Rajasthan me 1857 ki kranti

राजस्थान में (Rajasthan me 1857 ki kranti )1857 की क्रांति

आज हम राजस्थान में (Rajasthan me 1857 ki kranti )1857 की क्रांति की बात करेंगे ।

Revolt of 1857 in Rajasthan in Hindi

  • मराठों और पिंडारियों के आक्रमण व शोषण से परेशान होकर राजस्थानी रियासतों ने ब्रिटिश संरक्षण स्वीकार किया तथा 1803 व 1818 में संधियाँ की गई ।
  • लॉर्ड हेस्टिंग्स को भारत में ब्रिटिश अधिकारिता के विस्तार के लिए गर्वनर जनरल बना कर भेजा गया था और वह ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत की सर्वोच्च सत्ता बनाना चाहता था ।
  • सन् 1817-18 में राजपूत राज्यों से की गई संधियाँ उसकी नीति का एक अंग मात्र थी । लॉर्ड हेस्टिंग्स का एक अन्य उद्देश्य कंपनी के वित्तीय स्रोतों में अभिवृद्धि करना भी था और साथ ही बीकानेर व बांसवाड़ा राज्यों का महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों पर नियंत्रण होना भी इस दृष्टि से एक महत्वपूर्ण घटक था ।
  • 1817-18 की संधि के तहत प्रत्येक रियासत को अपने यहाँ ब्रिटिश पॉलटिकल एजेंट रखना होता था । इन एर्जेंट के ऊपर एक ए.जी.जी ( AGG) होता था जो पूरे राजपूताना के लिए एक ही था तथा अजमेर में बैठता था । यह AGG भारत के गवर्नर जनरल के प्रति उत्तरदायी था ।

1857 की क्रांति के कारण :-

(१) शोषणपूर्ण व विभेदकारी बर्ताव
(२) आर्थिक शोषण
(३) आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप
(४) सामंतों के अधिकारों पर कुठाराघात
(५) कंपनी के अधिकारी
(६) साम्राज्यवादी आर्थिक शोषण
(७) अफीम नीति
(८) धार्मिक व सामाजिक परिदृश्य

  • 1848 में लॉर्ड डलहौजी गर्वनर जनरल बनकर भारत आए । उन्होंने अंग्रेजी राज्य के विस्तार व स्थायित्व की दृष्टि से एक नए सिद्धांत ‘राज्यों के विलय की नीति’ का सूत्रपात किया ।
  • इस सिद्धांत की शिकार झांसी, नागपुर, अवध, कर्नाटक, सतारा आदि रियासतें हुई । इसके तहत सर्वप्रथम 1848 में सतारा को और अंत में 1856 में अवध को अंग्रेजी राज्य में मिलाया गया ।
  • इसके अलावा सेना में एनफील्ड राइफल में चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग ने भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को बुरी तरह आहत किया । इससे 29 मार्च 1857 को 34वीं रेजिमेंट के मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में अंग्रेज सैनिकों को गोली मार दी । मंगल पांडे को गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई ।
  • अंग्रेजी सत्ता को भारत से उखाड़ फेंकने की दिशा में पहला प्रयत्न ‘स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम’ के रूप में सामने आया । देशी राजाओं ने अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में यह जंग लड़ने का फैसला किया ।
  • 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में सेना ने विद्रोह कर दिया । अंग्रेजों से देश को स्वतंत्र कराने की दिशा में यह पहला बड़ा प्रयत्न था । इसी कारण इस क्रांति को ‘भारत का प्रथम स्वतंत्रता’ संग्राम कहा जाता है ।
  • 28 मई 1857 को नसीराबाद की पैदल सेना के 2 रेजीमेंटों ने विद्रोह कर दिया । इस श्रृंखला में नसीराबाद, नीमच, भरतपुर, अलवर, धौलपुर, टोंक, मेवाड़, मारवाड़, आदि सभी स्थानों पर विद्रोह हुए । यद्यपि सिपाही विद्रोह के दो केंद्र कोटा और आउवा मुख्य थे ।
  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग व राजस्थान के ए.जी.जी जॉर्ज पैट्रिकस लारेन्स थे और राजस्थान में अंग्रेजी सरकार की ब्यावर , नसीराबाद , नीमच, एरिनपुरा , देवली व खैरवाड़ा में 6 सैनिक छावनियाँ थी जिनमें सभी सैनिक भारतीय थे ।
  • मारवाड़ में मैकमोसन , मेवाड़ में मेजर शावर्स , जयपुर में कर्नल ईडन , भरतपुर में मेजर मॉरीसन व कोटा में मेजर बर्टन पॉलटिकल एजेंट थे ।

