भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन

भारत में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों का आगमन

मध्य काल में भारत और यूरोप के व्यापारिक संबंध थे । ये व्यापार मुख्यतः भारत के पश्चिमी समुद्र तट से लाल सागर और पश्चिमी एशिया के माध्यम से होता था । यह व्यापार मसालों और विलास की वस्तुओं से जुड़ा हुआ था ।

European Companies ka Bharat me Aagman

(1) पुर्तगाली

  • प्रथम पुर्तगीज तथा प्रथम यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा 90 दिन की समुद्री यात्रा के बाद ‘अब्दुल मनीक’ नामक भारतीय व्यापारी के सहयोग से 1498 ई. को कालीकट के समुद्र तट पर उतरा ।
  • कालीकट के शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया ।
  • वास्कोडिगामा ने भारत में काली मिर्च के व्यापार से 60 गुना अधिक मुनाफा कमाया , जिससे अन्य पुर्तगीज व्यापारियों को भी प्रोत्साहन मिला ।
  • पुर्तगालियों के दो प्रमुख उद्देश्य थे – अरबों और वेनिश के व्यापारियों का भारत से प्रभाव समाप्त करना तथा ईसाई धर्म का प्रचार करना ।
  • पुर्तगाली समुद्रिक साम्राज्य को एस्तादो द इंडिया नाम दिया गया ।
  • वास्कोडिगामा के बाद भारत आने वाला दूसरा पुर्तगाली यात्री पेड्रो अल्ब्रेज कैब्राल ( 1500 ई.) था ।
  • वास्कोडिगामा दूसरी बार भारत 1502 ई. में आया ।
  • पूर्वी जगत के काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से पुर्तगालियों ने 1503 ईसवी में कोचीन में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की ।
  • भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय के रूप में फांसिस्को डी अल्मेडा (1505-1509) का आगमन हुआ ।
  • पुर्तगालियों ने अपना दूसरा दुर्ग 1505 ई. में कन्नूर में बनाया ।
  • अल्फांसो डी अल्बुकर्क 1503 में भारत स्क्वैड्रन कमांडर के रूप में आया था , जिसे 1509 में भारत में वायसराय नियुक्त कर दिया गया ।
  • अल्फांसो डी अल्बुकर्क को भारत में “पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक” माना जाता है ।
  • अल्बुकर्क ने 1510 ई. में बीजापुर के शासक आदिलशाह युसुफ से गोवा को छीन लिया , जो कालांतर (1530 ई.) में भारत में पुर्तगीज व्यापारिक केंद्रों की राजधानी बनाई गई ।
  • भारत आये पुर्तगाली वायसराय नीनू डी कुन्हा ( 1529-38 ई.) ने 1530 ई. में कोचीन की जगह गोवा को राजधानी बनाया ।
  • डी कुन्हा ने सैनथोमा (मद्रास ), हुगली (बंगाल ) और दीव (काठियावाड़ ) में पुर्तगीज बस्तियों की स्थापना की ।
  • पुर्तगीज वायसराय जोवा डी कैस्ट्रो ने पश्चिमी भारत के चाऊल , दीव ,सॉलसेट और बेसीन तथा बम्बई पर अधिकार कर लिया ।
  • बंगाल के शासक महमूदशाह द्वारा पुर्तगालियों ने 1534 में चटगाँव और सतगाँव में अपनी व्यापारिक फैक्ट्री खोलने की अनुमति प्राप्त की ।
  • पुर्तगालियों ने अकबर की अनुमति से हुगली में तथा शाहजहाँ की अनुमति से बंदेल में कारखाने स्थापित किए ।
  • पुर्तगालियों ने दीव एवं दमन पर क्रमश: 1535 ई. एवं 1559 ई. में अधिकार किया ।
  • पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसूजा ( 1542-45 ई.) के साथ प्रसिद्ध जेसुइट संत फ्रांसिस्को जेवियर भारत आए ।
  • पुर्तगाली गोवा, दमन और दीव पर 1961 ईस्वी तक शासन करते रहे ।
  • पुर्तगालियों के भारत आगमन से भारत में तंबाकू की खेती, जहाज निर्माण (गुजरात और कालीकट ) तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई ।
  • 1556 ई. में गोवा में पुर्तगालियों ने भारत का प्रथम प्रिंटिंग प्रेस स्थापित किया । भारतीय जड़ी बूटियां और औषधीय वनस्पतियों पर यूरोपीय लेखक द्वारा लिखित पहले वैज्ञानिक ग्रंथ का 1563 ई. में गोवा से प्रकाशन हुआ ।
  • ईसाई धर्म का मुगल शासक अकबर के दरबार में प्रवेश फादर एकाबिवा और माँसरेत के नेतृत्व में हुआ ।
  • पुर्तगालियों के साथ भारत में ‘गोथिक‘ स्थापत्य कला का आगमन हुआ ।
  • दक्षिणी पूर्वी तट पर पुर्तगालियों की एकमात्र बस्ती सन-थोमे थी ।
  • गोवा घोड़ों के आयात के लिए प्रसिद्ध था ।
  • पुर्तगाली खुद को सागर का स्वामी कहते थे ।

