मुगल प्रशासन व्यवस्था
मुगल सम्राट सम्राज्य का प्रमुख होने के साथ ही सेना का प्रधान,न्याय व्यवस्था का प्रमुख, इस्लाम का रक्षक और मुस्लिम जनता का आध्यात्मिक नेता होता था । शासन में अपनी सहायता के लिए बादशाह विभिन्न मंत्रियों की नियुक्ति करता था । प्रत्येक मंत्री का अपना पृथक कार्यालय होता था ।मुगल काल में निम्न विभाग व मंत्री कार्यारत थे-

केंद्रीय प्रशासन –
🔹वकील या प्रधानमंत्री – वह सम्राट को सलाह देने के साथ ही प्रशासन के सभी विभागों का निरीक्षण करता था । वकील को वजीर- ए-आला या वकील- ए-मुतलक के नाम से भी जाना जाता था । वकील को राजस्व व वित्तीय मामलों पर एकाधिकार था ।
🔹दीवान-ए-कुल – अकबर द्वारा वकील पद को समाप्त कर स्थापित पद जो वित्त व राजस्व का सर्वोच्य अधिकारी था । उसकी सहायता हेतु दीवान- ए-खालसा, दीवान- ए-तन व मुस्तौफी होते थे ।
🔹मीर बक्शी या सेनापति – मुगल काल में सैनिक विभाग के मुखिया को “मीर बख्शी” कहा जाता था।
🔹मीर-ए-समाँन – बादशाह के घरेलू व व्यक्तिगत मामलों का प्रधान होता था ।
🔹सद्र-उस-सूद्र – वह दान संपत्ति का निर्णायक, निरीक्षक एवं सम्राट का धार्मिक सलाहकार होता था । छात्रवृत्तियों का निर्धारण करना, शिक्षण संस्थाओं को भूमि दान करना, दान- पुण्य की व्यवस्था करना उसका प्रमुख कर्तव्य था ।
🔹काजी-उल-कुजात – यह प्रधान काजी था व न्याय विभाग का प्रमुख होता था ।
🔹मीर-ए-आतिरा – तोपखाने का अधीक्षक होता था ।
🔹मुहतसिब – इनका प्रमुख कार्य शरीयत के विरुद्ध कार्य करने वालों को रोकना तथा प्रजा के नैतिक स्तर को ऊंचा उठाना था ।
🔹दरोगा-ए-डाक चौकी – मुगल काल में गुप्तचर व डाक विभाग का प्रमुख होता था ।
मुगलकालीन अन्य अधिकारी –
🔹दीवानी ए तन – युद्ध समय को छोड़कर सेना को वेतन देने का कार्य करता था ।
🔹वाकिया-नवीस – समाचार लेखक था ।
🔹वतिकच्ची – दरबार की घटनाओं को लिखने के साथ-साथ प्रांतों की भूमि एवं लगान संबंधी कागजात तैयार करता था ।
🔹मुशरिफ – प्रमुख लेखाधिकारी जो राज्य की आय-व्यय का लेखा-जोखा रखता था ।
🔹मुस्तौफी – यह मुशरिफ द्वारा तैयार आय-व्यय के लेखा-जोखा की जाँच करता था ।
🔹दरोगा-ए-टकसाल – राजकीय टकसाल पर नियंत्रण व उसके संचालन करने का कार्य ।
🔹मीर-ए-बर्र – यह वन विभाग का प्रमुख था ।
🔹मीर-ए-बहर – नाविक विभाग व बंदरगाहों का प्रमुख होता था ।
प्रांतीय शासन व्यवस्था –
बाबर व हुमायूँ के शासनकाल में शासन की प्रांतीय व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई थी । उस समय साम्राज्य जागीरो में बंटा हुआ था । मानक प्रांतीय प्रशासन के विकास का श्रेय अकबर को जाता है ।
सन् 1580 में सम्राट अकबर द्वारा मुगल साम्राज्य को सूबों में विभाजित किया गया । सूबों में प्रमुख अधिकारी सूबेदार, प्रांतीय दीवान, प्रांतीय बक्शी, प्रांतीय सद्र व कोतवाल थे ।
अकबर के शासन के प्रारंभ में सूबों की संख्या 12 थी । उसके शासन के अंतिम वर्षों में सूबों की संख्या 15, जहांगीर के समय 17, शाहजहाँ के समय 18, औरंगजेब के समय 20 थी ।
🔸सूबेदार – यह प्रांत का सर्वोच्च अधिकारी था । इसे प्रांत के संपूर्ण सैनिक व असैनिक अधिकार प्राप्त थे । इसे सूबेदार, नाजिम या सिपहसालार ( गवर्नर) के नाम से भी जाना जाता था ।
🔸प्रांतीय दीवान – यह प्रांत में अर्थ विभाग का संचालक होता था । इसका प्रमुख कार्य आय-व्यय का लेखा-जोखा रखना तथा राजस्व संबंधित मुकदमों का निर्णय करना था ।
🔸प्रांतीय कोतवाल – प्रांत के प्रमुख नगरों और राजधानियों की सुरक्षा एवं पुलिस प्रबंधन के लिए कोतवाल नाम का विशेष अधिकारी था । यह नगर पुलिस का प्रधान होता था ।
🔸प्रांतीय बक्शी – सूबे की सेना की देखभाल करना ।