राजस्थान में 1857 की क्रांति का प्रारंभ :-

(१) नसीराबाद (अजमेर )
(२) नीमच (मध्य प्रदेश )
(३) एरिनपुरा (पाली)
(४) देवली (टोंक)
(५) ब्यावर (अजमेर)
(६) खेरवाड़ा (उदयपुर)

(1) नसीराबाद सैनिक छावनी –

  • राजस्थान की 6 सैनिक छावनी में नसीराबाद छावनी सबसे बड़ी एवं शक्तिशाली थी तथा सर्वप्रथम विद्रोही इसी छावनी से हुआ था ।
  • अजमेर राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता का प्रमुख केंद्र था । राजस्थान के ए.जी.जी सर पैट्रिक लॉरेन्स ने अजमेर की सुरक्षा हेतु अजमेर में नियुक्त 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैंटी को नसीराबाद भेज दिया ।
  • नसीराबाद छावनी में 28 मई 1857 को 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैंटी के सैनिकों ने तोपखाने के सैनिकों को अपनी ओर मिलाकर विद्रोह कर दिया तथा तोपों पर अधिकार कर लिया ।
  • 30 मई 1857 को 30वीं नेटिव इन्फैंटी में भी असंतोष फूट पड़ा । उन्होंने छावनी को लूट लिया तथा अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों पर आक्रमण कर दिया । एक अधिकारी न्यूबरी के सैनिकों ने टुकड़े कर दिए ।
  • इन क्रांतिकारी सैनिकों ने छावनी को तहस-नहस करने के बाद दिल्ली की ओर प्रस्थान कर दिया । इन सैनिकों ने 18 जून को दिल्ली पहुंच कर वहां पर घेरा डाले पूड़ी अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर उसे पराजित किया ।
  • अंग्रेज अधिकारी वाल्टर व हीथकोट ने मेवाड़ के सैनिकों की सहायता से इनका पीछा किया परंतु उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई । इसका कारण यह था कि राजस्थान के जागीरदारों व जनसाधारण की सहानुभूति इन सैनिकों के साथ थी ।

(2) नीमच छावनी –

  • यह छावनी राजस्थान से बाहर मध्य प्रदेश में स्थित थी किंतु इसका दायित्व मेवाड़ के पॉलिटिकल एर्जेंट शॉवर्स के पास था ।
  • 3 जून 1857 को मोहम्मद अली बेग व हीरासिंह के नेतृत्व में नीमच के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया । उन्होनें 5 जून 1857 को देवली व आगरा होते हुए दिल्ली के लिए कुच किया ।
  • नीमच छावनी से बचकर भागे हुए 40 अंग्रेज अफसर व उनके परिवारजनों को डूँगला नामक स्थान पर बंधक बना लिया था । सूचना मिलने पर मेजर शावर्स ने मेवाड़ की सेना की सहायता से उन्हें छुड़ाकर उदयपुर पहुंचाया , जहाँ महाराणा स्वरूप सिंह ने उन्हें पिछोला झील के जगमंदिर में शरण दी । इस प्रकार सर्वप्रथम स्वरूप सिंह ने 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों की सहायता की थी ।

