Bal ki Paribhasha

बल किसे कहते हैं तथा बलों के प्रकार

Bal ki Paribhasha Aur Prakar Udaharan

आज हम सामान्य विज्ञान में बल की परिभाषा (Bal Ki Paribhasha) तथा बलों के प्रकार के बारे में जानेंगे, जो आपके आने वाले एग्जाम SSC, RRB, Patwari, आदि में प्रश्न पूछा जाता है ।

Force in Hindi 

बल की परिभाषा (Force) – बल वह बाहरी कारक है, जो किसी वस्तु की प्रारंभिक अवस्था यानी विराम की अवस्था या एक सरल रेखा में एक एकसमान गति की अवस्था को परिवर्तित कर सकता है । बल का SI मात्रक न्यूटन है । इसका CGS मात्रक डाइन है ।

1N = 10⁵dyne होता है ।

बलों के प्रकार ( Types of force)

प्रकृति में मूलत: बल चार प्रकार के होते हैं । विश्व के सभी बल इन्हें के अंतर्गत आ जाते हैं । ये बल है-
(१) गुरुत्वाकर्षण बल
(२) विद्युत चुंबकीय बल
(३) दुर्बल या क्षीण बल
(४) प्रबल बल

(1) गुरुत्वाकर्षण बल ( Gravitational Force)

ब्रह्मांड में प्रत्येक कण दूसरे कण को केवल अपने द्रव्यमान के कारण ही आकर्षित करते हैं तथा किन्ही भी दो कोणों के बीच इस प्रकार के आकर्षण को व्यापक रूप से गुरूत्वाकर्षण कहते हैं ।

जैसे:- यदि एक- एक किलोग्राम के दो पिंडों को एक मीटर की दूरी को रखा जाय, तो इनके मध्य 6.67×10⁻¹¹ N का बल लगेगा ।

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर और चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही घूमते रहते हैं ।

(2) विद्युत चुंबकीय बल (Electromagnetic Force)

यह बल दो प्रकार के होते हैं –

(१) स्थिर वैद्युत बल – दो स्थित बिंदु आवेशों के बीच लगने वाला बल स्थिर वैद्युत बल कहलाता है ।

(२) चुंबकीय बल – दो चुम्बकीय ध्रुवों के मध्य लगने वाला बल चुंबकीय बल कहलाता है ।

ये दोनों बल ( विद्युत एवं चुंबकीय ) मिलकर विद्युत चुंबकीय बल कहलाते हैं । यह ‘फोटॉन’ नामक कण के माध्यम से कार्य करता है । विद्युत चुंबकीय बल , गुरुत्वाकर्षण बल से 10³⁸ गुना अधिक शक्तिशाली होता है ।

(3) दुर्बल बल ( Week Force)

रेडियो सक्रियता के दौरान निकलने वाला β-कण (इलेक्ट्रॉन ), नाभिक के अंदर एक न्यूट्रॉन का प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन एवं ऐन्टिन्यूट्रिनो के रूप में विघटन के फलस्वरूप निकलता है ।

इलेक्ट्रॉन व ऐन्टिन्यूट्रिनो के बीच पारस्परिक क्रिया क्षीण बलों के माध्यम से ही होती है ।

ये बल दुर्बल या क्षीण इसलिए कहलाते हैं कि इनका परिमाण प्रबल बल का लगभग 10⁻¹³ गुना ( बहुत कम ) होता है और इनके द्वारा संचालित क्षय प्रक्रियाएँ अपेक्षाकृत बहुत धीमी गति से चलती है ।

ये बल , w-बोसॉन नामक कण के आदान-प्रदान द्वारा अपना प्रभाव दिखलाते हैं । यह अत्यंत ही लघु परास वाला बल है । इसका परास प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के आकार से भी कम होता है , अत: इनका प्रभाव इन कणों के अंदर तक ही सीमित रहता है ।

(4) प्रबल बल ( Strong Force )

