती थी और पूर्व में इसका विस्तार कोसी और महानंदा नदियों के तटवर्ती जंगलों तक था ।
  • यह एक संघात्मक गणराज्य था, जो 8 कुलों से बना था ।
  • इसकी राजधानी वैशाली थी ।
  • बुद्ध और महावीर के काल में यह एक अत्यंत शक्तिशाली गणराज्य था । बाद में मगध के शासक ने इसे अपने राज्य का एक प्रदेश बना दिया ।

7. मल्ल-

  • यह भी एक गणराज्य था । यह दो भागों में बँटा हुआ था ।
  • एक की राजधानी कुशीनारा (कुशीनगर ) और दूसरे की पावा थी ।
  • मल्ल लोग अपने साहस तथा युद्धप्रियता के लिए विख्यात थे ।
  • मल्ल राज्य अन्तत: मगध द्वारा जीत लिया गया ।

8. चेदि –

  • यह राज्य आधुनिक बुंदेलखंड के पश्चिमी भाग में स्थित था ।
  • इसकी राजधानी शक्तिमति थी ,जिसे बौद्ध साक्ष्य में सोत्थवती कहा गया है ।
  • चेदि लोगों का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है ।
  • महाभारत में यहाँ के राजा शिशुपाल का उल्लेख है, जिस के शासन काल में इस राज्य ने बहुत उन्नति की ।
  • इसी समय इस वंश की एक शाखा कलिंग में स्थापित हुई ।

9. वत्स –

  • यह राज्य गंगा नदी के दक्षिण में और काशी व कौशल के पश्चिम में स्थित था ।
  • इसकी राजधानी कौशांबी थी, जो व्यापार का एक प्रसिद्ध केंद्र था ।
  • कौशांबी इलाहाबाद से लगभग 48 किमी की दूरी पर है ।
  • बुद्ध के समय यहाँ का राजा उदयन था, जो बड़ा शक्तिशाली व पराक्रमी था ।
  • उदयन की मृत्यु के बाद मगध ने इस राज्य को हड़प लिया ।
  • वत्स का राज्य भी बुद्ध के समय चार प्रमुख राजतन्त्रों में से एक था ।

10. कुरू –

  • इस राज्य में आधुनिक दिल्ली के आसपास के प्रदेश थे ।
  • इसकी राजधानी इंद्रप्रस्थ थी ।
  • यह महाभारत काल का एक प्रसिद्ध राज्य था ।
  • हस्तिनापुर इस राज्य का एक अन्य प्रसिद्ध नगर था ।

11. पांचाल –

  • इस महाजनपद का विस्तार रोहिलखण्ड ( बदायूँ और फर्रुखाबाद के जिले ) और मध्य दोआब में था ।
  • यह दो भागों में विभक्त था – उत्तरी पांचाल और दक्षिणी पांचाल
  • उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र और दक्षिण पांचाल की राजधानी कांपिल्य थी ।
  • यहाँ गणतंत्रीय व्यवस्था कायम थी ।

12. शूरसेन –

  • इस जनपद की राजधानी मथुरा थी ।
  • महाभारत तथा पुराणों में यहाँ के राजवंशों को यदु अथवा यादव कहा गया है ।
  • इसी राजवंश की यादव शाखा में श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए ।

13. अश्मक-

  • यह राज्य दक्षिण में गोदावरी नदी के तट पर स्थित था ।
  • इसकी राजधानी पोतलि अथवा पोदन थी ।
  • बाद में अवंती ने इसे अपने राज्य में मिला लिया ।

14. अवन्ति –

  • इस राज्य के अंतर्गत वर्तमान उज्जैन का भू प्रदेश तथा नर्मदा घाटी का कुछ भाग आता था ।
  • यह राज्य भी दो भागों में बंटा था – उत्तरी भाग की राजधानी उज्जैन थी और दक्षिणी भाग की राजधानी महिष्मति थी ।
  • बुद्धकालीन चार शक्तिशाली राजतन्त्रों में से यह भी एक था ।
  • बाद में यह मगध राज्य में सम्मिलित कर लिया गया ।

15. गांधार –

  • यह राज्य वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर तथा रावलपिंडी के जिले तथा पूर्वी अफगानिस्तान में स्थित था ।
  • इस राज्य में कश्मीर घाटी तथा प्राचीन तक्षशिला का प्रदेश भी आता था ।
  • इसकी राजधानी तक्षशिला थी ।
  • तक्षशिला का विश्वविद्यालय उस समय शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र था ।