(3) एरिनपुरा छावनी विद्रोह या आउवा विद्रोह –

  • एरिनपुरा क्रांति को सबसे महत्वपूर्ण क्रांति माना जाता है तथा इसे जनक्रांति एवं आउवा क्रांति के नाम से भी जाना जाता है ।
  • 1835 ईस्वी में कंपनी सरकार द्वारा जोधपुर लीजन सैनिक टुकड़ी का गठन किया जिसको एरिनपुरा छावनी पर रखा गया ।
  • मारवाड़ में विद्रोह का सर्वप्रमुख व शक्तिशाली केंद्र आउवा नामक स्थान था ।
  • जोधपुर लीजन की पूर्बिया सैनिकों की एक टुकड़ी को माउंट आबू के निकट अनाद्रा में रोवा (सिरोही) के ठाकुर के विद्रोह को दबाने हेतु भेजा गया । जोधपुर लीजन की इस टुकड़ी ने 21 अगस्त 1857 को आबू में विद्रोह कर दिया । इसके बाद वे 23 अगस्त 1857 को एरिनपुरा आ गए तथा जोधपुर लीजन के दफेदार मोतीखाँ एवं सूबेदार शीतल प्रसाद के नेतृत्व में एरिनपुरा छावनी के पूर्बिया सैनिकों ने क्रांति का बिगुल बजा दिया एवं छावनी को लूट कर ‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी’ के नारे लगाते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े ।
  • ये क्रांतिकारी सैनिक रास्ते में आउवा पहुंचे । पूर्बिया सैनिकों की इस पलटन में दो बार (पहली बार अब्बास अली व दूसरी बार आउवा के ठाकुर के माध्यम से ) समर्पण करने हेतु संदेश भेजा बशर्तें कि इन्हें माफी प्रदान की जाए परंतु लॉर्ड कैनिंग द्वारा स्थानीय अंग्रेज अधिकारियों को ‘माफ करने की शर्त पर समर्पण’ स्वीकार करने पर रोक लगा दी । फलस्वरूप आउवा के ठाकुर कुशालसिंह चंपावत क्रांतिकारियों के साथ हो गए तथा उन्हें अपना नेतृत्व प्रदान किया ।
  • आउवा ठाकुर कुशाल सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह व कैप्टन हीथकोट की सेना को आउवा के निकट बिथौड़ा (पाली) नामक स्थान पर 8 सितंबर 1857 को हराया । 9 सितंबर को उन्होंने जोधपुर सेना के प्रमुख अनाड़सिंह को मार दिया । क्रांतिकारियों के साथ आसोपा के ठाकुर शिवनाथ सिंह , आलनियावास के ठाकुर अजीतसिंह , गूलर ठाकुर विशनसिंह आदि थे ।
  • एजीजी पैट्रिक लॉरेन्स को अजमेर से सेना लेकर चेलावास स्थान पर 18 सितंबर 1857 को क्रांतिकारियों से हार का सामना करना पड़ा । इस युद्ध में जोधपुर का पॉलटिकल एर्जेंट मोक मैसन भी लॉरेन्स के साथ था । जोधपुर का पॉलटिकल एर्जेंट मोक मैसन इस युद्ध में मारा गया और क्रांतिकारियों ने उसका सिर आउवा के किले के दरवाजे पर लटका दिया ।
  • जोधपुर लीजन के कुछ क्रांतिकारी 10 अक्टूबर 1857 को आसोपा के ठाकुर शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में दिल्ली की ओर चल पड़े । उन्होंने रेवाड़ी पर अधिकार कर लिया परंतु आगे रास्ते में नारनौल में वे ब्रिगेडियर गेरार्ड के नेतृत्व वाली अंग्रेज सेना से 16 नवंबर 1857 को परास्त हो गए एवं ठाकुर शिवनाथ सिंह वापस आकर आत्मसमर्पण कर दिया ।
  • उसके बाद गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने कर्नल होम्स की अगुवाई में एक विशाल सेना आउवा भेजी । 20 जनवरी 1858 को अंग्रेजी सेना व क्रांतिकारियों के मध्य युद्ध हुआ तथा अंग्रेजी सेना की विजय हुई । ठाकुर कुशालसिंह अपने छोटे भाई पृथ्वीसिंह को किले का भार सौंपकर वहां से भाग निकला । 24 जनवरी 1858 को आउवा के किले पर अंग्रेजी सेना का अधिकार हो गया । कर्नल होम्स किले से सुगाली माता की मूर्ति को लूटकर अजमेर ले गया , जो वर्तमान में बागड़ संग्रहालय (पाली) में स्थित है ।
  • ठाकुर कुशालसिंह ने कोठारिया के रावत जोधसिंह के यहां जाकर शरण ली । अंतत: उन्होंने 8 अगस्त 1960 के दिन अंग्रेजों के समक्ष नीमच में आत्मसमर्पण किया । मेजर टेलर की अध्यक्षता में एक कमीशन ने उनके खिलाफ जांच की । 10 नवंबर 1860 को उन्हें बिना किसी शर्त के लिए किया गया । 25 जुलाई 1864 को ठाकुर कुशाल सिंह का उदयपुर में स्वर्गवास हो गया ।