नाभिक के अंदर दो प्रोटॉन व प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन पास-पास शक्तिशाली आकर्षण बल के कारण होते हैं, इसे ही प्रबल बल कहते हैं ।

इस बल का आकर्षण प्रभाव, वैद्युत बल के प्रतिकर्षण प्रभाव से बहुत ही अधिक होता है । यह बल कण के आवेश पर निर्भर नहीं करता है । यह बल अति लघु परास बल है , इसका परास 10⁻¹⁵ मी. की कोटि का होता है, अर्थात 2 प्रोटॉनों के बीच की दूरी इससे अधिक होगी , तो यह बल नगण्य होगा ।

बल का आवेग ( Impulse of a Force)

जब कोई बड़ा बल किसी वस्तु पर थोड़े समय के लिए कार्य करता है, तो बल तथा समय- अंतराल के गुणनफल को इस बल का आवेग कहते हैं ।

आवेग = बल x समय अंतराल = संवेग में परिवर्तन

आवेग वस्तु के संवेग में परिवर्तन के बराबर होता है । यह एक सदिश राशि है, जिसका मात्रक न्यूटन सेकंड (Ns) है तथा इसकी दिशा वही होती है जो बल की दिशा होती है ।

उदाहरण – (१) बल्ले द्वारा क्रिकेट की गेंद पर प्रहार कर गेंद को दूर भेजना
(२) हथौड़े से कील ठोकना
(३) क्रिकेट की गेंद का केच लेना

संतुलित बल ( Balanced Force)

जब किसी पिंड पर एक से अधिक बल कार्य करते हो और उन सभी बलों का परिणामी बल शून्य हो, तो वह पिण्ड संतुलित अवस्था में होगा । इस दशा में पिंड पर लगने वाले सभी बल संतुलित बल कहलाते हैं ।

असंतुलित बल ( Unbalanced Force)

जब किसी वस्तु पर दो या दो से अधिक बल इस प्रकार लगते हैं कि वस्तु किसी एक बल की दिशा में गति करने लगती है, तो वस्तु को लगने वाला बल असंतुलित बल कहलाता है ।

घर्षण बल ( Frictional Force)

संपर्क में रखी दो वस्तुओं के मध्य एक प्रकार का बल कार्य करता है, जो गति करने में वस्तु का विरोध करता है, यह बल ही घर्षण बल कहलाता है । इसकी दिशा सदैव वस्तु की गति की दिशा के विपरीत होती है ।

घर्षण बल के प्रकार

घर्षण बल तीन प्रकार के होते हैं – (१) स्थैतिक घर्षण बल (२) सर्पी घर्षण बल (३) लोटनिक घर्षण बल

(१) स्थैतिक घर्षण बल : जब किसी वस्तु को किसी सतह पर खिसकाने के लिए बल लगाया जाए और यदि वस्तु अपने स्थान से नहीं खिसके, तो ऐसे दोनों सतहों के मध्य लगने वाले घर्षण बल को स्थैतिक घर्षण बल कहते हैं ।

(२) सर्पी घर्षण बल : जब कोई वस्तु किसी सतह पर सरकती है, तो सरकने वाली वस्तु तथा उस सतह के बीच लगने वाला घर्षण बल सर्पी घर्षण बल कहलाता है ।

(३) लोटनिक घर्षण बल : जब एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु की सतह पर लुढ़कती है, तो इन दोनों वस्तुओं के सतहों के बीच लगने वाला बल लोटनिक घर्षण बल कहलाता है ।

घर्षण बल की विशेषताएँ –

(१) दो सतहों के मध्य लगने वाला घर्षण बल उनके संपर्क क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करता है । यह केवल सतहों की प्रकृति पर निर्भर करता है ।