(2) डच

  • पुर्तगालियों के बाद भारत में डच लोग आए । पहला डच यात्री कार्नेलियन हाऊटमैन 1596 ई. में भारत के पूर्व सुमात्रा पहुंचा ।
  • 1602 ई. में डच (हालैंड) संसद द्वारा पारित प्रस्तावों से एक संयुक्त डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई । इस कंपनी को डच संसद द्वारा 21 वर्षों के लिए भारत और पूरब के देशों के साथ व्यापार करने, आक्रमण और विजयें करने के संबंध में अधिकार पत्र प्राप्त हुआ ।
  • डचों ने भारत में अपनी प्रथम व्यापारी कोठी (फैक्ट्री) 1605 ई. में मसूलीपट्टम में स्थापित की । डचों की दूसरी व्यापारिक कोठी पुलिकट (1610 ई.) में स्थापित हुई , जहाँ उन्होंने अपने स्वर्ण सिक्के ( पैगोडा) को ढाला और पुलिकट को ही समस्त गतिविधियों का केंद्र बनाया ।
  • डचों ने भारत में प्रथम बार औद्योगिक वेतनभोगी रखे ।
  • डचों द्वारा भारत से नील, शोरा और सूती वस्त्र का निर्यात किया जाता था ।
  • सूरत ( 1616 ई.) स्थित डच व्यापार निदेशालय डच ईस्ट इंडिया कंपनी का सर्वाधिक लाभ कमाने वाला प्रतिष्ठान था ।
  • बंगाल में प्रथम डच फैक्ट्री पीपली में स्थापित की गई , लेकिन शीघ्र ही पीपली की जगह बालासोर ( नेगापट्टम) में फैक्ट्री स्थापना ( 1658 ई.) की गई ।
  • 1653 ई. में चिनसुरा अधिक शक्तिशाली डच व्यापार केंद्र बन गया । यहां पर डचों ने गुस्तावुल नाम के किले का निर्माण करवाया ।
  • डचों का भारत में अंतिम रूप से पतन 1759 ई. को अंग्रेजों एवं डचों के मध्य हुए वेदरा युद्ध हुआ ।