(4) देलवी (टोंक) सैनिक छावनी :- यहां पर 7 जून 1857 में विद्रोह हुआ ।

(5) ब्यावर (अजमेर) सैनिक छावनी :- यहाँ पर मेर जाति की टुकड़ी थी , जिन्होंने 1857 की क्रांति में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया ।

(6) खेरवाड़ा (उदयपुर) सैनिक छावनी :- यहाँ भीलों की टुकड़ी थी , जिन्होंने 1857 की क्रांति में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया ।

कोटा का विद्रोह (क्रांति) :-

  • राजस्थान में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में कोटा का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण था । कोटा में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष राजकीय सेना तथा आम जन ने किया । कोटा कंटिनजेन्ट को 19 मई 1857 को ही मथुरा के लिए स्थानांतरित कर दिया गया था । कोटा के पॉलिटिकल एर्जेंट मेजर बर्टन थे ।
  • नीमच में 3 जून 1857 को भारतीय सैनिकों के संघर्ष की सूचना पाकर मेजर बर्टन कोटा, झालावाड़ तथा बूंदी की राजकीय सेनाओं को लेते हुए नीमच पहुंचा तथा नीमच छावनी पर अधिकार कर लिया ।
  • कोटा में जयदयाल , हरदयाल एवं मेहराबखान लोगों में क्रांति की भावनाएं भर रहे थे । मेजर बर्टन ने 14 अक्टूबर 1857 को कोटा महाराव रामसिंह को जयदलाल व रिसालदार मेहराबखान को दंडित करने की सलाह दी ।
  • कोटा में क्रांतिकारियों की कमान रियासत के पूर्व सरकारी वकील लाला जयदयाल व रिसालदार मेहराबखान के हाथों में थी । उन्होंने 15 अक्टूबर 1857 की क्रांति का बिगुल बजा दिया एवं रेजीडेंसी को घेर लिया । पॉलिटिकल एर्जेंट मेजर बर्टन , उसके दो पुत्रों व एक डॉक्टर सैडलर काटम की हत्या कर दी गई । क्रांतिकारियों ने मेजर बर्टन का सिर धड़ से अलग कर दिया व इसका सारे शहर में खुला प्रदर्शन किया ।
  • कोटा के महाराव रामसिंह द्वितीय को उनके महल में नजरबंद किया । अब सारा शहर क्रांतिकारियों के नियंत्रण में हो गया ।
  • एजीजी पेट्रिक लॉरेन्स ने करौली के शासक मदनपाल के सहयोग से जनवरी, 1958 को कोटा के नजरबंद राजा रामसिंह द्वितीय को मुक्त करवाया । राजा मदनपाल को उपहार स्वरूप अंग्रेजों ने सर्वाधिक 17 तोपों की सलामी व GCI की उपाधि दी ।
  • 31 मार्च 1858 को मेजर जनरल रॉबटर्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना कोटा पहुंची तथा अंग्रेजी सेना ने कोटा पर अधिकार कर लिया , जिससे लड़ते हुए मोहम्मद खाँ , अंबर खाँ और गुल मुहम्मद खाँ मारे गये ।
  • जयदलाल भटनागर और मेहराब खाँ को कोटा एजेंसी भवन के पास नीम के पेड़ पर फांसी दे दी गई ।
  • हरदयाल भटनागर ने मार्च 1858 में कैथूनीपोल में मेजर रॉबर्ट्स की सेना के विरुद्ध विद्रोह सेना का नेतृत्व किया और वीरगति प्राप्त की ।