(२) लोटनिक घर्षण बल का मान सबसे कम और स्थैतिक घर्षण बल का मान सबसे अधिक है ।

(३) घर्षण बल या घर्षण को कम करने के लिए मशीनों में स्नेहक तथा बॉल बियरिंग लगाए जाते हैं , जो सर्पी घर्षण को लोटनिक घर्षण में बदल देते हैं ।

(४) ठोस-ठोस सतहों के मध्य घर्षण अधिक , द्रव-द्रव सतहों के मध्य उससे कम और वायु-ठोस सतहों के बीच घर्षण सबसे कम होता है ।

घर्षण बल के लाभ –

(१) घर्षण बल के कारण ही मनुष्य सीधा खड़ा रह पाता है तथा चल पाता है ।
(२) घर्षण बल न होने पर हम केले के छिलके तथा बरसात में चिकनी सड़क पर फिसल जाते हैं ।
(३) यदि सड़कों पर घर्षण न हो तो पहिए फिसलने लगते हैं ।
(४) यदि पट्टे तथा पुली के बीच घर्षण न हो तो पट्टा मोटर के पहिए नहीं घुमा सकेगा ।

घर्षण बल से हानि –

(१) मशीनों में घर्षण के कारण ऊर्जा का अपव्यय होता है और टूट-फूट अधिक होती है ।
(२) मशीनों के पुर्जों के बीच अत्यधिक घर्षण से काफी उष्मा पैदा होती है और मशीन को क्षति पहुंचाती है ।

अभिकेंद्री बल ( Centripetal Forces)

एकसमान वृत्तीय गति में जो बल केंद्र की ओर कार्य करता है, अभिकेंद्र बल कहलाता है । यह वास्तविक बल होता है । इस बल के अभाव में वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नहीं चल सकती है ।

F = mv²/r

अभिकेंद्री बल के उदाहरण :-

(१) जब हम एक पत्थर के टुकड़े को डोरी के एक सिरे से बाँध कर घूमाते हैं तो हमें डोरी पर तनाव लगाना पड़ता है ।
(२) पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाना ।
(३) इलेक्ट्रॉन का नाभिक के चारों ओर घूमना ।
(४) चौराहे पर मुड़ते समय साइकिल सवार का झुक जाना ।

अभिकेंद्री बल की प्रतिक्रिया – प्रत्येक क्रिया के बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है । यह क्रिया तथा प्रतिक्रिया सदैव अलग-अलग वस्तुओं पर कार्य करती है । अत: वृत्तीय पथ पर गतिमान वस्तु पर कार्य करने वाले अभिकेंद्री बल की भी प्रतिक्रिया होती है ।

उदाहरण :- “मौत के कुएं” में मोटरसाइकिल चलाना ।

अपकेंद्री बल ( Centrifugal Force )

वृत्ताकार पथ में केंद्र से बाहर की ओर लगने वाले बल को अपकेंद्री बल कहते हैं । इसका परिमाण अभिकेंद्र बल के बराबर होता है । इसकी दिशा केंद्र से दूर होती है । अभिकेंद्र बल एवं अपकेंद्र बल द्वारा किया गया कार्य शून्य होता है ।

अपकेंद्र बल के उदाहरण

(१) कपड़ा सुखाने की मशीन
(२) क्रीम निकालने की मशीन
(३) ड्राई क्लीनर
(४) अपकेंद्रीय शोषक
(५) अपकेंद्री पंप

बल आघूर्ण ( Moment of Force )

बल द्वारा एक पिंड को एक अक्ष के पारित: घुमाने की प्रवृत्ति को बल आघूर्ण कहते हैं । बल-आघूर्ण एक सदिश राशि है , इसका SI मात्रक न्यूटन मीटर ( N.m) होता है ।

बल आघूर्ण के उदाहरण –

(१) घरों में गेहूं पीसने का जाँता का हत्था कील से दूर लगाया जाता है ताकि जाँता को घुमाने के लिए कम जोर लगाना पड़े ।
(२) कुम्हार के चाक में घुमाने के लिए लकड़ी फंसाने का गड्ढा चाक की परिधि के पास बनाया जाता है ।
(३) पानी निकालने वाला हेड पंप का हत्था लंबा होता है ।

