संविधान की प्रमुख विशेषताएं-
भारत के संविधान निर्माताओं ने इस देश की ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक परिस्थिति को दृष्टिगत रखकर संविधान का निर्माण किया । भारत के संविधान की अपनी विशेषताएं हैं –
1. लोकप्रिय संप्रभुता पर आधारित सिद्धांत
भारत में संप्रभुता जनता के निहित है । संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि “हम भारत के लोग…सविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।”
2. सबसे विस्तृत लिखित संविधान
भारतीय संविधान में वर्तमान में 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां हैं । यह विश्व का सबसे व्यापक संविधान है । स्विट्जरलैंड के संविधान में 195 अनुच्छेद तथा अमेरिका के संविधान में 7 अनुच्छेद है । भारतीय संविधान में न सिर्फ शासन के मौलिक सिद्धांत बल्कि विस्तृत रूप से प्रशासनिक प्रावधान भी विद्यमान है ।
3. संसदीय शासन व्यवस्था
भारतीय संविधान में अमेरिका की अध्यक्षात्मक प्रणाली की जगह ब्रिटेन की संदनात्मक (वेस्ट मिंस्टर) प्रणाली को अपनाया है । संसदीय शासन व्यवस्था में दोहरी कार्यपालिका (औपचारिक एवं वास्तविक ) होती है तथा व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका के बीच घनिष्ठ संबंध होता है ।
4. कठोर एवं लचीलापन का समन्वय
कठोर या अनम्य संविधान वह होता है जिसमें संशोधन के लिए साधारण कानून निर्माण प्रक्रिया से अलग विशेष प्रक्रिया अपनायी जाती है । जैसे- अमेरिका का संविधान ।
लचीला या नम्य संविधान वह होता है जिसमें साधारण कानून निर्माण की प्रक्रिया से ही संशोधन किए जाते हैं । जैसे – ब्रिटेन का संविधान ।
भारत का संविधान न तो कठोर है और न लचीला, बल्कि दोनों का मिलाजुला रूप है । अनुच्छेद 368 में संशोधन की दो विधियों का उल्लेख है –
(अ) संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए संसद में विशेष बहुमत (कुल सदस्यों का बहुमत + उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमत) की आवश्यकता होती है । जैसे – मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्वों में संशोधन ।
(ब) संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने के लिए संसद में विशेष बहुमत के साथ कम से कम आधे राज्यों की स्वीकृति आवश्यक है । जैसे- शक्तियों के विभाजन में संशोधन ।
इसके अतिरिक्त कुछ अनुच्छेदों में साधारण कानून निर्माण की प्रक्रिया से संशोधन किया जा सकता है । जैसे- राज्यों का पुनर्गठन ।
5. सुदृढ़ केंद्र के साथ संघात्मक व्यवस्था
भारत का संविधान संघात्मक सरकार की स्थापना करता है । भारत की संघीय व्यवस्था कनाडा के संविधान से प्रभावित है । जिसमें राज्यों एवं केंद्र (संघ) को बराबर शक्ति न देकर केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाया गया है । अत: भारतीय संविधान एकात्मकता की ओर झुकाव के साथ संघात्मक शासन की व्यवस्था करता है ।
6. संसदीय संप्रभुता एवं न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय
जहां ब्रिटेन में संसद सर्वोच्चता के सिद्धान्त को अपनाया गया वहीं अमेरिका के संविधान में न्यायपालिका की सर्वोच्चता के सिद्धांत को अपनाया गया है । भारत में इन दोनों व्यवस्थाओं के मध्य मार्ग को अपनाया गया है । भारत में संसद ‘अपने क्षेत्राधिकार’ में सर्वोच्च है । संसद के क्षेत्राधिकार से बाहर या संविधान के प्रतिकूल कानूनों को न्यायपालिका अवैध घोषित कर सकती है ।
7. एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका
एकीकृत न्यायपालिका – भारत की न्याय व्यवस्था के शिखर पर सर्वोच्च न्यायालय है । इसके नीचे उच्च न्यायालय है तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के नीचे अधीनस्थ न्यायालय है ।
स्वतंत्र न्यायपालिका – सविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं । जैसे- कार्यकाल की सुरक्षा , कार्यकाल के दौरान वेतन भत्तों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं आदि ।