धौलपुर की क्रांति :-

  • 27 अक्टूबर 1857 को धौलपुर में ग्वालियर व इंदौर के क्रांतिकारी सैनिकों ने देवा गुर्जर, राव रामचंद्र एवं हीरालाल के नेतृत्व में स्थानीय सैनिकों की सहायता से विद्रोह करके राज्य पर अधिकार कर लिया ।
  • धौलपुर के शासक भगवन्तसिंह के कई वरिष्ठ अधिकारी व सैनिक विद्रोहियों के साथ मिल गए तथा विद्रोहियों ने करीब 2 महीने तक धौलपुर पर कब्जा बनाए रखा ।
  • पटियाला की सेना के दिसंबर में धौलपुर पहुंचने पर राज्य को विद्रोहियों से मुक्त करवाया । राव रामचंद्र एवं हीरालाल के नेतृत्व में करीब 1000 क्रांतिकारी धौलपुर से आगरा प्रस्थान कर गये ।
  • अलवर के महाराजा बन्नेसिंह ने अंग्रेजों की मदद हेतु अपनी सेना आगरा भेजी जिसे रस्ते में अचनेरा (अछनेर) नामक स्थान पर क्रांतिकारियों ने पराजित किया ।

भरतपुर की क्रांति :-

  • 1857 के विद्रोह के समय महाराजा जसवंत सिंह के अल्पवयस्क होने के कारण राज्य का प्रशासन पॉलिटिकल एजेंट के हाथों में था ।
  • तात्या टोपे ने राजस्थान में प्रवेश किया तो भरतपुर की सेना अंग्रेजी सेना का साथ देने के लिए दौसा भेजी गई । इसी दौरान भरतपुर के मेव और गुर्जरों ने विद्रोहियों से मिलकर 31 मई 1857 को विद्रोह कर दिया और पॉलिटिकल एजेंट मॉरीसन पराजित होकर आगरा भाग गया ।

टोंक की क्रांति :-

  • टोंक रियासत की स्थापना 1817 में नवाब अमीर खाँ व तत्कालीन अंग्रेज शासकों के मध्य हुए एक समझौते के जरिए हुई थी ।
  • इस रियासत के द्वितीय नवाब वजीर खाँ (वजीरूद्दौला) के शासक काल में भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857 की क्रांति) हुआ था ।
  • तांत्या टोपे के सेना सहित टोंक आने पर क्रांतिकारी उनके साथ हो गये । बनास नदी के किनारे और अमीरगढ़ के किले के निकट विद्रोहियों और नवाब की सेना में भयंकर संघर्ष हुआ । नवाब के दीवान फैजुल्ला खाँ को पकड़कर विद्रोहियों ने तोपखाने पर अधिकार कर लिया । नगर को घेरकर टोंक राज्य पर अपने शासन की घोषणा कर दी जो लगभग 6 माह तक रहा ।
  • अंत में जयपुर के रेजीडेन्ट ईडन के बड़ी सेना लेकर पहुंचने पर टोंक मुक्त हो सका । टोंक के विद्रोह में मीर आलम खाँ व उनके परिवार ने अग्रणी भूमिका निभाई ।

अजमेर की क्रांति :- अजमेर में 9 अगस्त 1857 को केंद्रीय कारागृह में कैदियों ने विद्रोह कर दिया और लगभग 50 कैदी जेल से भाग निकले ।