(3) अंग्रेज

  • 1599 ई. में जॉन मिल्डेनहाल नामक ब्रिटिश यात्री थल मार्ग से भारत आया ।
  • 31 दिसंबर , 1600 ई. इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ प्रथम ने ईस्ट इंडिया कंपनी को 15 वर्षों के लिए अधिकार पत्र प्रदान किया । प्रारंभ में ईस्ट इंडिया कंपनी में 217 साझीदार थे और पहला गवर्नर टॉमस स्मिथ था ।
  • मुगल दरबार में जाने वाला प्रथम अंग्रेज कैप्टन हॉकिंस था , जो जेम्स प्रथम के राजदूत के रूप में अप्रैल 1609 ई. में जहांगीर के दरबार में गया था ।
  • भारत आने वाला पहला अंग्रेजी जहाज रेड ड्रैगन था ।
  • पहली बार सूरत में 1608 ई. में व्यापारिक कोठी स्थापित करने का प्रयास किया गया था ।
  • 1611 ई. में दक्षिणी पूर्वी समुद्री तट पर सर्वप्रथम अंग्रेजों ने मसूलीपट्टम में व्यापारिक कोठी की स्थापना की ।
  • जहांगीर ने 1613 ई. में एक फरमान जारी कर अंग्रेजो को सुरत में थॉमस एल्डवर्थ के अधीन व्यापारिक कोठी खोलने की इजाजत दी ।
  • 1615 ई. में सम्राट जेम्स प्रथम ने ‘सर टॉमस रो‘ को अपना राजदूत बनाकर मुगल सम्राट जहांगीर के दरबार में भेजा ।
  • सर टॉमस रो 1619 ई. तक भारत में रहा । इसने जहांगीर तथा शाहजहाँ से अंग्रेजों के लिए कुछ व्यापारिक छूट प्राप्त करने में सफल हुआ ।
  • 1632 ई. में गोलकुंडा के सुल्तान ने अंग्रेजों को एक सुनहला फरमान दिया , जिसके अनुसार अंग्रेज सुल्तान को 500 पैगोडा वार्षिक दर देखकर गोलकुंडा राज्य के बंदरगाह पर सफलतापूर्वक व्यापार कर सकते थे ।
  • 1633 ई. में पूर्वी तट पर अंग्रेजों ने अपना पहला कारखाना बालासोर और हरिहरपुरा में स्थापित किया ।
  • 1639 ई. में अंग्रेज फ्रांसिस डे ने चंद्रगिरी के राजा से मद्रास पट्टे पर लिया एवं वहीं एक किलाबंद कोठी का निर्माण किया । इस कोठी का नाम फोर्ड सेन्ट जार्ज पड़ा और यही कोठी कालान्तर (1641 ई.) में कोरोमंडल तट पर अंग्रेजी मुख्यालय बना ।
  • 1661 ई. में पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन ऑफ ब्रेगेन्जा एवं ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स द्वितीय का विवाह हुआ । इस अवसर पर दहेज के रूप में पुर्तगालियों ने चार्ल्स द्वितीय को बुम्बई प्रदान किया ।
  • 1668 ई. में चार्ल्स द्वितीय ने बुम्बई को 10 पौण्ड के वार्षिक किराये पर ईस्ट इंडिया को दे दिया ।
  • 1687 ई. में अंग्रेजों ने पश्चिमी तट का मुख्यालय सूरत से हटाकर बुम्बई को बनाया ।
  • गेराल्ड औंगियर ( 1669-1677) ने बुम्बई शहर की स्थापना की ।
  • बंगाल के शासक शाहशुजा ने सर्वप्रथम 1651 ईस्वी में अंग्रेजों को व्यापारिक छूट की अनुमति दी । इस अनुमति को निशान कहते थे ।
  • विलियम हैजेज बंगाल का प्रथम अंग्रेज गवर्नर था ।
  • 1698 ई. में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने 3 गांव – सूतानुती, कालीकट एवं गोविंदपुर की जमींदारी 1200 ₹ भुगतान कर इब्राहिम खां प्राप्त की और यहां पर फोर्ट विलियम का निर्माण किया ।
  • चार्ल्स आयर , फोर्ट विलियम के प्रथम प्रेसिडेंट हुए । कालान्तर में यही कोलकाता नगर कहलाया , जिसकी नींव जॉर्ज चारनौक ने रखी ।

