गति किसे कहते हैं तथा गति के तीनो नियम व सूत्र

Motion in Hindi 

आज हम सामान्य विज्ञान में गति (Gati Ki Paribhasha) तथा न्यूटन के गति के नियमों के बारे में जानेंगे, जो आपके आने वाले एग्जाम SSC, RRB, Patwari, आदि में प्रश्न पूछा जाता है ।

विराम और गति ( Rest and Motion)

यदि किसी वस्तु की स्थिति किसी स्थिर वस्तु के सापेक्ष समय के साथ बदलती रहती है तो उसे गति अवस्था में कही जाती है ; जैसे- चलती ट्रेन जो बिजली पोल या पटरी के किनारे स्थित पेड़ पौधों के सापेक्ष अपनी स्थिति बदलती रहती है ।

समय के साथ स्थिर वस्तु के सापेक्ष स्थिति नहीं बदलने पर उसे विराम अवस्था कही जाती है ।

दूरी ( Distance) : वस्तु द्वारा किसी समय अंतराल में तय किए गए मार्ग की संपूर्ण लंबाई को दूरी कहते हैं । यह एक अदिश राशि है तथा यह सदैव धनात्मक होती है ।

विस्थापन ( Displacement) : वस्तु की अंतिम स्थिति तथा प्रारंभिक स्थिति के बीच की न्यूनतम दूरी को विस्थापन कहते हैं । विस्थापन एक सदिश राशि है , इसमें परिमाण एवं दिशा दोनों होते हैं । विस्थापन का मान धनात्मक, ऋणात्मक या शून्य कुछ भी हो सकता है ।

चाल ( Speed) : कोई वस्तु ईकाई समय में जितनी दूरी तय करती है, उसे उसकी चाल कहते हैं । चाल एक अदिश राशि है । चाल का SI मात्रक मीटर प्रति सेकंड (m/s) होता है ।

वेग ( Velocity): कोई वस्तु इकाई समय में किसी निश्चित दिशा में कितनी दूरी तय करती है, यानी जितनी विस्थापित होती है, उसे उस वस्तु का वेग कहते हैं । यह एक सदिश राशि है । वेग का SI मात्रक मीटर प्रति सेकंड( m/s) होता है । वेग धनात्मक, ऋणात्मक या शून्य हो सकता है ।

औसत चाल ( Average Speed)

(1) जब वस्तु भिन्न-भिन्न चालों से समान दूरी तय करती है – यदि कोई वस्तु किसी दूरी को v₁ चाल से तय करती है और उसके बाद उतनी ही दूरी v₂ चाल से तय करती है, तो संपूर्ण यात्रा में उसकी औसत चाल = 2v₁v₂ / v₁ +v₂

(2) जब वस्तु भिन्न-भिन्न चालों से समान समय तक चलती है – यदि यात्रा के पहले आधे समय में कार की चाल v₁ तथा यात्रा के दूसरे आधे समय में कार की चाल v₂ हो, तो संपूर्ण यात्रा में
औसत चाल = v₁+v₂ / 2

त्वरण ( Acceleration) : किसी वस्तु के वेग परिवर्तन की दर को उस वस्तु का त्वरण कहते हैं । त्वरण को प्राय: a से सूचित करते हैं । त्वरण का SI मात्रक मीटर प्रति वर्ग सेकंड (m/s²) होता है ।

यदि वस्तु के वेग में बराबर समयान्तरालों में बराबर परिवर्तन हो रहा है, तो उसका त्वरण “एकसमान” कहलाता है । यदि वस्तु के वेग का परिमाण समय के साथ साथ बढ़ रहा है तो वस्तु का त्वरण धनात्मक होता है । यदि वेद का परिमाण घट रहा है, तो त्वरण ऋणात्मक होता है , तब इसे मंदन (Retardation/ Deceleration) कहते हैं ।

एकसमान त्वरित गति के लिए गैलीलियो के समीकरण ( Galileo’s Equations for Uniformly Accelerated Motions)

यदि किसी वस्तु का प्रारंभिक वेग u तथा त्वरण a हो और वस्तु द्वारा s दूरी चलकर t सेकंड पश्चात उसका अंतिम वेग v हो जाय तो –

(१) v = u+at
(२) s= ut+ at²1/2
(३) v²= u²+2as
(४) sₙ= u+a(2n-1)1/2 , जहाँ sₙ = वस्तु द्वारा nवें सेकंड में तय की गई दूरी ।

गति संबंधी ग्राफ :

1. विस्थापन- समय ग्राफ ( Displacement-Time Graph)