तांत्या टोपे का राजस्थान आगमन :-

  • तांत्या टोपे का जन्म 1819 ईसवी में हुआ था तथा उसका मूल नाम रामचंद्र पांडुरंग था । वह पेशवा बाजीराव के उत्तराधिकारी नाना साहब का स्वामिभक्त सेवक था । 1857 की क्रांति में वह ग्वालियर का विद्रोही नेता था ।
  • तांत्या टोपे राजस्थान अभियान के तहत मांडलगढ़ होते हुए 8 अगस्त 1857 को भीलवाड़ा पहुंचे । वहाँ 9 अगस्त को उनका कोठारी नदी के तट पर कुआड़ा नामक स्थान पर जनरल रॉबर्ट्स की सेना से युद्ध हुआ परंतु उन्हें पीछे हटना पड़ा ।
  • कुआड़ा से तांत्या टोपे सेना सहित नाथद्वारा होते हुए कोठारिया के ठाकुर जोधसिंह के पास पहुंचे , जहाँ उन्हें कोई सहायता नहीं मिली ।
  • 14 अगस्त 1857 को कोठारिया के निकट रूपनगढ़ में जनरल रॉबर्ट्स की सेना ने पुन: तात्या टोपे की सेना को हरा दिया । उसके बाद तांत्या टोपे अकोला की तरफ चले गए । वहाँ से वह झालावाड़ पहुंचे ।
  • रेलायता नामक स्थान पर तांत्या टोपे ने महाराणा पृथ्वीसिंह की ‘गोपाल पलटन’ को हरा दिया । इसके बाद झालावाड़ की सेना उनसे मिल गई एवं शासक पृथ्वीसिंह को अपदस्थ कर झालावाड़ पर क्रांतिकारियों ने अधिकार कर लिया । इसी बीच ब्रिगेडियर पार्क अंग्रेजी सेना सहित तांत्या टोपे का पीछा करता हुआ झालावाड़ पहुंच गया । तांत्या टोपे वहाँ से छोटा उदयपुर होते हुए पुन: ग्वालियर चले गए ।
  • तांत्या टोपे दिसंबर 1857 में पुन: मेवाड़ आये तथा 11 दिसंबर 1857 को उसके सेना ने बाँसवाड़ा पर अधिकार कर लिया । महारावल लक्ष्मणसिंह ने राजधानी छोड़कर जंगलों में शरण ली ।
  • वहाँ से तांत्या टोपे प्रतापगढ़ पहुंचे , जहाँ मेजर रॉक की सेना ने उन्हें परास्त किया । इसके बाद वे सलूम्बर व भीण्डार होते हुए जनवरी 1858 में बंदा के नवाब के साथ टोंक पहुंचे ।
  • तांत्या टोपे ने टोंक के जागीरदार नासिर मुहम्मद खाँ को साथ लेकर टोंक पर अपना नियंत्रण कर लिया ।
  • जयपुर के मेजर ईडन के सेना सहित टोंक पहुंचने पर तांत्या टोपे क्रांतिकारियों सहित नाथद्वारा की ओर प्रस्थान कर गये ।
  • तांत्या टोपे बांसवाड़ा और मेवाड़ होते हुए जयपुर की ओर बढ़े शाहजादा फिरोज उनसे मिल गया । मार्च 1858 में कर्नल होम्स की सेना से पराजित होने के बाद जंगलों में भटकते रहे । जंगलों में भटकते हुए तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने उनकी एक विश्वासघाती सहयोगी नरवर के जागीरदार मानसिंह नरूका के सहयोग से पकड़ लिया । 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी में सिप्री नदी के किनारे तांत्या टोपे को फांसी दे दी गई ।

डूँगरजी-जवाहरजी :-

  • शेखावाटी में सर्वप्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व बठोठ पाटोदा (सीकर) ठाकुर डूंगरसिंह व उनके भतीजे जवाहरसिंह शेखावत ने किया ।
  • सन् 1847 में डूँगरजी-जवाहरजी ने छापामार लड़ाइयों से अंग्रेजों को बुरी तरह परेशान किया । उन्हें इस क्षेत्र के लोग लोक देवता के रूप में पूजते हैं । अंग्रेजों ने डूँगरजी को आगरा के किले में कैद कर दिया था । जवाहरजी ने उन्हें लोटिया जाट और करणिया मीणा के साथ मिलकर कैद से छुड़ाया । कैद से छूटने के बाद डूँगरजी-जवाहरजी ने 1847 में नसीराबाद छावनी को बुरी तरह से लूटा ।
  • अंग्रेजों ने डूँगरजी के साले भैंरोसिंह गौड को बहकाकर तथा लालच देकर अपनी ओर मिला लिया । डूँगरजी को उनके ससुराल झड़वासा में शराब पिलाकर भैंरोसिंह ने उन्हें सोते हुए गिरफ्तार करवा दिया ।
  • डूँगरजी-जवाहरजी इतने वीर पुरुष थे कि फतेहपुर (शेखावटी) में आज भी लोग इन्हें लोक देवता के रूप में श्रद्धा पूर्वक पूजते हैं । शेखावाटी में भोपे भी इनकी विरूदावली गाते हैं ।

1857 की क्रांति के असफलता के कारण :-

सितंबर 1857 को मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को कैद में कर लिया गया और दिल्ली के लाल किले पर अंग्रेजी आधिपत्य हो गया । इस क्रांति की असफलता के प्रमुख कारण निम्न थे :-

