सिक्खों के दस गुरू

सिक्खों के दस गुरु तथा पंजाब का इतिहास

मुगल काल में समृद्ध और उपजाऊ भूमि पंजाब प्रांत की थी । इसकी राजधानी लाहौर थी । पंजाब में सिख धर्म की स्थापना गुरू नानक ने की । सिख धर्म में दस गुरु हुए जो निम्न प्रकार हैं –

सिक्खों के 10 गुरु ( 10 Gurus of Sikh in Hindi)

(1) गुरु नानक (1469-1538 ई.)

  • सिक्ख संप्रदाय की स्थापना का श्रेय गुरु नानक (प्रथम गुरु) को है । गुरु नानक के अनुयायी ही सिक्ख कहलाए । ये बादशाह बाबर एवं हुमायूँ के समकालीन थे ।
  • सन् 1496 ई. की कार्तिक पूर्णिमा को नानक को अध्यात्मिक पुनर्जीवन का आभास हुआ ।
  • गुरु नानक ने गुरु का लंगर नामक नि:शुल्क सहभागी भोजनालय स्थापित किए ।
  • गुरु नानक ने अनेक स्थानों पर संगत (धर्मशाला) और पंगत (लंगर) स्थापित किए ।
  • इन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता पर बल दिया ।
  • इन्होंने अवतारवाद एवं कर्मकांड का विरोध किया ।
  • गुरु नानक की सन् 1538 ई. में करतारपुर में मृत्यु हो गई ।

(2) गुरु अंगद ( 1538-1552 ई.)

  • गुरु अंगद सिक्खों के दूसरे गुरु थे । इनका प्रारम्भिक नाम लहना था ।
  • इन्होंने नानक द्वारा शुरू की गई लंगर व्यवस्था को स्थायी बना दिया ।
  • गुरुमुखी लिपि का आरंभ गुरु अंगद ने किया ।
  • गुरु अंगद के पुत्र ने ‘उदासी’ की स्थापना की ।

(3) गुरु अमरदास ( 1552-74 ई.)

  • सिक्खों के तीसरे गुरु अमरदास थे ।
  • इन्होनें सिक्खों और हिंदुओं के विवाह को पृथक करने के लिए ‘लवन पद्धति’ शुरू की ।
  • गुरु अमरदास ने 22 गद्दियों की स्थापना की और प्रत्येक पर एक महन्त की नियुक्ति की ।
  • इन्होनें सती प्रथा , पर्दा प्रथा और मादक द्रव्यों के सेवन का विरोध किया ।
  • अकबर ने गुरु अमरदास से गोविन्दवाल जाकर भेंट की और गुरु पुत्री बीबी भानी को कई गांव दान में दिए ।

(4) गुरु रामदास (1574-81 ई.)

  • बीबी भानी के पति रामदास सिक्खों के चौथे गुरु हुए ।
  • अकबर ने बीबी भानी को 500 बीघा भूमि दी । गुरु रामदास ने इसी भूमि पर अमृतसर नामक जलाशय खुदवाया और अमृतसर नगर की स्थापना की ।
  • गुरु रामदास ने अपने तीसरे पुत्र अर्जुन को गुरु का पद सौंपा । इस प्रकार इन्होंने गुरु पद को पैतृक बनाया ।

(5) गुरु अर्जुन ( 1581-1606 ई.)

  • गुरु अर्जुन सिक्खों के पाँचवे गुरु हुए ।
  • इन्होंने सिखों के धार्मिक ग्रंथ आदिग्रंथ की रचना की । इसमें गुरु नानक की प्रेरणाप्रद प्रार्थनाएं और गीत संकलित हैं । इसके अलावा इसमें कबीर , नामदेव एवं रैदास की रचनाओं को भी सम्मिलित किया गया है ।
  • गुरु अर्जुन ने अमृतसर जलाशय के मध्य में हरमन्दर साहब का निर्माण कराया । कालान्तर में इसे ‘स्वर्ण मंदिर’ नाम दिया ।
  • राजकुमार खुसरो की सहायता करने के कारण जहांगीर में 1606 ईस्वी में गुरु अर्जुन को मरवा दिया ।

( 6) गुरु हरगोविंद ( 1606-45 ई.)

  • सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद हुए ।
  • इन्होंने सिक्खों को सैन्य संगठन का रूप दिया तथा अकाल तख्त या ईश्वर के सिंहासन का निर्माण करवाया ।
  • ये दो तलवार बांधकर गद्दी पर बैठते थे एवं दरबार में नगाड़ा बजाने की व्यवस्था की ।
  • इन्होंने अमृतसर की किलेबंदी की ।

(7) गुरु हरराय (1645-61 ई.)