बल – युग्म ( Couple)

किसी वस्तु पर दो बराबर किंतु विपरीत दिशाओं में कार्य करने वाले समानान्तर बलों को बल-युग्म कहते हैं । इसका SI मात्रक न्यूटन मीटर ( N.m) होता है ।

बल-युग्म के उदाहरण –

(१) पानी का नल खोलना ।
(२) पेन तथा दवात का ढक्कन खोलना ।
(३) गाड़ी का स्टेयरिंग व्हील घुमाना ।
(४) चाबी वाली घड़ी को चाबी देना ।
(५) ताला को चाभी से खोलना

सरल मशीन ( Simple Machines)

यह बल-आघूर्ण के सिद्धान्त पर कार्य करती है । सरल मशीन एक ऐसी युक्ति होती है, जिसमें किसी सुविधाजनक बिंदु पर एक बल लगाकर, किसी बिंदु पर रखे हुए एक भार को उठाया जा सकता है । उदाहरण :- उत्तोलक, घिरनी, आनत तल, स्क्रु जैक आदि ।

उत्तोलक ( Lever)

यह एक सीधी या टेढ़ी छड़ होती है, जो किसी निश्चित बिंदु के चारों और स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती हैं । उदाहरण – चिमटा, सरौता, कैंची आदि ।

उत्तोलक में आलंब, आयास एवं भार नामक तीन मुख्य बिंदु होते हैं –

(१) आलंब (F) – जिस निश्चित बिंदु के चारों ओर उत्तोलक की छड़ स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है, उसे आलंब कहते हैं ।

(२) आयास (E)– उत्तोलक को उपयोग में लाने के लिए उस पर जो बल लगाया जाता है, उसे आयास कहते हैं ।

(३) भार (L) – उत्तोलक के द्वारा जो बोझ उठाया जाता है , उसे भार कहते हैं ।

उत्तोलक के सिद्धांत ( Theory of Lever)

आयास एवं आयास भुजा का गुणनफल, भार एवं भार भुजा के गुणनफल के बराबर होती है , अर्थात्

आयास x आयास भुजा = भार x भार भुजा

उत्तोलक के प्रकार –

आलंब, आयास तथा भार की एक- दूसरे के सापेक्ष स्थितियों के कारण उत्तोलक तीन प्रकार के होते हैं –

(१) प्रथम श्रेणी के उत्तोलक :- इस श्रेणी के उत्तोलकों में आलंब(F), आयास ( E) एवं भार ( L) के बीच में स्थित होता है ।

प्रथम श्रेणी के उत्तोलक में यांत्रिक लाभ एक से अधिक, एक के बराबर एवं एक से कम भी हो सकता है ।

उदाहरण :- कैंची, प्लास, सिड़ासी, कील उखाड़ने की मशीन , साइकिल के ब्रेक , डंडी तराजू, शीश झूला आदि ।

(२) द्वितीय श्रेणी के उत्तोलक :- इस श्रेणी के उत्तोलकों में आलंब तथा आयास के बीच भार होता है ।

दितीय श्रेणी के उत्तोलक में यांत्रिक लाभ सदैव एक से अधिक होता है ।

उदाहरण :- सरौता, नींबू निचोड़ने की मशीन, तंबाकू काटने वाली मशीन , पहिया, कब्जे पर घूमने वाला दरवाजा ।

(३) तृतीय श्रेणी के उत्तोलक :- इस श्रेणी के उत्तोलक में आलंब एवं भार के बीच आयास होता है ।

तृतीय श्रेणी के उत्तोलक में यांत्रिक लाभ सदैव एक से कम होता है ।

उदाहरण :- चिमटा, मनुष्य का हाथ, किसान का हल ।

इन्हें भी देखें :-

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