(१) राजस्थानी रियासतों के नरेशों ने अंग्रेजों के प्रति अपनी दासवृत्ति का परिचय दिया ।
(२) क्रांतिकारियों में रणनीति व कूटनीति में दक्ष सेनानायकों का अभाव था ।
(३) यह क्रांति भावना प्रधान क्रांति थी न की योजना प्रधान ।
(४) क्रांतिकारियों के पास धन, रसद व हथियारों की कमी थी ।
(५) ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध यह केवल स्थानीय व एकता की संघर्ष था जिसमें अखिल भारतीय दृष्टिकोण का अभाव था ।
(६) मारवाड़, मेवाड़, जयपुर आदि ने तांत्या टोपे से असहयोग किया ।
(७) राजस्थानी रियासतों के नरेशों का रूख विद्रोह विरोधी था ।

1857 की क्रांति के समय राजस्थान की रियासतों के शासक :-

  • भरतपुर ➡ महाराजा जसवंतसिंह
  • अलवर ➡ महाराजा बन्नेसिंह
  • करौली ➡ महाराजा मदनपाल सिंह
  • टोंक ➡ नवाब वजीरूद्दौला
  • कोटा ➡ महाराव रामसिंह
  • जोधपुर ➡ महाराजा तख्तसिंह
  • उदयपुर ➡ महाराणा स्वरूपसिंह
  • बूँदी ➡ महाराव रामसिंह
  • बीकानेर ➡ महाराजा सरदारसिंह
  • जयपुर ➡ महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय
  • प्रतापगढ़ ➡ दलपतसिंह
  • डूँगरपुर ➡ महाराज उदयसिंह
  • बाँसवाड़ा ➡ महाराज लक्ष्मण सिंह
  • जैसलमेर ➡ महारावल रणजीत सिंह
  • धौलपुर ➡ महाराजा भगवंत सिंह
  • सिरोही ➡ महाराजा शिव सिंह
  • झालावाड़ ➡ महाराजा पृथ्वीसिंह

महत्वपूर्ण तथ्य :-

गुल मोहम्मद निशांचि हाफिज (जन्म-चित्तौड़गढ़)– टोंक स्टेट आर्मी में बंदूकची थे । 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजी सेना के विरुद्ध युद्ध किया और दिल्ली में शहीद हो गए ।

ताराचंद :- टोंक के स्वतंत्रता सेनानी ।

बीकानेर :- राजस्थान के शासकों में बीकानेर ही पहला राज्य था जहाँ का शासक सरदारसिंह स्वयं अपनी सेना के साथ अंग्रेजों की सहायता के लिए राज्य के बाहर पंजाब के हांसी, सिरसा और हिसार जिलों में पहुंच गया था । महाराजा की इन सेवाओं से प्रसन्न होकर अंग्रेज सरकार ने बीकानेर को टीबी परगने के 41 गाँव दिये ।

शेखावाटी ब्रिगेड :- इसका मुख्यालय झुंझुनूं था ।

बलजी-भूरजी :- डूँगरजी-जवाहरजी का वास्तविक नाम ।

पाली :- राजस्थान के इस जिले में 1857 की क्रांति के दो विजय स्तंभ विद्यमान है ।

सीकर :- राजस्थान में 1857 की क्रांति का अंत यहां हुआ ।

अमरचंद बांठिया :- देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी पर लटकाए गए प्रथम शख्स । इन्हें दूसरा भामाशाह भी कहते हैं ।

माझा प्रवास पुस्तक :- 1857 की क्रांति के दौरान लिखी गई इस पुस्तक का लेखक विष्णु भट्ट गोडसे था ।

जिया लाल :- निंबाहेड़ा के मुख्य पटेल । कैप्टन शावर्स के आदेश का पालन न करना । विद्रोही सेना का गठन । अंग्रेजों के विरुद्ध कई युद्ध लड़े । बंदी बनाये गये और मार डाले गए ।

भैरू सिंह जोधा :- गेराओं का जागीरदार । आउवा के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए ।

Leave a Reply

Discover more from GK Kitab

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Scroll to Top