यदि कोई वस्तु एक सरल रेखा में एक समान वेग से गति करती है, तो उसका विस्थापन- समय ग्राफ एक सरल रेखा होता है, जिसकी प्रवणता (Slope) उस वस्तु की चाल बतलाती है । प्रवणता अधिक होने पर वस्तु की चाल अधिक होती है ।

gati ki paribhasha
gati ki paribhasha

दिए गए चित्र में ∆AOX > ∆BOX अर्थात् वस्तु A की प्रवणता वस्तु B के प्रवणता से अधिक है, इसलिए दिए गए ग्राफ में वस्तु A की चाल वस्तु B से अधिक होगी ।

(2) वेग-समय ग्राफ ( Velocity-Time Graph)

(a) एकसमान गति ( Uniform Motion) : यदि कोई वस्तु एक समान गति कर रही है, तो उसका वेग नियत होगा , अतः वेग- समय ग्राफ एक सरल रेखा होगा, जो समय अक्ष के समांतर होगा ।

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(b) एकसमान त्वरित गति ( Uniformly Accelerated Motion) : यदि वस्तु एकसमान त्वरण से सरल रेखा में गति कर रही हो, तो वेग-समय ग्राफ भी सरल रेखा होता है , जो समय अक्ष के साथ कुछ कोण बनाती हैं ।

physics science in Hindi

दिए गए चित्र में सरल रेखा OA एक समान त्वरित गति में वेग-समय ग्राफ को प्रदर्शित करती हैं ।

वृत्तीय गति (Circular Motion) : जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर गति करती है, तो उसकी गति को वृत्तीय गति कहते हैं । यदि वह एक समान चाल से गति करती है तो उसकी गति को समरूप या एकसमान वृत्तीय गति कहते हैं । एकसमान वृत्तीय गति त्वरित होती है, क्योंकि वृत्त के प्रत्येक बिंदु पर वेग की दिशा बदल जाती है ।

कोणीय वेग ( Angular Velocity) : वृत्ताकार मार्ग पर एक गतिशील कण को वृत्त केंद्र से मिलाने वाली रेखा एक सेकंड में जितने कोण से घूम जाती है, उसे उस कण का कोणीय वेग कहते हैं और इसे प्राय: ग्रीक वर्णमाला के अक्षर ω (ओमेगा) से सूचित किया जाता है ।
कोणीय वेग ω = θ/t = red/ sec

प्रक्षेप्य गति (Projectile Motion) : जब कोई वस्तु क्षैतिज से कोई कोण बनाते हुए उर्ध्वाधर तल में प्रक्षेपित किया जाता है, तो उसका पथ परवलय होता है । पिंड की यह गति प्रक्षेप्य गति कहलाती है ।

उड्डयन काल ( Time of Flight) : पिंड को फेंकने तथा वापस पृथ्वी पर गिरने के बीच के समय को उड्डयन काल कहते हैं ।
T = 2usinθ/g

जहाँ u प्रारंभिक वेग है, जिस पर किसी पिंड को क्षैतिज से θ कोण पर प्रक्षेपित किया जाता है ।

प्रक्षेप्य की महत्तम ऊंचाई ( Maximum Height of Projectile) h= u²sin2θ/2g

परास ( Range) : पिंड अपने उड्डयन काल में जितनी क्षैतिज दूरी तय करता है, उसे परास कहते हैं । R= u²sin2θ/g

यदि θ=45°, Rmax = u²sin90°/g = u²/g

प्रक्षेप्य कोण θ एवं (90°-θ) दोनों के लिए क्षैतिज परास का मान समान होगा , अर्थात् इन दोनों मानों के लिए, R= u²sin2θ/g

न्यूटन के गति के नियम ( Newton’s laws of Motion)

गति के नियमों को सबसे पहले सर आइज़क न्यूटन ने सन् 1687 ईस्वी में अपनी पुस्तक प्रिंसिपिया में प्रतिपादित किया । न्यूटन के तीन गति नियम निम्न प्रकार हैं –

न्यूटन का प्रथम नियम – यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है तो विराम अवस्था में ही रहेगी या एक समान गति से सीधी रेखा में चल रही है ,तो वैसे ही चलती रहेगी जब तक उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसके अवस्था में परिवर्तन ना किया जाए ।

वस्तुओं की प्रारंभिक अवस्था ( विराम या गति की अवस्था ) में स्वत: परिवर्तन नहीं होने की प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं । इसलिए न्यूटन के प्रथम नियम को “जड़त्व का नियम” भी कहा जाता है ।

बल, वह बाह्य कारक है जिसके द्वारा किसी वस्तु की विराम अथवा गति की अवस्था में परिवर्तन किया जाता है । अतः प्रथम नियम हमें बल की परिभाषा देता है ।