(4) फ्रांसीसी

  • लुई चौदहवें के मंत्री कॉलबर्ट द्वारा 1664 ई. में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई , जिसे कम्पने देस इण्दसे ओरियंटलेस कहा गया ।
  • 1667 में फ्रेंसिस कैरो के नेतृत्व में एक अभियान दल भारत के लिए रवाना हुआ । जिसने 1668 में सूरत में अपने पहले व्यापारिक कारखाने की स्थापना की ।
  • 1669 में मर्कारा ने गोलकुंडा के सुल्तान से अनुमति प्राप्त कर मसूलीपट्टम में दूसरी फ्रेंच फैक्ट्री की स्थापना की ।
  • 1672 में एडमिरल डेला हे ने गोलकुंडा के सुल्तान को हराकर सैनथोमी को छीन लिया ।
  • 1673 में कंपनी के निदेशक फ्रेंसिस मार्टिन ने वलिकोण्डापुर के सूबेदार शेरखां लोदी से पुदुचेरी नामक एक गांव प्राप्त किया, जिससे कालांतर में पांडिचेरी के नाम से जाना गया ।
  • 1674 में बंगाल के सूबेदार शाइस्ता खां द्वारा फ्रांसीसियों को प्रदत्त स्थान पर 1690-92 को चंद्र नगर की स्थापना की गई ।
  • डचों ने अंग्रेजों की सहायता से 1693 में पांडिचेरी को छीन लिया , लेकिन 1697 में संपन्न रिजविक की संधि के बाद पांडिचेरी पुन: फ्रांसीसियों को प्राप्त हो गया ।
  • 1701 में पांडिचेरी को पूर्व में फ्रांसीसी बस्तियों का मुख्यालय बनाया गया और मार्टिन को भारत में फ्रांसीसी मामलों का महानिदेशक नियुक्त किया गया ।
  • पांडिचेरी के कारखाने में ही मार्टिन ने फोर्ट लुई का निर्माण करवाया ।
  • प्रथम कर्नाटक युद्ध ( 1746-48) में आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध से प्रभावित था । 1748 ई. में हुई ए-ला-शापल की संधि के द्वारा आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध समाप्त हो गया और इसी संधि के तहत प्रथम कर्नाटक युद्ध समाप्त हुआ ।
  • दूसरा कर्नाटक युद्ध ( 1749-54) में हुआ । इस युद्ध में फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले की हार हुई । उसे वापस बुला लिया गया और उसकी जगह पर गोडेहू को भारत में अगला फ्रांसीसी गवर्नर बनाया गया । पांडिचेरी की संधि ( 1755) के साथ युद्ध-विराम हुआ ।
  • कर्नाटक का तीसरा युद्ध ( 1756-63) के बीच हुआ, जो 1756 में शुरू हुए सप्तवर्षीय युद्ध का ही एक अंश था । पेरिस की संधि होने पर यह युद्ध समाप्त हुआ ।
  • 1760 ई. में अंग्रेजी सेना ने सर आयरकूट के नेतृत्व में वांडिवाश की लड़ाई में फ्रांसीसियों को बुरी तरह हराया ।
  • 1761 ई. में अंग्रेजों ने पांडिचेरी को फ्रांसीसियों से छीन लिया ।
  • 1763 ई. में हुई पेरिस संधि के द्वारा अंग्रेजों ने चंद्रनगर को छोड़कर अन्य प्रदेशों को लौटा दिया । ये प्रदेश भारत की आजादी तक फ्रांसीसियों के कब्जे में रहे ।

(5) डेन

  • डेनमार्क ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1616 ई. हुई । इस कंपनी ने 1620 में त्रैकोबार (तमिलनाडु ) तथा 1676 ई. में सेरामपुर ( बंगाल) में अपनी व्यापारिक कंपनियां स्थापित की ।
  • सेरामपुर डेनो का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था ।
  • 1845 में डेन लोगों ने अपनी भारतीय वाणिज्यक कंपनी को अंग्रेजों को बेच दिया ।
कंपनी स्थापना वर्ष
पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी 1498 ई.
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 ई.
डच ईस्ट इंडिया कंपनी 1602 ई.
डैनिश ईस्ट इंडिया कंपनी 1616 ई.
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी 1664 ई.
स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी 1731 ई.

➡ भारत में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों के आगमन का क्रम इस प्रकार था – पुर्तगाल -डच- अंग्रेज – डेन- फ्रासीसी ।

➡ भारत में पुर्तगाली सबसे पहले 1498 में आये और सबसे अंत में 1961 में वापस गये ।

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