8. मौलिक अधिकार एवं मूल कर्तव्य
मानवोचित जीवन तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए संविधान के भाग 3 में 6 मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है । न्यायपालिका को मूल अधिकारों का रक्षक बनाया गया है । 42 वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा संविधान में 10 मूल कर्तव्य जोड़े गए ।
86 वें संविधान संशोधन (2002) द्वारा छह से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने संबंधी 11वां मूल कर्तव्य जोड़ा गया है ।
9. राज्य के नीति निदेशक तत्व
आयरलैंड के सिद्धांत से प्रेरित होकर संविधान के भाग 4 में नीति निदेशक तत्व शामिल किए गए हैं । नीति निदेशक तत्व सरकार के लिए सकारात्मक निर्देश हैं जिनका संबंध लोक कल्याण से है । ये वाद योग्य नहीं है ।
10. समाजवादी राज्य
42 वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से प्रस्तावना में समाजवादी शब्द जोड़ा गया । यद्यपि नीति निदेशक सिद्धांतों के रूप में समाजवादी लक्षण मौजूद थे । भारतीय समाजवाद “लोकतांत्रिक समाजवाद” है जो मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है ।
11. पंथ निरपेक्ष राज्य
42 वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया । यद्यपि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25-28 ) में पंथ निरपेक्षता के लक्षण मौजूद थे । भारत का अपना कोई राज्य धर्म नहीं है तथा राज्य के लिए सभी धर्म समान है ।
12. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
भारत के संविधान में किसी प्रकार के भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यस्क नागरिक को मताधिकार प्रदान किया गया है । 61वें सविधान संशोधन (1989) द्वारा मताधिकार की न्यूनतम आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई ।
13. राजभाषा
भारत के बहुभाषी देश है । अनुच्छेद 343 में देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ सरकार की राजभाषा घोषित किया गया है । अनुच्छेद 345 में राज्यों की राजभाषा या भाषाओं के बारे में प्रावधान है । संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 क्षेत्रीय भाषाओं को समाहित किया गया है ।
14. शांतिपूर्ण सह आस्तित्व तथा विश्व भ्रातृत्व का लक्ष्य
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अनुरूप भारत वैदेशिक संबंधों में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व एवं भ्रातृत्व के आदर्श में आस्था रखता है । संविधान के अनुच्छेद 51 में विदेश नीति के आदेशों का उल्लेख किया गया है ।
15. एकल नागरिकता
भारतीय संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को एकल नागरिकता प्रदान करता है । संविधान के भाग 2 में अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता संबंधी प्रावधान है ।
भारतीय नागरिकता संशोधन कानून 2019 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिश्चियन धर्म के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियमों को आसान बनाया गया है ।
16. त्रिस्तरीय सरकार
मूल रूप से अन्य संघीय प्रावधानों की तरह भारतीय संविधान में दो स्तरीय राजव्यवस्था (केंद्र व राज्य ) का प्रावधान था । बाद में वर्ष 1992 में 73वें व 74वें भारतीय संविधान संशोधन में तीन स्तरीय (स्थानीय) सरकार का प्रावधान किया गया जो विश्व के किसी और संविधान में नहीं है ।
संविधान के एक नया भाग (9) तथा एक नई अनुसूची (11वीं ) जोड़कर 1992 के 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायतों का संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई । इसी प्रकार से 74वें संविधान संशोधन विधेयक ने एक नए भाग (9A) तथा नई अनुसूची (12वीं) को जोड़कर नगरपालिकाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई ।
उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत के संविधान में आदर्श और व्यवहार का समन्वय है । यह एक ऐसा आलेख है जिस पर प्रत्येक भारतवासी को गर्व है ।