  • सिक्खों के सातवें गुरु हरराय हुए ।
  • इन्होनें दारा शिकोह के सामूगढ़ युद्ध में पराजित होकर पंजाब भागने में उसकी मदद की ।
  • औरंगजेब द्वारा दरबार में बुलाने पर अपने पुत्र रामराय को दरबार में भेजा । फलस्वरूप दूसरे पुत्र हरिकिशन को गद्दी सौंपी ।

(8) गुरु हरिकिशन ( 1661-64 ई.)

  • सिक्खों के आठवें गुरु हरिकिशन हुए ।
  • गद्दी के लिए बड़े भाई रामराय से विवाद हुआ ।
  • इनकी मृत्यु चेचक से हो गई ।
  • इन्हें दिल्ली जाकर गुरुपद के बारे में औरंगजेब को समझाना पड़ा था ।

(9) गुरु तेगबहादुर ( 1664 -75 ई.)

  • सिक्खों के नौवें गुरु तेगबहादुर हुए ।
  • गुरु हरिकिशन ने मृत्यु से पहले इन्हीं ‘बाकला दे बाबा’ कहा ।
  • इस्लाम स्वीकार नहीं करने के कारण औरंगजेब ने उन्हें वर्तमान शीशगंज में गुरुद्वारा के निकट मरवा दिया ।

(10) गुरु गोविंद सिंह ( 1675 – 1708 ई.)

  • सिक्खों के दसवें एवं अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह हुए ।
  • इनका जन्म 1666 ई. में पटना में हुआ था ।
  • गुरु गोविंद सिंह अपने को ‘सच्चा पादशाह’ कहा ।
  • इन्होंने सिक्खों के लिए पाँच ‘ककार’ अनिवार्य किया अर्थात् प्रत्येक सिक्ख को केश, कंघा, कृपाण , कच्छा और कड़ा रखने की अनुमति दी और सभी लोगों को अपने नाम के अंत में ‘सिंह’ शब्द जोड़ने के लिए कहा ।
  • गुरु गोविंद सिंह का निवास स्थान आनंदपुर साहिब था एवं कार्यस्थली पाओता थी ।
  • इनके दो पुत्र फतह सिंह एवं जोरावर सिंह को सरहिंद के मुगल फौजदार वजीर खाँ ने दीवार में चिनवा दिया ।
  • 1699 ई. में वैशाखी के दिन गुरु गोविंद सिंह खालसा पंथ की स्थापना की ।
  • पाहुल प्रणाली की शुरुआत गुरु गोविंद सिंह ने की ।
  • गुरु गोविंद सिंह ने सिक्खों के धार्मिक ग्रंथ आदिग्रंथ को वर्तमान रूप दिया और कहा कि अब ‘गुरुवाणी’ सिक्ख संप्रदाय के गुरु का कार्य करेगी ।
  • गुरु गोविंद सिंह की हत्या 1708 ई. में नांदेड़ नामक स्थान पर गुल खाँ नामक पठान ने कर दी ।

पंजाब का इतिहास (Punjab History in Hindi)

बंदाबहादुर (1708-1716 ई.)

  • गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद गुरू की परम्परा समाप्त हो गई । उसके शिष्य बंदा बहादुर ने सिक्खों नेतृत्व संभाला ।
  • इनका जन्म 1670 ईसवी में पुँछ जिले के रजौली गाँव में हुआ था । इसके बचपन का नाम लक्ष्मण दास था । इनके पिता रामदेव भारद्वाज राजपूत थे ।
  • बंदा बहादुर का उद्देश्य पंजाब में एक सिक्ख राज्य स्थापित करने का था । इसके लिए उन्होंने लौहगढ़ को राजधानी बनाया । इन्होने गुरु नानक एवं गुरु गोविंद सिंह नाम के सिक्के चलाए ।
  • बंदा बहादुर ने सरहिंद के मुगल फौजदार वजीर खाँ की हत्या कर दी ।
  • शहादरा कत्लगढ़ी के नाम से विख्यात है जहाँ बन्दा ने हजारों मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था ।
  • मुगल बादशाह फर्रूखशियर के आदेश पर 1716 ईसवी में बंदा सिंह को गुरूदासपुर नांगल नामक स्थान पर पकड़ कर मौत के घाट उतार दिया गया ।
  • बंदा की मृत्यु के बाद सिक्ख कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गई थे । 1748 ई. में नवाब कर्पूर सिंह की पहल पर , सभी सिक्ख टुकड़ियों का दल खालसा में विलय हुआ ।
  • सिक्खों की धार्मिक सेना के रूप में विकसित दल खालसा को कर्पूर सिंह की मृत्यु के बाद जस्सा सिंह अहलूवालिया ने अपना नेतृत्व प्रदान किया ।
  • जस्सा सिंह के नेतृत्व में ही दल खालसा 12 दलों में विभाजित किया गया । इसे मिसल कहा गया ।
  • मिसल अरबी भाषा का शब्द है , जिसका अर्थ ‘समान’ होता है ।