प्रथम नियम के उदाहरण :-

(१) रुकी हुई गाड़ी के अचानक चल पड़ने पर उसमें बैठे यात्री पीछे की ओर झुक जाते हैं ।
(२) गोली मारने से कांच में गोल छेद हो जाता है, परंतु पत्थर मारने पर वह कांच टुकड़े-टुकड़े हो जाता है ।
(३) हथौड़े को हत्थे में कसने के लिए हत्थे को जमीन पर मारते हैं ।
(४) कंबल को हाथ से पकड़ कर डंडे से पीटने पर धूल के कण झड़कर गिर पड़ते हैं ।
(५) पेड़ की टहनियों को हिलाने से उससे फल टूट कर नीचे गिर पड़ते हैं ।

न्यूटन का द्वितीय नियम :- वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस पर आरोपित बल के अनुक्रमानुपाती होती है तथा संवेग परिवर्तन आरोपित बल की दिशा में ही होता है ।

किसी वस्तु पर आरोपित बल, उस वस्तु के द्रव्यमान तथा बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है ।

यदि किसी m द्रव्यमान की वस्तु पर f बल आरोपित करने से उसमें बल की दिशा में a त्वरण उत्पन्न होता है ,तो द्वितीय नियम के अनुसार , F=ma

न्यूटन के द्वितीय नियम से बल का मात्रक प्राप्त होता है । बल का SI पद्धति में मात्रक न्यूटन होता है । F=ma से, यदि m= 1 किग्रा तथा a= 1 मीटर प्रति सेकंड स्क्वायर हो, तो F= एक न्यूटन ।

एक न्यूटन बल वह बल है जो 1 किग्रा द्रव्यमान की किसी वस्तु में 1 मीटर प्रति सेकंड स्क्वायर का त्वरण उत्पन्न कर दे । बल का एक और मात्रक की किग्रा- भार है । इस बल को गुरूत्वीय मात्रक कहते हैं ।

संवेग ( Momentum-p) : किसी गतिमान वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं ।
P= द्रव्यमान(m)x वेग (v)
P= mv

संवेग एक सदिश राशि है । इसका मात्रक किग्रा- मीटर प्रति सेकंड होता है ।

आवेग ( Impulse- J) : यदि कोई बल किसी वस्तु पर कम समय तक कार्यरत रहे तो बल और समय अंतराल के गुणनफल को उस वस्तु का आवेग कहते हैं ।

J = बल(F)x समय अंतराल (t)
J= Ft

द्वितीय नियम(संवेग,आवेग) के उदाहरण –

(१) समान वेग से आती हुई क्रिकेट गेंद एवं टेनिस गेंद में से टेनिस गेंद को कैच करना आसान होता है ।
(२) गाड़ियों में स्प्रिंग और शॉक एब्जार्बर लगाए जाते हैं ताकि झटका कम लगे ।
(३) कराटे खिलाड़ी द्वारा हाथ के प्रहार से ईंटों की पट्टी तोड़ना ।
(४) अधिक गहराई तक कील को गाड़ने के लिए भारी हथौड़ी का उपयोग किया जाता है ।

न्यूटन का तृतीय नियम :- इस नियम के अनुसार,” प्रत्येक क्रिया के बराबर, परंतु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है ।” अर्थात दो वस्तुओं की पारस्परिक क्रिया में एक वस्तु जितना बल दूसरी वस्तु पर लगाती है, दूसरी वस्तु भी विपरीत दिशा में उतना ही बल पहली वस्तु पर लगाती है । इसमें से किसी एक बल को क्रिया व दूसरे बल को प्रतिक्रिया कहते हैं । इसलिए इस नियम को क्रिया- प्रतिक्रिया का नियम भी कहते हैं ।

तृतीय नियम के उदाहरण –

(१) बंदूक से गोली छोड़ते समय पीछे की ओर झटका लगना ।
(२) नाव के किनारे पर से जमीन पर कूदने पर नाव का पीछे हटना ।
(३) ऊँचाई से कूदने पर चोट लगना ।
(४) रॉकेट का आगे बढ़ना ।

संवेग- संरक्षण का नियम ( Law of Conservation of Momentum): न्यूटन के द्वितीय नियम के साथ न्यूटन के तृतीय नियम के संयोजन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण परिणाम है संवेग संरक्षण का नियम ।

इस नियम के अनुसार एक या एक से अधिक वस्तुओं के निकाय पर कोई बाहरी बल नहीं लग रहा हो, तो उस निकाय का कुल संवेग नियत रहता है , अर्थात संरक्षित रहता है । इस कथन को ही संवेग संरक्षण का नियम कहते हैं ।

रॉकेट के ऊपर जाने का सिद्धांत भी संवेग संरक्षण पर आधारित है ।

संवेग- संरक्षण नियम के उदाहरण –

(१) जब बराबर संवेग वाली 2 गेंदे आपस में टक्कर मारती है तो गेंदें अचानक रुक जाती है ।
(२) रॉकेट प्रणोदन

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