16. कम्बोज –

  • इसका उल्लेख सदैव गांधार के साथ हुआ है ।
  • यह महाजनपद गांधार राज्य से सटे हुए भारत के पश्चिमोत्तर( कश्मीर का उत्तरी भाग , पामीर तथा बदख्शा) भाग में स्थित था ।
  • राजपुर और द्वारका इस राज्य के दो प्रमुख नगर थे।
  • यह पहले एक राजतंत्र था, किंतु बाद में गणतंत्र बन गया ।

महाजनपदों की शासन व्यवस्था – (Mahajanapadas in Hindi)

महाजनपदों में राजतन्त्रात्मक एवं गणतंत्रात्मक दोनों प्रकार की शासन व्यवस्थाओं का प्रचलन था ।

  1. राजा – राजा को संभवत: गणपति कहा जाता था । कुछ महाजनपदों में उसे राजा भी कहते थे । वह निर्वाचित किया जाता था ।
  2. मंत्री परिषद्– यह परिषद् गणपति को शासन चलाने में सलाह देती थी । शासन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई मंत्रिपरिषद् मानी जाती थी ।
  3. परिषद्– यह वर्तमान लोकसभा के समान होती थी । गणपति और मंत्रीपरिषद् शासन के बारे में परिषद् को जानकारी देते थे । परिषद् के सदस्यों का चुनाव जनता करती थी और यहीं पर गणपति और मंत्री परिषद् के सदस्य बैठते थे ।
  4. सैन्य व्यवस्था – गणराज्य की रक्षा के लिए सेना और सेनापति होता था । युद्ध के समय जनता सेना का साथ देती थी । बड़े-बड़े नगरों एवं राजधानी की देखभाल के लिए सुरक्षा व्यवस्था भी थी ।
  5. न्याय– गणराज्य में न्याय की अच्छी व्यवस्था थी । नीचे स्तर के न्यायालय द्वारा किसी को अपराधी घोषित किए जाने पर अपने से ऊपर के न्यायालय में भेजा जाता था तथा निर्दोष पाए जाने पर छोड़ दिया जाता था । राजा न्याय का सर्वोच्च अधिकारी होता था, जो सभी न्यायालयों द्वारा अपराधी बताए जाने के बाद ही दंड देता था ।
  6. कर एवं आय-व्यय– महाजनपदों के राजा विशाल किले बनाते थे और बड़ी सेना रखते थे , इसलिए इन्हें प्रचुर संसाधनों एवं कर्मचारियों की आवश्यकता होती थी । कृषि, व्यापार और व्यवसाय से कर लिया जाता था । वनों और खदानों से होने वाली आय राज्य की होती थी , इससे मंत्री परिषद्, सेना और पुलिस का खर्च चलाया जाता था ।

समकालीन बौद्ध एवं जैन साहित्यिक स्रोतों के आधार पर जानकारी मिलती है कि भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई.पू. को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है । इस काल में प्रारंभिक राज्यों को नगरों ,लोहे का प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है । इसी काल में बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का भी विकास हुआ ।

लगभग 700 ई.पू. तक लोहे का प्रयोग पहले से अधिक होने लगा था । इससे बनाए जाने वाले औजारों से कृषि तथा अन्य उत्पादन के साधनों में प्रगति हुई । यही वह समय था, जब गंगा व यमुना नदी के तट पर अनेक प्रमुख शहर बसे थे ।

गंगा नदी के आसपास इतने सारे शहरों के होने का भी कारण था । गंगा नदी स्वयं ही एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग थी और इसके द्वारा समुद्र तक पहुंचना भी संभव था ।

गंगा घाटी का जो इलाका था, वहां पास में ही लौह अयस्क काफी मात्रा में मिलता था । इसका फायदा उठाकर कुछ महाजनपदों में अपना प्रभाव बहुत बढ़ाया । उनमें से एक मगध इतना बड़ा हो गया कि उसके विस्तार को ‘साम्राज्य’ का दर्जा दिया गया ।

मगध साम्राज्य का उदय

  • छठी शताब्दी ई. पू. में भारत में 16 महाजनपद थे । इन 16 महाजनपदों में से मगध राजनीतिक, भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था , जो अन्य महाजनपदों को अपने में विलीन कर भारत के प्रथम विशाल साम्राज्य के रूप में विकसित हुआ ।
  • छठी से चौथी शताब्दी ई.पू. में लगभग 200 साल के भीतर मगध (आधुनिक बिहार) सबसे शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण महाजनपद बन गया ।
  • मगध की सबसे प्राचीन वंश के संस्थापक बृहद्रथ था । इसकी राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) थी ।
  • जरासंध बृहद्रथ का पुत्र था ।

मगध के प्रमुख शासक –

हर्यक वंश का इतिहास (Haryak vansh History in Hindi)

(1) बिम्बिसार (544-493 ई.पू.)