🔸वाकिया-ए-नवीस – सूबे के गुप्तचर विभाग का प्रधान ।
जिला शासन व्यवस्था –
मुगल प्रशासन में सूबों को जिला या सरकार में बांटा गया था । यहां के प्रमुख अधिकारी फौजदार (सैनिक प्रमुख ) व अमालगुजार (अर्थ विभाग ) थे । अमालगुजार को करोड़ी भी कहा जाता था जो कि बतिकची (लिपिक ) व खजानदार के माध्यम से कार्य करता था ।
परगने का शासन – सरकार से नीचे की ईकाई परगना थी । सरकार कई परगनों में विभक्त होता था । शिकदार प्रमुख अधिकारी या जिसके कर्तव्य फौजदार के समान होते थे । परगने का दूसरा प्रमुख अधिकारी आमिल था जो परगने का अर्थ मंत्री था । इसके अलावा कानूनगो व पटवारी प्रमुख अधिकारी होते थे ।
ग्राम प्रशासन – प्रशासन की सबसे छोटी ईकाई ग्राम थी । गांव का प्रशासन मुकद्दम, पटवारी व चौकीदार देखते थे । ग्राम प्रधान को खुत, मुकद्दम या चौधरी के नाम से भी जाना जाता है ।
मुगलकालीन सेना – मुगल सेना दशमलव प्रणाली पर संगठित थी , जिसमें इरानी, तुरानी, अफगानी, भारतीय मुसलमान व मराठों को सम्मिलित किया गया था । मुगल में अहदी सैनिक व दाखिली सैनिक होते थे । मुगलकालीन सेना विभिन्न भागों में बंटी हुई थी –
(१) घुड़सवार सेना – इसमें मुख्यतः दो प्रकार के सैनिक थे । बरगीर ( जिन्हें घोड़े ,अस्त और शस्त्र राज्य की ओर से मिलते थे ) और सिलेदार ( जो अपने शस्त्र और घोड़े स्वयं लाते थे )
(२) पैदल सेना – पैदल सेना भी दो भागों में भर्ती थी । बन्दूकची व शमशीर बाज (तलवार बाज )।
(३) हाथी सेना
(४) तोपखाना
(५) नौ-सेना – मुगलों ने पश्चिमी समुद्र तट की रक्षा का भार अबीसिनिया और जंजीरा के सिद्दियों को दे रखा था व पूर्व में बंगाल में एक नाविक बेड़ा रखा था ।
मुगलकालीन मनसबदारी व्यवस्था –
बादशाह अकबर ने प्रशासन में मनसबदारी व्यवस्था प्रारंभ की । मनसबदारी पद्धति के माध्यम से अकबर ने अमीर वर्ग,सिविल अधिकारी एवं सैन्य अधिकारी सभी को एक दूसरे से जोड़ने का प्रयास किया था ।
मुगल मनसबदारी व्यवस्था मध्य एशिया से ग्रहण की गई थी व यह मंगोलों के दशमलव सिद्धांत पर आधारित थी । प्रत्येक मनसबदार का रैंक 2 अंकों का होता था । प्रथम अंक जात रेंक तथा द्वितीय अंक सवाट रैंक का बोधक था ।
इसमें जात व सवार का प्रयोग किया जाता था । इसमें जात शब्द से व्यक्ति के वेतन तथा पद के अनुक्रम में उसकी स्थिति तय होती थी । जबकि सवार शब्द से घुड़सवार दस्ते की संख्या का पता चलता था ।
सरदारों की विभिन्न श्रेणियों थी –
🔹10 जात से 500 जात तक के ➡ मनसबदार
🔹500 जात से 2500 जात तक के ➡ अमीर
🔹2500 जात से ऊपर ➡ अमीर-उल-उम या अमीर-ए-आजम कहलाते थे ।
सवार श्रेणी के आधार पर 5000 और उसके नीचे के मनसबदारों को तीन श्रेणी में विभाजित किया जाता था –
🔹प्रथम श्रेणी – सवार रैंक, जात रैंक के बराबर ।
🔹दितीय श्रेणी – सवार रैंक, जात रैंक से आधा या कुछ अधिक ।
🔹तृतीय श्रेणी – सवार रैंक, जात रैंक के आधे से कम ।
जहांगीर ने मनसबदारी में ‘दुह अस्पा‘ व ‘सिंह-अस्पा’ प्रथा को चलाया । दुह अस्पा में मनसबदारों को अपने सवार पद से दुगने सवार रखने होते थे व सिंह-अस्पा में सवार पद के 3 गुने सवार रखने पड़ते थे ।
इजारेदारी – इजारेदारी व्यवस्था का प्रचलन सर्वप्रथम जागीर भूमि से हुआ । जागीरदारी व्यवस्था आवश्यक रूप से मनसबदारी पद्धति से संबद्ध थी । बड़े मनसबदारों को वेतन जागीर के रूप में दिया जाता था । जागीर से प्राप्त होने वाला राजस्व से संबंधित मनसबदार का वेतन होता था ।
मुगल प्रशासन सैन्य शक्ति पर आधारित एक केंद्रीकृत व्यवस्था थी, जो नियंत्रण एवं संतुलन पर आधारित थी ।
मंत्री परिषद् को विजारत कहा जाता था ।
मुगल साम्राज्य ➡ सूबा ➡ सरकार (जिला)➡ परगना ➡ दस्तूदर ग्राम ( मावदा या दीह )➡ नागला (छोटी बस्ती )