बारह सिक्ख मिसलें-

मिसल नेता/संस्थापक
अहलूवालिया मिसल जस्सा सिंह
सुकरचकिया मिसल चरत सिंह
सिंहपुरिया मिसल नवाब कपूर सिंह
भंगी मिसल छज्जा सिंह
फुलकियां मिसल संधू जाट चौधरी
रामगढ़िया मिसल जस्सा सिंह रामगढ़िया
कन्हैया मिसलजयसिंह
शहीदी मिसल बाबा दीप सिंह
नकी मिसल हीरा सिंह
बुले वालिया मिसल गुलाब सिंह
निशानवालिया मिसल सरदार संगतसिंह
करोड़ खिधिंया मिसल भगेल सिंह
  • अफगान आक्रमण तथा मुगल सुबेदारों के अत्याचारों के कारण उस समय पंजाब में अव्यवस्था की स्थिति थी । दल खालसा ने अव्यवस्था की स्थिति को समाप्त करने के उद्देश्य से 1753 ई. में राखी प्रथा आरंभ की ।
  • ‘राखी प्रथा’ के अंतर्गत प्रत्येक गांव से उपज का 1/5 भाग लेकर दल खालसा उसकी सुरक्षा का प्रबंध करता था । इस प्रणाली द्वारा ही सिक्खों का राजनीतिक शक्ति के रूप में विकास हुआ ।
  • उत्तरवर्ती मुगल शासकों द्वारा अहलूवालिया मिसल के संस्थापक सरदार जस्सा सिंह को सुल्तान-ए-कौम की उपाधि मिली । इन्होंने स्वयं को बादशाह घोषित कर अपने नाम के सिक्के जारी किए ।
  • पंजाब में पटियाला , नाभा तथा जींद रजवाड़ो की स्थापना फुलकियां मिसल द्वारा की गई ।
  • फुलकियां मिसल के सरदार आला सिंह को अहमद शाह अब्दाली में 1765 में ‘तबल-ओ-आलम ‘ , एक नगाड़ा और एक निशान भेंट किया ।
  • आधुनिक पंजाब के निर्माण का श्रेय सुकरचकिया मिसल को दिया जाता है । इसी मिसल में रणजीत सिंह का जन्म हुआ ।
  • सिक्खों ने 1764 में देग, तेग और फतेह मुद्रालेख युक्त शुद्ध चांदी के सिक्के का प्रचलन करवाया , जो पंजाब में सिक्ख प्रभुता के प्रथम उद्घोषक माने जाते हैं ।

रणजीत सिंह ( 1792-1839 ई.)

  • रणजीत सिंह का जन्म गुजराँवाला में 2 नवंबर 1780 ई. को सुकरचकिया मिसल के प्रमुख माहासिंह के यहाँ हुआ था । इनके दादा चरतसिंह ने 12 मिसलों में सुकरचकिया मिसल को प्रमुख स्थान दिला दिया ।
  • काबुल के शासक जमनशाह (अब्दाली का पुत्र) ने रणजीत सिंह को उसकी महत्वपूर्ण सैन्य सेवाओं के लिए 1798 में राजा की उपाधि प्रदान की और लाहौर का शासक बनाया ।
  • 1808 ई. में रणजीत सिंह ने सतलज नदी को पार कर फरीदकोट, मलेर कोटला और अंबाला पर कब्जा कर लिया ।
  • अंग्रेजों तथा विरोधी सिक्ख राज्यों के भय के कारण रणजीत सिंह ने 1809 ई. में लार्ड मिंटो को दूत चार्ल्स मेटकाफ से ‘अमृतसर की संधि’ कर ली ।
  • उत्तर-पश्चिम में अपने राज्य का विस्तार करते हुए रणजीत सिंह ने 1818 में मुल्तान, 1819 में कश्मीर तथा 1823 में पेशावर पर अधिकार कर लिया ।
  • 1809 में शाहशुजा ( अब्दाली का पौत्र) जिसको उसके भाई ने अपदस्थ कर दिया था , लाहौर में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहा था । रणजीत सिंह ने उसे पुन: सत्तासीन करने में सहायता दी ।
  • राजा रणजीत सिंह को अफगान शासक शाहशुजा से ही वह प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ जिसे नादिरशाह लाल किले से लूटकर ले गया था ।
  • रणजीत सिंह का राज्य 4 सूबों में बँटा था – पेशावर, कश्मीर, मुल्तान एवं लाहौर ।
  • महाराजा रणजीत सिंह का विदेश मंत्री फकीर अजी़जुद्दीन तथा वित्त मंत्री दीनानाथ था ।
  • जून 1839 ईसवी में रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई ।