  • हर्यक वंश का संस्थापक बिंबिसार था ।
  • वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था ।
  • यह प्रथम भारतीय राजा था जिसने प्रशासनिक व्यवस्था पर बल दिया ।
  • बिंबिसार ने ब्रह्मदत्त को हराकर अंग राज्य को मगध में मिला लिया तथा अपने पुत्र अजातशत्रु को वहाँ का शासक नियुक्त किया ।
  • बिम्बिसार ने राजगृह का निर्माण कर उसे अपनी राजधानी बनाया ।
  • बिंबिसार ने मगध पर करीब 52 वर्षों तक शासन किया ।
  • मत्स्य पुराण में बिम्बिसार को क्षेत्रौजस तथा जैन साहित्य में श्रोणिक कहा गया है ।
  • महात्मा बुद्ध की सेवा में बिम्बिसार ने राजवेद्य जीवक को भेजा तथा अवंती के राजा प्रद्योत जब पांडु रोग से ग्रसित थे उस समय भी बिम्बिसार ने जीवक को उनकी सेवा के लिए भेजा था ।
  • बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया । इसमें कौशल नरेश प्रसेनजीत की बहन महाकौशला से , वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना से , तथा मद्र देश की राजकुमारी क्षेमा से शादी की ।
  • बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने कर दी ।

(2) अजातशत्रु ( 493-461 ई.पू.)

  • अपने पिता की हत्या कर 493 ई. पू. में मगध की गद्दी पर बैठा ।
  • अपनी सम्राज्यवादी नीति के अंतर्गत उसने काशी तथा वज्जि संघ को लंबे संघर्ष के बाद मगध साम्राज्य में मिला लिया ।
  • अजातशत्रु का उपनाम कुणीक था ।
  • वह प्रारम्भ में जैनधर्म का अनुयायी था ।
  • अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक मगध पर शासन किया ।
  • अजातशत्रु के सुयोग्य मंत्री का नाम वरस्कार था, इसी की सहायता से अजातशत्रु ने वैशाली पर विजय प्राप्त की ।
  • उसके शासनकाल के आठवें वर्ष में बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ । बुद्ध के अवशेषों पर उसने राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया ।
  • इसी के काल में राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया ।

(3) उदायिन (461-445 ई.पू.)

  • 461 ई. पू. में अपने पिता की हत्या कर उदायिन मगध की गद्दी पर बैठा ।
  • उदायिन पाटिलग्राम की स्थापना की । वह जैन धर्म का अनुयायी था ।
  • उदायिन ने पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया ।
  • हर्यक वंश का अंतिम राजा उदायिन का पुत्र नागदशक था । नागदशक को उसके अमात्य शिशुनाग ने 412 ईसा पूर्व में अपदस्थ करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की ।

शिशुनाग वंश का इतिहास (Shishunaga Vansh in Hindi)

  • शिशुनाग वंश की स्थापना शिशुनाग ने की थी ।
  • इसने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से हटाकर वैशाली में स्थापित की ।
  • शिशुनाग ने अवन्ती तथा वत्स राज्य पर अधिकार कर उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया ।
  • शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक (394-366 ई.पू.) गद्दी पर बैठा ।
  • उसने अपनी राजधानी को पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दी ।
  • सिंहली महाकाव्यों के अनुसार कलाशोक के शासनकाल के दसवें वर्ष में वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ ।
  • शिशुनाग वंश का अंतिम राजा नंदीवर्धन था ।

नन्द वंश का इतिहास (Nand Vansh in Hindi)

  • नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनंद था ।
  • पुराणों में महापद्मनंद को सर्वक्षत्रान्तक तथा भार्गव कहा गया है ।
  • उसने विशाल साम्राज्य स्थापित कर एकराट और एकच्छत्र की उपाधि धारण की ।
  • नंद राजाओंने माप-तौल की नई प्रणाली भी चलाई।
  • नंद वंश का अंतिम शासक धनानंद था । यह सिकंदर का समकालीन था ।
  • घनानंद को अग्रसेन या अग्रमीज भी कहा जाता है ।
  • 322 ई. पू. में चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से घनानंद की हत्या कर मौर्य वंश के शासन की नींव डाली ।

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