महाराजा रणजीत सिंह का प्रशासन :-

  • रणजीत सिंह महान विजेता होने के साथ-साथ कुशल प्रशासक भी था । इसने ब्रिटिश एवं फ्रांसीसी सैन्य व्यवस्था के आधार पर एक कुशल, सुप्रशिक्षित एवं सुसंगठित सेना का गठन किया ।
  • राजा रणजीत सिंह की स्थायी सेना ‘फौज-ए-आइन’ के नाम से जानी जाती थी , जो उस समय एशिया में दूसरे स्थान पर थी ।
  • रणजीत सिंह ने लाहौर में तोपनिर्माण का कारखाना खोला, जिसमें मुस्लिम तोपची नौकरी पर रखे गए ।
  • रणजीत सिंह ने विभिन्न सिक्ख मिसलों को संगठित करने के उद्देश्य से राज्य को ‘सरकार ए खालसा’ नाम दिया तथा अपने द्वारा चलाये गये सिक्कों को नानक शाही सिक्के नाम दिया ।
  • 1839 में रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद उसके अल्पायु पुत्र दिलीप सिंह के सिंहासनारोहण के बीच ( 1843 तक) तीन अयोग्य उत्तराधिकारी क्रमश: खड़क सिंह , नौनिहाल सिंह और शेरसिंह ने शासन किया ।
  • 1843 ई. महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र दिलीप सिंह राजमाता झिंदन के सरंक्षण में सिंहासनारूढ हुआ ।

प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध ( 1845-46 ई.)

  • दिलीप सिंह के समय अंग्रेजों ने पंजाब पर आक्रमण किया । परिणाम स्वरूप प्रथम आंग्ल -सिक्ख युद्ध शुरू हुआ ।
  • अंग्रेजी सेना ने लाहौर पर अधिकार कर लिया । लार्ड हार्डिग्ज गवर्नर जनरल तथा लार्ड गफ युद्ध के समय भारत के प्रधान सेनापति थे ।
  • अंग्रेजी सेना ने सर ह्यूगफ के नेतृत्व में 13 दिसंबर 1845 को मुदकी नामक स्थान पर लाल सिंह के नेतृत्व वाली सिक्ख सेना को पराजित किया । इस पराजय के बाद 9 मार्च 1846 को अंग्रेजों के साथ ‘लाहौर की संधि’ की ।
  • इस संधि के बदले अंग्रेजों ने दिलीप सिंह को महाराजा तथा रानी झिंदन को संरक्षिका और लाल सिंह को वजीर के रूप में मान्यता प्रदान की ।
  • लाहौर के आकार को सीमित करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने कश्मीर को ₹50000 में गुलाब सिंह को बेच दिया ।
  • 16 दिसंबर 1846 को समपन्न एक अन्य संधि ‘भैरोवाल की संधि’ की शर्तों के अनुसार दिलीप सिंह के वयस्क ब्रिटिश होने तक ब्रिटिश सेना का लाहौर प्रवास निश्चित कर दिया गया । साथ ही लाहौर का प्रशासन आठ सिक्ख सरदारों की एक परिषद को सौंप कर महारानी झिंदन को ₹48000 वार्षिक की पेंशन पर शेखपुरा भेज दिया गया । सर हेनरी लारेंस लाहौर में रेजिडेंट के रूप में नियुक्त हुए ।

द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध ( 1849)

  • इस युद्ध का तात्कालिक कारण मुल्तान के सूबेदार मूलराज का विद्रोह था ।
  • इस युद्ध के दौरान पहली लड़ाई चिलियानवाला की लड़ाई सिक्ख नेता शेरसिंह एवं अंग्रेज कमांडर गफ के मध्य लड़ी गई ।
  • द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध के समय भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी थे । डलहौजी ने चिलियानवाला की लड़ाई के परिणाम के बारे में कहा कि “हमने भारी खर्च उठा के एक ऐसी विजय प्राप्त की है, जो पराजय के बराबर है ” ।
  • इस युद्ध के बाद लॉर्ड डलहौजी ने गफ के स्थान पर चार्ल्स नेपियर को प्रधान सेनापति बनाया । नेपियर ने सिक्ख सेना को 21 फरवरी , 1849 को ‘गुजरात युद्ध‘ में बुरी तरह पराजित किया ।
  • गुजरात के युद्ध को ‘तोपों के युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है ।
  • लॉर्ड डलहौजी की 30 मार्च 1849 ई. की घोषणा द्वारा संपूर्ण पंजाब का विलय अंग्रेजी राज्य में कर लिया । महाराजा दिलीप सिंह को 50000 पौंड की वार्षिक पेंशन दे दी गयी और उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया । सिक्ख राज्य का प्रसिद्ध हीरा कोहिनूर को महारानी विक्टोरिया को भेज दिया गया ।

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